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NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 7 सप्तम: पाठ: सौहार्दं प्रकृतेः शोभा

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NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 7 सप्तम: पाठ: सौहार्दं प्रकृतेः शोभा

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 7 Hindi Translate | सप्तम: पाठ: सौहार्दं प्रकृतेः शोभा

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 Sanskrit Shemushi Dvitiyo Bhagah

कक्षा – 10 दशमकक्षाया:
संस्कृतपाठयपुस्तकम्
पाठ – 7
सौहार्दं प्रकृतेः शोभा

Sauhaardan Prakrteh Shobha Hindi Translate हिंदी अनुवाद

अयं पाठः परस्परं स्नेहसौहार्दपूर्ण: व्यवहार: स्यादिति बोधयति। सम्प्रति वयं पश्याम: यत् समाजे जना: आत्माभिमानिन: सञ्जाता:, ते परस्परं तिरस्कुर्वन्ति। स्वार्थपूरणे संलग्ना: ते परेषां कल्याणविषये नैव किमपि चिन्तयन्ती। तेषां जीवनोद्देश्यम् अधुना इदं सञ्जातम् – 
“नीचैरनीचैरतिनीचनीचै: सर्वे: उपायै: फलमेव साध्यम्”
अतः समाजे पारस्परिकस्नेहसंवर्धनाय अस्मिन् पाठे पशुपक्षिणां माध्यमेन समाजे व्यवह्रतम् आत्माभिमानं दर्शयन्, प्रकृतिमातु: माध्यमेन् अन्ते निष्कर्ष: स्थापित: यत् कलानुगुणं सर्वेषां महत्वं भवति, सर्वे अन्योन्याश्रिता: सन्ति। अत: अस्माभिः स्वकल्याणय परस्परं स्नेहेन मैत्रीपूर्णव्यवहारेण च भाव्यम्। 

हिन्दी अनुवाद –
आजकल हम यत्र-तत्र सर्वत्र देखते हैं कि समाज में प्राय: सभी स्वयं को श्रेष्ठ समझते हुए परस्पर एक दूसरे का तिरस्कार कर रहे हैं और स्वार्थ साधन में लगे हुए हैं –
“नीचैरनीचैरतिनीचनीचै: सर्वे: उपायै: फलमेव साध्यम्”
अतः समाज में मेल जॉल बढ़ाने की दृष्टि से इस पाठ में प्रकृति माता के माध्यम से यह दिखने का प्रयास किया गया है कि सभी का यथासमय अपना – अपना महत्व है तथा सभी एक दूसरे पर आश्रित हैं अतः हमें परस्पर विवाद करते हुए नहीं अपितु मिल – जुलकर रहना चाहिए, तभी हमारा कल्याण संभव है। 

वनस्य दृश्यं समीपे एवैका नदी वहति। एकः सिंहः सुखेन विश्राम्यते तदैव एकः वानरः आगत्य तस्य पुच्छं धुनाति। क्रुद्धः सिंहः तं प्रहर्तुमिच्छति परं वानरस्तु कूर्दित्वा वृक्षमारूढः। तदैव अन्यस्मात् वृक्षात् अपरः वानरः सिंहस्य कर्णमाकृष्य पुनः वृक्षोपरि आरोहति। एवमेव वानरा: वारं वारं सिंह तुदन्ति। क्रुद्धः सिंहः इतस्ततः धावति, गर्जति परं किमपि कर्तुमसमर्थः एव तिष्ठति। वानराः हसन्ति वृक्षोपरि च विविधाः पक्षिणः अपि सिंहस्य एतादृशीं दशां दृष्ट्वा हर्षमिश्रितं कलरवं कुर्वन्ति। 
निद्राभङ्गदुःखेन वनराजः सन्नपि तुच्छजीवैः आत्मनः एतादृश्या दुरवस्थया श्रान्तः सर्वजन्तून् दृष्ट्वा पृच्छति –

हिन्दी अनुवाद –
वन का दृश्य, पास में ही एक नदी बहती है। एक शेर सुख पूर्वक विश्राम कर रहा है। तभी एक बंदर आ कर के उसकी पूंछ को घुमा देता है। क्रोधित शेर उस बंदर को प्रहार करना चाहता है। परन्तु बंदर तो कूद करके वृक्ष पर चढ़ गया। तभी दूसरे वृक्ष से कोई  शेर का कान खींचकर के फिर से वृक्ष पर चढ़ जाता है। ऐसे ही बंदर बारबार परेशान करते है। क्रोधित शेर इधर – उधर दौड़ता है, गर्जना करता है परन्तु कुछ भी  असमर्थ ही रहता है। बंदर हँसते है और वृक्ष के ऊपर अनेक प्रकार के पक्षी भी शेर की ऐसी दशा को देख कर के प्रसन्नता से करलव करते है अर्थात चहचहाते हैं। 
नींद के टूट जाने से दुख से वन का राजा होते हुए भी छोटे जीवों के द्वारा अपनी बुरी अवस्था द्वारा थका हुआ सभी जन्तुओ से पूछता है –

