Login
Login

RBSE Solution for Class 7 Sanskrit Chapter 7 सड.कल्पः सिद्धिदायकः

Spread the love

RBSE Solution for Class 7 Sanskrit Chapter 7 सड.कल्पः सिद्धिदायकः

RBSE Solution for Class 7 Sanskrit Chapter 7 सड.कल्पः सिद्धिदायकः

कठिन शब्दार्थ, हिन्दी अनुवाद एवं व्याख्या

पाठ-परिचय/सार – प्रस्तुत पाठ में दृढ़ निश्चय (संकल्प) के महत्त्व को बतलाते हुए प्रेरणा दी गई है कि मनुष्य दृढ़ इच्छाशक्ति के द्वारा कठिन से भी कठिन कार्य में सफलता प्राप्त कर लेता है। इस पाठ में नाट्यांश के रूप में वर्णित कथा के द्वारा बताया गया है कि पार्वती शिव को पति के रूप में प्राप्त करने का संकल्प लेकर कठोर तपस्या करती हैं। उनकी कठोर तपस्या से हिंसक पशु भी उनके मित्र बन जाते हैं। 

भगवान् शिव पार्वती के संकल्प की परीक्षा लेने के लिए ब्रह्मचारी के वेष में उसके पास आते हैं और अनेक प्रकार से शिव की निन्दा करते हैं। किन्तु शिव से सच्चा प्रेम करने वाली पार्वती अपने संकल्प से विचलित नहीं होती हैं तथा उस ब्रह्मचारी पर क्रोध प्रकट करती हुई वहाँ से जाना चाहती हैं, तभी शिव अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो जाते हैं तथा पार्वती के संकल्प की प्रशंसा करते हैं एवं उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं।

1. (पार्वती शिवं पतिरूपेण …………………………. मेना चिन्ताकुला अभवत्।)

हिन्दी अनुवाद – (पार्वती भगवान् शिव को पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने तपस्या करने की इच्छा की। उन्होंने अपने मन की इच्छा को माता से निवेदन किया। वह सुनकर माता मेना चिन्ता से व्याकुल हो गई।)

2. मेना-वत्से! मनीषिता देवताः ……………………………… साकं गौरीशिखरं गच्छामि। (ततः पार्वती निष्क्रामति) 

हिन्दी अनुवाद – मेना-पुत्री ! इच्छित देवता तो घर में ही हैं। तप कठिन होता है। तुम्हारा शरीर सुकोमल है। घर पर ही रहो। यहीं पर तुम्हारी इच्छा सफल हो जायेगी।

पार्वती – माता! वैसी इच्छा तो तपस्या से ही पूर्ण होगी। अन्यथा उस प्रकार का पति कैसे प्राप्त करूंगी। मैं तप ही करूँगी-ऐसा मेरा संकल्प है।
मेना-पुत्री! तुम ही मेरे जीवन की अभिलाषा हो।

पार्वती – सत्य है। किन्तु मेरा मन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्याकुल है। सफलता प्राप्त करके पुनः तुम्हारी ही शरण में आ जाऊँगी। आज ही विजया के साथ गौरी शिखर पर जाती हूँ।
(इसके बाद पार्वती निकल जाती है।)

3. (पार्वती मनसा वचसा …………………………………………… एकदा विजया अवदत्।) 
विजया – सखि! तपःप्रभावात् …………………………… तपसः फलं नैव दृश्यते। 

हिन्दी अनुवाद – (पार्वती मन, वचन और कर्म से तपस्या ही करती थी। कभी रात में जमीन पर और कभी चट्टान पर सोती थी। एक बार विजया बोली-)
विजया – हे सखी! तपस्या के प्रभाव से हिंसक पशु भी तुम्हारे मित्र जैसे हो गये हैं। पञ्चाग्नि तप भी तुमने तपा है। लेकिन फिर भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण नहीं हुई।
पार्वती – हे विजया! क्या तुम नहीं जानती हो? महापुरुष कभी भी धैर्य नहीं छोड़ते हैं। और भी मनोरथों की गतिहीनता (विफलता) नहीं है।
विजया – तुमने वेद को पढ़ा है। यज्ञ सम्पन्न किया है। तपस्या के कारण संसार में तुम्हारी प्रसिद्धि है। ‘अपर्णा’ इस नाम से भी तुम प्रसिद्ध हो गयी। फिर भी तपस्या का फल दिखाई नहीं देता है।

