RBSE SCIENCE CLASS 10 CHAPTER 12 NATURAL RESOURCES (प्राकृतिक संसाधन अर्थ एवं प्रकार)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर (NATURAL RESOURCES)
बहुचयनात्मक प्रश्न (NATURAL RESOURCES)
NATURAL RESOURCES
प्रश्न 1.
खेजड़ली के बलिदान से सबंधित है
(क) बाबा आमटे
(ख) सुन्दरलाल बहुगुणा
(ग) अरुन्धती राय
(घ) अमृता देवी
प्रश्न 2.
भू-जल संकट के कारण हैं
(क) जल-स्रोतों का प्रदूषण
(ख) भू-जल का अतिदोहन
(ग) जल की अधिक मांग
(घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 3.
लाल आंकड़ों की पुस्तक सम्बन्धित है
(क) संकटग्रस्त वन्य जीवों से
(ख) दुर्लभ वन्य जीवों से
(ग) विलुप्त जातियों से
(घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4.
सरिस्का अभयारण्य स्थित है
(क) अलवर में
(ख) जोधपुर में
(ग) जयपुर में
(घ) अजमेर में
प्रश्न 5.
सर्वाधिक कार्बन की मात्रा उपस्थित होती है
(क) पीट में
(ख) लिग्नाइट में
(ग) एन्थेसाइट में
(घ) बिटुमिनस में
उत्तरमाला-
1. (घ)
2. (घ)
3. (घ)
4. (क)
5. (ग)।
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अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (NATURAL RESOURCES)
NATURAL RESOURCES
प्रश्न 6.
संकटापन्न जातियों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
वे जातियाँ जिनके संरक्षण के उपाय नहीं किये गये तो निकट भविष्य में समाप्त हो जायेंगी।
प्रश्न 7.
राष्ट्रीय उद्यान क्या है?
उत्तर-
राष्ट्रीय उद्यान वे प्राकृतिक क्षेत्र हैं, जहाँ पर पर्यावरण के साथ-साथ वन्य जीवों एवं प्राकृतिक अवशेषों का संरक्षण किया जाता है।
प्रश्न 8.
सिंचाई की विधियों के नाम बताइये।
उत्तर-
सिंचाई फव्वारा विधि व टपकन विधि से की जाती है।
प्रश्न 9.
उड़न गिलहरी किस वन्य जीव अभयारण्य में पायी जाती है?
उत्तर-
सीतामाता तथा प्रतापगढ़ अभयारण्य
प्रश्न 10.
पेट्रोलियम के घटकों के नाम लिखो।
उत्तर-
पेट्रोल, डीजल, केरोसीन, प्राकृतिक गैस, वेसलीन, स्नेहक आदि पेट्रोलियम के घटक होते हैं, जिन्हें आसवन विधि द्वारा पृथक् किया जाता है।
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लघूत्तरात्मक प्रश्न (NATURAL RESOURCES)
NATURAL RESOURCES
प्रश्न 11.
जल संरक्षण व प्रबंधन के तीन सिद्धांत बताइये।
उत्तर-
जल संरक्षण व प्रबंधन के तीन महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त निम्न प्रकार से
- जल की उपलब्धता बनाए रखना।
- जल को प्रदूषित होने से बचाना।
- संदूषित जल को स्वच्छ करके उसका पुनर्चक्रण करना।
प्रश्न 12.
सामाजिक वानिकी क्या है?
उत्तर-
सामाजिक वानिकी के अन्तर्गत वनों के क्षेत्र में विस्तार किया जाता है। ताकि गाँव वालों को चारा, जलाऊ लकड़ी व गौण वनोत्पाद प्राप्त हो सके। तात्पर्य यह है कि वनों से समाज के व्यक्तियों को उनकी आवश्यकता की पूर्ति हो सके।
सामाजिक वानिकी के निम्न तीन प्रमुख घटक हैं
- कृषि वानिकी (Agro-Forestry)
- वन विभाग द्वारा नहरों, सड़कों, अस्पताल आदि सार्वजनिक स्थानों पर सामुदायिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वृक्षारोपण करना।
- ग्रामीणों द्वारा सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण।
प्रश्न 13.
कोयले के प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर-
नमीरहित कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयले को निम्नलिखित चार प्रकारों में बाँटा गया है
- एन्थ्रेसाइट (94-98%)
- लिग्नाइट (28-30%)
- बिटूमिनस (78-86%)
- पीट (27%)
प्रश्न 14.
