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RBSE Science class 10 Chapter 9 प्रकाश-परावर्तन एवं अपवर्तन, Notes and Study Materials

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RBSE Science Class 10 Chapter 9 प्रकाश-परावर्तन एवं अपवर्तन, Notes and Study Materials

प्रकाश-परावर्तन एवं अपवर्तन

प्रकाश-परावर्तन एवं अपवर्तन

प्रकाश वस्तुओं को दृश्य बनाता है | सूर्य का प्रकाश दिन के समय वस्तुओं के देखने में मदद करता है |

हम किसी वस्तु को कैसे देख पाते है ?

वस्तु पर पड़ने वाले प्रकाश को वस्तु परावर्तित कर देती है, यह परावर्तित किरण जब हमारी आँखों के द्वारा ग्रहण किया जाता है तो यह परावर्तन वस्तु को आँखों के द्वारा देखने योग्य बनाता है |

प्रकाश की किरण :

जब प्रकाश अपने प्रकाश के स्रोत से गमन करता है तो यह सीधी एवं एक सरल रेखा होता है | प्रकाश के स्रोत से चलने वाले इस रेखा को प्रकाश की किरण कहते है |

छाया: जब प्रकाश किसी अपारदर्शी वस्तु से होकर गुजरता है तो यह प्रकाश की किरण को परावर्तित कर देता है जिससे उस अपारदर्शी वस्तु की छाया बनती है |

प्रकाश का विवर्तन : यदि प्रकाश के रास्ते में राखी अपारदर्शी वस्तु अत्यंत सूक्ष्म हो तो प्रकाश सरल रेखा में चलने की अपेक्षा इसके किनारों पर मुड़ने की प्रवृति दिखता है – इस प्रभाव को प्रकाश का विवर्तन कहते है |

(प्रकाश-परावर्तन एवं अपवर्तन)

प्रकाश का परावर्तन :

जब प्रकाश की किरण किसी चमकीले सतह से या परावर्तक पृष्ठ से टकराता है तो यह उसी माध्यम में पुन: मुड़ जाता है जिस माध्यम से यह आता है | इस परिघटना को प्रकाश का परावर्तन कहते है |

प्रकाश का परावर्तन हमेशा अपारदर्शी वस्तुओं से ही होता है | जबकि प्रकाश का अपवर्तन पारदर्शी वस्तुओं से होता है |

प्रकाश के परावर्तन का नियम :

(i) आपतन कोण, परावर्तन कोण के समान होता है | ∠ i = ∠ r

(ii) आपतित किरण, दर्पण के आपतन बिंदु पर अभिलम्ब और परावर्तित किरण, सभी एक ही तल में होते हैं |

नोट : परावर्तन का यह नियम गोलीय दर्पण सहित सभी परावर्तक पृष्ठों पर लागु होता है |

कुछ समान्य एवं अदभुत परिघटनाएं:

प्रकाश के परावर्तन के कारण कुछ समान्य एवं अदभुत परिघटनाएं होती है जो निम्न है :

दर्पण के द्वारा प्रतिबिम्ब का बनना, तारों का टिमटिमाना, इन्द्रधनुष के सुन्दर रंग, किसी माध्यम द्वारा प्रकाश का मोड़ना आदि | परावर्तन के प्रकार:

(i) नियमित परावर्तन (specular or regular reflection): इस प्रकार का परावर्तन चिकने सतह से होता है तथा अपतित किरणें परावर्तन के पश्चात् समांतर ही रहती है |

(ii) अनियमित परावर्तन (Diffused or irregular reflection): इस तरह का परावर्तन खुरदरे सतह से होता है तथा परावर्तन के पश्चात् आपतित समान्तर किरणे समान्तर नहीं होती है |

(i) नियमित परावर्तन (specular or regular reflection) : (ii) विसरित परावर्तन (Diffused or irregular reflection) :

(प्रकाश-परावर्तन एवं अपवर्तन)

