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Class 10 Chapter 4, प्रतिरक्षा एवं रक्त समूह (Immunity and Blood Group)

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Last Updated on February 24, 2021 by Rahul

प्रतिरक्षा एवं रक्त समूह (Immunity and blood group)

शरीर में रोगाणुओं के उन्मूलन हेतु एक विशेष प्रकार का तंत्र पाया जाता है इस तंत्र को प्रतिरक्षा तंत्र (Immune system) कहते हैं। इस प्रतिरक्षा तंत्र को प्रतिरोधक क्षमता भी कहते हैं।
यह दो प्रकार की होती है जन्मजात या स्वभाविक एवं उपार्जित।

प्रतिरक्षा एवं रक्त समूह (Immunity and blood group)

स्वाभाविक प्रतिरक्षा ( Natural Defense ) :-

इसे जन्मजात प्रतिरक्षा भी कहते हैं। इसे सामान्य प्रतिरक्षा इसलिए कहा जाता है कि यह किसी विशेष रोगाणु के प्रति प्रतिक्रिया नहीं करती है बल्कि सभी प्रति जनों के विरुद्ध समान रूप से कार्य करती है।
स्वाभाविक प्रतिरक्षा के लिए निम्न कारक जिम्मेदार होते हैं

  • भौतिक अवरोधक
  • रासायनिक अवरोधक
  • कोशिका अवरोधक
  • ज्वर एवं सूजन आदि।

उपार्जित प्रतिरक्षा विधि (Acquired immunity method) :-

उपार्जित प्रतिरक्षा विधि अनुकूल अथवा विशिष्ट प्रतिरक्षा भी कहलाती है। इस प्रकार की प्रतिरक्षा में एक पोषक किसी विशेष सूक्ष्मजीवी अथवा बाह्य पदार्थ के प्रति अत्यंत विशिष्ट प्रघात प्रकट करता है। इस प्रतिरक्षा में प्रतिरक्षियों का निर्माण होता है। यह प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है सक्रिय एवं निष्क्रिय ।

सक्रिय प्रतिरक्षा (Active Immunity) :-

एक ऐसी प्रतिरक्षा प्रणाली जिसमें मानव शरीर प्रतिजन के विरुद्ध स्वयं प्रतिरक्षियों का निर्माण करता है ।

निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive Immunity):-

ऐसी प्रतिरक्षा प्रणाली जिसमें मानव शरीर में किसी विशेष प्रतिजन के विरुद्ध बाहर से विशिष्ट प्रतिरक्षी प्रविष्ट करवाए जाते हैं।

प्रतिजन प्रतिरक्षी (Antigen and Antibody)

प्रतिजन (Antigen) :-

प्रतिजन वह बाहरी रोगाणु अथवा पदार्थ है जिन का आणविक भार 6000 डाल्टन अथवा उससे ज्यादा होता है। प्रतिजन विभिन्न रासायनिक संगठनों के हो सकते हैं जैसे प्रोटीन पॉलिसैकेराइड शर्कराएं, लिपिड या न्यूक्लिक अम्ल। कभी-कभी शरीर के अंदर के पदार्थ तथा कोशिकाएं भी प्रतिजन के तौर पर कार्य करती हैं।
प्रतिजन संपूर्ण अणु के रूप में प्रतिरक्षी से प्रतिक्रिया नहीं करते वरन इसके कुछ विशिष्ट अंश ही प्रतिरक्षी से जुड़ते हैं इन अणुओं को एंटीजन निर्धारक या (antigenic determinant) और एपीटोप कहा जाता है ।
प्रोटीन में करीब 6 से 8 अमीनो अम्ल की एक श्रंखला एंटीजनी निर्धारक के रूप में कार्य करती है।
एक प्रोटीन में कई एंटीजनी निर्धारक हो सकते हैं। इनकी संख्या को एंटीजन की संयोजकता कहा जाता है।

