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RBSE Solution for Class 11 Biology Chapter 12 खनिज पोषण

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RBSE Solution for Class 11 Biology Chapter 12 खनिज पोषण

Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
“पाँधे में उत्तरजीविता के लिये उपस्थित सभी तत्वों की अनिवार्यता नहीं है।” टिप्पणी करें।
उत्तर:
मृदा में उपस्थित विभिन्न प्रकार के खनिज तत्व जड़ों के द्वारा पौधों में प्रवेश करते हैं। अभी तक खोजे गये 105 खनिज तत्वों में से 60 से अधिक खनिज तत्व विभिन्न पौधों में पाये गये हैं। प्रश्न यह है कि क्या ये सभी तत्व पौधों के लिये अनिवार्य हैं? अनिवार्यता के मापदण्ड के लिये निम्न बिन्दु होना आवश्यक है:

  • पौधों की सामान्य वृद्धि व जनन तत्व की उपस्थिति में होनी चाहिये, यदि वह तत्व नहीं है तो उसका जीवन – चक्र पूरा नहीं होना चाहिये।
  • किसी एक तत्व की कमी को किसी अन्य तत्व के द्वारा दूर नहीं किया जा सकता है।
  • तत्व पादप की उपापचय क्रिया में प्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित होना चाहिये।

उपरोक्त मापदण्डों के आधार पर केवल कुछ ही तत्व पौधों की वृद्धि एवं उपापचय के लिये नितान्त रूप से अनिवार्य माने गये हैं। अत: पौधों को उत्तरजीविता के लिये सभी तत्वों की अनिवार्यता नहीं है।

प्रश्न 2. 
जल – संवर्धन में खनिज पोषण हेतु अध्ययन में जल और पोषक लवणों की शुद्धता जरूरी क्यों है?
उत्तर:
पादपों को पोषक विलयन के घोल में उगाने की तकनीक को जल – संवर्धन (hydroponics) कहते हैं। इस तकनीक में शुद्धिकृत जल व पोषक खनिज की अनिवार्यता होती है। जल – संवर्धन प्रयोग से यह ज्ञात किया जाता है कि किस तत्व की कमी से पौधे पर क्याक्या प्रभाव परिलक्षित होते हैं। यदि जल व पोषण लवणों में अशुद्धता होगी तो परिणाम सत्य प्राप्त नहीं होंगे। पोषक विलयन में एक तत्व को डाला जाता है तथा अन्य तत्व को हटाया जाता है। पौधों की आदर्श वृद्धि के लिये पोषक विलयन को प्रचुर वायवीय रखा जाता है।

प्रश्न 3. 
उदाहरण के साथ व्याख्या करें : बृहत् पोषक, सूक्ष्म पोषक, हितकारी पोषक, आविष तत्व और अनिवार्य तत्व।
उत्तर:
बृहत् पोषक: ये पोषक पादप के सामान्यतः शुष्क पदार्थ का 1 से 10 मि. ग्राम/लीटर की सांद्रता से विद्यमान होते हैं। इस श्रेणी में आने वाले तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, फॉस्फोरस, सल्फर, पोटैशियम, कैल्सियम और मैग्नीशियम हैं।
सूक्ष्म पोषक: इनकी बहुत कम मात्रा में आवश्यकता होती है (0.1 मि. ग्राम/लीटर शुष्क भार के बराबर या उससे कम)। इनके अंतर्गत लौह, मैंगनीज, तांबा, मॉलिब्डेनम, जिंक, बोरोन, क्लोरीन और निकल आते हैं।
हितकारी पोषक: कुछ ऐसे तत्व भी हैं जो लाभकारी होते हैं। जैसे कि सोडियम, सिलिकॉन, कोबाल्ट तथा सिलिनियम। ये उच्च श्रेणी के पौधों के लिये अनिवार्य होते हैं।