सतत् पोषणीय विकास से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
किसी भी संसाधन का प्रयोग सतर्क होकर करना चाहिए ताकि उस वस्तु का प्रयोग न केवल हम कर सकें बल्कि जिसका प्रयोग आने वाले समय की पीढ़ी भी अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कर सके।
प्रश्न 15.
वन्य जीव संरक्षण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
वन्य जीव-जन्तुओं के लिए प्रयुक्त होता है जो प्राकृतिक आवास में निवास करते हैं, जैसे हाथी, शेर, गैंडा, हिरण इत्यादि । किन्तु व्यापक रूप से ‘वन्य जीव’ प्रकृति में पाये जाने वाले सभी जीव-जन्तुओं एवं पेड़-पौधों की जातियों हेतु प्रयुक्त किया जाता है। वर्तमान में मानव के द्वारा ऐसे कारण उत्पन्न कर दिये गये हैं, जिससे वन्य जीवों का अस्तित्व समाप्त हो रहा है। इसलिए वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए 1972 में वन्य जीवन सुरक्षा अधिनियम बनाया गया है। वन्य जीवों की पूर्ण सुरक्षा तथा विलुप्त होने वाले जन्तुओं को संरक्षण प्रदान करना इसका मुख्य उद्देश्य है।
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निबन्धात्मक प्रश्न (NATURAL RESOURCES)
NATURAL RESOURCES
प्रश्न 16.
जल संरक्षण व प्रबंधन के उपाय लिखिए।
उत्तर-
जल एक चक्रीय संसाधन है। यदि इसका युक्तियुक्त उपयोग किया जाए तो इसकी कमी नहीं होगी। जल का संरक्षण जीवन का संरक्षण है। जल संरक्षण हेतु निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए
- जल को बहुमूल्य राष्ट्रीय सम्पदा घोषित कर उसका समुचित नियोजन किया जाना चाहिए।
- वर्षा जल संग्रहण विधियों द्वारा जल का संग्रहण किया जाना चाहिए।
- घरेलू उपयोग में जल की बर्बादी को रोका जाना चाहिए।
- भू-जल का अतिदोहन नहीं किया जाना चाहिए।
- जल को प्रदूषित होने से रोकना चाहिए।
- जल को पुनर्चक्रित कर उपयोग में लिया जाना चाहिए।
- बाढ़ नियंत्रण व जल के समुचित उपयोग हेतु नदियों को परस्पर जोड़ा जाना चाहिए।
- सिंचाई फव्वारा विधि व टपकन विधि से की जानी चाहिए।
इस दिशा में समाकलित जल संभर प्रबन्धन द्वारा जल संसाधनों का वैज्ञानिक प्रबंधन करना चाहिए व इसके साथ-साथ वर्षा जल का संग्रहण करके भू-जल का स्तर बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।
प्रश्न 17.
वन संरक्षण के उपायों पर प्रकाश डालिये।
उत्तरे-
वन इस पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं । वनों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण व प्राकृतिक संसाधनों का क्षेय, मृदा अपरदन, वनीय जीवन का विनाश, जलवायु में परिवर्तन, मरुस्थलीकरण, प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। अतः वनों के संरक्षण हेतु निम्न उपाय अपनाये जा सकते हैं
- वनों की एक निश्चित सीमा तक कटाई की जानी चाहिए, वन काटने व वृक्षारोपण की दरों में समान अनुपात होना चाहिए।
- वनों की आग से सुरक्षा की जानी चाहिए। अतः इसके लिए निरीक्षण गृह व अग्नि रक्षा पथ बनाने चाहिए।
- वनों को हानिकारक कीटों से दवा छिड़ककर तथा रोगग्रस्त वृक्षों को हटाकर रक्षा की जानी चाहिए।
- विविधतापूर्ण वनों को एकरूपतापूर्ण वनों से अधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
- कृषि व आवास के लिए वन उन्मूलन एवं झूम पद्धति की कृषि पर रोक लगाई जानी चाहिए।
- वनों की कटाई को रोकने के लिए ईंधन व इमारती लकड़ी के नवीन वैकल्पिक स्रोतों को काम में लिया जाना चाहिए।
- वनों के महत्त्व के विषय में जनचेतना जागृत की जाये। चिपको आंदोलन, शांत घाटी क्षेत्र आदि इसी जागरूकता के परिणाम हैं। वन संरक्षण में सामाजिक व स्वयंसेवी संस्थाओं की महती भूमिका है।
- बाँधों एवं बहुउद्देशीय योजनाओं को बनाते समय वन संसाधन संरक्षण का ध्यान रखना चाहिए।
- सामाजिक वानिकी को प्रोत्साहन देना चाहिए तथा वन संरक्षण के नियमों एवं कानूनों की सख्ती से अनुपालना होनी चाहिए।
NATURAL RESOURCES
प्रश्न 18.
