RBSE Solution for Class 7 Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि
RBSE Solution for Class 7 Sanskrit Chapter 1 सुभाषितानि
कठिन शब्दार्थ, हिन्दी अनुवाद एवं व्याख्या
पाठ-सार – संस्कृत-साहित्य सुभाषितों का भण्डार है। प्रस्तुत पाठ में अत्यन्त सरल एवं महत्त्वपूर्ण कुल छ: श्लोक हैं, जिनमें जीवनोपयोगी सुन्दर-वचन संकलित हैं।
1. पृथिव्यां त्रीणि ………………………………….. विधीयते॥
अन्वयः – पृथिव्यां जलम्, अन्नम्, सुभाषितं त्रीणि रत्नानि (सन्ति)। मूढैः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में वास्तविक रूप से रत्न क्या हैं, इसके बारे में कहा गया है कि सभी के लिए लाभदायक एवं उपयोगी जल, अन्न और सुन्दर वचन-ये तीन ही इस पृथ्वी पर रत्न हैं। हीरे आदि पत्थर के टुकड़ों को तो मूर्ख लोग ही रत्न नाम से कहते हैं। अर्थात् मूर्ख रत्न के वास्तविक महत्त्व को नहीं जानते हैं।
2. सत्येन धार्यते …………………………………….. प्रतिष्ठितम्॥
अन्वयः – पृथ्वी सत्येन धार्यते। रविः सत्येन तपते। वायुश्च सत्येन वाति। सत्ये सर्व प्रतिष्ठितम्।।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में सत्य के महत्त्व का वर्णन करते हुए कहा गया है कि सत्य से ही पृथ्वी धारण की जाती है, सत्य से ही सूर्य तपता है, सत्य से ही वायु बहती है तथा संसार में जो भी कुछ है वह सब सत्य पर ही निर्भर है।
3. दाने तपसि शौर्ये …………………………………………. वसुन्धरा॥
अन्वयः – दाने तपसि शौर्ये विज्ञाने विनये नये च विस्मयः न कर्त्तव्यः। हि वसुन्धरा बहुरत्ना (वर्तते)।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में ‘बहुरत्ना वसुन्धरा’ इस सूक्ति के द्वारा स्पष्ट किया गया है कि यह भूमि | अनेक रत्नों वाली है। यहाँ एक से बढ़कर एक दानी, तपस्वी, बलशाली, वैज्ञानिक, विनम्र तथा नीतिज्ञ हैं, अत: इनके कार्य दान, तपस्या आदि में आश्चर्य नहीं करना चाहिए। ये सभी इस पृथ्वी के अमूल्य रत्न हैं। –
4. सद्भिरेव सहासीत ………………… किञ्चिदाचरेत्॥
अन्वयः – सद्भिः सह इव आसीत। सद्भिः सङ्गतिं कुर्वीत। सद्भिः (सह) विवादं मैत्री च (कुर्वीत)। असद्भिः (सह) किञ्चिद् न आचरेत्।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में सत्संगति के महत्त्व को दर्शाते हुए कहा गया है कि सज्जनों के साथ ही रहना चाहिए, सज्जनों के साथ ही संगति करनी चाहिए तथा सज्जनों के साथ ही मित्रता अथवा विवाद करना चाहिए, किन्तु दुर्जनों के साथ किसी भी प्रकार का व्यवहार नहीं रखना चाहिए, सज्जनों का साथ हर प्रकार से लाभदायक होता है, किन्तु दुर्जनों की संगति सर्वथा हानिकारक ही होती है।
5. धनधान्यप्रयोगेषु ………………………………… सुखी भवेत्॥
अन्वयः – धनधान्यप्रयोगेषु, विद्यायाः संग्रहेषु च आहारे च व्यवहारे त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में संकोच अथवा लज्जा कहाँ नहीं करनी चाहिए, इसका सदुपदेश देते हुए कहा गया है कि धन-धान्य के प्रयोग में, विद्या-प्राप्ति में, भोजन में तथा व्यवहार में संकोच या लज्जा को छोड़ देना चाहिए, जिससे व्यक्ति सुखी हो जाता है। इनमें लज्जा करने से व्यक्ति को कष्ट उठाना पड़ता है। जैसे भोजन के समय संकोच करने से व्यक्ति भूखा ही रह जाता है।
6. क्षमावशीकृतिर्लोके ………………………………… करिष्यति दुर्जनः॥
अन्वयः – लोके क्षमा वशीकृतिः, समया किं न साध्यते? यस्य करे शान्तिखड्गः (अस्ति), दुर्जनः (तस्य) किं करिष्यति?