प्रतिरक्षी Antibody :-

प्रतिरक्षी को इम्यूनोग्लोबिन (संक्षिप्त में Ig) भी कहा जाता है। यह प्लाविका कोशिकाओं द्वारा निर्मित गामा ग्लोबुलीन प्रोटीन है जो प्राणियों के रक्त तथा अन्य तरल पदार्थों में पाए जाते हैं।
प्रतिरक्षी प्रतिजन को पहचानने तथा निष्प्रभावी करने हेतु प्रतिजन से क्रिया करते हैं। प्रतिरक्षी का वह भाग जो प्रतिजन से क्रिया करता है पैराटोप कहलाता है।
प्रतिरक्षी का आकार अंग्रेजी के Y अक्षर की तरह होता है। यह चार संरचनात्मक इकाइयों से मिलकर बनी होती है।

प्रतिरक्षी की सरंचना (Structure of Antibody)

इनमें दो भारी व बड़ी एच (H) तथा दो हल्की व छोटी एल (L) पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएं होती हैं। एक भारी व हल्की श्रंखला मिलकर (HL dimer) बनाते हैं। दो द्वि वलय मिलकर प्रतिरक्षी का निर्माण करते हैं।

प्रतिरक्षियों के प्रकार (Types of Antibodies) :-

प्रतिरक्षियों में पांच प्रकार की भारी पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाएं पाई जाती है।

1. IgG γ (gamma)- एकलकी मोनोमेरिक (Monomeric ):-

प्रमुख संवहनी प्रतिरक्षी, जो रक्त एवं अन्य द्रव्यों में उपस्थित, आवल (placenta) को पार कर भ्रूण तक पहुंचता है।

2. IgE ε(epsilon) – एकलकी (Monomeric):-

प्राथमिक रूप से बेसोफिल तथा मास्ट कोशिकाओं पर क्रिया करता है। यह एलर्जी में हिस्सा लेती है।

3. IgD (delta) डेल्टा एकलकी (Monomeric):-

यह एंटीमाइक्रोबियल कारकों के उत्पादन के लिए बेसोफिल तथा मास्ट कोशिकाओं को सक्रिय करती है।

4. Igm μ(mu)- पंचलक (pentameric):-

प्रतिजन की अनुक्रिया से उत्पादित प्रथम प्रकार की प्रतिरक्षी।

5. IgA α(alpha) -द्विलक (Dimeric) :-

मां के दूध में पाए जाने वाला एकमात्र प्रतिरक्षी, नवजात शिशु की प्रतिरक्षा, इसके अलावा लार व आंसू में पाई जाती है।

रक्त व रक्त समूह (Blood and Blood Groups)

रक्त एक तरल जीवित ऊतक है जो गाढ़ा चिपचिपा व लाल रंग का होता है तथा रक्त वाहिनीयों में प्रवाहित होता है।
यह प्लाज्मा (निर्जीव तरल मध्यम) तथा रक्त कणिकाओं (जीवित कोशिकाओं) से मिलकर बना है।

प्लाज्मा में तीन प्रकार की रक्त कणिकाएं मिलती हैं।

1. लाल रक्त कणिकाएं (Red Blood Corpuscles RBCs) :-

गैसों का परिवहन तथा विनिमय करती है।

2. श्वेत रक्त कणिकाएं (White Blood Corpuscles WBCs) :-

शरीर की रोगाणुओं आदि से रक्षा करती हैं।

3. बिम्बाणु (Platelets) :-

रक्त वाहिनीयों की सुरक्षा करती हैं तथा रक्तस्राव रोकने में मदद करती हैं ।

रक्त समूह (Blood Groups) :-

सर्वप्रथम वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टीनर ने 1901 में रक्त का विभिन्न समूहो में वर्गीकरण किया।
लाल रक्त कणिकाओं की सतह पर मुख्य रूप से दो प्रकार के प्रतिजन (प्रतिजन A एवं प्रतिजन B) पाए जाते हैं।
इन प्रतिजनों की उपस्थिति के आधार पर कुल चार प्रकार के रक्त समूह पाए जाते हैं ए बी ए बी A,B,AB, तथा O तथा इस वर्गीकरण को ABO समूहीकरण कहा जाता है।


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