मेंडल के वंशागति के नियम :-
- प्रभाविता का नियम
- प्रभाविता के नियम के उदाहरण
- प्रभाविता के नियम का चेकर बोर्ड के द्वारा निरूपण
- प्रभाविता के नियम का निरूपण – एकल संकर संकरण के द्वारा
प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)
प्रभावी (Dominance) लक्षण
प्रभाविता का नियम मेंडल द्वारा प्रतिपादित एक संकर संकरण के परिणामों पर आधारित हैइस नियम के अनुसार जब एक लक्षण के लिए विपर्यासी समयुग्मजी पादपों में संकरण कराया जाता है तो जो लक्षण F1 पीढ़ी में अपना प्रभाव दिखाता है वह प्रभावी (Dominance) लक्षण कहलाता है । तथा
अप्रभावी (Recessive) लक्षण
जो लक्षण F1 पीढ़ी में अपना प्रभाव नहीं दिखाता है वह अप्रभावी (Recessive) लक्षण कहलाता है।
उदाहरण
शुद्ध या समयुग्मजी लम्बे (TT) पौधे को शुद्ध या समयुग्मजी बौने (tt) पौधे के साथ संकरण कराया जाता है तो प्रभाविता के नियम के अनुसार प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे (100%) अशुद्ध लम्बे या विषमयुग्मजी (T t) लम्बे पौधे प्राप्त होते हैं।
- यह भी पढ़ें :- अनुवांशिकी Genetics, मेंडल के तकनीकी शब्दावली
पृथक्करण का नियम या युग्मकों की शुद्धता का नियम
- पृथक्करण का नियम
- पृथक्करण के नियम का उदाहरण द्वारा निरूपण
- पृथक्करण के नियम का निरूपण
- एक संकर संकरण द्वारा
पृथक्करण का नियम
पृथक्करण का नियम मेंडल के एक संकर संकरण पर आधारित है इस नियम के अनुसार F1 पीढ़ी के शंकर या विषमयुग्मजी संतति के बीच संकरण कराया जाता है तो युग्मक बनते समय दोनों युग्मविकल्पी अलग-अलग युग्मकों में पृथक – पृथक रूप से चले जाते हैं इसलिए इसे पृथक्करण का नियम या युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं।
प्रत्येक युग्मक में एक लक्षण के लिए एक युगमविकल्पी या जीन होता है जो अपने लक्षण के लिए शुद्ध होता है, अतः इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं।
उदाहरण
समयुग्मजी लम्बे (TT ) एवं समयुगमजी बौने (tt) पौधो में संकरण कराया जाता है तो F1 पीढ़ी में सभी पौधे विषमयुग्मजी लम्बे (Tt) पौधे प्राप्त होते हैं।विषमयुग्मजी (T t) संतति में दोनो युगमविकल्पी साथ साथ रहते हुए एक दूसरे से संदूषित या प्रभावित नहीं होते हैं। युग्मक बनते समय दोनों युग्मविकल्पी पृथक पृथक होकर अलग अलग युग्मकों में चले जाते हैं जिस कारण F2 पीढ़ी में बौनेपन (tt)का लक्षण फिर से प्रकट हो जाता है।F2 पीढ़ी का लक्षण प्ररूप अनुपात 3:1 तथा जीन प्ररूप अनुपात 1:2:1 प्राप्त होता है।
स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम(Law of independent assortment)
- स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम
- स्वतंत्र अपव्यूहन के नियम को उदाहरण से समझना
- स्वतंत्र अपव्यूहन के नियम का निरूपण
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स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम
स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम मेंडल के द्विसंकर संकरण पर आधारित है इस नियम के अनुसार जब दो या दो से अधिक विपरीत लक्षणों वाले पादपों का संकरण कराया जाता है तो एक लक्षण की वंशागति का दूसरे लक्षण की वंशागति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। दोनों युगमविकल्पी एक दूसरे के प्रति स्वतंत्र रूप से व्यवहार करते हैं इसलिए इस नियम को स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम कहते हैं।
उदाहरण
मटर के समयुग्मजी पीले व गोलाकार बीज (YYRR) वाले पौधों का हरे व झुर्रीदार (yyrr) बीज वाले पौधों के साथ संकरण कराया जाता है तो F1 पीढ़ी में सभी पौधे पीले व गोलाकार (YyRr) बीज वाले प्राप्त होते हैं।F2 पीढ़ी में स्वपरागण कराने पर F2 पीढ़ी में चार प्रकार के पौधे प्राप्त होते हैं जिसमें दो प्रकार के पौधे जनक पौधे के समान प्राप्त होते हैं तथा दो पौधे जनको से भिन्न प्राप्त होते हैं।F2 पीढ़ी का लक्षण प्ररूप अनुपात 9:3:3:1एवं जीन प्ररूप अनुपात 1:2:2:4:1:2:1:2:1प्राप्त होता है।
परागण (pollination)
परागण (pollination) की क्रियाएक पुष्प के परागकणों (नर युग्मक) का पुष्प की वर्तिकाग्र (मादा युग्मक) तक पहुंचने की क्रिया को परागण कहते हैं।
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