हिन्दी भावार्थ – प्रस्तुत श्लोक में क्षमाशीलता के महत्त्व को दर्शाते हुए कहा गया है कि क्षमाशीलता से संसार में सभी को वश में तथा सभी कार्यों को सिद्ध किया जा सकता है। शान्ति (क्षमा) रूपी तलवार होने पर दुर्जन व्यक्ति भी उसका कुछ भी अहित नहीं कर सकता है। अर्थात् क्षमाशीलता एक सर्वश्रेष्ठ शस्त्र है।
पाठ के कठिन-शब्दार्थ –
- पृथिव्याम् = धरती पर।
- सुभाषितम् = सुन्दर वचन।
- मूढः = मूल् के द्वारा।
- पाषाणखण्डेषु = पत्थर के टुकड़ों में।
- रत्नसंज्ञा = रत्न का नाम।
- विधीयते = किया/समझा जाता है।
- धार्यते = धारण किया जाता है।
- तपते = जलता है।
- वाति = बहता है/बहती है।
- वायुश्च (वायु: + च) = पवन भी।
- प्रतिष्ठितम् = स्थित है।
- तपसि = तपस्या में।
- शौर्ये = बल में।
- नये = नीति में।
- विस्मयः = आश्चर्य।
- बहुरत्ना = अनेक रत्नों वाली।
- वसुन्धरा = पृथिवी।
- सद्भिरेव (सद्भिः+एव) = सज्जनों के साथ ही।
- सहासीत (सह+आसीत) = साथ बैठना चाहिए।
- कुर्वीत = करना चाहिए।
- सद्धिर्विवादम् (सद्भिः विवादम्) = सज्जनों के साथ झगड़ा।
- क्षमावशीकृतिर्लोके (क्षमावशीकृति: लोके) = संसार में क्षमा (सबसे बड़ा) वशीकरण है।
- नासद्धिः (न+असद्भिः) = असज्जन लोगों के साथ नहीं।
- धनधान्यप्रयोगेषु = धनधान्य के प्रयोग में।
- संग्रहेषु = संग्रहों में, संचय करने में।
- त्यक्तलज्जः = संकोच या भीरुता को छोड़ने वाला।
- शान्तिखड्गः = शान्ति की तलवार।
पाठ्यपुस्तक प्रश्न-उत्तर
प्रश्न: 1.
सर्वान् श्लोकान् सस्वरं गायत- (सब श्लोकों को स्वर सहित गाइए-)
उत्तराणि:
छात्र स्वयं स्वर सहित गाएँ।
प्रश्न: 2.
यथायोग्यं श्लोकांशान् मेलयत-(श्लोकांशों को यथायोग्य मिलाइए-)
‘क’ – ‘ख’
1. धनधान्यप्रयोगेषु – नासद्भिः किञ्चिदाचरेत्।
2. विस्मयो न हि कर्त्तव्यः – त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।
3. सत्येन धार्यते पृथ्वी – बहुरत्ना वसुन्धरा।
4. सद्भिर्विवादं मैत्रीं च – विद्यायाः संग्रहेषु च।
5. आहारे व्यवहारे च – सत्येन तपते रविः।
उत्तराणि:
‘क’ – ‘ख’
1. धनधान्यप्रयोगेषु – विद्यायाः संग्रहेषु च।
2. विस्मयो न हि कर्त्तव्यः – बहुरत्ना वसुन्धरा।
3. सत्येन धार्यते पृथ्वी – सत्येन तपते रविः।
4. सद्भिर्विवादं मैत्रीं च – नासद्भिः किञ्चिदाचरेत्।
5. आहारे व्यवहारे च – त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।
प्रश्न: 3.
एकपदेन उत्तरत-(एक शब्द में उत्तर दीजिए-)
(क) पृथिव्यां कति रत्नानि?
(ख) मूढैः कुत्र रत्नसंज्ञा विधीयते?
(ग) पृथिवी केन धार्यते?
(घ) कैः सङ्गतिं कुर्वीत?
(ङ) लोके वशीकृतिः का?
उत्तराणि:
(क) त्रीणि
(ख) पाषाणखण्डेषु
(ग) सत्येन
(घ) सद्भिः
(ङ) क्षमा।
प्रश्न: 4.