आविष तत्व: वैसे सूक्ष्म पोषकों की आवश्यकता न्यून मात्रा में होती है, परन्तु कुछ कमी से भी अपर्याप्तता के लक्षण तथा अल्प वृद्धि आविषता उत्पन्न होती है या यों कहें कि सान्द्रताओं के संकीर्ण परिसर में ही कोई तत्व अनुकूलतम होता है। किसी खनिज आबन की वह सांद्रता जो ऊतकों के शुष्क भार में 10 प्रतिशत की कमी करे, उसे आविष माना गया है। इस तरह की क्रांतिक सान्द्रता विभिन्न सूक्ष्ममाधिक तत्वों के बीच भिन्न होती है। आविषता के लक्षणों की पहिचान मुश्किल होती है। अलग – अलग पादपों के तत्वों की आविषता स्तर भिन्न होती है। कई बार किसी एक तत्व की अधिकता दूसरे तत्व के अधिग्रहण को अवरुद्ध करती है। उदाहरण के लिये, मैंगनीज की आविषता के मुख्य लक्षण हैं – भूरे धब्बों का आविर्भाव, जो कि क्लोरिटिक शिराओं द्वारा पिरी रहती है।

यह जानना अनिवार्य है कि लौह एवं मैग्नीशियम के साथ मैंगनीज अंतर्ग्रहण तथा मैग्नीशियम के साथ एंजाइम्स में जुड़ने के लिये प्रतियोगिता करता है। मैंगनीज स्तंभशीर्ष में कैल्सियम स्थानांतरण को भी बाधित करता है। इसलिए मैंगनीज की अधिकता से लौह, मैग्नीशियम और कैल्सियम की कमी हो जाती है। अतः जो लक्षण हमें मैंगनीज की कमी से प्रतीत होते हैं, वे वास्तव में लौह, मैग्नीशियम और कैल्सियम की कमी से होते हैं।
अनिवार्य तत्व: अनिवार्य तत्वों को उनके विविध कार्यों के आधार पर सामान्यत: चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है। ये श्रेणियाँ है:

1. अनिवार्य तत्व जैव अणुओं के पटक हैं, अत: कोशिका के रचनात्मक तत्व हैं; जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन।

2. अनिवार्य तत्व जो पौधों की ऊर्जा से संबंधित रासायनिक यौगिकों के घटक हैं, जैसे पर्णहरित में मैग्नीशियम और ATP में फॉस्फोरस।

3. अनिवार्य तत्व जो एंजाइमों को सक्रिय या बाधित करते हैं; जैसे Mg++ राइबुलोस बाईफॉस्फेट कार्योक्सीलेज – ऑक्सीजिनेस और फॉस्फोइनॉल पाइरवेट कॉर्थोक्सिलेस दोनों को सक्रिय करता है। ये दोनों एन्जाइम प्रकाश – संश्लेषणीय कार्यन स्थिरीकरण में बहुत महत्वपूर्ण हैं। Zn++ ऐल्कोहॉल डिहाइड्रोजिनेस को क्रियाशील करता है तथा Mo नाइट्रोजन उपापचय के दौरान नाइट्रोजिनेस को क्रियाशील करता है।

4. कुछ अनिवार्य तत्व कोशिका के परासरणी विभव को बदलते हैं। पोटैशियम रंधों के खुलने व बंद होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

प्रश्न 4. 
पौधों में कम से कम पांच अपर्याप्तता के लक्षण दें। उसे वर्णित करें और खनिजों की कमी से उसका सहसम्बन्ध बनाएँ।
उत्तर:
अपर्याप्तता लक्षण, तत्व के अनुसार भिन्न – भिन्न होते हैं और पौधों में इस तत्व की आपूर्ति कराने पर ये लक्षण विलुप्त हो जाते हैं। यदि यह कमी बनी रहे तो अंततः पादप की मृत्यु हो जाती है। पादपों के जो भाग अपर्याप्तता के लक्षण दर्शाते हैं, उक्त तत्व की गतिशीलता पर भी निर्भर करते हैं। अपर्याप्तता के लक्षण पुराने ऊतकों में पहले प्रकट होते हैं। उदाहरण के लिये नाइट्रोजन, पोटैशियम और मैग्नीशियम अपर्याप्तता के लक्षण सर्वप्रथम जीर्णवान पत्तियों में प्रकट होते हैं। पुरानी पत्तियों में जिन जैव अणुओं में ये तत्व होते हैं, विखंडित होकर नई पत्तियों तक गतिशील किया जाता है। जब तत्व अगतिशील होते हैं तथा वयस्क अंगों से बाहर अभिगमित नहीं होते तो अपर्याप्तता लक्षण नई पत्तियों में प्रकट होते हैं। उदाहरण के लिये, तत्व गंधक और कैल्सियम कोशिका की संरचनात्मक इकाई के भाग हैं। अत: ये आसानी से रूपांतरित नहीं होते हैं।