4. पार्वती-अयि आतरहृदये! कथं ……………………………………. प्राप्तुम् अत्र तपः करोति।

हिन्दी अनुवाद – पार्वती-हे व्याकुल हृदय वाली! तुम क्यों चिन्ता कर रही हो…….। (परदे के पीछे से – अरे हे ! मैं आश्रम का ब्रह्मचारी हूँ। जल चाहता हूँ।) (घबराहटपूर्वक) हे विजया! देखो, कोई ब्रह्मचारी आया है। (विजया शीघ्र ही चली गई, अचानक ही ब्रह्मचारी का रूप धारण किए हुए शिव वहाँ प्रवेश करते हैं।)
विजया – हे ब्रह्मचारी! तुम्हारा स्वागत है। आप बैठिये। यह मेरी सखी पार्वती है। शिव को प्राप्त करने के लिए यहाँ तपस्या कर रही है।

5. वटुः- हे तपस्विनि! किं क्रियार्थं ………………………….. शिवं पतिम् इच्छसि? 

हिन्दी अनुवाद – वटु (ब्रह्मचारी)-हे तपस्विनी! क्या तप के लिए पूजा की सामग्री है, स्नान के लिए जल सरलता से प्राप्त है, भोजन के लिए फल हैं? तुम तो जानती ही हो कि निश्चित रूप से शरीर ही धर्म का पहला साधन है।
(पार्वती चुप रहती हैं।)

ब्रह्मचारी – हे तपस्विनी! किसलिए तपस्या कर रही हो? शिव के लिए?
(पार्वती फिर से चुप रहती हैं।) 

विजया – (परेशान होकर) हाँ, उन्हीं के लिए तपस्या कर रही है।
(ब्रह्मचारी रूप धारण किये हुए शिव अचानक ही जोर से उपहास करते हैं।

ब्रह्मचारी – हे पार्वती ! वास्तव में क्या तुम शिव को पति रूप में चाहती हो? (उपहास करते हुए) नाम से ही वह शिव है, अन्यथा अशिव अर्थात् अमंगलकारी है। श्मशान में रहता है। जिसके तीन नेत्र हैं, वस्त्र व्याघ्र की चमड़ी है, अङ्गलेप चिता की भस्म है और मित्रगण भूतों का समुदाय है। क्या उसी शिव को पति रूप में चाहती हो?

6. पार्वती-(क्रुद्धा सती) अरे वाचाल! ………………………………………. तपोभिः क्रीतदासोऽस्मि। 

(विनतानना पार्वती विहसति।) 

हिन्दी अनुवाद – पार्वती-(क्रुद्ध होती हुई) अरे वाचाल! दूर हट। संसार में कोई भी शिव के यथार्थ स्वरूप को नहीं जानता है। जैसे तुम हो, वैसा ही बोल रहे हो। (विजया की ओर) सखी! चलो। जो निन्दा करता है वह तो पापी होता ही है, किन्तु जो सुनता है वह भी पाप का भागी होता है।

(पार्वती तेजी से निकलती हैं। तभी पीछे से ब्रह्मचारी के रूप को छोड़कर शिव उसका हाथ पकड़ लेते हैं। पार्वती लज्जा से काँपती हैं।)

शिव – हे पार्वती ! मैं तुम्हारे संकल्प से प्रसन्न हूँ। आज से मैं तुम्हारे द्वारा तपस्या से खरीदा हुआ दास हूँ।
(नीचे की ओर मुंह किये हुए पार्वती मुस्कुराती हैं।)

पाठ के कठिन-शब्दार्थ : 

