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RBSE Solution for Class 7 Sanskrit Chapter 10 विश्वबंधुत्वम्

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RBSE Solution for Class 7 Sanskrit Chapter 10 विश्वबंधुत्वम्

RBSE Solution for Class 7 Sanskrit Chapter 10 विश्वबंधुत्वम्

कठिन शब्दार्थ, हिन्दी अनुवाद एवं व्याख्या

पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में भाईचारे की भावना की आवश्यकता एवं महत्त्व को दर्शाते हुए सभी को मिलजुल कर रहने तथा एक-दूसरे की सहायता करने की प्रेरणा दी गई है। इस पाठ में आज सम्पूर्ण संसार में फैले हुए कलह और अशान्त वातावरण के प्रति दुःख व्यक्त करते हुए राष्ट्र की समृद्धि एवं विकास के लिए परस्पर में शत्रुता, द्वेष-भाव आदि को त्याग कर मित्रभाव से रहने का सदुपदेश दिया गया है। इसमें प्रकृति के दिव्य एवं परोपकारी स्वभाव का भी प्रेरणास्पद वर्णन हुआ है। सूर्य, चन्द्रमा आदि संसार में किसी के साथ भेदभाव नहीं करते हैं।

1. उत्सवे, व्यसने, दुर्भिक्षे, ………………………………….. विश्वबन्धुत्वं सम्भवति। 

हिन्दी अनुवाद –

उत्सव में, संकट में, अकाल पड़ने पर, राष्ट्र/देश पर आपदा आने पर और दैनिक व्यवहार में जो सहायता करता है, वह बन्धु (भाई) होता है। यदि विश्व (संसार) में इस प्रकार का भाव सभी जगह हो जाए, तो विश्व (संसार) के प्रति भाई-चारा सम्भव होता है।

पठितावबोधनम् : 
निर्देशः-उपर्युक्तं गद्यांशं पठित्वा एतदाधारितप्रश्नानाम् उत्तराणि यथानिर्देशं लिखतप्रश्ना :
(क) विश्वे सर्वत्र सहायतायाः (बन्धुत्वस्य) भावे सति किं सम्भवति? (एकपदेन उत्तरत) 
(ख) ‘व्यसने’ इति पदस्य कोऽर्थ:? (एकपदेन उत्तरत) 
(ग) कः बन्धुः भवति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
(घ) ‘य: सहायतां।’ अत्र पूरणीयं क्रियापदं किमस्ति?
(ङ) ‘बन्धुः’ इति संज्ञापदस्य गद्यांशे सर्वनामपदं किम्?
उत्तराणि : 
(क) विश्वबन्धुत्वम्।
(ख) सङ्कटे। 
(ग) यः उत्सवे व्यसने दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवादिषु च सदैव सहायतां करोति, सः बन्धुः भवति। 
(घ) करोति।
(ङ) सः।

2. परन्तु अधुना निखिले संसारे …………………………………………… अपि अवरुद्धः भवन्ति। 

हिन्दी अनुवाद – परन्तु इस समय सम्पूर्ण संसार में कलह और अशान्ति का वातावरण है। मानव आपस में विश्वास नहीं करते हैं। वे दूसरे के कष्ट को अपना नहीं मानते हैं। और भी समर्थ देश असमर्थ देशों के प्रति अनादर की भावना दिखलाते हैं। उनके ऊपर अपना प्रभुत्व स्थापित करते हैं। संसार में सभी जगह ईर्ष्या, शत्रुता और हिंसा की भावना दिखाई देती है। देश का विकास भी रुक जाता है। 

पठितावबोधनम्प्रश्ना :
(क) अधुना मानवा: परस्परं किम् न कुर्वन्ति? (एकपदेन उत्तरत) 
(ख) समर्थाः देशाः असमर्थान् देशान् प्रति किम् प्रदर्शयन्ति? (एकपदेन उत्तरत) 
(ग) संसारे सर्वत्र का भावना दृश्यते? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) 
(घ) ‘संसारे’ इति पदस्य गद्यांशे विशेष्यपदं किं प्रयुक्तम्?
(ङ) ‘मित्रतायाः’ इति पदस्य गद्यांशे विलोमपदं किम्? 
उत्तराणि : 
(क) विश्वासम्।
(ख) उपेक्षाभावम्। 
(ग) संसारे सर्वत्र विद्वेषस्य, शत्रुतायाः, हिंसायाः च भावना दृश्यते।
(घ) निखिले।
(ङ) शत्रुतायाः।