पौधों द्वारा दर्शाए जाने वाले अपर्याप्तता लक्षणों के अन्तर्गत क्लोरोसिस, नेक्रोसिस, अवरुद्ध पादप वृद्धि, अपरिपक्व पत्तियों व कलिकाओं का झड़ना और कोशिका विभाजन का रुकना आदि आते हैं। पत्तियों के क्लोरोफिल के हास से पीलापन आना क्लोरोसिस कहलाता है। ये लक्षण N, K, Mg, S, Fe, Mn, Zn और Mo की कमी से होते हैं। Ca, Mg, Cu और K की कमी से नेक्रोसिस या ऊतकों या मुख्य रूप से पत्तियों की मृत्यु होती है। N, K, S और Mo की अनुपस्थिति या इनके निम्न स्तर के कारण कोशिका का विभाजन रुक जाता है। कुछ तत्व जैसे कि N, S एवं Mo की सांद्रता कम होने के कारण पुष्पन में देरी होती है।

अतः किसी तत्व.की अपर्याप्तता से अनेक लक्षण प्रकट होते हैं और यह लक्षण एक या विभिन्न तत्वों की अपर्याप्तता से हो सकते हैं। अंत: अपर्याप्त तत्व को पहचानने के लिये पौधे के विभिन्न भागों में प्रकट होने वाले लक्षणों का अध्ययन करना पड़ता है।

प्रश्न 5. 
अगर एक पौधे में एक से ज्यादा तत्वों की कमी के लक्षण प्रकट हो रहे हैं तो प्रायोगिक तौर पर आप कैसे पता करेंगे कि अपर्याप्त खनिज तत्व कौनसे है?
उत्तर:
किसी तत्व की अपर्याप्तता से अनेक लक्षण प्रकट होते हैं और यह लक्षण एक या विभिन्न तत्वों की अपर्याप्तता से हो सकते हैं। अतः अपर्याप्त तत्व को पहचानने के लिये पौधे के विभिन्न भागों में प्रकट होने वाले लक्षणों का अध्ययन करना पड़ता है और उपलब्ध तथा मान्य तालिका से तुलना करनी होती है। यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि समान तत्व की कमी होने पर भिन्न – भिन्न पौधे, भिन्न प्रतिक्रिया देते हैं। (देखिये तालिका)      
तालिका – पौधों में विभिन्न खनिज तत्वों के अभाव में लक्षण तथा विशेष कार्य