वन्य जीवों के विलुप्त होने के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
वर्तमान में मानव के द्वारा ऐसे कारण उत्पन्न कर दिये गये हैं, जिससे वन्य जीवों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। मानव के अतिरिक्त कुछ प्राकृतिक कारण भी हैं, जिससे वन्य जीव संकटग्रस्त हैं। वन्य जीवों के विलुप्त होने के निम्नलिखित कारण हैं
(अ) प्राकृतिक आवासों का नष्ट होना-वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने के अनेक कारण हैं, उनमें प्रमुख कारण निम्न प्रकार से हैं
- जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि होने के फलस्वरूप मानव की आवश्यकतायें बढ़ती गईं । मानव ने आवास, कृषि, उद्योगों हेतु वन भूमि का उपयोग किया जिससे जीवों के प्राकृतिक आवास पर संकट उत्पन्न हो गया।
- बहुत बड़ी जल परियोजनाओं जैसे भाखड़ा नांगल, टिहरी बाँध, व्यास परियोजना इत्यादि से वन भूमि पानी में डूबती गई, जिससे वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट होने लगे।
- जंगलों में खनन कार्य, पर्यावरण प्रदूषण से उत्पन्न अम्लीय वर्षा आदि से भी प्राकृतिक आवास नष्ट हुए।
- समुद्रों में तेल टैंकरों से तेल का रिसाव समुद्री जीवों के आवास को नष्ट कर रहा है।
- ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण पृथ्वी के आसपास वातावरण गर्म होता जा रहा है जिससे जैव विविधता नष्ट हो रही है।
(ब) वन्य जीवों का अवैध शिकार।
(स) प्रदूषण।
(द) मानव तथा वन्य जीवों में संघर्ष।
उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त प्राकृतिक, आनुवांशिक एवं मानव जनित अनेक कारण भी वन्य जीवों के विनाश हेतु उत्तरदायी हैं।
प्रश्न 19.
राजस्थान में पारम्परिक जल संग्रहण की विभिन्न पद्धतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
राजस्थान में जल संग्रहण की निम्नलिखित पारम्परिक पद्धतियों का प्रचलन है
- खडीन-
यह एक मिट्टी का बना हुआ अस्थायी तालाब होता है, इसे किसी ढाल वाली भूमि के नीचे बनाते हैं। इसके दोनों ओर मिट्टी की दीवार (धोरा) तथा तीसरी ओर पत्थर से बनी मजबूत दीवार होती है। जल की अधिकता पर खडीन भर जाता है तथा जल आगे वाली खडीन में चला जाता है। खडीन में जल के सूख जाने पर, इसमें कृषि की जाती है। - तालाब-
राजस्थान में प्रायः वर्षा के जल का संग्रहण तालाब में किया जाता है। यहाँ स्त्रियों व पुरुषों के नहाने के पृथक् से घाट होते हैं। तालाब की तलहटी में कुआं बना होता है, जिसे बेरी कहते हैं। जल संचयन की यह प्राचीन विधि आज भी अपना महत्व रखती है। इससे भूमि जल का स्तर बढ़ता है। - झील-
राजस्थान में प्राकृतिक व कृत्रिम दोनों प्रकार की झीलें पाई जाती हैं। इसमें वर्षा का जल संग्रहित किया जाता है। झीलों में से पानी रिसता रहता है। जिससे आसपास के कुओं, बावड़ी, कुण्ड आदि का जलस्तर बढ़ जाता है। - बावड़ी-
राजस्थान में बावड़ियों का अपना स्थान है। यह जल संग्रहण करने का प्राचीन तरीका है। यह गहरी होती है व इसमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ एवं तिबारे होते हैं तथा यह कलाकृतियों से सम्पन्न होती है। - टोबा-
थार के मरुस्थल में टोबा वर्षा के जल संग्रहण का मुख्य पारम्परिक स्रोत है। यह नाडी की जैसा होता है परन्तु नाडी से गहरा होता है।
प्रश्न 20.