3. इयम् महती आवश्यकता …………………………….. प्राप्तुं समर्थाः भविष्यन्ति। 

हिन्दी अनुवाद – यह बहुत अधिक आवश्यकता है कि एक देश दूसरे देश के साथ निर्मल हृदय से भाई-चारे का व्यवहार करे। संसार के लोगों में यह भावना होनी आवश्यक है। तभी विकसित और अविकसित देशों के बीच स्वस्थ होड़ होगी। सभी देश ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में मैत्री (मित्रता की) भावना और सहयोग से समृद्धि को प्राप्त करने में| समर्थ होंगे। 

पठितावबोधनम्प्रश्ना :

(क) एकः देशः अपरेण देशेन सह कस्याः व्यवहारं कुर्यात्? (एकपदेन उत्तरत) 
(ख) कयो: देशयोः मध्ये स्वस्था स्पर्धा भवेत? (एकपदेन उत्तरत)
(ग) सर्वे देशाः ज्ञानविज्ञानयोः क्षेत्रे कथं समृद्धि प्राप्तुं समर्थाः भविष्यन्ति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत) 
(घ) ‘भविष्यन्ति’ इति क्रियायाः गद्यांशे कर्तृपदं किम् अस्ति?
(ङ) ‘देशेन सह’-अत्र रेखाङ्कितपदे का विभक्तिः प्रयुक्ता? 
उत्तराणि : 
(क) बन्धुतायाः।
(ख) विकसिताविकसितयोः। 
(ग) सर्वे देशाः ज्ञानविज्ञानयोः क्षेत्रे मैत्रीभावनया सहयोगेन च समृद्धि प्राप्तुं समर्थाः भविष्यन्ति। 
(घ) देशाः।
(ङ) तृतीया।

4. सूर्यस्य चन्द्रस्य च प्रकाशः ……………………………………….. विश्वबन्धुत्वं स्थापनीयम्।

हिन्दी अनुवाद – सूर्य और चन्द्रमा का प्रकाश सभी जगह समान रूप से फैलता है। प्रकृति भी सभी में समान भाव से व्यवहार करती है। इसलिए हम सभी को भी आपस में वैरभाव छोड़कर विश्व में भाई-चारे की भावना स्थापित करनी चाहिए। 

पठितावबोधनम्प्रश्ना : 
(क) सूर्यस्य चन्द्रस्य च प्रकाशः सर्वत्र कथं प्रसरति? (एकपदेन उत्तरत) 
(ख) का सर्वेषु समत्वेन व्यवहरति? (एकपदेन उत्तरत) 
(ग).अस्माभिः सर्वैः कथं विश्वबन्धुत्वं स्थापनीयम्? 
(घ) ‘सूर्यस्य’ इति पदस्य विलोम पदं किम् अस्ति?
(ङ) ‘अपहाय’ इति पदे कः उपसर्ग:? 
उत्तराणि : 
(क) समानरूपेण।
(ख) प्रकृतिः। 
(ग) अस्माभिः सर्वैः परस्परं वैरभावम् अपहाय विश्वबन्धुत्वं स्थापनीयम्। 
(घ) चन्द्रस्य।
(ङ) अप।

5. अतः विश्वस्य कल्याणाय एतादृशी भावना भवेत्अयं निजः परो वेति ……………………………………….. वसुधैव कुटुम्बकम्॥

श्लोकस्य अन्वयः – अयं निजः वा परः इति लघुचेतसां गणना (भवति)। तु उदारचरितानां वसुधा एव कुटुम्बकम् (भवति)।
हिन्दी अनुवाद-इसलिए विश्व के कल्याण के लिए इस प्रकार की भावना होनी चाहिए यह अपना है अथवा पराया है-इस प्रकार की गणना क्षुद्र (तुच्छ) हृदय वालों की होती है, किन्तु उदार चरित्र वालों के लिए तो सम्पूर्ण धरती ही परिवार है।

पाठ के कठिन-शब्दार्थ :

