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RBSE Solution for Class 7 Sanskrit Chapter 6 सदाचारः

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RBSE Solution for Class 7 Sanskrit Chapter 6 सदाचारः

RBSE Solution for Class 7 Sanskrit Chapter 6 सदाचारः

कठिन शब्दार्थ, हिन्दी अनुवाद एवं व्याख्या

पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में मनुष्य के लिए अत्यन्त उपयोगी श्रेष्ठ आचरण का ज्ञान दिया गया है। पाठ में सदाचार से सम्बन्धित कुल छः श्लोक दिये गये हैं, जिनमें आलस्य न करने, कल का कार्य आज ही करने, सत्य एवं |प्रिय बोलने, व्यवहार करने में उदारता आदि गुणों का, माता-पिता की सेवा करने तथा मित्र के साथ कलह (झगड़ा) नहीं करने का वर्णन हुआ है। इन श्लोकों को कण्ठस्थ करके जीवन में इनके उपदेशों का पालन करना चाहिए।

पाठ के श्लोकों का अन्वय एवं हिन्दी-भावार्थ – 

1. आलस्यं हि मनुष्याणां ………………………………………….. कृत्वा य नावसादात।।
अन्वयः – हि आलस्यं मनुष्याणां शरीरस्थ: महान् रिपुः (अस्ति)। उद्यमसमः बन्धुः न अस्ति, यं कृत्वा (मनुष्यः) न अवसीदति।

हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में आलस्य को त्यागकर परिश्रम करने की प्रेरणा देते हुए कहा गया है कि आलस्य मनुष्यों के शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है अर्थात् आलस्य से मनुष्य का पतन हो जाती है। परिश्रम ही मनुष्य का परम मित्र है, क्योंकि परिश्रम करने वाला मनुष्य कभी दुःखी नहीं होता है। अतः हमें आलस्य का त्याग करके सदैव परिश्रम करना चाहिए।

2. श्वः कार्यमद्य कर्वीत ………………………………… कृतमस्य न वा कृतम्।। 

अन्वयः – श्वः कार्यम् अद्य कुर्वीत, अपराहिकं (कार्यम्) पूर्वाह्ने कुर्वीत, कृतम् न वा कृतम्, अस्य मृत्युः नहि प्रतीक्षते।

हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में सदाचार सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण उपदेश देते हुए कहा गया है कि मृत्यु कभी भी किसी की प्रतीक्षा नहीं करती है, वह कभी भी आ सकती है, अत: जो कार्य कल अथवा बाद में करना है उसे अभी कर लेना चाहिए। मनुष्य को निरन्तर कार्यरत रहना चाहिए।

3. सत्यं ब्रूयात् ………………………………………..एष धर्मः सनातनः।। 

अन्वयः – सत्यं ब्रूयात्, प्रियं ब्रूयात्, अप्रियं सत्यं न ब्रूयात्, न च अनृतं प्रियं ब्रूयात्। एषः सनातनः धर्मः (अस्ति)।

हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत-श्लोक में प्राचीन काल से चले आ रहे हमारे सनातन धर्म का निर्देश करते हुए सत्प्रेरणा दी |गई है कि सदैव सत्य एवं प्रिय बोलना चाहिए किन्तु अप्रिय सत्य अथवा असत्य प्रिय बात नहीं बोलनी चाहिए। क्योंकि इससे मनुष्य का अहित ही होता है।

4. सर्वदा व्यवहारे स्यात् …………………………………………….. कौटिल्यं च कदाचन।। 

अन्वयः – व्यवहारे सर्वदा औदार्य तथा सत्यता, ऋजुता मदता च अपि स्यात् । कौटिल्यं कदाचन न (स्यात्)।

हिन्दी भावार्थ – मनुष्य का व्यवहार कैसा होना चाहिए, इस.सदाचार का सदुपदेश देते हुए प्रस्तुत श्लोक में कहा गया है कि हमारे व्यवहार में सदैव उदारता, सत्यता, सरलता तथा कोमलता होनी चाहिए किन्तु कुटिलता नहीं होनी चाहिए। कुटिल व्यवहार वाला समाज में निन्दनीय एवं दुर्जन होता है।

5. श्रेष्ठं जनं गळं चापि ……………………………………….. सेवेत सततं सदा।। 

अन्वयः – श्रेष्ठं जनम्, गुरुम्, मातरम् तथा च पितरम् अपि मनसा वाचा कर्मणा च सततं सदा सेवेत।

हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में बड़ों की सेवा करने की सत्प्रेरणा देते हुए कहा गया है कि हमें श्रेष्ठ व्यक्ति, गुरुजन, माता तथा पिता की मन, वचन एवं कर्म से निरन्तर श्रद्धापूर्वक सेवा करनी चाहिए।

6. मित्रेण कलहं कृत्वा …………………………………………………. तदेव परिवर्जयेत्।। 

अन्वयः – मित्रेण कलहं कृत्वा जनः कदापि सुखी न (भवति), इति ज्ञात्वा प्रयासेन तदेव परिवर्जयेत्।

हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में मित्र के प्रति सदाचरण के महत्त्व को दर्शाते हुए प्रेरणा दी गई है कि मित्र के साथ कलह करके मनुष्य कभी भी सुखी नहीं होता है, अतः मित्र के साथ प्रयत्नपूर्वक कलह नहीं करके प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए।

पाठ के कठिन-शब्दार्थ :

  • रिपुः = शत्रु। 
  • उद्यमः = परिश्रम। 
  • शरीरस्थः = शरीर में स्थित। 
  • अवसीदति = दुःखी होता है। 
  • श्वः = आने वाला कल। 
  • कुर्वीत = करना चाहिए। 
  • पूर्वाह्वे = दोपहर से पहले। 
  • आपराह्निकम् = दोपहर के बाद करने योग्य कार्य। 
  • अनृतम् = झूठ। 
  • सनातनः = सदा से चला आ रहा हो।
  • स्यात् = हो। 
  • औदार्यम् = उदारता। 
  • ऋजुता = सरलता। 
  • मृदुता = कोमलता। 
  • कौटिल्यम् = कुटिलता, टेढ़ापन। 
  • सेवेत = सेवा करनी चाहिए। 
  • परिवर्जयेत् = बचना चाहिए। 
  • वाचा = वाणी से। 

पाठ्यपुस्तक प्रश्न-उत्तर

प्रश्न: 1.
सर्वान् श्लोकान् सस्वरं गायत। (सभी श्लोकों को लय में गाइए। )
उत्तराणि:
छात्र सुस्वर में सभी श्लोकों को गाएँ।

प्रश्न: 2.
उपयुक्तकथनानां समक्षम् ‘आम्’ अनुपयुक्तकथनानां समक्षं ‘न’ इति लिखत- (उचित कथनों के सामने ‘आम्’ और अनुचित कथनों के सामने ‘न’ लिखें- )


उत्तराणि:
क) आम्
(ख) न
(ग) आम्
(घ) न
(ङ) आम्।

प्रश्न: 3.
एकपदेन उत्तरत- (एक शब्द में उत्तर लिखिए-

(क) कः न प्रतीक्षते?
उत्तराणि:
मृत्युः

(ख) सत्यता कदा व्यवहारे किं स्यात्?
उत्तराणि:
सर्वदा

(ग) किं ब्रूयात्?
उत्तराणि:
सत्यम्

(घ) केन सह कलहं कृत्वा नरः सुखी न भवेत् ?
उत्तराणि:
मित्रेण

(ङ) कः महरिपुः अस्माक शरीरे तिष्ठिति?
उत्तराणि:
आलस्यम्

प्रश्न: 4.
रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत- (रेखांकित शब्दों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए )

(क) मृत्युः न प्रतीक्षते।
उत्तराणि:
कः न प्रतीक्षते?

(ख) कलहं कृत्वा नरः दुःखी भवति।
उत्तराणि:
किम् कृत्वा नरः दुःखी भवति?

(ग) पितरं कर्मणा सेवेत।
उत्तराणि:
कम् कर्मणा सेवेत?

(घ) व्यवहारे मृदुता श्रेयसी।
उत्तराणि:
व्यवहारे का श्रेयसी?

(ङ) सर्वदा व्यवहारे ऋजुता विधेया।
उत्तराणि:
कदा व्यवहारे ऋजुता विधेया?

