WORK AND POWER
WORK AND POWER
कार्य (Work)
बल का उपयोग करके किसी वस्तु की विरामावस्था में परिवर्तन करना अथवा गतिशील वस्तु के वेग में परिवर्तन करना ही कार्य है।
ऊर्जा (Energy)
आपने अनुभव किया होगा कि बहता हुआ पानी अपने साथ लकड़ी की वस्तुओं को बहा कर ले जाता है एवं तेज आंधी में कई पेड़ उखड़ जाते हैं। जब हम लकडी की सतह के लम्बवत् पकड़ी हुई कील पर हथौड़े से प्रहार करते हैं तो कील लकड़ी में भीतर तक चली जाती है। तेज हवा के कारण पवन चक्की चलती है । इन अनुभवों से हम पाते हैं कि गतिमान में कार्य करने की क्षमता होती है। जब हम किसी वस्तु को वस्तु एक निश्चित ऊँचाई तक उठाते हैं तो उसमें कार्य करने की क्षमता आ जाती है। जब बच्चा खिलौने में चाबी भरता है तो खिलौना किसी समतल धरातल पर रखते ही चलने लगता है। अर्थात् भिन्न-भिन्न वस्तुएं विभिन्न प्रकार से कार्य करने की क्षमता अर्जित कर लेती है। ऊर्जावान वस्तु द्वारा जब कोई कार्य किया जाता है तो उसमें निहित ऊर्जा का व्यय होता है एवं जिस वस्तु पर कार्य किया जाता है उसकी ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है। वास्तव में जिस वस्तु में ऊर्जा है वह दूसरी वस्तु पर कोई बल लगा सकती है एवं दूसरी वस्तु में अपनी कुछ अथवा सम्पूर्ण ऊर्जा स्थानान्तरित कर सकती है।
ऊर्जा के प्रकार (Types of energy)
ऊर्जा विभिन्न रूपों में विद्यमान है जैसे यांत्रिक ऊर्जा,
प्रकाश ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा आदि । सूर्य हमारे लिये ऊर्जा का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्त्रोत है । विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं जैसे ज्वार- भाटा, नदियों का बहाव, तेज हवाओं का चलना आदि से भी हम ऊर्जा प्राप्त कर सकते है। ऊर्जा के विभिन्न स्वरूपों में से कुछ निम्न प्रकार है-
यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical energy) –
किसी वस्तु की गति, स्थिति अथवा दोनों के कारण उसमें जो ऊर्जा होती है। उसे यांत्रिक ऊर्जा कहते हैं।
ऊष्मा ऊर्जा (Heat energy) –
ऊष्मा के कारण सूक्ष्म कणों द्वारा गतिमान ऊर्जा को ऊष्मा ऊर्जा कहते है जैसे कि घर में आग की चिमनी। ये सूक्ष्म कण उच्च ताप से निम्न ताप पर ऊर्जा स्थानान्तरण करते हैं।
रासायनिक ऊर्जा (Chemical energy) –
रासायनिक क्रियाओं द्वारा प्राप्त ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा कहते हैं। बैटरी, भोजन, कोयला, रसोई गैस आदि सभी रासायनिक ऊर्जा के उदाहरण हैं।
विद्युत ऊर्जा (Electrical energy) –
विद्युत आवेशों द्वारा उत्पन्न ऊर्जा विद्युत ऊर्जा कहलाती है। हम घरों में बिजली की जो भी युक्तियां उपयोग में लेते हैं वो विद्युत ऊर्जा से ही चलती हैं।
गुरूत्वीय ऊर्जा (Gravitatinal energy) –
पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल के कारण वस्तुएं पृथ्वी की ओर खिंची चली आती है। वस्तुओं में गुरूत्वाकर्षण बल के कारण उत्पन्न ऊर्जा गुरुत्वीय ऊर्जा कहलाती है।