सिंहः – (क्रोधेन गर्जन्) भोः! अहं वनराजः किं भयं न जायते? किमर्थं मामेवं तुदन्ति सर्वे मिलित्वा?
एकः वानरः  – यतः त्वं वनराजः भवितुं तु सर्वथाऽयोग्यः। राजा तु रक्षकः भवति परं भवान् तु भक्षकः। अपि च स्वरक्षायामपि समर्थः नासि तर्हि कथमस्मान् रक्षिष्यसि?
अन्यः वानरः  – किं न श्रुता त्वया पञ्चतन्त्रोक्तिः  –
यो न रक्षति वित्रस्तान् पीड्यमानान्परैः सदा।
जन्तून् पार्थिवरूपेण स कृतान्तो न संशयः॥

हिन्दी अनुवाद –
शेर – (क्रोध से गर्जना करता हुआ) अरे ! मैं वन का राजा हूँ क्या भय नहीं लगता। किसलिए मुझको सभी मिलकर के परेशान करते हैं ?
एक बंदर – क्योंकि तुम वन के राजा होने के लिए तो सभी प्रकार से अयोग्य हो। राजा तो रक्षा करने वाला होता है किन्तु आप तो भक्षक हैं। और भी अपनी रक्षा में समर्थ नहीं हो।  तो कैसे हमारी रक्षा करोगे। 
अन्य बंदर – क्या तुम्हारे द्वारा पंचतंत्र की ये कहावत नहीं सुनी गई –
जो दूसरों के द्वारा भयभीत और पीड़ित जंतुओं की राजा होने के बावजूद भी सदैव रक्षा नहीं करता है, वह देहधारी अर्थात देह धारण किये हुए यमराज है इसमें कोई संदेह नहीं है। 

काकः  – आम् सत्यं कथितं त्वया – वस्तुतः वनराजः भवितुं तु अहमेव योग्यः।
पिकः  – (उपहसन्) कथं त्वं योग्यः वनराजः भवितुं, यत्र तत्र का – का इति कर्कशध्वनिना वातावरणमाकुलीकरोषि। न रूपम् न ध्वनिरस्ति। कृष्णवर्णम्, मेध्यामध्यभक्षकं त्वां कथं वनराजं मन्यामहे वयम्?

काकः  – अरे! अरे! किं जल्पसि? यदि अहं कृष्णवर्णः तर्हि त्वं किं गौराङ्गः? अपि च विस्मयते किं यत् मम सत्यप्रियता तु जनानां कृते उदाहरणस्वरूपा – ‘अनृतं वदसि चेत् काकः दशेत्’ – इति प्रकारेण। अस्माकं परिश्रमः ऐक्यं च विश्वप्रथितम्। अपि च काकचेष्ट: विद्यार्थी एव आदर्शच्छात्रः मन्यते।

हिन्दी अनुवाद –
कौआ – हाँ तुम्हारे द्वारा सत्य कहा गया है। वास्तव में वन का राजा होने के लिए तो मैं ही योग्य हूँ। 
कोयल – (हँसते हुए) कैसे तुम वन के राजा होने के योग्य हो, यहाँ – वहाँ काउ- काउ इस प्रकार की कर्कश आवाज से वातावरण को व्याकुल करते हो अर्थात ख़राब करते हो। न रूप है न ही तुम्हारी आवाज अच्छी है। कला रंग पवित्र –  वाले कैसे तुमको वन का राजा मान सकते है। 
कौआ – अरे ! अरे ! क्या बोल रही हो ? यदि मैं काळा रंग का हूँ तो तुम कौनसी गोर रंग की हो ? और क्या तुम भूल गई क्या मेरी सत्यप्रियता तो लोगों को उदाहरण के रूप में बताई जाती है – यदि असत्य बोलोगे तो कौआ काट लेगा इस प्रकार से। हमारा परिश्रम और एकता विश्व प्रसिद्ध है और भी कौआ का ध्यान करने वाला विद्यार्थी आदर्श छात्र माना जाता है। 