प्रश्नः 5.
प्रश्नमध्ये त्रीणि क्रियापदानि सन्ति। तानि प्रयुज्य सार्थक-वाक्यानि रचयत- (प्रश्न के बीच में तीन क्रियावाचक शब्द हैं। उनको जोड़कर अर्थपूर्ण वाक्य बनाइए- )

(क) ……………………….
(ख) ……………………….
(ग) ……………………….
(घ) ……………………….
(ङ) ……………………….
(च) ……………………….
(छ) ……………………….
(ज) ……………………….
उत्तराणि:
(क) सत्यं प्रियं च ब्रूयात्।
(ख) सत्यं अप्रियं च न ब्रूयात् ।
(ग) अनृतं प्रियं च न ब्रूयात्।
(घ) व्यवहारे कदाचन कौटिल्यं न स्यात् ।
(ङ) व्यवहारे सर्वदा औदार्यं स्यात् ।
(च) वाचा गुरुं सेवेत।
(छ) श्रेष्ठजनं कर्मणा सेवेत।
(ज) मनसा मातरं पितरं च सेवेत।

प्रश्न: 6.
मञ्जूषातः अव्ययपदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत- (मञ्जूषा से अव्यय शब्दों को चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए- )

तथा, न, कदाचन, सदा, च, अपि

(क) भक्तः…………….. ईश्वरं स्मरति।
उत्तराणि:
सदा

(ख) असत्यं …………….. वक्तव्यम्।
उत्तराणि:

(ग) प्रियं……………….. सत्यं वदेत् ।
उत्तराणि:
तथा

(घ) लता मेधा………………… विद्यालयं गच्छतः।
उत्तराणि:

(ङ) ………………… कुशली भवान् ?
उत्तराणि:
अपि

(च) महात्मागान्धी……………….. अहिंसां न अत्यजत्।
उत्तराणि:
कदाचन।

प्रश्न: 7.
चित्रं दृष्ट्वा मञ्जूषातः पदानि च प्रयुज्य वाक्यानि रचयत। (चित्र को देखकर और मञ्जूषा के शब्दों का प्रयोग कर वाक्य बनाइए।

मञ्जूषा
| लिखति, कक्षायाम्, श्यामपट्टे, लिखन्ति, सः, पुस्तिकायाम्, शिक्षकः, छात्राः, उत्तराणि, प्रश्नम्, ते।
1. ………………………….
2. ………………………….
3. ………………………….
4. ………………………….
5. ………………………….
उत्तराणि:
1. छात्राः कक्षायाम् संस्कृतं पठन्ति।
2. शिक्षक: श्यामपट्टे प्रश्नम् लिखति।
3. ते प्रत्येक प्रश्नम् ध्यानेन पठन्ति।
4. तदा ते उत्तराणि लिखन्ति।
5. एकः छात्रः अन्य-छात्रस्य पुस्तिकायां पश्यति।

अतिरिक्त महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

(1) निम्नलिखित श्लोकं पठित्वा तदाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत (निम्नलिखित श्लोक को पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए) –

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति॥

I. एकपदेन उत्तरत- (एक पद में उत्तर दीजिए-)

1. किं महरिपुः अस्ति?
उत्तराणि:
आलस्यम्

2. आलस्यं कीदृशः महान् रिपुः अस्ति?
उत्तराणि:
शरीरस्थः

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत-(पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए-)

1. उद्यमसमः कः मनुष्याणां नास्ति?
उत्तराणि:
उद्यमसमः बन्धुः मनुष्याणां नास्ति।

2. कं कृत्वा मनुष्यः नावसीदति?
उत्तराणि:
उद्यम कृत्वा मनुष्यः नावसीदति।

III. निर्देशानुसारमेन उत्तरत (निर्देश के अनुसार उत्तर दीजिए-)

1. ‘महान् रिपुः’ अनयोः विशेषणपदं किम्?
(क) महान्
(ख) रिपुः
(ग) महत्
(घ) रिपु
उत्तराणि:
महान्

2. ‘कृत्वा’ पदे कः प्रत्ययः अस्ति?
(क) त्वा
(ख) कतवा
(ग) क्त्वा
(घ) क्तवा
उत्तराणि:
क्त्वा

(2) पर्यायपदानि लिखत (पर्यायवाची पदों को लिखिए-)

पदानि – पर्यायाः
(i) शत्रुः – बन्धुः
(ii) मानवानाम् – अवसीदति
(iii) परिश्रम – रिपुः
(iv) मित्रम् – उद्यम
(v) दुःखीयति – मनुष्याणाम्
उत्तरम्-
(i) रिपुः
(ii) मनुष्याणाम्
(iii) उद्यम
(iv) बन्धुः
(v) अवसीदति

