NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 9 | कक्षा 10 संस्कृत नवम: पाठ: सूक्तयः
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 9 | कक्षा 10 संस्कृत नवम: पाठ: सूक्तयः
NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 Sanskrit Shemushi Dvitiyo Bhagah
संस्कृतपाठयपुस्तकम्
पाठ – 9
सूक्तयः
ncert solutions for class 10 sanskrit shemushi Chapter 9 Suktayh Hindi Translate
सूक्तयः पाठ का हिंदी अनुवाद श्लोक।
पाठ परिचयः
अयं पाठ: मूलतः तमिलभाषाया: “तिरुक्कुरल्” नामकग्रन्थात् गृहीत: अस्ति। अयं ग्रन्थ: तमिलभाषाया: वेद इति कथ्यते। अस्य प्रणेता तिरुवल्लुवर: वर्तते। प्रथमशताब्दी अस्य काल: स्वीकृत अस्ति। धर्मार्थ – कामप्रतिपादकोऽयं ग्रन्थ:? त्रिषु भागेषु विभक्तोऽस्ति। तिरुशब्द: श्रीवाचक: अस्ति, अतः तिरुक्कुरलशब्दस्य अभिप्रायो भवति – श्रिया युक्ता वाणी। अस्मिन ग्रन्थे मानवानां कृते जीवनोपयोगि सत्यं सरसबोध गम्यपद्यैः प्रतिपादितम् अस्ति।
यहाँ संग्रहीत श्लोक मूलरूप से तमिल भाषा में रचित ‘तिरुक्कुरल’ नामक ग्रन्थ से लिए गए हैं। तिरुक्कुरल साहित्य की उत्कृष्ट रचना है। इसे तमिल भाषा का ‘वेद’ माना जाता है। इसके प्रणेता तिरुवल्लुवर हैं। इनका काल प्रथम शताब्दी माना गया है। इसमें मानवजाति के लिए जीवनोपयोगी सत्य प्रतिपादित है। ‘तिरु’ शब्द ‘श्रीवाचक’ है। तिरुक्कुरल शब्द का अभिप्राय है – श्रिया युक्त वाणी। इसे धर्म, अर्थ, काम, तीन भागों में बाँटा गया है। प्रस्तुत श्लोक सरस सरल भाषायुक्त तथा प्रेरणाप्रद है।
पिता यच्छति पुत्राय बाल्ये विद्याधनं महत्।
पिताऽस्य किं तपस्तेपे इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता॥1॥
अन्वय: – पिता पुत्राय बाल्ये महत् विद्याधनं यच्छति। अस्य (पुत्रस्य) पिता किं तेपे इति उक्ति: तत् कृतज्ञता (अस्ति)।
हिन्दी अनुवाद
पिता पुत्र को बचपन में विद्यारूपी बहुत महान धन देता है। इससे पिता ने क्या तप किया? यह कथन ही उसकी कृतज्ञता है।
अवक्रता यथा चित्ते तथा वाचि भवेद् यदि।
तदेवाहुः महात्मानः समत्वमिति तथ्यतः॥2॥
अन्वय: – यथा अवक्रता चित्ते तथा यदि वाचि भवेद्, (तु) महात्मानः तथ्यतः तदेव समत्वम् इति आहु:।
हिंदी अनुवाद
मन में जैसी सरलता हो, वैसी ही यदि वाणी में हो, तो उसे ही महात्मा लोग वास्तव में समत्व कहते हैं।
त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत्।
परित्यज्य फलं पक्वं भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः॥3॥
अन्वय: – य: धर्मप्रदां वाचं त्यक्त्वा परुषां (वाचम्) अभ्युदीरयेत्। (स:) विमूढधीः पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं फलं भुङ्क्ते।
हिंदी अनुवाद
जो धर्मप्रद वाणी को छोड़कर कठोर वाणी बोले, वह मूर्ख पके हुए फल को छोड़कर कच्चा फल खाता है।
विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः।
अन्येषां वदने ये तु ते चक्षुर्नामनी मते ॥4॥
अन्वय: – अस्मिन् लोके विद्वांस: एव चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः, अन्येषां वदने ये (चक्षुषी) ते चक्षु तु नामानी मते।
हिंदी अनुवाद