पिकः  – अलम् अलम् अतिविक्थनेन, किं विस्मर्यते यत् –
काकः कृष्णः पिकः कृष्णः कोः भेदः पिककाकयोः।
वसन्तसमये प्राप्ते काकः काकः पिकः पिकः।।
काकः  – रे परभृत् ! अहं यदि तव संततिं न पालयामि तर्हि कुत्र स्युः पिका:? अतः अहम् एव करुणापरः पक्षिसम्राट काकः।
गजः  – समीपतः एवागच्छन् अरे! अरे! सर्वं सभ्भाषणं शृण्वन्नेवाहम् अत्रागच्छम्। अहं विशालकायः, बलशाली, पराक्रमी च। सिंहः वा स्यात् अथवा अन्यः कोऽपि। वन्यपशून् तु तुदन्तं जन्तुमहं स्वशुण्डेन पोथयित्वा मारयिष्यामि। किमन्यः कोऽप्यस्ति एतादृशः पराक्रमी। अतः अहमेव योग्यः वनराजपदाय।

हिन्दी अनुवाद –
कोयल – बस करो बस करो इतना अधिक मत बोलो।  क्या तुम भूल गए कि –
कौआ काला होता है कोयल भी काली है तो कोयल और कौए में क्या अंतर है। 
वसंत आने पर कौआ कौआ होता है और कोयल कोयल होती है। अर्थात वसंत ऋतु में कोयल कूकने लगाती है जबकि कौआ नहीं। 
कौआ – हे दूसरों पर पलने वाली ! मैं यदि तुम्हारी संतानों को नहीं पालता हूँ तो कोयल के बच्चे कहाँ से होंगे। अर्थात कोयल सुरक्षा की दृष्टि से अपने अंडे कौए के घोंसले में देती है। इसलिए मैं ही करुणामयी अर्थात करुणा करने वाला पक्षी सम्राट हूँ। 
हाथी – पास से ही आते हुए अरे! अरे! सभी की बातचीत सुन कर ही मैं यहाँ आया हूँ। मैं विशाल शरीर वाला, अत्यधिक बलशाली और पराक्रमी हूँ। शेर हो या अन्य कोई भी, जंगल के जानवरों को परेशान करते हुए अपनी सूंड से पटक – पटक कर मार दूँगा। क्या दूसरा कोई ऐसा पराक्रमी है। इसलिए मैं ही राजा के पद के लिए योग्य हूँ। 

वानरः  – अरे! अरे! एवं वा (शीघ्रमेव गजस्यापि पुच्छं विधूय वृक्षोपरि आरोहति।)
(गजः तं वृक्षमेव स्वशुण्डेन आलोडयितुमिच्छति परं वानरस्तु कूर्दित्वा अन्यं वृक्षमारोहति। एवं गजं वृक्षात् वृक्षं प्रति धावन्तं दृष्ट्वा सिंहः अपि हसति वदति च।)
सिंहः  – भोः गज! मामप्येवमेवातुदन् एते वानराः।
वानरः  – एतस्मादेव तु कथयामि यदहमेव योग्यः वनराजपदाय येन विशालकायं पराक्रमिणं, भयंकरं चापि सिंह गजं वा पराजेतुं समर्था अस्माकं जातिः। अतः वन्यजन्तूनां रक्षायै वयमेव क्षमाः।
(एतत्सर्वं श्रुत्वा नदीमध्यस्थितः एकः बकः)

हिन्दी अनुवाद –
बंदर – अरे! अरे! ऐसा क्या (शीघ्र ही हाथी की पंच को पकड़ कर वृक्ष के ऊपर चढ़ जाता है।)
(हाथी उस वृक्ष को ही अपनी सूंड से हिलाना चाहता है किन्तु बंदर तो कूदकर के दूसरे वृक्ष पर चढ़ जाता है। इसप्रकार से हाथी को एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष की ओर दौड़ते हुए देखकर शेर भी हँसते हुए कहता है।)
शेर – अरे ओ हाथी! मुझको भी ऐसे ही परेशान करते हैं ये बंदर। 
बंदर – इसीलिए तो कह रहा हूँ कि मैं ही वन के राजा के योग्य हूँ। जिसके द्वारा विशालकाय, पराक्रमी और भयंकर शेर और हाथी को पराजित करने में हमारी जाति समर्थ है। इसलिए वन के जंतुओं की रक्षा के लिए हम ही समर्थ हैं। 
[ऐसा सुनकर के नदी के बीच में से एक बगुला (कहता है -)]