(3) ‘क’ पदस्य श्लोकांशं ‘ख’ पदस्य श्लोकांशैः सह योजयत (‘क’ पद श्लोकांश को ‘ख’ पद के श्लोकांशों के साथ जोड़िए-)

‘क’ – ‘ख’
(i) आलस्यं हि मनुष्याणाम् – समबन्धुः
(ii) नास्ति उद्यमसमः बन्धुः – मनुष्याणाम्
(iii) शरीरस्थः – कृत्वा यं नावसीदति
(iv) आलस्यं हि – नावसीदति
(v) कृत्वा यम् – महान् रिपुः
(vi) नास्ति उद्यम – शरीरस्थो महान् रिपुः
उत्तरम्-
(i) आलस्यं हि मनुष्याणाम् – शरीरस्थो महान् रिपुः
(ii) नास्ति उद्यमसमः बन्धुः – कृत्वा यं नावसीदति
(iii) शरीरस्थः – महान् रिपुः
(iv) आलस्यं हि – मनुष्याणाम्
(v) कृत्वा यम् – नावसीदति
(v) नास्ति उद्यम – समबन्धुः

(4) परस्परमेलनम् कुरुत- (परस्पर मेल कीजिए-Match the following.)

(क) (i) पर्यायाः

ब्रूयात् – निरन्तरम्
वाचा – व्यवहारः
अनृतम् – वदेत्
सततम् – वचनेन
आचारः – असत्यम्
उत्तराणि:
ब्रूयात् – वदेत्
वाचा – वचनेन
अनृतम् – असत्यम्
सततम् – निरन्तरम्
आचारः – व्यवहारः

(ii) विपर्यायाः

सर्वदा – मरणम्
प्रियम् – अनृतता
सत्यता – अप्रियम्
श्वः – कदाचन/कदापि
जीवनम् – ह्यः
उत्तराणि:
सर्वदा – कदाचन/कदापि
प्रियम् – अप्रियम्
सत्यता – अनृतता
श्वः – ह्यः
जीवनम् – मरणम्

(ख) श्लोकांशाः
(i) श्वः कार्यमद्य कुर्वीत – एषः धर्म सनातनः।
(ii) नहि प्रतीक्षते मृत्युः – न कदापि सुखी जनः।
(iii) प्रियं चानृतं ब्रूयात् – कृतमस्य न वा कृतम्।
(iv) मित्रेण कलहं कृत्वा – पूर्वाह्ने चापराह्निकम्।
उत्तराणि:
(i) श्वः कार्यमद्य कुर्वीत – पूर्वाह्ने चापराह्निकम्।
(ii) नहि प्रतीक्षते मृत्युः – कृतमस्य न वा कृतम्।
(iii) प्रियं चानृतं ब्रूयात् – एषः धर्मः सनातनः।
(iv) मित्रेण कलहं कृत्वा – न कदापि सुखी जनः।

(5) सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एषः धर्मः सनातनः॥
सर्वदा व्यवहारे स्यात् औदार्यं सत्यता तथा।
ऋजुता मृदुता चापि कौटिल्यं न कदाचन॥
श्लोकान् पठत प्रश्नान् च उत्तरत- (श्लोकों को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए- )

(क) एकपदेन उत्तरत –

(i) किं न ब्रूया?
(ii) व्यवहारे किं स्यात?
(iii) मृत्युः किं न करोति?
(iv) मित्रेण कलहं कृत्वा जनः कीदृशः भवति?
उत्तराणि:
(i) सत्यमप्रियम् (सत्यम् + अप्रियम्)
(ii) औदार्यम्
(ii) प्रतीक्षाम्
(iv) दु:खी

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(i) सनातनः धर्मः कः?
(ii) मनसा वाचा कर्मणा कं कं सेवेत?
(iii) व्यवहारे सदा किं स्यात् किं च न?
उत्तराणि:
उत्तरम्- (i) ‘प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एषः धर्मः सनातनः।’
(ii) श्रेष्ठं जनं, गुरुं, मातरं पितरं च अपि मनसा वाचा कर्मणा सेवेत।
(iii) व्यवहारे सदा औदार्यं स्यात् तथा सत्यता, ऋजुता मृदुता चापि स्यात्; कौटिल्यं कदापि न स्यात्।