इस संसार में विद्वान लोग ही आँखों वाले कहे गए हैं। दूसरों के मुख पर जो आँखें हैं, वे तो केवल नाम की ही हैं।
यत् प्रोक्तं येन केनापि तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः।
कर्तुं शक्यो भवेद्येन स विवेक इतीरितः॥5॥
अन्वय: – येन केन अपि यत् प्रोक्तं तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः येन कर्तुं शक्य: भवेत्, स: विवेक: इति ईरित:।
हिंदी अनुवाद
जिस किसी के द्वारा भी जो कहा गया है, उसके वास्तविक अर्थ का निर्णय जिसके द्वारा किया जा सकता है, उसे विवेक कहा गया है।
वाक्पटुधैर्यवान् मन्त्री सभायामप्यकातरः।
स केनापि प्रकारेण परैर्न परिभूयते॥6॥
अन्वय: – मन्त्री वाक्पटु: धैर्यवान्, सभायाम् अपि अकातर: (अस्ति) स: परै: केन अपि प्रकारेण न परिभूयते।
हिन्दी अनुवाद
जो मंत्री बोलने में चतुर, धैर्यवान् और सभा में भी निडर होता है वह शत्रुओं के द्वारा किसी भी प्रकार से अपमानित नहीं किया जा सकता है।
य इच्छत्यात्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च।
न कुर्यादहितं कर्म स परेभ्यः कदापि च॥7॥
अन्वय: – य आत्मन: श्रेय: प्रभूतानि सुखानि च इच्छति, स: परेभ्यः अहितं कर्म कदापि न कुर्यात्।
हिंदी अनुवाद
जो (मनुष्य) अपना कल्याण और बहुत अधिक सुख चाहता है, उसे दूसरों के लिए कभी अहितकारी कार्य नहीं करना चाहिए।
आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद् विदुषां वचः।
तस्माद् रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योऽपि विशेषतः॥8॥
अन्वय: – आचारः (एव) प्रथम: धर्म इति एतत् विदुषां वचः, तस्मात् प्राणेभ्य: अपि सदाचारं विशेषतः रक्षेत्।
हिंदी अनुवाद
आचरण (मनुष्य का) पहला धर्म है, यह विद्वानों का वचन है। इसलिए सदाचार की रक्षा प्राणों से भी बढ़कर करनी चाहिए।
अभ्यास प्रश्न
1. एकपदेन उत्तरं लिखत –
(क) पिता पुत्राय बाल्ये किं यच्छति?
उत्तर – विद्याधनम्
(ख) विमूढधीः कीदृशीं वाचं परित्यजति?
उत्तर – धर्मप्रदाम्
(ग) अस्मिन् लोके के एव चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः?
उत्तर – विद्वांसः
(घ) प्राणेभ्योऽपि कः रक्षणीयः?
उत्तर – सदाचार:
(ङ) आत्मनः श्रेयः इच्छन् नरः कीदृशं कर्म न कुर्यात्?
उत्तर – अहितम्
(च) वाचि किं भवेत्?
उत्तर – अवक्रता
2. स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
यथा – विमूढधी: पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं फलं भुङ्क्ते।
कः पक्वं फलं परित्यज्य अपक्वं फलं भुङ्क्ते।
(क) संसारे विद्वांसः ज्ञानचक्षुभिः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते।
उत्तर – संसारे के ज्ञानचक्षुभिः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते?
(ख) जनकेन सुताय शैशवे विद्याधनं दीयते।
उत्तर – जनकेन कस्मै शैशवे विद्याधनं दीयते?
(ग) तत्त्वार्थस्य निर्णयः विवेकेन कर्तुं शक्यः।
उत्तर – कस्य निर्णयः विवेकेन कर्तुं शक्यः?
(घ) धैर्यवान् लोके परिभवं न प्राप्नोति।
उत्तर – धैर्यवान् कुत्र परिभवं न प्राप्नोति?
(ङ) आत्मकल्याणम् इच्छन् नरः परेषाम् अनिष्टं न कुर्यात्।
उत्तर – आत्मकल्याणम् इच्छन् नरः केषाम् अनिष्टं न कुर्यात्?