बकः  – अरे! अरे! मां विहाय कथमन्यः कोऽपि राजा भवितुमर्हति। अहं तु शीतले जले बहुकालपर्यन्तम् अविचल: ध्यानमग्नः स्थितप्रज्ञ इव स्थित्वा सर्वेषां रक्षायाः उपायान् चिन्तयिष्यामि, योजना निर्मीय च स्वसभायां विविधपदमलंकुर्वाणैः जन्तुभिश्च मिलित्वा रक्षोपायान् क्रियान्वितान् कारयिष्यामि, अतः अहमेव वनराजपदप्राप्तये योग्यः।
मयूरः  – (वृक्षोपरितः-साट्टहासपूर्वकम्) विरम विरम आत्मश्लाघायाः किं न जानासि यत् –
यदि न स्यान्नरपतिः सम्यङ्नेता ततः प्रजा।
अकर्णधारा जलधौ विप्लवेतेह नौरिव॥
को न जानाति तव ध्यानावस्थाम्। “स्थितप्रज्ञ’ इति व्याजेन वराकान् मीनान् छलेन अधिगृह्य क्रूरतया भक्षयसि। धिक् त्वाम्। तव कारणात् तु सर्वं पक्षिकुलमेवावमानितं जातम्।

हिन्दी अनुवाद –
बगुला – अरे! अरे! मुझको छोड़कर कोई भी दूसरा राजा बनने के योग्य है। मैं तो ठन्डे पानी में लम्बे समय तक बिना विचरित हुए ध्यानमग्न स्थिर बुद्धि वाले के समान वहाँ रुक करके सभी की रक्षा के उपाय का चिंतन करूँगा और योजना बना कर अपनी सभा में विविध पदों से अलंकृत जंतुओं से मिलकर कर के रखा के उपायों को क्रियान्वित करूँगा। इसलिए मैं ही वन के राजा पद के योग्य हूँ। 
मोर – (वृक्ष के ऊपर से जोर से हँसते हुए) रुको रुको अपनी प्रशंसा से अर्थात अपनी प्रशंसा करना बंद करो, क्या नहीं  जानते हो कि –
यदि उचित नेता, राजा नहीं है तो प्रजा बिना नाविक की नौका के समान डूब जाती है। 
कौन नहीं जानता है तुम्हारी ध्यान की अवस्था को स्थित बुद्धि वाले को जब इस प्रकार बेचारी मछलियों को धोखे से पकड़ कर क्रूरता से खा जाते हो। तुमको धिक्कार है। तुम्हारे कारण से तो सम्पूर्ण पक्षी जाति ही अपमानित हुई है।  

वानरः  – (सगर्वम्) अतएव कथयामि यत् अहमेव योग्यः वनराजपदाय। शीघ्रमेव मम राज्याभिषेकाय तत्पराः भवन्तु सर्वे वन्यजीवाः।
मयूरः  – अरे वानर! तूष्णीं भव। कथं त्वं योग्य: वनराजपदाय? पश्यतु पश्यतु मम शिरसि राजमुकुटमिव शिखां स्थापयता विधात्रा एवाहं पक्षिराजः कृतः अतः वने निवसन्तं मां वनराजरूपेणापि द्रष्टुं सज्जाः भवन्तु अधुना यतः कथं कोऽप्यन्यः विधातुः निर्णयम् अन्यथाकर्तुं क्षमः।
काकः  – (सव्यङ्ग्यम्) अरे अहिभुक्। नृत्यातिरिक्तं का तव विशेषता यत् त्वां वनराजपदाय योग्यं मन्यामहे वयम्।
मयूरः  – यतः मम नृत्यं तु प्रकृतेः आराधना। पश्य! पश्य! मम पिच्छानामपूर्वं सौंदर्यम् (पिच्छानुद्घाट्य नृत्यमुद्रायां स्थितः सन्) न कोऽपि त्रैलोक्ये मत्सदृशः सुन्दरः। वन्यजन्तूनामुपरि आक्रमणं कर्तारं तु अहं स्वसौन्दर्येण नृत्येन च आकर्षितं कृत्वा वनात् बहिष्करिष्यामि। अतः अहमेव योग्यः वनराजपदाय।