(6) मञ्जूषातः उचितम् अव्ययपदम् आदाय वाक्यपूर्तिं कुरुत- (मञ्जूषा से उचित पद लेकर वाक्यपूर्ति कीजिए- )

सततम्, श्वः, सर्वदा, कदापि, एव

(i) अहं ………………… ग्रामं गमिष्यामि।
उत्तराणि:
श्वः

(ii) ‘सत्यम् ………………… जयते।’
उत्तराणि:
एव

(iii) योग्यः छात्रः शोभनान् अङ्कान् लब्धुम् ………………… परिश्रमं करोति।
उत्तराणि:
सततम्

(iv) सत्यवादी हरिशचन्द्रः…………………असत्यं न अवदत्।
उत्तराणि:
कदापि

(v) सः ………………… सत्यम् एव वदति स्म।
उत्तराणि:
सर्वदा।

(7) मञ्जूषायाः सहायतया श्लोकान्वयं पूरयत। (मञ्जूषा की सहायता से श्लोक का अन्वय पूरा कीजिए। )

अपि, सत्यता, कदाचन, व्यवहारे

…………….. सर्वदा औदार्यं तथा ……………….. स्यात्; ऋजुता मृदुता च ……….. (स्यात्); कौटिल्यम् …………….. न (स्यात्)
उत्तराणि:
व्यवहारे, सत्यता, अपि, कदाचन

(1) उचित-विकल्पं चित्वा प्रश्ननिर्माणम् कुरुत- (उचित विकल्प चुनकर प्रश्न निर्माण कीजिए )

(i) श्वः कार्यमद्य (कार्यम् + अद्य) कुर्वीत। (कुत्र, कदा, किम्)
उत्तराणि:
श्वः कार्यं कदा कुर्वीत?

(ii) व्यवहारे सर्वदा औदार्यं स्यात्। (के, कुत्र, कस्मिन्)
उत्तराणि:
कस्मिन् सर्वदा औदार्यं स्यात्?

(iii) व्यवहारे कौटिल्यं कदापि न स्यात्। (कः, का, किम्)
उत्तराणि:
व्यवहारे किम् कदापि न स्यात्?

(iv) मित्रेण कलहं न कुर्यात्। (कस्य, कः, केन)
उत्तराणि:
केन कलहं न कुर्यात्?

(v) मातरं पितरं च कर्मणा सेवेत। (कम्, किम्, कथम्)
उत्तराणि:
मातरं पितरं च कथम् सेवेत?

(2) (क) उचितेन विकल्पेन प्रत्येकं रिक्तस्थानं पूरयत- (उचित विकल्प द्वारा प्रत्येक रिक्त स्थान भरिए )

(i) श्वः कार्यम् अद्य कुर्वीत …………….. चापराह्निकम्। (पूवाणे, मध्याह्ने, प्रातः)
उत्तराणि:
पूर्वाह्ने

(ii) प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् एषः …………….. सनातनः (आचारः, धर्मः, देशः)
उत्तराणि:
धर्मः

(iii) नहि …………….. मृत्युः कृत्यस्य न वा कृतम्। (परिवर्जयेत्, सेवेत, प्रतीक्षते)
उत्तराणि:
प्रतीक्षते

(iv) मित्रेण …………….. कृत्वा न कदापि सुखी नरः। (कार्यम्, कौटिल्यम्, कलहम्)
उत्तराणि:
कलहम्

(v) सर्वदा …………….. स्यात् औदार्यं सत्यता तथा। ___ (देशे, व्यवहारे, मित्रे)
उत्तराणि:
व्यवहारे।

(ख) (i) मित्रेण कलहम् कृत्वा न…………….. सुखी जनः। (कदा, कदापि, सर्वदा)
उत्तराणि:
कदापि

(ii) नहि प्रतीक्षते मृत्युः कृतम् अस्य न …………….. कृतम्। (च, सततम्, वा)
उत्तराणि:
वा

(iii) ऋतुजा मृदुता चापि कौटिल्यं …………….. कदाचन। (च, वा, न)
उत्तराणि:

(iv) ……….. कार्यमद्य कुर्वीत। (ह्यः, अद्य, श्वः)
उत्तराणि:
श्वः

(v) मनसा वाचा कर्मणा सेवेत…………….. सदा। (तथा, चापि, सततम्)
उत्तराणि:
सततम्।

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