3. पाठात् चित्वा अधोलिखितानां श्लोकानाम् अन्वयम् उचितपदक्रमेण पूरयत –
(क) पिता _ _ _ _ _ _ _ _ _ बाल्ये महत् विद्याधनं यच्छति, अस्य पिता किं तपः तेपे इत्युक्तिः _ _ _ _ _ _ _ _ _ ।
(ख) येन _ _ _ _ _ _ _ _ _ यत् प्रोक्तं तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः येन कर्तुं _ _ _ _ _ _ _ _ _ भवेत्, सः _ _ _ _ _ _ _ _ _ इति _ _ _ _ _ _ _ _ _ ।
(ग) य आत्मनः श्रेयः _ _ _ _ _ _ _ _ _ सुखानि च इच्छति, परेभ्यः अहितं _ _ _ _ _ _ _ _ _ कदापि च न _ _ _ _ _ _ _ _ _ ।
उत्तर –
(क) पिता पुत्राय बाल्ये महत् विद्याधनं यच्छति, अस्य पिता किं तपः तेपे इत्युक्तिः तत्कृतज्ञता।
(ख) येन केनापि यत् प्रोक्तं तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः येन कर्तुं शक्यः भवेत्, सः विवेकः इति ईरितः।
(ग) य आत्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च इच्छति, परेभ्यः अहितं कर्म कदापि च न कुर्यात्।
4. अधोलिखितम् उदाहरणद्वयं पठित्वा अन्येषां प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत –
प्रश्नाः | उत्तराणि | |
क. | श्लोक संख्या – 3 | |
यथा – | सत्या मधुरा च वाणी का? | धर्मप्रदा |
(क) | धर्मप्रदां वाचं कः त्यजति? | …………………. |
(ख) | मूढः पुरुषः कां वाणीं वदति? | …………………. |
(ग) | मन्दमतिः कीदृशं फलं खादति? | …………………. |
ख. | श्लोक संख्या – 7 | |
यथा – | बुद्धिमान् नरः किम् इच्छति? | आत्मन: श्रेय: |
(क) | कियन्ति सुखानि इच्छति? | …………………. |
(ख) | सः कदापि किं न कुर्यात्? | …………………. |
(ग) | सः केभ्यः अहितं न कुर्यात्? | …………………. |
उत्तर –
प्रश्नाः | उत्तराणि | |
क. | श्लोक संख्या – 3 | |
यथा – | सत्या मधुरा च वाणी का? | धर्मप्रदा |
(क) | धर्मप्रदां वाचं कः त्यजति? | विमूढधीः |
(ख) | मूढः पुरुषः कां वाणीं वदति? | परुषाम् |
(ग) | मन्दमतिः कीदृशं फलं खादति? | अपक्वम् |
ख. | श्लोक संख्या – 7 | |
यथा – | बुद्धिमान् नरः किम् इच्छति? | आत्मन: श्रेय: |
(क) | कियन्ति सुखानि इच्छति? | प्रभूतानि |
(ख) | सः कदापि किं न कुर्यात्? | अहितं कर्म |
(ग) | सः केभ्यः अहितं न कुर्यात्? | परेभ्यः |
5. मञ्जूषायाः तद्भावात्मकसूक्तीः विचित्य अधोलिखितकथानानां समक्षं लिखत –
(क) | विद्याधनं महत् |
_ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ | |
(ख) | आचारः प्रथमो धर्मः |
_ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ | |
(ग) | चित्ते वाचि च अवक्रता एव समत्वम् |
_ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ |
आचारेण तु संयुक्तः सम्पूर्णफलभाग्भवेत्। मनसि एकं वचसि एकं कर्मणि एकं महात्मनाम्। विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्। सं वो मनांसि जानताम्। विद्याधनं श्रेष्ठं तन्मूलमितरद्धनम् । आचारप्रभवो धर्मः सन्तश्चाचारलक्षणाः। |
उत्तर –
(क) | विद्याधनं महत् |
1. विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्। 2. विद्याधनं श्रेष्ठं तन्मूलमितरद्धनम्। | |
(ख) | आचारः प्रथमो धर्मः |