तत्वविशेष कार्यन्यूनता के लक्षण
1. नाइट्रोजन1. प्रोटीन, अमीनो अम्ल, न्यूक्लिक अम्ल, विद्यमिन व सहएन्जाइमों का मुख्य घटक होता है। क्लोरोफिल व साइटोक्रोम का भी मुख्य घटक होता है। वृद्धि, जनन, उपापचयी क्रियाओं के लिये आवश्यक है।1. पुरानी पत्तियों में हरिमाहीनता, प्रोटीन – संश्लेषण व कोशिका विभाजन क्रियायें अवरुद्ध हो जाती हैं।
2. सल्फर2. कुछ अमीनो अम्ल का घटक है। प्रोटीन की स्थायी संरचना में S – S बांड बनता है। कुछ एन्जाइमों में SH समूह के रूप में मिलता है।2. पत्तियों में हरिमाहीनता / पर्ण पीली पड़कर किनारे व शीर्ष अन्दर की ओर मुड़ जाते हैं, तने में दृढ़ोतक ऊतक अधिक बनने से कठोर हो जाता हैं।
3. फॉस्फोरस3. न्यूक्लिक अम्ल, फॉस्फोलिपिड का मुख्य घटक तथा NAD, NADP व ATP में भी मिलता है।3. पत्तियाँ समय से पूर्व गिर जाती हैं, ऊतकक्षयी क्षेत्र बनना व वृद्धि रुक जाती है।
4. पोटैशियम4. श्वसन तथा प्रकाश-संश्लेषण व प्रोटीन-संश्लेषण में आवश्यक। रंध्र के बन्द व खुलने में सहायक।4. पत्तियों में कुर्वरितपन, हरिमाहीनता, पर्ण शीर्ष ऊतकक्षयी, नीचे की ओर मुड़ जाना, वृद्धि रुक जाना, तन्त्र कमजोर होना।
5. कैल्सियम5. कोशिका मध्य परत का मुख्य घटक, पारगम्यता को नियंत्रित करना, अमीनो अम्ल व कार्योहाइड्रेट के स्थानान्तरण में सहायक।5. शीर्ष वृद्धि का समाप्त होना, मूल बाह्य त्वचा का नष्ट होना, पत्तियों के शीर्ष अंकुश प्रकार के हो जाते हैं, हरिमाहीनता।
6. मैग्नीशियम6. क्लोरोफिल का मुख्य तत्व, फॉस्फोरस उपापचय में सक्रिय कारक के रूप में।6. पत्ती में अन्तरशिरीय व हरिमाहीनता तथा ऊतक – क्षयी क्षेत्र बनते हैं।
7. लोहा7. क्लोरोफिल – संश्लेषण में, श्वसन व प्रकाश – संश्लेषण में इलेक्ट्रॉन अभिगमन तव में आवश्यक व फेरेडोक्सिन का मुख्य घटक।7. वृन्तों का छोटा हो जाना, क्लोरोफिल का निर्माण रुक जाता है।
8.जिंक8. इन्डोल – 3 ऐसिटिक अम्ल व प्रोटीन-संश्लेषण के लिये आवश्यक है।8. पत्तियों के शीर्ष व किनारों पर हरिमाहीनता, पत्तियाँ विकृत, पर्व छोटे व पौधे बौने हो जाते हैं।
9. कोबाल्ट9. विद्यमिन B12 का घटक तथा N2 स्थिरीकरण हेतु आवश्यक है।9. नाइट्रोजन की कमी के लक्षण हो जाते हैं।
10. मॉलिब्डेनम10. हरितलवक के रक्षक के रूप में तथा एस्कोर्बिक अम्ल के संश्लेषण में आवश्यक है।10. अन्तरशिरीय हरिमाहीनता, पुष्पन क्रिया अवरुद्ध हो जाती है।
11. मैंगनीज11. IAA के संश्लेषण में,नाइट्रोजन उपापचय व श्वसन के क्रेस चक्र का मुख्य घटक है।11. क्लोरोफिला निर्माण नहीं होता व हरिमाहीनता हो जाती है।
12. कॉपर12. प्लास्टोसायनिन का मुख्य घटक व विटामिन C के संश्लेषण में सहायक।12. फलदार वृक्षों की मृत्यु, पत्तियों में कतकक्षयी क्षेत्र तथा नींबू में शीर्षारम्भी रोग हो जाता है।
13. बोरॉन13. फल निर्माण क्रिया, शर्करा स्थानान्तरण व कार्बोहाइड्रेट उपापचय के लिये आवश्यक है।13. पौधों के अंग मुड़ जाते हैं, भंगुर, पुष्पन व जड़ वृद्धि अवरुद्ध तथा प्ररोह शीर्ष की मृत्यु हो जाती है।
14. क्लोरीन14. वाष्पोत्सर्जन क्रिया तथा प्रकाश – संश्लेषण – II में आवश्यक होता है।14. पत्तियों में हरिमाहीनता, ऊतकक्षयी क्षेत्र में जड़ें छोटी हो जाती हैं।