  • पतिरूपेण = पति के रूप में। 
  • एतदर्थम् (एतद् + अर्थम्) = इसके लिए। 
  • अवाञ्छत् = चाहती थी। 
  • मात्रे = माता से। 
  • चिन्ताकुला = चिन्ता से परेशान। 
  • मनीषिता = चाहा गया, इच्छित। 
  • तादृशः = वैसा। 
  • अभिलाषः = इच्छा। 
  • तपसा = तपस्या से। 
  • प्राप्स्यामि = प्राप्त करूंगी। 
  • जीवनाभिलाषः (जीवन+अभिलाषः) = जीवन की चाह। 
  • आकुलितम् = परेशान। 
  • साकम् = साथ। 
  • निष्क्रामति = निकल जाती है। 
  • मनसा = मन से। 
  • वचसा = वचन से। 
  • कर्मणा = कर्म से। 
  • तपसि स्म = तपस्या करती थी। 
  • स्थण्डिले = नंगी भूमि पर। 
  • श्मशाने = श्मशान में। 
  • अङ्गरागः = अगलेप। 
  • परिजनाः = मित्रगण। 
  • भूतगणा: = भूतों की टोली। 
  • वाचाल = बड़बोला। 
  • अपसर = दूर हट। 
  • यथार्थम् = वास्तविक। 
  • पापभाग् = पापी। 
  • पृष्ठतः = पीछे से। 
  • शिलायाम् = चट्टान पर। 
  • स्वपिति स्म = सोती थी। 
  • तपःप्रभावात् = तपस्या के प्रभाव से। 
  • अतपः = तपस्या की। 
  • अगतिः = गतिहीनता। 
  • अधीतवती = पढ़ ली। 
  • सम्पादितवती = सम्पन्न किया। 
  • प्रथिता = प्रसिद्ध हो गयी। 
  • आतुरहदये = हे व्याकुल हृदयवाली। 
  • नेपथ्ये = परदे के पीछे से। 
  • आश्रमवदुः = आश्रम का ब्रह्मचारी। 
  • झटिति = जल्दी से। 
  • क्रियार्थम् = तप के लिये। 
  • पूजोपकरणम् (पूजा+उपकरणम्) = पूजा की सामग्री। 
  • सुलभम् = आसानी से प्राप्त। 
  • धर्मसाधनम् = धर्म का साधन। 
  • तूष्णीम् = चुप। 
  • आकुलीभूय = परेशान होकर। 
  • उपहसति = उपहास करता है। 
  • अन्यथा = अन्य प्रकार से। 
  • परित्यज्य = छोड़कर। 
  • कम्पते = काँपती है। 
  • प्रीतः = प्रसन्न। 
  • सङ्कल्पेन = सङ्कल्प से। 
  • अद्यप्रभृति = आज से। 
  • क्रीतदासः = खरीदा हुआ नौकर। 
  • विनतानना = नीचे की ओर मुंह की हुई। 
  • विहसति = मुस्कुराती है।

पाठ्यपुस्तक प्रश्न-उत्तर

प्रश्न: 1.
उच्चारणं कुरुत- (उच्चारण कीजिए- )
उत्तराणि:
छात्र ध्यानपूर्वक उच्चारण करें।

प्रश्न: 2.
उदाहरणम् अनुसृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत- (उदाहरण के अनुसार रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए )
उत्तराणि:

प्रश्न: 3.
प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत- (प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखिए- )

(क) तपःप्रभावात् के सखायः जाता:?
उत्तराणि:
हिंस्रपशवः

(ख) पार्वती तपस्यार्थं कुत्र अगच्छत् ?
उत्तराणि:
गौरीशिखरम्

(ग) कः श्मशाने वसति?
उत्तराणि:
शिवः

(घ) शिवनिन्दां श्रुत्वा का क्रुद्धा जाता?
उत्तराणि:
पार्वती

(ङ) वटुरूपेण तपोवनं कः प्राविशत् ?
उत्तराणि:
शिवः ।

प्रश्न: 4.
कः/का कम्/काम् प्रति कथयति। [कौन (पुल्लिग/स्त्रीलिंग) किसको (पुल्लिग/स्त्रीलिंग) कहता है।]

उत्तराणि:

प्रश्न: 5.
प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत । (प्रश्नों के उत्तर लिखिए। )

(क) पार्वती क्रुद्धा सती किम् अवदत्?
उत्तराणि:
पार्वती क्रुद्धा सती अवदत्-‘अरे वाचाल! अपसर। जगति न कोऽपि शिवस्य यथार्थं स्वरूपं जानाति।’

