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NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 2 Buddhibalamvati Sada | द्वितीय: पाठ: बुद्धिर्बलवती सदा

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NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 2 Buddhibalamvati Sada | द्वितीय: पाठ: बुद्धिर्बलवती सदा

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 2 Buddhibalamvati Sada | द्वितीय: पाठ: बुद्धिर्बलवती सदा

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 Sanskrit

Shemushi Dvitiyo Bhagah

कक्षा – 10 दशमकक्षाया:
संस्कृतपाठयपुस्तकम्
शेमुषी द्वितीयो भाग:
पाठ – 2
बुद्धिर्बलवती सदा

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 2 Hindi Translate
बुद्धिर्बलवती सदा पाठ का हिंदी अनुवाद (बुद्धि ही बलवती होती है।)

प्रसंग – यह पाठ शुकसप्तति: नमल प्रसिद्ध कथाग्रन्थ से सम्पादित कर लिया गया है। इसमें अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता जे घर जा रही बुद्धिमती नमक नारी के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है, जो सामने आए हुए शेर को दरकार भगा देती है। इस कथाग्रन्थ में नीतिनिपुण शुक और सारिका की कहानियों के द्वारा अप्रत्यक्ष रुप से सद्वृत्ति का विकास कराया गया है।

अस्ति …………………………………………………………………………… कश्चिल्लक्ष्यते।”
अर्थ – देउल नामक एक गाँव था। वहां राजसिंह नामक राजकुमार रहता था। एक बार किसी आवश्यक कार्य से उसकी पत्नी बुद्धिमती दो पुत्रों के साथ पिता के घर की ओर चल पड़ी। रास्ते में घने जंगल में उसने एक बाघ को देखा। उसने बाघ को आते हुए देखकर बिना डरे अपने पुत्रों को थप्पड मार कर कहा – “क्यों एक-एक करके बाघ को खाने के लिए झगड़ा कर रहे हो? यह तो एक ही है। इसे बाँटकर खा लो। बाद में किसी दूसरे को खोज लेंगे।”

इति …………………………………………………………………………… पलायितः?”
अर्थ – ऐसा सुनकर व्याघ्रमारी कोई यह है ऐसा मानकर बाघ डर से व्याकुल होकर भाग गया। वह सुन्दर स्त्री बाघ के भय से अपनी बुद्धि के द्वारा मुक्त हुई। अन्य बुद्धिमान् व्यक्ति भी संसार में महान् भय से मुक्त हो जाता है। भय से व्याकुल बाघ को देखकर कोई धूर्त गीदड़ हँसता हुआ कहने लगा-‘आप भय से क्यों भाग खड़े हुए?

व्याघ्र: – गच्छ …………………………………………………………………………… इति।
अर्थ –
बाघ – जाओ, जाओ, गीदड़। तुम भी गुप्त स्थान पर (चले जाओ)। क्योंकि ‘बाघ हत्यारिन’ ऐसा जो शास्त्रौं में सुना जाता है, वह मुझे मारने को तैयार है, परन्तु उसके आगे से मैं शीघ्र प्राण हथेली पर रखकर भाग आया हूँ।
गीदड़ – हे बाघ! तुमने बड़ी आश्चर्य की बात कही है कि तुम मनुष्य से डरते हो?
बाघ – आँखों के सामने ही अपने साथ मुझे खाने के लिए झगड़ा करते हुए दो पुत्रों को थप्पड़ मारती हुई को मैंने देखा है।
गीदड़ – हे स्वामी! जहाँ वह धूर्त स्त्री बैठी है, वहाँ चलिए। हे बाघ! वहाँ पहुँचने पर तुम्हारे सामने भी यदि देख ले तो तुम मुझे मार डालना।

व्याघ्र: – श्रृगाल! …………………………………………………………………………… तर्जयन्त्युवाच-
बाघ – हे गीदड़! यदि तुम मुझे छोड़कर जाते हो तो शर्त टूट जाएगी।
गीदड़ – यदि ऐसा है तो मुझे अपने गले में बाँधकर शीघ्र चलो। वह बाघ वैसा करके जंगल की ओर चल पड़ा। गीदड़ के साथ पुनः आते हुए बाघ को दूर से देखकर बुद्धिमती सोचने लगी – ‘गीदड़ के द्वारा उत्साहित बाघ से कैसे बचूँ?’
परन्तु हाजिरजवाब वह (महिला) गीदड़ को आक्षेप करती हुई तथा अंगुली से फटकारती हुई कहने लगी –