गतिज ऊर्जा (Kinetic energy)
किसी वस्तु में निहित उस ऊर्जा को जो उसकी गति के कारण है हुआ फल, गतिज ऊर्जा कहलाती है। पेड़ से गिरता नदी में बहता हुआ पानी, उड़ता हुआ हवाई जहाज, चलती हुई कार, उड़ता हुआ पक्षी, तेज हवा आदि सभी में कार्य करने की क्षमता उनमें विद्यमान गतिज ऊर्जा के कारण है ।
यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical energy)
किसी वस्तु की यांत्रिक ऊर्जा उसकी गतिज ऊर्जा व
स्थितिज ऊर्जा के योग के बराबर होती है जिससे वह वस्तु कार्य करती है। उदाहरण के लिये जब हम एक हथौड़े को लकड़ी के गुटके पर खड़ी कील पर प्रहार करते हैं तो निम्न प्रक्रिया होती है।
- हथौडे में भार के कारण उसमें स्थितिज ऊर्जा होती हैं।
- जब हम हथौडे को ऊपर उठाते हैं तो हम हथौडे पर कार्य करते है एवं हथौडे की स्थितिज ऊर्जा बढ़ जाती है।
- अब हम बलपूर्वक हथौडे से कील पर प्रहार करते है तो उसमें गतिज ऊर्जा होती हैं जो कील को गुटके में अन्दर तक भेज देती है।
गुरुत्वीय क्षेत्र में स्थितिज ऊर्जा जब किसी वस्तु को पृथ्वी की सतह से किसी ऊंचाई तक ऊपर उठाते है तो हमे गुरूत्वीय त्वरण के विरूद्ध कार्य की ऊर्जा करना पड़ता है। वस्तु पर किया गया यह कार्य वस्तु में वृद्धि करता है। यह ऊर्जा वस्तु की स्थितिज ऊर्जा के रूप में उसमें निहित हो जाती है।
विद्युत ऊर्जा (Electrical energy)
आवेशित कणों में निहित ऊर्जा विद्युत ऊर्जा कहलाती
है। जब कण आवेशित होते हैं तो आवेशित कणों के चारों ओर विद्युत क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। यह विद्युत क्षेत्र समीप के दूसरे आवेशित कणों पर बल निरूपित करता है एवं उन्हें गति प्रदान करता है जिससे ऊर्जा का संचरण होता है ।
जब ऊर्जा एक स्वरूप से दूसरे स्वरूप में रूपान्तरित
होती है तो ऊर्जा का कुछ भाग ऊष्मा, ध्वनि, प्रकाश आदि के रूप में क्षय हो जाता है। ऊर्जा के क्षय होने से हमारा तात्पर्य यही है कि रूपान्तरण या संचरण की प्रक्रिया में ऊर्जा का कुछ भाग एक ऐसे रूप में बदल जाता है जिसकी हमें आवश्यकता नहीं है अथवा जिसे हम उपयोग में नहीं ले पाते हैं। हालांकि कुल ऊर्जा संरक्षित रहती है किन्तु इस अनुपयोगी क्षय के कारण हम शत प्रतिशत दक्ष निकाय नहीं बना पाते हैं।
ऊर्जा का क्षय मुख्य रूप से निम्न प्रकार होता है।
ऊर्जा का संरक्षण (Conservation of energy)
ऊर्जा संरक्षण के अनुसार किसी विलगित निकाय की ऊर्जा सदैव नियत रहती है। ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया कुल जा सकता है न ही उसे नष्ट किया जा सकता है, केवल ऊर्जा के स्वरूप में रूपान्तरण किया जा सकता है।
ऊर्जा क्षय को कम करने के उपाय
(Reducing energy dissipation)
ऊष्मा हमारे जीवन का आधार है एवं इसे समुचित