(ख) कः पापभाग् भवति?
उत्तराणि:
यः शिवस्य निन्दा करोति यः च शृणोति, सः पापभाग् भवति।

(ग) पार्वती किं कर्तुम् ऐच्छत्?
उत्तराणि:
पार्वती तपः कर्तुम् ऐच्छत्।

(घ) पार्वती कया साकं गौरीशिखरं गच्छति?
उत्तराणि:
पार्वती स्वसख्या विजयया साकं गौरी शिखरं गच्छति।

प्रश्न: 6.
मञ्जूषातः पदानि चित्वा समानार्थकानि पदानि लिखत-(मञ्जूषा से शब्दों को चुनकर समान अर्थ वाले शब्द लिखिए–)

माता, मौनम्, प्रस्तरे, जन्तवः, नययानि

1. शिलायां – ………………
2. पशवः – ………………
3. अम्बा – ………………
4. नेत्राणि – ………………
5. तूष्णीम् – ………………
उत्तरम् –
1. प्रस्तरे
2. जन्तवः
3. माता
4. नयनानि
5. मौनम्।

प्रश्नः 7.
उदाहरणानुसारं पदरचनां कुरुत। (उदाहरण के अनुसार शब्द-रचना कीजिए। )

(अ) यथा-वसति स्म = अवसत्

(क) पश्यति स्म = …….
(ख) तपति स्म = …………
(ग) चिन्तयति स्म = …..
(घ) वदति स्म = …..
(ङ) गच्छति स्म = …..
उत्तराणि:
(अ) (क) अपश्यत्
(ख) अतपत्
(ग) अचिन्तयत्
(घ) अवदत्
(ङ) अगच्छत्

(ब) यथा-अलिखत् = लिखति स्म
(क) ………………… = कथयति स्म
(ख)…………………….. = नयति स्म
(ग) ……………..= पठति स्म
(घ) ……………………. = धावति स्म
(ङ) ………………… = हसति स्म
उत्तराणि:
(ब) (क) अकथयत्
(ख) अनयत्
(ग) अपठत्
(घ) अधावत्
(ङ) अहसत्

अतिरिक्त महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

(1) एकपदेन उत्तरत- (एक पद में उत्तर दीजिए-)

(i) पार्वती शिवं केन रूपेण ऐच्छत्?
उत्तराणि:
पतिरूपेण

(ii) मनस्वी किं न त्यजति?
उत्तराणि:
धैर्यम्

(iii) शिवः केन रूपेण आश्रमे आगच्छत्?
उत्तराणि:
वटुरूपेण

(iv) कस्य प्रभावात् हिंस्रपशवः पार्वत्याः सखायः जाताः?
उत्तराणि:
तपसः (तपः प्रभावात्)

(v) शिवः पार्वत्याः केन प्रीत:/प्रसन्न?
उत्तराणि:
सङ्कल्पेन/दृढ़सङ्कल्पेन

(vi) पार्वती कया सह गौरीशिखरं गच्छति स्म?
उत्तराणि:
विजयया

(vii) का पार्वती तपश्चरणात् निवारयति स्म?
उत्तराणि:
माता मेना

(2) पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)

(i) पार्वती सङ्कल्पसिद्धये किम् अकरोत्?
उत्तराणि:
सङ्कल्पसिद्धये पार्वती कठिनं तपः अकरोत्।

(ii) माता मेना कथं चिन्तिता आसीत्?
उत्तराणि:
माता मेना चिन्तिता आसीत् यतः हि तपः कठिनं पार्वत्याः शरीरं च कोमलम् अस्ति।

(iii) क : पापभाग् भवति?
उत्तराणि:
यः निन्दां करोति सः पापभाग् भवति यः च निन्दांशृणोति सः अपि पापभाग् भवति।

(3) पाठांशं पठत अधोदत्तान् प्रश्नान् च उत्तरत- (पाठांश पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- )

मेना- वत्से! मनीषिता देवताः गृहे सन्ति। तपः कठिनं भवति। तव शरीरं सुकोमलं वर्तते। गृहे एव वस। अत्रैव तवाभिलाषः सफलः भविष्यति।
पार्वती- अम्ब! तादृशः अभिलाषः तु तपसा एव पूर्णः भविष्यति। अन्यथा तादृशं च पतिं कथं प्राप्स्यामि। अहं तपः एव चरिष्यामि इति मम सङ्कल्पः।