हिंदी अनुवाद –
बंदर – (गर्व से) इसलिए कहता हूँ कि मैं ही वन के राजा पद के लिए योग्य हूँ। शीघ्र ही सभी वन्य जीव मेरे राज्याभिषेक के लिए तत्पर हो जावें। 
मोर – अरे बंदर ! शांत हो जाओ। कैसे तुम वनराज पद के लिए योग्य हो? देखो देखो मेरे सिर पर राज मुकुट के समान शिखा को स्थापित करते हुए विधाता के द्वारा ही मैं पक्षीराज किया गया हूँ, इसलिए वन में रहते हुए मुझको वनराज रूप में भी देखने के लिए तैयारी हो। क्योंकि कैसे कोई भी दूसरा विधाता के निर्ण को बदलने में समर्थ है। 
कौआ – (व्यंग से) अरे सांप को खाने वाले नृत्य के अतिरिक्त तुम्हारी क्या विशेषता है कि तुमको वनराज पद के किये योग्य माना जाए।
मोर – क्योंकि मेरा नृत्य तो प्रकृति आराधना है। देखो! देखो! मेरे पंखों के अद्भुद सौन्दर्य को (पंखों को खोलकर नृत्य मुद्रा में स्थित होकर) त्रिलोक में कोई भी मेरे समान सूंदर नहीं। वन्य जंतुओं के ऊपर आक्रमण करने वाले को तो मैं अपनी सुंदरता से और नृत्य से आकर्षित करके वन से बाहर कर दूंगा। इसलिए मैं इस वनराज पद के लिए योग्य हूँ।  

(एतस्मिन्नेव काले व्याघ्रचित्रकौ अपि नदीजलं पातुमागतौ एतं विवादं शृणुतः वदतः च)
व्याघ्रचित्रकौ – अरे किं वनराजपदाय सुपात्रं चीयते?
एतदर्थं तु आवामेव योग्यौ। यस्य कस्यापि चयनं कुर्वन्तु सर्वसम्मत्या।
सिंहः  – तूष्णीं भव भोः। युवामपि मत्सदृशौ भक्षकौ न तु रक्षकौ। एते वन्यजीवाः भक्षकं रक्षकपदयोग्य न मन्यन्ते अतएव विचारविमर्शः प्रचलित।
बकः  – सर्वथा सम्यगुक्तम् सिंहमहोदयेन। वस्तुतः एव सिंहेन बहुकालपर्यन्तं शासनं कृतम् परमधुना तु कोऽपि पक्षी एव राजेति निश्चेतव्यम् अत्र तु संशोतिलेशस्यापि अवकाशः एव नास्ति।

हिन्दी अनुवाद –
(इसी समय बाघ और चीता भी नदी का जल पीने के लिए आये, इस विवाद को सुनते है और बोलते हैं)
बाघ और चीता – अरे वनराज पद के लिए सुपात्र चुना जा रहा है इसके लिए तो हम दोनों ही योग्य हैं। जिस किसी का भी (दोनों में से) चयन कर लेवें सभी की  सहमति से। 
शेर – अरे चुप हो जाओ तुम दोनों भी। तुम दोनों भी मेरे समान ही भक्षक हो रक्षक नहीं। ये वन जीव भक्षक को रक्षक के पद के योग्य नहीं मानते है यही विचार चल रहा है।
बगुला – शेर महोदय के द्वारा बिलकुल सही कहा गया है। वास्तव में ही शेर के द्वारा लम्बे समय तक शासन किया गया परन्तु अब कोई पक्षी ही राजा निश्चित किया जाना चाहिए, यहाँ तो लेशमात्र ही संदेह नहीं है। अर्थात अब राजा बनेगा तो कोई पक्षी ही बनेगा इसमें कोई संदेह नहीं है।   

सर्वे पक्षिण: – (उच्चैः) आम् आम् – कश्चित् खगः एव वनराजः भविष्यति इति।
(परं कश्चिदपि खगः आत्मानं विना नान्यं कमपि अस्मै पदाय योग्यं चिन्तयन्ति तर्हि कथं निर्णयः भवेत् तदा तैः सर्वैः गहननिद्रायां निश्चिन्तं स्वपन्तम् उलूकं वीक्ष्य विचारितम् यदेषः आत्मश्लाघाहीनः पदनिर्लिप्तः उलूको एवास्माकं राजा भविष्यति। परस्परमादिशशन्ति च तदानीयन्तां नृपाभिषेकसम्बन्धिनः सम्भाराः इति।)
सर्वे पक्षिणः सज्जायै गन्तुमिच्छन्ति तर्हि अनायास एव –
काकः – (अट्टाहसपूर्णेन-स्वेरण) – सर्वथा अयुक्तमेतत् यन्मयूर – हंस – कोकिल – चक्रवाक – शुक सारसादिषु पक्षिप्रधानेषु विद्यमानेषु दिवान्धस्यास्य करालवक्त्रस्याभिषेकार्थं सर्वे सज्जाः। पूर्ण दिनं यावत् निद्रायमाणः एषः कथमस्मान् रक्षिष्यति।
वस्तुतस्तु-
स्वभावरौद्रमत्युग्रं क्रूरमप्रियवादिनम्।
उलूकं नृपतिं कृत्वा का नु सिद्धिर्थविष्यति॥