चिपको आन्दोलन पर लेख लिखिए।
उत्तर-
इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य वृक्षों को काटने से रोकना था। अतः चिपको आन्दोलन वनों की सुरक्षा में उठाया गया एक प्रगतिशील कदम था। इस आन्दोलन को प्रारम्भ राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली गाँव से हुआ था जहाँ अमृता देवी के साथ 363 बिश्नोई स्त्री, पुरुषों एवं बच्चों ने अपना बलिदान दिया था।
1730 AD में जोधपुर के तत्कालीन महाराजा के महल निर्माण के लिए लकड़ियों की आवश्यकता हुई तो उनके सेवक खेजड़ली गाँव के खेजड़ी वृक्षों की कटाई करने लगे । गाँव की अमृता देवी ने इस कटाई का विरोध किया तथा अमृतादेवी व उनकी तीन पुत्रियाँ पेड़ों से चिपक गईं। सैनिकों ने वृक्षों की कटाई के साथ अमृतादेवी व उनकी तीनों पुत्रियों को भी काट दिया। इस घटना को देखकर गाँव के अन्य व्यक्ति भी पेड़ों से आकर चिपकते रहे और अपना बलिदान देते रहे। इस प्रकार वृक्षों की रक्षा करते हुए 363 लोगों ने अपना बलिदान दे दिया। महाराजा को इस प्रकार के बलिदान की जानकारी होने पर तुरन्त वृक्षों की कटाई को रोक दिया गया। आज भी बिश्नोई समाज पेड़-पौधों व वन्य प्राणियों के संरक्षण हेतु दृढ़ संकल्पित है।
वृक्षों की कटाई के विरोध में वृक्षों से चिपकने के कारण ही इस आन्दोलन का नाम चिपको रखा गया। खेजड़ली का बलिदान आज वनों की सुरक्षा हेतु आदर्श है। खेजडी के वृक्ष आज भी बलिदान की याद दिलाते हैं एवं प्रेरणा प्रदान करते हैं। खेजड़ी को राजस्थान का सागवान वे थार का कल्पवृक्ष माना जाता है।
खेजड़ली के बलिदान पश्चात् 1973 में उत्तराखण्ड में भी महिलाओं ने वृक्षों की सुरक्षा के लिए ‘चिपको आन्दोलन चलाया। यह आन्दोलन 8 वर्षों तक चला व बाद में सरकार ने 1981 में हरे वृक्षों की कटाई पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इस आन्दोलन की बागडोर सुन्दरलाल बहुगुणा के हाथों में थी। इसी प्रकार का आन्दोलन कर्नाटक में भी चला जिसका नाम ‘एप्पिको’ था।
प्रश्न 21.
प्राकृतिक संसाधन किसे कहते हैं? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
प्राकृतिक संसाधनों को कितनी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है? विस्तार से. समझाइए।
उत्तर-
मानव के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपयोग में आने वाली हर वस्तु संसाधन कहलाती है। जो संसाधन हमें प्रकृति से प्राप्त होते हैं तथा जिनका प्रयोग हम सीधा अर्थात् उसमें कोई भी बदलाव किये बिना करते हैं, प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं।
प्राकृतिक संसाधनों को निम्न प्रकारों में बाँटा जा सकता है
- विकास एवं प्रयोग के आधार पर
- उद्गम या उत्पत्ति के आधार पर
- भण्डारण या वितरण के आधार पर
- नव्यकरणीयता के आधार पर।
इनका विस्तृत वर्णन निम्न प्रकार है
- विकास एवं प्रयोग के आधार पर-इन्हें भी दो भागों में विभक्त किया जा सकता है
(अ) वास्तविक संसाधन-
ये वे संसाधन हैं जिनकी मात्रा हमें ज्ञात है तथा जिनका उपयोग अभी वर्तमान में हम कर रहे हैं, ये वस्तुएँ वास्तविक संसाधन कहलाती हैं। उदाहरण-पश्चिम एशिया में खनिज तेल की मात्रा, जर्मनी में कोयले की मात्रा तथा महाराष्ट्र में काली मिट्टी की मात्रा इत्यादि।
(ब) सम्भाव्य संसाधन-