I. एकपदेन उत्तरत-(एक पद में उत्तर दीजिए-)

1. मनीषिता देवाः कुत्र वसन्ति?
उत्तराणि:
गृहे

2. पार्वत्याः कः सफलः भविष्यति?
उत्तराणि:
अभिलाषः

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए-)

पार्वत्याः अभिलाषः कः? तदर्थं सा किं करोति?
उत्तराणि:
पार्वती शिवं पतिरूपेण अभिलषति तदर्थं च सा तपः चरति।

III. भाषिक कार्यम् –

यथानिर्देशम् उत्तरत (निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-)

(i) ‘तव शरीरं सुकोमलम्’- अत्र विशेषणपदम् किम्?
उत्तराणि:
सुकोमलम्

(ii) ‘मनोरथः’ इति पदस्य पर्यायम् चित्वा लिखत –
उत्तराणि:
अभिलाषः

(iii) ‘मनीषिताः देवाः गृहे एव वसन्ति’ –
अस्मिन् वाक्ये ‘वसन्ति’ क्रियापदस्य कर्ता कोऽस्ति? (मनीषिताः, गृहे, देवाः)
उत्तराणि:
देवाः

(iv) ‘गृहे’ अत्र किम् विभक्तिवचनम्? (प्रथमा द्विवचनम्, द्वितीया द्विवचनम्, सप्तमी एकवचनम्)
उत्तराणि:
सप्तमी एकवचनम्

(v) पाठांशात् एकम् अव्ययपदं चित्वा लिखत।
उत्तराणि:
‘एव’ अथवा ‘अन्यथा’

(4) परस्परमेलनम् कुरुत- (परस्पर मेल कीजिए- ) 

तूष्णीम् – सह
सखायः- इष्टाः
मनीषिताः – वस्त्रम्
वसनम् – मित्राणि
साकम् – मौनम्
उत्तराणि:
तूष्णीम् – मौनम्
सखायः- मित्राणि
मनीषिताः – इष्टाः
वसनम् – वस्त्रम्
साकम् – सह

(5) अधोदत्तानि वाक्यानि घटनाक्रमेण योजयत। (निम्नलिखित वाक्यों को घटना के क्रम में लगाइए। )

(i) पार्वती वटोः मुखात् शिवनिन्दा श्रुत्वा क्रुद्धा जाता।
उत्तराणि:
पार्वती शिवं पतिरूपेण अवाञ्छत्।

(ii) परं पार्वती दृढ़संकल्पा आसीत्।
उत्तराणि:
एतदर्थं सा कठोरां तपस्यां कर्तुम् ऐच्छत्।

(iii) एतदर्थं सा कठोरां तपस्या कर्तुम् ऐच्छत्।
उत्तराणि:
एतत् श्रुत्वा तस्याः माता अति चिन्तिता आसीत्।

(iv) सा सख्या विजयया सह वने अगच्छत्।
उत्तराणि:
परं पार्वती दृढ़संकल्पा आसीत्।

(v) पार्वती शिवं पतिरूपेण अवाञ्छत्।
उत्तराणि:
सा सख्या विजयया सह वने अगच्छत्।

(vi) तस्याः दृढ़-संकल्पेन शिवः अतीव प्रसन्नः अभवत्।
उत्तराणि:
एकदा शिवः वटुरूपेण तत्र आगच्छत्।

(vii) एतत् श्रुत्वा तस्याः माता अति चिन्तिता आसीत्।
उत्तराणि:
पार्वती वटोः मुखात् शिवनिन्दां श्रुत्वा क्रुद्धा जाता।

(viii) एकदा शिवः वटुरूपेण तत्र आगच्छत्।
उत्तराणि:
तस्याः दृढ़-संकल्पेन शिवः अतीव प्रसन्नः अभवत्।

(1) उचितं विकल्पं प्रयुज्य प्रश्ननिमार्णं कुरुत- (उचित विकल्प का प्रयोग करके प्रश्ननिर्माण)

(i) पार्वती तपः चरितुं वने अगच्छत्। (कः, किम्, कथम्)
उत्तराणि:
पार्वती किम् चरितुम् वने अगच्छत्?