  • व्यसने = व्यक्तिगत संकट पर। 
  • दुर्भिक्षे = अकाल पड़ने पर। 
  • राष्ट्रविप्लवे = राष्ट्र देश पर आपदा आने पर। 
  • विश्वबन्धुत्वम् = विश्व के प्रति भाईचारा। 
  • विश्वसन्ति = विश्वास करते हैं। 
  • स्वकीयम् = अपना। 
  • उपेक्षाभावम् = अनादर की भावना। 
  • विद्वेषस्य = शत्रुता का। 
  • अवरुद्धः = बाधित। 
  • स्पर्धा = होड़, मुकाबला। 
  • ध्यातव्यम् = ध्यान देना चाहिए। 
  • ज्ञायते = जाना जाता है। 
  • समत्वेन = समान भाव से। 
  • अपहाय = छोड़कर। 
  • परो वेति = अथवा पराया। 
  • लघुचेतसाम् = क्षुद्र हृदय वालों का। 
  • वसुधैव (वसुधा + एव) = धरती ही। 
  • कुटुम्बकम् = परिवार।

पाठ्यपुस्तक प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत
दुर्भिक्षे – राष्ट्रविप्लवे – विश्वबन्धुत्वम्
विश्वसन्ति – उपेक्षाभावम् – विद्वेषस्य
ध्यातव्यम् – दुःखभाक् – प्रदर्शयन्ति
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
मञ्जूषातः समानार्थकपदानि चित्वा लिखत-
परस्य दुःखम् आत्मानम् बाधितः परिवारः सम्पन्नम् त्यक्त्वा सम्पूर्णे
स्वकीयम् …………….. (1) ……………..
अवरुद्धः …………….. (2) ……………..
कुटुम्बकम् …………….. (3) ……………..
अन्यस्य …………….. (4) ……………..
अपहाय …………….. (5) ……………..
समृद्धम् …………….. (6) ……………..
कष्टम् …………….. (7) ……………..
निखिले …………….. (8) ……………..
उत्तर:
(1) आत्मानम्
(2) बाधितः
(3) परिवारः
(4) परस्य
(5) त्यक्त्वा
(6) सम्पन्नम्
(7) दुःखम्
(8) सम्पूर्णे।

प्रश्न 3.
रेखाङ्कितानि पदानि संशोध्य लिखतं-
(क) छात्राः क्रीडाक्षेत्रे कन्दुकात् क्रीडन्ति।
(ख) ते बालिकाः मधुरं गायन्ति।
(ग) अहं पुस्तकालयेन पुस्तकानि आनयामि।
(ङ) गुरुं नमः।
उत्तर:
(क) कन्दुकेन
(ख) ताः
(ग) पुस्तकालयात्
(घ) तव
(ङ) गुरवे।

प्रश्न 4.
मञ्जूषातः विलोमपदानि चित्वा लिखत
अधुना मित्रतायाः लघुचेतसाम् गृहीत्वा दुःखिनः दानवाः
शत्रुतायाः …………….. (1) ……………..
पुरा …………….. (2) ……………..
मानवाः …………….. (3) ……………..
उदारचरितानाम् …………….. (4) ……………..
सुखिनः …………….. (5) ……………..
अपहाय …………….. (6) ……………..
उत्तर:
(1) मित्रतायाः
(2) अधुना
(3) दानवाः
(4) लघुचेतसाम्
(5) दुःखिनः
(6) गृहीत्वा।

प्रश्न 5.
अधोलिखितपदानां लिङ्ग, विभक्तिं वचनञ्च लिखत-

प्रश्न 6.
कोष्ठकेषु दत्तेषु शब्देषु समुचितां विभक्तिं योजयित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) विद्यालयम् उभयतः वृक्षाः सन्ति।(विद्यालय) ………………………….. उभयतः गोपालिकाः।(कृष्ण)
(ख) ग्रामं परित: गोचारणभूमिः।(ग्राम) ………………………….. परितः भक्ताः। (मन्दिर)
(ग) सूर्याय नमः। (सूर्य) ………………………….. नमः। (गुरु)
(घ) वृक्षस्य उपरि खगाः। (वृक्ष) ………………………….. उपरि सैनिकः। (अश्व)
उत्तर:
(क) कृष्णम् उभयतः गोपालिकाः।,
(ख) मन्दिरम् परितः भक्ताः।
(ग) गुरवे नमः।
(घ) अश्वस्य उपरि सैनिकः।

प्रश्न 7.
कोष्ठकात् समुचितं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) ………………………….. नमः। (हरि/हरये)
(ख) ………………………….. परितः कृषिक्षेत्राणि सन्ति। (ग्रामस्य/ग्रामम्)
(ग) ………………………….. नमः। (अम्बायाः/अम्बायै)
(घ) ………………………….. उपरि अभिनेता अभिनयं करोति। (मञ्चस्य पञ्चम्)
(ङ) ………………………….. उभयतः पुत्रौ स्तः। (पितरम/पितुः)
उत्तर:
(क) हरये
(ख) ग्रामम्
(ग) अम्बायै
(घ) मञ्चस्य
(ङ) पितरम्।