रेखाङ्कितपदानि अधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(रेखांकित पदों को आधार बनाकर प्रश्न निर्माण कीजिए–)
(क) सत्येन वाति वायुः।
(ख) सद्भिः एव सहासीत।
(ग) वसुन्धरा बहुरत्ना भवति।
(घ) विद्यायाः संग्रहेषु त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ।
(ङ) सद्भिः मैत्री कुर्वीत।
उत्तराणि:
(क) केन वाति वायुः?
(ख) कैः एव सहासीत?
(ग) का बहुरत्ना भवति?
(घ) कस्याः संग्रहेषु त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ?
(ङ) सद्भिः किं कां कुर्वीत?
प्रश्न: 5.
प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत-
(प्रश्नों के उत्तर लिखिए-)
(क) कुत्र विस्मयः न कर्त्तव्यः?
उत्तराणि:
दाने, तपसि, शौर्ये, विज्ञाने, विनये, नये च विस्मयः न कर्त्तव्यः ।
(ख) पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि कानि?
उत्तराणि:
पृथिव्यां जलं, अन्नं सुभाषितम् च त्रीणि रत्नानि सन्ति ।
(ग) त्यक्तलज्जः कुत्र सुखी भवेत्?
उत्तराणि:
धन-धान्य-प्रयोगे, विद्यायाः संग्रहेषु, आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत् ।
प्रश्न: 6.
मञ्जूषातः पदानि चित्वा लिङ्गानुसारं लिखत- (मञ्जूषा से शब्दों को चुनकर लिंग के अनुसार लिखिए- )
[ रत्नानि, वसुन्धरा, सत्येन, सुखी, अन्नम्, बह्निः, रविः, पृथ्वी, सङ्गतिम् ]
उत्तराणि:
प्रश्न: 7.
अधोलिखितपदेषु धातवः के सन्ति? (नीचे लिखे हुए शब्दों में धातुएँ कौन-कौन सी हैं? )
पदम् – धातुः
करोति – ……………
पश्य – ……………
भवेत् – ……………
तिष्ठति – ……………
उत्तराणि:
पदम् – धातुः
करोति – कृ
पश्य – दृश्
भवेत् – भू
तिष्ठति – स्था
अतिरिक्त महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर
(1) पद्यांशं पठित्वा अधोदत्तान् प्रश्नान् उत्तरत- (पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए- )
सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः।
सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्॥
एकपदेन उत्तरत
(i) पृथ्वी कथं धार्यते ?
उत्तराणि:
सत्येन
(ii) कः सत्येन तपते ?
उत्तराणि:
रविः
(iii) सर्वं कस्मिन् प्रतिष्ठितम् ?
उत्तराणि:
सत्ये
पूर्णवाक्येन उत्तरत
सत्येन किं किं भवति?
उत्तराणि:
सत्येन पृथ्वी धार्यते, सत्येन रविः तपति, सत्येन एव च वायुः वहति।
भाषिककार्यम्-
यथानिर्देशम् रिक्तस्थानानि पूरयत –
(i) सत्येन – अत्र का विभक्ति? – ……………….. (द्वितीया, तृतीया, सप्तमी)
उत्तराणि:
तृतीया
(ii) प्रतिष्ठितम् – अत्र कः धातुः? – ……………….. (तिष्ठ, स्था, प्रति)
उत्तराणि:
स्था
(iii) पर्यायः कः?
(क) वहति – ………………..
(ख) पवनः – ………………..
उत्तराणि:
(क) वाति
(ख) वायुः
(iv) श्लोके किम् अव्ययपदम् अस्ति?