(ii) सा रात्रौ शिलायां स्वपिति स्म। (कस्याम्, काम्, किम्)
उत्तराणि:
सा रात्रौ कस्याम् स्वपिति स्म?

(iii) तपः प्रभावात् हिंस्रपशवः अपि तस्याः सखायः जाताः। (काः, के, कः)
उत्तराणि:
तपः प्रभावात् के अपि तस्याः सखायः जाताः?

(iv) मनोरथानाम् अगतिः नास्ति। (काम्, कस्य, केषाम्)
उत्तराणि:
केषाम् अगतिः नास्ति?

(v) शिवस्य निन्दां श्रुत्वा पार्वती क्रुद्धा जाता। (काम्, कस्य, किम्)
उत्तराणि:
कस्य निन्दां श्रुत्वा पार्वती क्रुद्धा जाता?

(vi) तपः कठिनम् भवति। (कीदृशः, कीदृशम्, कीदृशी)
उत्तराणि:
तपः कीदृशं भवति?

(2) प्रदत्तविकल्पेभ्यः उचितं पदं चित्वा वाक्यपूर्तिं कुरुत- (दिए गए विकल्पों में से उचित पद चुनकर वाक्यपूर्ति कीजिए- )

(क) (i) अद्यैव साकं गौरीशिखरं गमिष्यामि। (विजया, विजयेन, विजयया)
उत्तराणि:
विजयया

(i) अपि .. ! त्वं सत्यमेव शिवं पतिम् इच्छसि? (पार्वती, पार्वति, पार्वतिः)
उत्तराणि:
पार्वति

(ii) यः ……. करोति सः तु पापभाग्।(निन्दा, निन्दाम्, निन्दम्)
उत्तराणि:
निन्दाम्

(iv) .. रूपं परित्यज्य शिवः तस्याः हस्तं गृह्णाति। (वटुस्य, वटोः, वटुः)
उत्तराणि:
वटोः

(v) इयं मे ….पार्वती। (सखि, सखीः, सखी)
उत्तराणि:
सखी

(vi) अयि ” किं न जानासि? (विजये, विजया, विजयि)
उत्तराणि:
विजये।

(ख) (i) त्वं पञ्चाग्नि-व्रतम् अपि । (अतपत्, अतपति, अतपः)
उत्तराणि:
अतपः

(ii) पार्वती शिवं पतिं ……। (इच्छति, इच्छसि, इच्छति स्म)
उत्तराणि:
इच्छति स्म

(iii) अहं तव तपोभिः क्रीतदासः .. (अस्ति, असि, अस्मि)
उत्तराणि:
अस्मि

(iv) अयि भोः! अहम् तृषार्तः जलम् . . (वाञ्छति, वाञ्छामि, वाञ्छसि)
उत्तराणि:
वाञ्छामि

(v) पूज्याः पितृचरणाः गृहे एव । (अस्ति, सन्ति, स्तः)
उत्तराणि:
सन्ति

(vi) ” ” भवान्। (उपविशसि, उपविशतु, उपविशति)
उत्तराणि:
उपविशतु।

(ग) (i) सर्वे सानन्दम् भोजनम् …… । (अखादत्, अखादत, अखादन्)
उत्तराणि:
अखादन्

(ii) किं पितामहः भ्रमणाय …………… । (गच्छन्ति, अगच्छन्, गच्छति स्म)
उत्तराणि:
गच्छति स्म

(iii) गतवर्षे वयम् मुम्बईनगरे (अवसामः, वसामः, अवसाम)
उत्तराणि:
अवसाम

(iv) तस्मिन् वृक्षे चटकाः …………. । (निवसन्ति स्म, निवसति, निवसति स्म)
उत्तराणि:
निवसन्ति स्म

(v) किं त्वं सावधानो भूत्वा पाठम् .। (अपठत्, अपठः, अपठसि)
उत्तराणि:
अपठः

RBSE Solution for Class 7 Sanskrit Chapter 7 सड.कल्पः सिद्धिदायकः, Study Learner


Spread the love

Leave a Comment


error: Content is protected !!