प्रश्न 6. 
कुछ निश्चित पौधों में अपर्याप्तता लक्षण सबसे पहले नवजात भाग में क्यों पैदा होते हैं, जबकि कुछ अन्य में परिपक्व अंगों में?
उत्तर:
पौधों के भाग जो अपर्याप्तता के लक्षण दिखाते हैं, यह सब उस तत्व की गतिशीलता पर भी निर्भर करते हैं। पौधे में जहाँ तत्व सक्रियता से गतिशील रहते हैं तथा तरुण विकासशील ऊतकों में निर्यातित होते हैं, वहां अपर्याप्तता के लक्षण पुराने ऊतकों में नियोतित होते हैं, वहाँ अपर्याप्तता के लक्षण पुराने ऊतकों से पहले प्रकट होते हैं।

उदाहरण के लिये नाइट्रोजन, पोटैशियम और मैग्नीशियम अपर्याप्तता के लक्षण सर्वप्रथम जीर्ण पत्तियों में प्रकट होते हैं। पुरानी पत्तियों के जिन जैव अणुओं में ये तत्व होते हैं, विखंडित होकर नई पत्तियों तक गतिशील किया जाता है। जब तत्व अगतिशील होते हैं और वयस्क अंगों से बाहर अभिगमित नहीं होते, तो अपर्याप्तता लक्षण नई पत्तियों में प्रकट होते हैं। उदाहरण के लिये, तत्व गंधक और कैल्सियम कोशिका की संरचनात्मक इकाई के भाग हैं, अतः ये सरलता से रूपान्तरित नहीं होते है।

प्रश्न 7. 
पौधों के द्वारा खनिजों का अवशोषण कैसे होता है?
उत्तर:
पौधों से तत्वों के अवशोषण की क्रियाविधि का अध्ययन अलग कोशिकाओं, ऊतकों तथा अंगों में किया गया है। अध्ययन के अनुसार अवशोषण की प्रक्रिया को दो अवस्थाओं में पाया गया है। प्रथम अवस्था में कोशिकाओं के मुक्त अथवा बाह्य स्थान (एपोप्लास्ट) में तीव्र गति से आयन का अंतर्गहण होना निष्क्रिय अवशोषण होता है। दूसरी अवस्था में कोशिकाओं की आंतरिक स्थान (सिमप्लास्ट) में आयन धीमी गति से अंतर्ग्रहण किये जाते हैं। एपोप्लास्ट में आयनों की निष्क्रिय गति साधारणतया आयन चैनलों के द्वारा होती है जो कि ट्रांस झिल्ली प्रोटीन होते हैं और चयनात्मक छिद्रों का कार्य करते हैं। दूसरी तरफ सिमप्लास्ट में आयनों के प्रवेश और निष्कासन में उपापचय ऊर्जा की अनिवार्यता होती है। यह एक सक्रिय प्रक्रिया है। आयनों की गति को प्रायः अभिवाह (flux) कहते हैं। कोशिका के अंदर की गति को अंतर्वाह (influx) और बाहर की गति को बहिर्वाह (efflux) कहते हैं।

प्रश्न 8. 
राइजोबियम के द्वारा वातावरणीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण के लिये क्या शर्ते हैं तथा N2 स्थिरीकरण में इनकी क्या भूमिका है?
उत्तर:
राइजोबियम जीवाणु लेग्यूम, एल्फा, स्वीट क्लोवर, मीठा मटर, मसूर, उद्यान मटर, बाकला एवं क्लोवर, सेम आदि की जड़ों में सहजीवी का सम्बन्ध बनाकर जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने का कार्य करते हैं। यह सहजीवन जड़ों की गांठों के रूप में होता है। ये ग्रन्थिकाएँ जड़ों पर छोटे उभार के रूप में होती हैं। अलेग्यूमिनोस पादपों (जैसे एल्नस) की जड़ों पर सूक्ष्म जीव किया (frankia) N2 स्थिरीकारक ग्रन्थियाँ उत्पन्न करता है। राइजोबियम और फ्रैंकिया दोनों ही मृदा में स्वतंत्रजीवी हैं, परन्तु सहजीवी के रूप में वातावरणीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं। 