उत्तराणि:
च
(2) शुद्धस्य कथनस्य समक्षे ‘आम्’ अशुद्धस्य च समक्षे ‘नहि’ लिखत- (शुद्ध कथन के सामने ‘आम्’ और अशुद्ध के सामने ‘नहि’ लिखिए- )
(i) पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि इति मूढाः वदन्ति।
उत्तराणि:
नहि
(ii) क्षमा सर्वं साधयति।
उत्तराणि:
आम्
(iii) सर्वं विज्ञाने प्रतिष्ठितम्।
उत्तराणि:
नहि
(iv) सज्जनैः सह मित्रतां कुर्यात्।
उत्तराणि:
आम्
(v) सद्भिः किंचिद् न आचरेत्।
उत्तराणि:
नहि
(3) अधोदत्तान् शब्दान् परस्परं मेलयत- (निम्नलिखित शब्दों का परस्पर मेल कीजिए- )
(क) शब्दार्थाः
‘क’ – ‘ख’
1. पृथ्वी – हस्ते
2. सद्भिः – दुर्जनैः
3. रविः – वहति
4. करे – वसुन्धरा
5. वाति – भानुः
6. लोके – सज्जनैः
7. असद्भिः – संसारे
उत्तराणि:
1. पृथ्वी-वसुन्धरा
2. सद्भिः-सज्जनैः
3. रविः-भानुः
4. करे-हस्ते
5. वाति-वहति
6. लोके-संसारे
7. असद्भिः-दुर्जनैः।
(ख) श्लोकांशा:’
‘क’ – ‘ख’
1. आहारे व्यवहारे च – (i) किं करिष्यति दुर्जनः।
2. विस्मयो न हि कर्त्तव्यो – (ii) बहुरत्ना वसुन्धरा।
3. मूरैः पाषाणखण्डेषु – (iii) त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।
4. शान्तिखड्गः करे यस्य – (iv) नासद्भिः किञ्चिदाचरेत्।
5. सद्भिर्विवाद मैत्री च – (v) रत्नसंज्ञा विधीयते।
उत्तराणि:
1. (iii) त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।
2. (ii) बहुरत्ना वसुन्धरा।
3. (v) रत्नसंज्ञा विधीयते।
4. (i) किं करिष्यति दुर्जनः।
5. (iv) नासद्भिः किञ्चिदाचरेत्।
(4) (क) मञ्जूषायाः सहायतया श्लोकस्य अन्वयं पूरयत- (मञ्जूषा की सहायता से श्लोक का अन्वय पूरा कीजिए- )
दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये।
विस्मयो न हि कर्त्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा॥
दाने तपसि ……… विज्ञाने विनये नये………….
… न हि कर्त्तव्यो …………. बहुरत्ना (अस्ति)।।
मञ्जूषा- विस्मयः, च, वसुन्धरा, शौर्ये
उत्तराणि:
शौर्ये, च विस्मयः, वसुन्धरा।
(ख) मञ्जूषायाः सहायतया श्लोकस्य भावार्थं पूरयत- (मञ्जूषा की सहायता से श्लोक का भावार्थ पूरा कीजिए- )
‘क्षमावशीकृतिः’ लोके क्षमया किं न साध्यते।
यः जनः ………………. भवति, सर्वे जनाः तस्य ………………….भवन्ति। ……………….. एव सर्वाणि कार्याणि ………………..|
मञ्जूषा- क्षमा, वशे, क्षमाशीलः, साधयति।
उत्तराणि:
क्षमाशीलः, वशे, क्षमा, साधयति।
बहुविकल्पीयप्रश्नाः
(1) रेखाङ्कितपदम् आधृत्य उचितविकल्पेन प्रश्ननिर्माणं कुरुत। (रेखांकित पद के आधार पर उचित विकल्प द्वारा प्रश्न निर्माण कीजिए-)
(i) पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि। (कति, का, कानि)
उत्तराणि:
पृथिव्यां कति रत्नानि?
(ii) क्षमा वशीकृतिः लोके। (कुतः, कुत्र, का)
उत्तराणि:
क्षमा कुत्र वशीकृतिः?
(iii) विस्मयः न हि कर्त्तव्यः। (किम्, कः, का)
उत्तराणि:
कः न हि कर्त्तव्यः?
(iv) सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्। (के, केन, कस्मिन्)
उत्तराणि:
सर्वं कस्मिन् प्रतिष्ठितम्?
(2) प्रदत्तेभ्यः विकल्पेभ्यः उचितं पदं चित्वा श्लोकांशान् पूरयत। (दिए गए विकल्पों से उचित पद चुनकर श्लोकांश पूरे कीजिए। )
(i) मूढः …………… रत्नसंज्ञा विधीयते। (धनधान्यप्रयोगेषु, पाषाणखण्डेषु, पृथिव्याम्)
उत्तराणि:
पाषाणखण्डेषु
(ii) सद्भिः कुर्वीत …………… । (सुभाषितम्, प्रतिष्ठितम्, सङ्गतिम्)
उत्तराणि:
सङ्गतिम्
(iii) …………… करे यस्य किं करिष्यति दुर्जनः। (क्षमाखड्गः, शान्तिखड्गः, क्षमावशीकृतिः)
उत्तराणि:
शान्तिखड्गः
(iv) सत्येन …………… पृथ्वी। (साध्यते, भवेत्, धार्यते)
उत्तराणि:
धार्यते
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