बहुविकल्पी प्रश्न
प्रश्न-निम्नलिखितानां प्रश्नानाम् शुद्धम् उत्तरं चित्वा लिखत-

प्रश्न 1.
केषां वसुधैव कुटुम्बकम्?
(क) उदारचरितानाम्
(ख) लघुचेतसाम्
(ग) वीराणाम्
(घ) धनवताम्।
उत्तर:
(क) उदारचरितानाम्

प्रश्न 2.
‘करोति’ पदे कः लकार:?
(क) लट्
(ख) लृट्
(ग) लङ्
(घ) लोट्।
उत्तर:
(क) लट्

प्रश्न 3.
‘शत्रुतायाः’ पदे का विभक्तिः?
(क) षष्ठी
(ख) चतुर्थी
(ग) प्रथमा
(घ) तृतीया।
उत्तर:
(क) षष्ठी

प्रश्न 4.
‘मित्रतायाः’ पदस्य विपरीतार्थकपदम् किं भवति?
(क) शत्रुतायाः
(ख) मित्रता
(ग) बन्धुता
(घ) मधुरता।
उत्तर:
(क) शत्रुतायाः

प्रश्न 5.
‘कुटुम्बकम्’ पदस्य समानार्थकपदम् किं भवति?
(क) कृषकः
(ख) कृष्णः
(ग) परिवारः
(घ) विश्वः।
उत्तर:
(ग) परिवारः।

सारांश

1. उत्सवे, व्यसने …………………………… अवरुद्धः भवति। (पृष्ठ 53)

हिन्दी सरलार्थ-उत्सव में, विपत्ति में, अकाल में, देश पर आपत्ति आने पर, शत्रु का संकट आने पर जो सहायता करता है, वही बन्धु होता है। यदि विश्व में सब जगह ऐसा भाव हो जाए तब विश्व में भाईचारा संभव है।

परन्तु आजकल सम्पूर्ण संसार में झगड़े का और अशांति का वातावरण है जिससे मनुष्य आपस में विश्वास नहीं करते हैं। वे दूसरे के कष्ट को अपना कष्ट नहीं मानते हैं। शक्तिशाली देश कमजोर देशों के प्रति उपेक्षा भाव दिखाते हैं और उनके ऊपर अपना प्रभुत्व (शासन) स्थापित करते हैं। इस कारण से संसार में सब जगह विद्वेष की, शत्रुता की और हिंसा की भावना दिखाई देती है। देशों का विकास भी रुक जाता है।

2. एतेषां सर्वेषां …………………………… भविष्यन्ति। (पृष्ठ 53)

हिन्दी सरलार्थ-इन सबका कारण विश्व में भाईचारे की कमी ही है। यह बहुत बड़ी आवश्यकता है कि एक देश दूसरे देश के साथ निर्मल हृदय से भाईचारे का व्यवहार करे। यदि यह भावना विश्व के लोगों में बलवती हो जाए तब विकसित और अविकसित देशों के बीच स्वस्थ स्पर्धा होगी। जिससे सभी देश ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में मैत्री भावना से और सहयोग से समृद्धि प्राप्त करने में समर्थ होंगे।

3. अस्माभिः …………………………… स्थापनीयम्। (पृष्ठ 53)

हिन्दी सरलार्थ-हमें अवश्य ध्यान देना चाहिए कि विश्व के सभी प्राणियों में एक समान खून बहता है। सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश सब जगह समान रूप से फैलता है। इससे ज्ञात होता है कि प्रकृति भी सबके साथ समान रूप से व्यवहार करती है, इसलिए हम सबको आपस में शत्रुता छोड़कर विश्वबन्धुत्व की स्थापना करनी चाहिए।

4. अतः …………………………… कटम्बकम॥ (पृष्ठ 54)

हिन्दी सरलार्थ-इसलिए विश्व के कल्याण के लिए ऐसी भावना होनी चाहिए यह अपना है या पराया है, इस प्रकार की बातें छोटे हृदय वालों की होती हैं। उदार चरित वालों के लिए तो पूरी पृथ्वी ही परिवार के समान होती है।

RBSE Solution for Class 7 Sanskrit Chapter 10 विश्वबंधुत्वम्, Study Learner


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