हिन्दी अनुवाद –
सभी पक्षी – (जोर से) हाँ हाँ – कोई पक्षी ही इस प्रकार से भविष्य में वनराज होगा। 
(लेकिन कोई भी पक्षी स्वयं के बिना अन्य किसी को इस पद के लिए योग्य नहीं मानते हैं तो कैसे निर्णय हो तभी उन सभी के द्वारा गहरी निंद्रा निश्चिन्त होकर में सोते हुए उल्लू को देख कर विचार किया कि यह स्वयं अपनी प्रशंसा नहीं कर रहा, ना ही इसे पद का लोभ है, उल्लू ही हमारा राजा होगा। राजा के अभिषेक सम्बंधित समान को लाते हुए एक-दूसरे को आदेश देते है। 
सभी पक्षी तैयारी के लिए जाते है तभी अचानक ही –
कौआ – (अट्टहासपूर्ण आवाज में) यह एकदम गलत है कि मोर, हंस, कोयल, चकवा, तोता, सारस आदि मुख्य पक्षीयों के विध्यमान होते हुए भी इस दिन के अंधे, भयंकर मुख वाले के अभिषेक के लिए सभी तैयार हैं। पूरा दिन तक सोते हुए  हमारी रक्षा करेगा वास्तव में तो –
सवभाव से रौद्र अत्यधिक उग्र, क्रूर, प्रिय नहीं बोलने वाले, उल्लू को राजा बनाकर निश्चित ही क्या सिद्ध होगा। 

(ततः प्रविशति प्रकृतिमाता)
प्रकृतिमाता – (सस्नेहम्) भोः भोः प्राणिनः। यूयम् सर्वे एव मे सन्ततिः। कथं मिथः कलहं कुर्वन्ति। वस्तुतः सर्वे वन्यजीविनः अन्योन्याश्रिताः। सदैव स्मरत –
ददाति प्रतिगृह्णाति, गुह्यमाख्याति पृच्छति। 
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड् – विध प्रीतिलक्षणम्॥
(सर्वे प्राणिनः समवेतस्वरेण)
मातः। कथयति तु भवती सर्वथा सम्यक् परं वयं भवतीं न जानीमः। भवत्याः परिचयः कः?
प्रकृतिमाता – अहं प्रकृति युष्माकं सर्वेषां जननी? यूयं सर्वे एव मे प्रियाः। सर्वेषामेव मत्कृते महत्वं विद्यते यथासमयम् न तावत् कलहेन समयं वृथा यापयन्तु अपितु मिलित्वा एव मोदध्वं जीवनं च रसमयं कुरुध्वम्। 

हिन्दी अनुवाद –
(तभी प्रकृति माता प्रवेश करती हैं)
प्रकृतिमाता – (प्रेम से) ओ प्राणियों। तुम सब मेरी संतान हो। क्यों एक-दूसरे से कलह करते हो। वास्तव में सभी वन्य जीव एक – दूसरे पर आश्रित हैं। हमेशा याद रखो –
देता है लेता है, रहस्य बताता है पूछता है। भोग करता है अर्थात उपयोग करता है और भोजन करता है इस प्रकार ये छः प्रकार के प्रेम लक्षण है। 
(सभी प्राणी एक ही स्वर में)
माता! आप सभी प्रकार से  रही हैं परन्तु हम सब आपको नहीं जानते हैं। आपका परिचय क्या है ?प्रकृतिमाता – मैं प्राकृत हूँ तुम सबकी माता। तुम सभी मेरे प्रिय हो। अर्थात सभी प्राणी प्रकृति को प्रिय है। सभी का मेरे लिए महत्व है न तो व्यर्थ के कलह में समय नष्ट करें अपितु सभी मिलकर के प्रसन्न और रसमय जीवन करें।