रे रे धूर्त …………………………………………………………………………… सर्वदा।।
अर्थ – अरे बदमाश। पिछली बार तो तूने मुझे तीन बाघ (ला कर) दिए थे। भरोसा दिला कर आज (सिर्फ) एक ही बाघ ला कर कैसे जाएगा। बोल अब। ऐसा कह कर वह भयंकर व्याघ्रमारी (बुद्धिमती) जल्दी से दौड़ पड़ी। उसे देख कर जिसके गले में सियार बंधा हुआ था वह बाघ भी अचानक से भाग गया। एस तरह से बुद्धिमती बाघ के भय से फिर से भी मुक्त हो गई। 
इसी लिए कहते हैं – हे तन्वी, हमेशा सभी कामों में बुद्धि ही बलवती होती है।

अभ्यास

1. एकपदेन उत्तरं लिखत –
(क) बुद्धिमती कुत्र व्याघ्रं ददर्श?
उत्तरम् – गहनकानने.

(ख) भामिनि काया विमुक्ता?
उत्तरम् – निजबुद्ध्या

(ग) सर्वदा सर्वकार्येषु का बलवती?
उत्तरम् – बुद्धि:

(घ) व्याघ्र: कस्मात बिभेति?
उत्तरम् – मानुषात्

(ङ) प्रत्युत्पन्नमति: बुद्धिमति किम आक्षिपन्ती उवाच?
उत्तरम् – श्रंगालम्

2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(क) बुद्धिमती केन उपेता पितुहं प्रति चलिता?
उत्तरम् –  बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।

(ख) व्याघ्रः कि विचार्य पलायितः?
उत्तरम् – इयं व्याघ्रमारी इति विचार्य व्याघ्रः पलायितः।

(ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते?
उत्तरम् –
 लोके महतो भयात् बुद्धिमान् मुच्यते।

(घ) जम्बुकः किं वदन व्याघ्रस्य उपहासं करोति?
उत्तरम् –
 भवान कुत: भयात् पलायितः? इति वदन जम्बुका व्याघ्रस्य उपहासं करोति।

(ङ) बुद्धिमती शृगालं किम् उक्तवती?
उत्तरम् –  बुद्धिमती शृगालम् उक्तवती-  रे धूर्त, इतो गच्छ।’

3. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माण कुरुत –
(क) तन्त्र राजसिंहो नाम राजपुत्रः वसति स्म।
उत्तरम् – तत्र क: नाम राजपुत्रः वसति स्म?

(ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्री प्रहृतवती।
उत्तरम् – बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रहृतवती?

(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूतः शृगालः अवदत्।
उत्तरम् – कं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत् ?

(घ) त्वम् मानुषात् विभेषि।
उत्तरम् – त्वम् कस्मात् विभेषि?

(ङ) पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम्।
उत्तरम् – पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रयं दत्तम्?

4. अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमेण योजयत –
(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
(ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
(घ) मार्ग सा एक व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्र विभज्य भुज्यताम् ।
(च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गुहं प्रति चलिता।
(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान् ।
(ज) गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः पुनः पलायितः।
उत्तरम्- 
(क) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुगृहं प्रति चलिता।
(ख) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
(ग) व्याघ्र दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-‘अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम् ।
(घ) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
(ङ) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत् ।
(च) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालम् आक्षिपन्ती उवाच।
(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
(ज) गलबद्धशृगालकः व्याघ्रः पुनः पलायितः।

5. सन्धि /सन्धिविच्छेदं वा कुरुत –

(क) पितुर्गृहम्=……………+……………
(ख) एकैकः=……………+……………
……………=अन्यः+अपि
……………=इति+उक्त्वा
……………=यत्र+आस्ते