दर्पण दो प्रकार का होता है |

(A) समतल दर्पण (Plane mirror) :

इसका परावर्तक पृष्ठ सीधा तथा सपाट होता है |

परिभाषा : ऐसे दर्पण जिनका परावर्तक पृष्ठ समतल हो समतल दर्पण कहलाता है |

समतल दर्पण का उपयोग :

(i) इसका उपयोग घरों में चेहरा देखने के लिए किया जाता है |

(ii) सैलून तथा ब्यूटी पारलर आदि में किया जाता है |

समतल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब की प्रकृति :

इसके द्वारा बना प्रतिबंब आभासी और सीधा होता है | तथा प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उतनी दुरी पर बनता है जीतनी दुरी पर बिंब दर्पण के सामने रखा होता है |

(B) गोलीय दर्पण (Spherical mirror) :

इसका परावर्तक पृष्ठ वक्र (मुड़ा हुआ) होता है | गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ अन्दर की ओर या बाहर की ओर वक्रित हो सकता है |

परिभाषा :

ऐसे दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ गोलीय होता है, गोलीय दर्पण कहलाता है |

इसी वक्रता के आधार पर गोलीय दर्पण दो प्रकार का होता है |

गोलीय दर्पण के प्रकार :

(i) अवतल दर्पण (Concave mirror) :

इसका परावर्तक पृष्ठ अन्दर की ओर अर्थात गोले के केंद्र की ओर धँसा हुआ (वक्रित) होता है |

(ii) उत्तल दर्पण (convex mirror) :

इसका परावर्तक पृष्ठ बाहर की तरफ उभरा हुआ (वक्रित) होता है |

गोलीय दर्पण के भाग: (प्रकाश-परावर्तन एवं अपवर्तन)

(i) ध्रुव (Pole):

गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के केंद्र को दर्पण का ध्रुव कहते है | इसे P से इंगित किया जाता है |

(ii) वक्रता केंद्र (Center of Curvature):

गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ एक गोले का भाग होता है | इस गोले का केंद्र को गोलीय दर्पण का वक्रता केंद्र कहते है | इसे अंग्रेजी के बड़े अक्षर C से इंगित किया जाता है |

(iii) वक्रता त्रिज्या (The radius of Curvature):

गोलीय दर्पण के ध्रुव एवं वक्रता केंद्र के बीच की दुरी को वक्रता त्रिज्या कहते है |

(iv) मुख्य अक्ष (Principal axis): गोलीय दर्पण के ध्रुव एवं वक्रता केंद्र से होकर गुजरने वाली एक सीधी रेखा को दर्पण का मुख्य अक्ष कहते है |

(v) मुख्य फोकस (Principal Focus): दर्पण के ध्रुव एवं वक्रता केंद्र के बीच एक अन्य बिंदु F होता है जिसे मुख्य फोकस कहते है | मुख्य अक्ष के समांतर आपतित किरणें परावर्तन के बाद अवतल दर्पण में इसी मुख्य फोकस पर प्रतिच्छेद करती है तथा उत्तल दर्पण में प्रतिच्छेद करती प्रतीत होती है |

(vi) फोकस दुरी (Focal Length): दर्पण के ध्रुव एवं मुख्य फोकस के बीच की दुरी को फोकस दुरी कहते है, इसे अंग्रेजी के छोटे अक्षर (f ) से इंगित किया जाता है | यह दुरी वक्रता त्रिज्या की आधी होती है |

(vii) द्वारक (Aperatute): गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ अधिकांशत: गोलीय ही होता है | इस पृष्ठ की एक वृत्ताकार सीमा रेखा होती है | गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ की इस सीमा रेखा का व्यास, दर्पण का द्वारक कहलाता है |

(प्रकाश-परावर्तन एवं अपवर्तन)