तद्यथा कथितम्-
प्रजासुखे सुखं राज्ञः, प्रजानां च हिते हितम्।
नात्मप्रियं हितं राज्ञः, प्रजानां तु प्रियं हितम्।।
अपि च-
अगाधजलसञ्चारी न गर्वं याति रोहितः।
अङ्गुष्ठोदकमात्रेण शफरी फुफुरायते॥
अतः भवन्तः सर्वेऽपि शफरीवत् एकैकस्य गुणस्य चर्चा विहाय, मिलित्वा, प्रकृतिसौन्दर्याय वनरक्षायै च प्रयतन्ताम्।
सर्वे प्रकृतिमातरं प्रणमन्ति मिलित्वा दृढसंकल्पपूर्वकं च गायन्ति –
प्राणिनां जायते हानिः परस्परविवादतः।
अन्योन्यसहयोगेन लाभस्तेषां प्रजायते॥

हिन्दी अनुवाद –
इसीलिए कहा गया है –
प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है, और प्रजा के हित में ही राजा का हित है। 
राजा के स्वयं के प्रिय में कोई हित नहीं है, अपितु प्रजा के पिय में हित है अर्थात राजा केवल अपना स्वार्थ देखे तो उसमे किसी का भी हित नहीं है। 
और भी –
असीमित जल धाराओं में संचरण करने वाली रोहू (मछली) भी कोई घमंड नहीं करती है। जबकि थोड़े जल में ही छोटी मछली उछल-कूद करती रहती है। 
इसलिए आप भी सब छोटी मछली के समान एक-एक के गुणों की चर्चा को छोड़कर, मिलकर प्रकृति के सौन्दर्य और वनो की रक्षा के लिए प्रयत्न करें। 
सभी प्रकृतिमाता को प्रणाम करते हैं और मिलकर दृढ संकल्प से गाते हैं – 
परस्पर लड़ने से प्राणियों की हानि ही होती है। 
एक-दूसरे के सहयोग से प्राणियों का लाभ होता है। 

अभ्यास:

1. एकपदेन उत्तरं लिखत – 
(क) वनराज: कै: दुरवस्था प्राप्त:?
उत्तर – तुच्छजीवै:

(ख) क: वातावरणं कर्कशध्वनिना आकुलीकरोति?
उत्तर – काक:

(ग) काकचेष्ट: विद्यार्थी कीदृश: छात्र: मन्यते?
उत्तर – आदर्शछात्र:

(घ) क: आत्मानं बलशाली, विशालकाय:, पराक्रमी च कथयति।
उत्तर – गज:

(ङ) बक: कीदृशान् मिनान् क्रुरतया भक्षयति?
उत्तर – वटाकान्

2. अधोलिखित प्रश्नानामुत्तराणि पूर्ववाक्येन लिखत –
(क) नि:संशय क: कृतान्त मन्यते?
उत्तर – य: सदा पार्थिवरुपेण परै: पीड्यमानान् वित्रस्तान् न रक्षति स: कृतान्त: मन्यते।

(ख) बक: वन्यजन्तूनां रक्षोपायान् कथं चिन्तयितुं कथयति?
उत्तर – बक: कथयति अहं तु शीतल जले अविचल: ध्यानमग्न: स्थितप्रज्ञ इव स्थित्वा सर्वेषां रक्षाया: उपायन् चिन्तयिष्यामि इति कथयति।

(ग) अन्ते प्रकृतिमाता प्रविश्य सर्वप्रथमं किं वदति?
उत्तर – अन्ते प्रकृतिमाता प्रविश्य सर्वप्रथमं भो: भो: प्राणिन: यूयं सर्वे मे सन्तति: इति कथयति।

(घ) यदि राजा सम्यक् न भवति तदा प्रजा कथं विप्लवेत्?
उत्तर – यदि राजा सम्यक् नभवति तदा प्रज्ञा अकर्णधारा जलधौ नौरीव विप्लवेत्।

(ङ) मयूर: कथं नृत्यमुद्रायां स्थित: भवति?
उत्तर – मयूरः पिच्छान् उद्घाट्य नृत्यमुद्रायां स्थितः भवति।

(च) अन्ते सर्वे मिलित्वा कस्य राज्याभिषेकाय तत्परा: भवन्ति?
उत्तर – अन्ते सर्वे मिलित्वा उलूकस्य राज्याभिषेकाय तत्परा: भवन्ति।

(छ) अस्मिन्नाटके कति पात्राणि सन्ति?
उत्तर – अस्मिन्नाटके द्वादश पात्राणि सन्ति।

3. रेखांकितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(क) सिंह: वानराभ्यां स्वरक्षयाम् असमर्थ: एवासित्।
उत्तर – सिंह: वानराभ्यां कस्याम् असमर्थ: एवासित्?