ये वे संसाधन हैं जिनकी मात्रा का अनुमान नहीं लगा सकते व जिनका उपयोग अभी नहीं किया जा रहा है परन्तु आगे आने वाले समय में कर सकते हैं। इन्हें सम्भाव्य संसाधन कहते हैं। उदाहरणार्थ 20 वर्ष पहले तेजी से चलने वाली पवन चक्कियाँ एक सम्भाव्य संसाधन थीं परन्तु आधुनिक समय में तकनीकी प्रगति के कारण ही हम पवन चक्कियों का प्रयोग आज कर पा रहे हैं। लद्दाख में उपलब्ध यूरेनियम भी एक सम्भाव्य संसाधन है जिसका प्रयोग हम आने वाले समय में कर सकते हैं। - उद्गम या उत्पत्ति के आधार पर-इसे भी दो भागों में बाँटा जा सकता है-
(अ) जैव संसाधन-
सजीव या जीवित वस्तुएँ जैव संसाधन हैं। उदाहरण-जीव-जन्तु, पेड़-पौधे, मानव आदि।
(ब) अजैव संसाधन-
निर्जीव वस्तुएँ अजैव संसाधन हैं। उदाहरण-वायु, मृदा, प्रकाश आदि। - भण्डारण या वितरण के आधार पर-इन्हें भी दो भागों में बाँटा गया
(अ) सर्वव्यापक-
वे वस्तुएँ जो सभी स्थानों पर सुलभता से उपलब्ध हों, उन्हें सर्वव्यापक संसाधन कहते हैं, जैसे-वायु ।
(ब) स्थानिक संसाधन-
वे वस्तुएँ जो कुछ ही स्थानों पर उपलब्ध होती हैं, उन्हें स्थानिक संसाधन कहते हैं, जैसे-ताँबा, लौह अयस्क आदि। - नव्यकरणीयता के आधार पर-इस आधार पर संसाधन दो प्रकार के होते हैं
- नवीकरणीय संसाधन-वे वस्तुएँ जिनका निर्माण तथा प्रयोग दुबारा किया जा सकता है तथा जिन वस्तुओं की पूर्ति दुबारा आसानी से हो सकती है, वे वस्तुएँ नवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। नवीकरणीय संसाधन असीमित होते हैं। उदाहरण-सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा ।।
- अनवीकरणीय संसाधन-वे वस्तुएँ जिनका भण्डार सीमित होता है। तथा जिनके निर्माण होने की आशा बिल्कुल नहीं रहती या निर्माण होने में बहुत अधिक समय लगता है, अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। उदाहरण-पेट्रोलियम, कोयला, प्राकृतिक गैस ।।
हमें किसी भी संसाधन का लापरवाही से प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि लगातार और अधिक प्रयोग करने से ये जल्दी समाप्त हो जाते हैं और आने वाली पीढ़ियाँ इनका प्रयोग नहीं कर पायेंगी।
प्रश्न 22.
IUCN द्वारा वर्गीकृत जातियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
वन्य-जीवन संरक्षण के अन्तर्गत विश्वव्यापी चेतना के कारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 1948 में प्रकृति संरक्षण हेतु अन्तर्राष्ट्रीय संस्था IUCN (International Union for Conservation of Nature) का गठन हुआ। IUCN के द्वारा विलुप्ती के कगार पर पहुँच गई जातियों को लाल आँकड़ों की पुस्तक में प्रकाशित किया गया। IUCN ने निम्न पाँच जातियों को परिभाषित किया है, जिन्हें संरक्षण प्रदान करना है
- विलुप्त जातियाँ-वे जातियाँ जो संसार से विलुप्त हो गई हैं तथा जीवित नहीं हैं, विलुप्त जातियों की श्रेणी में रखी हुई हैं, जैसे-डायनोसोर, रायनिया आदि।
- संकटग्रस्त जातियाँ-ये वे जातियाँ हैं जिनके संरक्षण के उपाय नहीं किए गए तो वे निकट भविष्य में समाप्त हो जायेंगी, जैसे-गैण्डा, गोडावन, बब्बर शेर आदि।
- सभेद्य जातियाँ-ये वे जातियाँ हैं जो शीघ्र ही संकटग्रस्त होने की स्थिति में हैं।
- दुर्लभ जातियाँ-ये वे जातियाँ हैं जिनकी संख्या विश्व में बहुत कम है। तथा निकट भविष्य में संकटग्रस्त हो सकती हैं। ये सीमित क्षेत्रों में पाई जाती हैं। उदाहरण-हिमालय भालू, विशाल पाण्डा आदि।
- अपर्याप्त ज्ञात जातियाँ-ये वे जातियाँ हैं जो पृथ्वी पर हैं किन्तु इनके वितरण के विषय में अधिक ज्ञान नहीं है।
Video (NATURAL RESOURCES)
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