उपयोग में लेना हम सभी की जिम्मेदारी है । भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के लिये यह और भी महत्वपूर्ण है कि हम अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति अधिकतम दक्षता के साथ करें एवं अनावश्यक ऊर्जा क्षय को रोके।
- यह भी पढ़ें :- RBSE Science class 10 Chapter 9 प्रकाश-परावर्तन एवं अपवर्तन
शक्ति (Power)
अब तक हमने पढ़ा कि कार्य इस पर निर्भर नहीं करता है कि उसे किस तरह किया गया है। किन्हीं दो स्थान A व B के बीच की दूरी तय करने में किया गया कार्य समान होगा । लेकिन एक व्यक्ति उस दूरी को दौड कर तय करे व दूसरा उसे तेज दौड़ कर कम समय में पूरी कर दे तो हम कहते है कि दूसरा व्यक्ति ज्यादा शक्तिशाली है। वैज्ञानिक रूप से कार्य सम्पन्न करने की दर को शक्ति कहते हैं। कार्य की तरह शक्ति भी अदिश राशि हैं।
विद्युत शक्ति (Electric power)
यांत्रिक शक्ति की तरह ही विद्युत शक्ति भी कार्य करने
की दर से ही मापी जाती है। विद्युत शक्ति का मात्रक वाट है लेकिन वाटेज शब्द सामान्य भाषा में विद्युत शक्ति के लिये उपयोग में लिया जाता है। यदि O कूलाम का एक आवेश 1सेकण्ड समय में V वोल्ट विद्युत विभव से गुजरता है
महत्वपूर्ण बिन्दु (WORK AND POWER)
महत्वपूर्ण बिन्दु (WORK AND POWER)
1.बल द्वारा किसी वस्तु को विस्थापित करने को कार्य कहते है।
कार्य = बल x बल की दिशा में विस्थापन
2.यदि F बल लगाने पर विस्थापन s हो एवं बल की दिशा व विस्थापन की दिशा के मध्य कोण हो तो कार्य
3.कार्य एक अदिश राशि है एवं इसका मात्रक जूल है।
4.कार्य करने की क्षमता ही ऊर्जा है ।
5.यांत्रिक ऊर्जा के दो स्वरूप है (a) गतिज ऊर्जा और
(b) स्थितिज ऊर्जा
6.यदि m द्रव्यमान की वस्तु v वेग से गतिमान है तो गतिज ऊर्जा 5m होगी।
7.वस्तु की स्थिति अथवा अवस्था के कारण वस्तु में विद्यमान ऊर्जा को स्थितिज ऊर्जा कहते है।
- h ऊँचाई पर स्थित वस्तु की स्थितिज ऊर्जा mgh होगी।
9.संरक्षी बलों द्वारा किया गया कार्य पथ पर निर्भर नहीं करता है।
10.संरक्षी बलों की उपस्थिति में निकाय की यांत्रिक ऊर्जा संरक्षित रहती है अर्थात् उसकी गतिज ऊर्जा व स्थितिज ऊर्जा का योग सदैव स्थिर रहता है।
11.ऊर्जा संरक्षण नियम के अनुसार किसी विलगित निकाय की कुल ऊर्जा स्थिर रहती है। ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है न ही उसे नष्ट किया जा सकता है। ऊर्जा केवल एक स्वरूप से दूसरे स्वरूप में रूपान्तरित की जा सकती है ।
12.जब ऊर्जा का रूपान्तरण होता है तो ऊर्जा का कुछ भाग ऊष्मा, ध्वनि, प्रकाश आदि के रूप में क्षय हो जाता है।
13.आवेशित कणों में निहित ऊर्जा विद्युत ऊर्जा कहलाती है कार्य करने की दर को शक्ति कहते है।
14.शक्ति का मात्रक वाट है।
15.विद्युत शक्ति उपयोग का व्यावसायिक मात्रक यूनिट है। 1 यनिट 1 किलोवाट घण्टा के बराबर होता है।
- 1 अश्वशक्ति 746 वाट के बराबर होता है।
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