प्रतिबिम्ब की स्थिति, प्रकृति एवं आकार

बिम्ब की स्थिति : वह स्थान जहाँ वस्तु रखी गई है |

प्रतिबिम्ब की स्थिति : वह स्थान जहाँ दर्पण द्वारा प्रतिबिम्ब बना है |

प्रतिबिम्ब की साइज़ : यह प्रतिबिम्ब का आकार है जो यह बताता है कि वस्तु का प्रतिबिम्ब वस्तु से छोटा बना है, बराबर बना है या वस्तु से बड़ा बना है |

प्रतिबिम्ब की प्रकृति : प्रतिबिम्ब की प्रकृति से यह ज्ञात होता है कि दी गई वस्तु का दर्पण द्वरा बनाया गया प्रतिबिम्ब कैसा है – आभासी या वास्तविक और सीधा या उल्टा |

प्रतिबिम्ब की प्रकृति दो प्रकार का होता है |

(i) वास्तविक और उल्टा : यह प्रतिबिम्ब सदैव दर्पण के सामने एवं उल्टा बनता है |

(ii) आभासी और सीधा : यह प्रतिबिम्ब सदैव दर्पण के परदे के पीछे एवं सीधा बनता है | अवतल दर्पण द्वारा बनने वाला प्रतिबिम्ब : अवतल दर्पण में बनने वाली प्रतिबिम्ब वस्तु की स्थिति पर निर्भर करती है | ध्रुव (P) तथा मुख्य फोकस (F) के बीच रखा बिम्ब का ही केवल प्रतिबिम्ब आभासी एवं सीधा बनता है अन्यथा अवतल दर्पण अन्य किसी भी जगह रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब वास्तविक एवं उल्टा बनाता है |उत्तल दर्पण द्वारा बनने वाला प्रतिबिम्ब :

अवतल दर्पण के उपयोग :

(i) अवतल दर्पणों का उपयोग सामान्यतः टॉर्च, सर्चलाइट तथा वाहनों के अग्रदीपों (headlights) में प्रकाश का शक्तिशाली समांतर किरण पुंज प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

(ii) इन्हें प्रायः चेहरे का बड़ा प्रतिबिंब देखने के लिए शेविंग दर्पणों (shaving mirrors) के रूप में उपयोग करते हैं।

(iii) दंत विशेषज्ञ अवतल दर्पणों का उपयोग मरीजों के दाँतों का बड़ा प्रतिबिंब देखने के लिए करते हैं।

(iv) सौर भट्टियों में सूर्य के प्रकाश को केन्द्रित करने के लिए बड़े अवतल दर्पणों का उपयोग किया जाता है।

उत्तल दर्पण का उपयोग :

(i) उत्तल दर्पणों का उपयोग सामान्यतः वाहनों के पश्च.दृश्य (wing) दर्पणों के रूप मेंकिया जाता है।

(ii) ये दर्पण वाहन के पार्श्व (side) में लगे होते हैं तथा इनमें ड्राइवर अपने पीछे के वाहनों को देख सकते हैं जिससे वे सुरक्षित रूप से वाहन चला सके।

(iii) इसका उपयोग टेलिस्कोप में भी होता है |

(iv) उत्तल दर्पण का उपयोग स्ट्रीट लाइट रिफ्लेक्टर के रूप में भी किया जाता है क्योंकि यह एक बड़े क्षेत्र पर प्रकाश प्रसार करने में सक्षम हैं | वाहनों में साइड मिरर के रूप उत्तल दर्पण को प्राथमिकता: उत्तल दर्पणों को इसलिए भी प्राथमिकता देते हैं क्योंकि ये सदैव सीध प्रतिबिंब बनाते हैं यद्यपि वह छोटा होता है। इनका दृष्टि.क्षेत्र भी बहुत अधिक है क्योंकि ये बाहर की ओर वक्रित होते हैं। अतः समतल दर्पण की तुलना में उत्तल दर्पण ड्राइवर को अपने पीछे के बहुत बड़े क्षेत्र को देखने में समर्थ बनाते हैं।

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