(ख) गज: वन्यपशून् तुदन्तं शुण्डेन पोथयित्वा मारयति।
उत्तर – गज: वन्यपशून् तुदन्तं केन पोथयित्वा मारयति?

(ग) वानर: आत्मानं वनराजपदाय योग्य: मन्यते।
उत्तर – वानर: आत्मानं कस्मै योग्य: मन्यते?

(घ) मयूरस्य नृत्यं प्रकृतेः आराधना।
उत्तर – मयूरस्य नृत्यं कस्या आराधना?

(ङ) सर्वे प्रकृतिमातरं प्रणमन्ति।
उत्तर – सर्वे कां प्रणमन्ति?

4. शुद्धकथनानां समक्षम् [आम्] अशुद्धकथनानां च समक्षं [न] इति लिखत – 
(क) सिंह: आत्मानं तुदन्तं वानरं मारयति।  (न)
(ख) का-का इति बकस्य ध्वनि: भवति।  (न)
(ग) काकपिकयो: वर्ण: कृष्ण: भवति।  (आम्)
(घ) गज: लघुकाय: निर्बल: च भवति।  (न)
(ङ) मयूर: बकस्य कारणात् पक्षीकुलम् अवमानितं मन्यते।  (न)
(च) अन्योन्यसहयोगेन प्राणिनाम् लाभ: जायते।  (आम्)

5. मञ्जूषात: समुचितं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत –
स्थितप्रज्ञ:, यथासमयम्, मेध्यामध्यभक्षक:, अहिभुक्, आत्मश्लाघाहीन:, पिक:।
(क) काक: मेध्यामध्यभक्षक: भवति।
(ख) पिक: परभृत् अपि कथ्यते।
(ग) बक: अविचल: स्थितप्रज्ञ: इव तिष्ठति।
(घ) मयूर: अहिभुक् इति नाम्ना पि ज्ञायते।
(ङ) उलूक: आत्मश्लाघाहीन: पदनिर्लिप्त चासीत्।
(च) सर्वेषामेव महत्वं विद्यते यथासमयम्

6. वाच्यपरिवर्तनं कृत्वा लिखत – 

उदाहरणम् –क्रुद्ध: सिंह: इतस्तत: धावति गर्जति च।
 क्रुद्धेन सिंहे न इतस्तत: धाव्यते गाजरयते च।

(क) त्वया सत्यं कथितम्।
वाच्य – त्वं सत्यं अकथयत्।

(ख) सिंह: सर्वजन्तून् पृच्छति।
वाच्य – सिंहेन सर्वजंतव: पृच्छयते।

(ग) काक: पिकास्य संततिं पालयति।
वाच्य – काकेन पिकस्य संततिं पालयति।

(घ) मयूर: विधात्रा एव पक्षीराज: वनराज: वा कृत:।
उत्तर – विधाता मयूरम् एव पक्षीराजं वनराजं वा कृतवान्।

(ङ) सर्वै: खगै: कोऽपि खग: एव वनराज: कर्तुमिष्यते स्म।
वाच्य – सर्वे खागा कऽपि खगम् एव वनराजं कर्तुम् इच्छन्ति स्म।

(च) सर्वे मिलित्वा प्रकृतिसौन्दर्याय प्रयत्नं कुर्वन्तु।
वाच्य – सर्वै: मिलित्वा प्रकृति सौंदर्याय प्रयत्न: क्रियताम्।

7. समासविग्रहं समस्तपदं वा लिखत – 
(क) तुच्छजीवै:   ………………………………… ।
(ख) वृक्षोपरि   ………………………………… ।
(ग) पक्षिणां सम्राट   ………………………………… ।
(घ) स्थिता प्रज्ञा यस्य स:   ………………………………… ।
(ङ) अपूर्वम्   ………………………………… ।
(च) व्याघ्रचित्रका   ………………………………… ।
उत्तर – 
(क) तुच्छजीवै: तुच्छै: जीवै:
(ख) वृक्षोपरि वृक्षस्य उपरि
(ग) पक्षिणां सम्राट पक्षिसम्राट।
(घ) स्थिता प्रज्ञा यस्य स: स्थितप्रज्ञ:
(ङ) अपूर्वम् न पूर्वम्
(च) व्याघ्रचित्रका व्याघ्रा: च चित्रका: च

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