उत्तरम् –

(क) पितुर्गृहम्=पितुः+गृहम्
(ख) एकैकः=एक+एक:
(ग) अन्योऽपि=अन्यः+अपि
(घ) इत्युक्त्वा=इति+उक्त्वा
(ङ) यत्रास्त=यत्र+आस्ते

6. अधोलिखितानां पदानाम् अर्थः कोष्ठकात् चित्वा लिखत –

(क) ददर्श(दर्शितवान्, दृष्टवान्)…………….
(ख) जगाद(अकथयत्, अगच्छत्)…………….
(ग) ययौ(याचितवान्, गतवान्)…………….
(घ) अत्तुम्(खादितुम्, आविष्कर्तुम्)…………….
(ङ) मुच्यते(मुक्तो भवति, मग्नो भवति)…………….
(च) ईक्षते(पश्यति, इच्छति)…………….

उत्तरम् –

   अर्थ
(क) ददर्श(दर्शितवान्, दृष्टवान्)दृष्टवान्
(ख) जगाद(अकथयत्, अगच्छत्)अकथयत्
(ग) ययौ(याचितवान्, गतवान्)गतवान्
(घ) अत्तुम्(खादितुम्, आविष्कर्तुम्)खादितुम्
(ङ) मुच्यते(मुक्तो भवति, मग्नो भवति)मुक्तो भवति
(च) ईक्षते(पश्यति, इच्छति)पश्यति

7. (अ) पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत –

(क) वनम्…………..
(ख) शृगालः…………..
(ग) शीघ्रम्…………..
(घ) पत्नी…………..
(ङ) गच्छसि…………..

उत्तरम् –

पदानि पर्यायपदं
(क) वनम्काननम्
(ख) शृगालःजम्बुकः
(ग) शीघ्रम्तूर्णम्/सत्वरम्
(घ) पत्नीभार्या
(ङ) गच्छसियासि

(आ) पाठात् चित्वा विपरीतार्थकं पदं लिखत –

(क) प्रथमः…………………..
(ख) उक्त्वा…………………..
(ग) अधुना…………………..
(घ) अवेला…………………..
(ङ) बुद्धिहीना…………………..

उत्तरम् –

पदानि विपरीतार्थक शब्द
(क) प्रथमःद्वितीयः
(ख) उक्त्वाश्रुत्वा
(ग) अधुनापश्चात्
(घ) अवेलावेला
(ङ) बुद्धिहीनाबुद्धिमती

8. (अ) प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत –

(क) चलितः

(ख) नष्टः

(ग) आवेदितः

(घ) दृष्ट:

(ङ) गतः

(च) हतः

(छ) पठितः

(ज) लब्धः

उत्तरम् –

(क) चलितःचल् क्त
(ख) नष्टःनश् क्त
(ग) आवेदितःआ विद णिच् क्त
(घ) दृष्ट:दृश् क्त
(ङ) गतः गम् क्त
(च) हतःहन् क्त
(छ) पठितःपठ् क्त
(ज) लब्धःलभ् क्त।

(आ) उदाहरणमनुसृत्य कर्तरि प्रथमा विभक्तेः क्रियायाञ्च ‘क्तवतु’ प्रत्ययस्य प्रयोग: कृत्वा वाच्यपरिवर्तनं कुरुत-

यथा- तया अहं हन्तुम् आरब्धः।     –     सा मां हन्तुम् आरब्धवती।

(क) मया पुस्तकं पठितम्।

(ख) रामेण भोजनं कृतम्।

(ग) सीतया लेखः लिखितः।

(घ) अश्वेन तृणं भुक्तम्।

(ङ) त्वया चित्रं दृष्टम्।

उत्तरम् –

(क) मया पुस्तकं पठितम्।अहं पुस्तकं पठितवान्।
(ख) रामेण भोजनं कृतम्।रामः भोजनं कृतवान्।
(ग) सीतया लेखः लिखितः।सीता लेखं लिखितवती।
(घ) अश्वेन तृणं भुक्तम्।अश्वः तृणं भुक्तवान्।
(ङ) त्वया चित्रं दृष्टम्। त्वं चिन्नं दारतान।

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