प्रश्न 9. 
मूल ग्रंथिका के निर्माण हेतु कौन-कौनसे चरण भागीदार हैं?
उत्तर:
ग्रंथिका निर्माण पौधों की जड़ एवं राइजोबियम में पारस्परिक प्रक्रिया के कारण होता है। ग्रंथिका निर्माण के मुख्य चरण इस प्रकार हैं:
राइजोबिया बहाणित होकर जड़ों के चारों ओर एकत्र हो जाते हैं तथा उपत्वचीय और मूल रोम कोशिकाओं से जुड़ जाते हैं। मूल रोम मुड़ जाते हैं तथा जीवाणु मूल रोम पर आक्रमण करते हैं। एक संक्रमित सूत्र पैदा होता है जो जीवाणुओं को जड़ों के वल्कुट (Cortex) तक ले जाता है, जहां वे ग्रंथिका निर्माण प्रारम्भ करते हैं। तब जीवाणु सूत्र से मुक्त होकर कोशिकाओं में चले जाते हैं जो विशिष्ट नाइट्रोजन स्थिरीकरण कोशिकाओं के विभेदीकरण का कार्य करते हैं। इस प्रकार ग्रंथिका का निर्माण होता है तथा पौधे से पोषक तत्व के आदान – प्रदान के लिये संवहनी संबंध बन जाता है।

इन ग्रंथिकाओं में नाइट्रोजिनेस एंजाइम एवं लेग्हेमोग्लोबिन जैसे सभी जैव रासायनिक संघटक विद्यमान होते हैं। नाइट्रोजिनेस एंजाइम तक Mo – Fe प्रोटीन है जो वातावरणीय नाइट्रोजन के अमोनिया में परिवर्तन को उत्प्रेरित करता है। यह नाइट्रोजन स्थिरीकरण का प्रथम स्थायी उत्पाद है। इसे समीकरण में बताया जा रहा है:

नाइट्रोजिनेस एंजाइम आण्विक ऑक्सीजन के प्रति अत्यन्त संवेदी होती है। इसे अनॉक्सी वातावरण की अनिवार्यता होती है। ग्रंथियों में यह अनुकूलता होती है कि उसके एंजाइम को O2 से बचाया जा सके। इन एन्जाइम्स की सुरक्षा के लिये ग्रंथिकाओं में एक O2 अपमार्जक होता है जिसे लेहेमोग्लोबिन (Lb) कहते हैं। स्वतंत्रजीवो अवस्थाओं में ये सूक्ष्मजीव ऑक्सी होते हैं, जहाँ नाइट्रोजिनेस क्रियाशील नहीं होता है, परन्तु N2 स्थिरीकरण के दौरान ये अनॉक्सी हो जाते हैं और नाइट्रोजिनेस एंजाइम की सुरक्षा करते हैं।

प्रश्न 10. 
निम्नांकित कथनों में कौनसे सही हैं? अगर गलत हैं तो उन्हें सही करें:
(क) बोरोन की अपर्याप्तता से स्थूलकाय अक्ष बनती है।
(ख)कोशिका में उपस्थित प्रत्येक खनिज तत्व उसके लिये अनिवार्य है।
(ग) नाइट्रोजन पोषक तत्व के रूप में पौधे में अत्यधिक अचल है।
(घ) सूक्ष्म पोषकों की अनिवार्यता निश्चित करना अत्यंत ही आसान है। क्योंकि ये बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में लिये जाते हैं।
उत्तर:
(क) सत्य कथन है। 
(ख) असत्य कथन है।
सत्य कथन: कोशिका में उपस्थित प्रत्येक तत्व इसके लिए अनिवार्य नहीं होता है। 
(ग) असत्य कथन है। 
सत्य कथन: नाइसेजन पोषक तत्व के रूप में पौधों में अत्यधिक गतिशील है।
(घ) असत्य कथन है।
सत्य कथन: सूक्ष्म पोषक तत्वों की अनिवार्यता निश्चित करना अत्यन्त ही कठिन कार्य है, क्योंकि ये बहुत ही सूक्ष्म मात्रा में लिये जाते हैं।

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