1. आचारेण तु संयुक्तः सम्पूर्णफलभाग्भवेत् । 2. आचारप्रभवो धर्मः सन्तश्चाचारलक्षणाः। | |
(ग) | चित्ते वाचि च अवक्रता एव समत्वम् |
1. मनसि एकं वचसि एकं कर्मणि एकं महात्मनाम् । 2. सं वो मनांसि जानताम्। |
6. (अ) अधोलिखितानां शब्दानां पुरतः उचितं विलोमशब्द कोष्ठकात् चित्वा लिखत –
शब्दा: | विलोमशब्द: | ||
(क) | पक्वः | _ _ _ _ _ | (परिपक्व:, अपक्व:, क्वथित:) |
(ख) | विमूढधीः | _ _ _ _ _ | (सुधी:, निधि:, मन्दधीः) |
(ग) | कातरः | _ _ _ _ _ | (अकरुण:, अधीर:, अकातर:) |
(घ) | कृतज्ञता | _ _ _ _ _ | (कृपणता, कृतघ्नता, कातरता) |
(ङ) | आलस्यम् | _ _ _ _ _ | ( उद्विग्नता, विलासिता, उद्योग:) |
(च) | परुषा | _ _ _ _ _ | ( पौरुषी, कोमला, कठोरा) |
उत्तर –
शब्दा: | विलोमशब्द: | ||
(क) | पक्वः | अपक्वः | (परिपक्व:, अपक्व:, क्वथित:) |
(ख) | विमूढधीः | सुधीः | (सुधी:, निधि:, मन्दधीः) |
(ग) | कातरः | अकातरः | (अकरुण:, अधीर:, अकातर:) |
(घ) | कृतज्ञता | कृतघ्नता | (कृपणता, कृतघ्नता, कातरता) |
(ङ) | आलस्यम् | उद्योगः | ( उद्विग्नता, विलासिता, उद्योग:) |
(च) | परुषा | कोमला | ( पौरुषी, कोमला, कठोरा) |
(आ) अधोलिखितानां शब्दानां त्रयः समानार्थकाः शब्दाः मञ्जूषायाः चित्वा लिख्यन्ताम् –
(क) | प्रभूतम् | _ _ _ _ _ | _ _ _ _ _ | _ _ _ _ _ |
(ख) | श्रेयः | _ _ _ _ _ | _ _ _ _ _ | _ _ _ _ _ |
(ग) | चित्तम् | _ _ _ _ _ | _ _ _ _ _ | _ _ _ _ _ |
(घ) | सभा | _ _ _ _ _ | _ _ _ _ _ | _ _ _ _ _ |
(ङ) | चक्षुष् | _ _ _ _ _ | _ _ _ _ _ | _ _ _ _ _ |
(च) | मुखम् | _ _ _ _ _ | _ _ _ _ _ | _ _ _ _ _ |
उत्तर –
(क) | प्रभूतम् | भूरि | विपुलम् | बहु |
(ख) | श्रेयः | शुभम् | कल्याणम् | शिवम् |
(ग) | चित्तम् | मनः | मानसम् | चेतः |
(घ) | सभा | संसद् | समितिः | परिषद् |
(ङ) | चक्षुष् | नयनम् | लोचनम् | नेत्रम् |
(च) | मुखम् | वदनम् | आननम् | वक्त्रम् |
शब्द – मञ्जूषा
लोचनम |
7. अधस्ताद् समासविग्रहाः दीयन्ते तेषां समस्तपदानि पाठाधारेण दीयन्ताम् –
विग्रह: | समस्तपदम् | समासनाम | |
(क) | तत्त्वार्थस्य निर्णयः | _ _ _ _ _ _ | षष्ठी तत्पुरुष: |
(ख) | वाचि पटुः | _ _ _ _ _ _ | सप्तमी तत्पुरुष: |
(ग) | धर्मं प्रददाति इति (ताम्) | _ _ _ _ _ _ | उपपदततत्पुरुष: |
(घ) | न कातरः | _ _ _ _ _ _ | नञ् तत्पुरुष: |
(ङ) | न हितम् | _ _ _ _ _ _ | नञ् तत्पुरुष: |
(च) | महान् आत्मा येषाम् | _ _ _ _ _ _ | बहुब्रीहि: |
(छ) | विमूढा धी: यस्य सः | _ _ _ _ _ _ | बहुब्रीहि: |
उत्तर –
विग्रह: | समस्तपदम् | समासनाम | |
(क) | तत्त्वार्थस्य निर्णयः | तत्त्वार्थनिर्णयः | षष्ठी तत्पुरुष: |
(ख) | वाचि पटुः | वाक्पटुः | सप्तमी तत्पुरुष: |
(ग) | धर्मं प्रददाति इति (ताम्) | धर्मप्रदाम् | उपपदततत्पुरुष: |
(घ) | न कातरः | अकातरः | नञ् तत्पुरुष: |
(ङ) | न हितम् | अहितम् | नञ् तत्पुरुष: |
(च) | महान् आत्मा येषाम् | महात्मानः | बहुब्रीहि: |
(छ) | विमूढा धी: यस्य सः | महात्मानः | बहुब्रीहि: |