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NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 5 Janani tulyvatsala | पञ्चम: पाठ: जननी तुल्यवत्सला

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NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 5 Janani tulyvatsala | पञ्चम: पाठ: जननी तुल्यवत्सला

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 5 Janani tulyvatsala | पञ्चम: पाठ: जननी तुल्यवत्सला

NCERT SOLUTIONS FOR CLASS 10 Sanskrit Shemushi Dvitiyo Bhagah

कक्षा – 10 दशमकक्षाया:
संस्कृतपाठयपुस्तकम्
पाठ – 5
जननी तुल्यवत्सला

जननी तुल्यवत्सला हिंदी अनुवाद

जननी तुल्यवत्सला पाठ का हिंदी अनुवाद माता का स्नेह सभी के लिए समान होता है।

प्रसंग – महाभारत में अनेक ऐसे प्रसंग हैं जो आज के युग में भी उपादेय हैं। महाभारत के वनपर्व से ली गई यह कथा न केवक मनुष्यों अपितु सभी जीव-जन्तुओं के प्रति समदृष्टि पर बल देती है। समाज में दुर्बल लोगों अथवा जीवों के प्रति भी माँ की ममता प्रगाढ़ होती है, इस पाठ का अभिप्रेत है।
प्रस्तुत पाठ्यांश महाभारत से उद्धृत है, जिसमे मुख्यतः व्यास द्वारा धृतराष्ट्र को एक कथा के माध्यम से यह सन्देश देने का प्रयास किया गया है कि तुम पिता हो और एक पिता होने के नाते अपने पुत्रों के साथ-साथ अपने भतीजों के हित का भी ख्याल रखना भी उचित है। इस प्रसंग में गाय के मातृत्व की चर्चा करते हुए गोमाता सुरभि और इंद्र के संवाद के माध्यम से यह बताया गया है कि माता के लिए सभी सन्तान बराबर होती हैं। उसके ह्रदय में सबके लिए सामान स्नेह होता है।

कश्चित् कृषकः बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्। तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बलः जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत्। अतः कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत। सः ऋषभः हलमूढ्वा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात। क्रुद्धः कृषीवलः तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत्। तथापि वृषः नोत्थितः।
अर्थ – कोई किसान दो बैलों के द्वारा खेत की जुताई कर रहा था। उन दोनों बैलों में एक बैल शरीर से दुर्बल और तीव्रगति से चलने में असमर्थ था। इसलिए किसान उस दुर्बल बैल को कष्ट देकर जबरन धकेल रहा था। वह बैल हल उठाकर चलने में असमर्थ था इसलिए भूमि पर गिर गया। क्रोधित किसान ने उस बैल को उठाने के लिए अनेक बार प्रयत्न किया। फिर भी बैल खड़ा न हो सका।

भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां मातुः सुरभेः नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्। सुरभेरिमामवस्थां दृष्ट्वा सुराधिपः तामपृच्छत्- “अयि शुभे! किमेवं रोदिषि? उच्यताम्” इति। सा च
विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिपः।
अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!॥
“भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि। सः दीन इति जानन्नपि कृषकः तं बहुधा पीडयति। सः कृच्छ्रेण भारमुद्दहति । इतरमिव धुरं वोढुं सः न शक्नोति। एतत् भवान् पश्यति न?” इति प्रत्यवोचत्।
अर्थ – भूमि पर गिरे हुए अपने पुत्र को देखकर सभी गायों की माता सुरभि के नेत्रों से आँसू बहने लगे। सुरभि की इस अवस्था को देखकर देवताओं के राजा (इन्द्र) ने उससे पूछा “हे देवि! इस प्रकार क्यों रो रही हो? कहिए”। वह बोली- हे देवताओ का राजा इन्द्र! उसका कष्ट किसी को दिखाई नहीं दे रहा। हे कौशिक ! मैं तो पुत्र के विषय में सोचकर दुःखी हो रही हूँ और इसीलिए रो रही हूँ। 
“हे वासव! पुत्र की दीनता को देखकर मैं रो रही हूँ। वह दुर्बल है यह जानते हुए भी किसान उसको अनेक प्रकार से कष्ट दे रहा है। वह कठिनाई से भार ढो रहा है। वह दूसरे बैलों के समान धुर (जुए) को ढोने में समर्थ नहीं है। क्या यह आप नहीं देख रहे हैं?” ऐसा जवाब दिया।

“भद्रे! नूनम्। सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्?” इति इन्द्रेण पृष्टासुरभिः प्रत्यवोचत् –
यदि पुत्रसहस्र मे, सर्वत्र सममेव मे।
दीनस्य तु सतः शक्र! पुत्रस्याभ्यधिका कृपा॥
“बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम् । तथाप्यहमेतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनामनुभवामि । यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्वलः। सर्वेष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव । तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव” इति । सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत् । स च तामेवमसान्त्वयत्- “गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।”

अर्थ – “हे कल्याणि! निश्चय ही। हजारों से भी अधिक विद्यमान पुत्रों में से इस पुत्र पर इतना प्रेम क्यों? इस प्रकार इन्द्र के पूछने पर सुरभि बोली- यद्यपि मेरे हजारों पुत्र हैं और सब पर मेरी ममता समान है। फिर भी हे शक्र (इन्द्र) ! विद्यमान दीन-हीन (दुर्बल) पुत्र पर अधिक कृपा है।
“ये सत्य है कि मेरी बहुत सन्तानें हैं। फिर भी मैं इस पुत्र पर विशेषकर आत्मवेदना का अनुभव कर रही हूँ। क्योंकि यह दूसरों से दुर्बल है। सभी सन्तानों पर माँ का प्रेम बराबर ही होता है। फिर भी कमजोर पुत्र पर माँ की कृपा सहज रूप से अधिक होती है।”
सुरभि के वचनों को सुनकर विस्मित इन्द्र का भी हृदय अत्यधिक द्रवित हो गया। और उन्होंने सुरभि को सान्त्वना दी- “हे वत्से ! जाओ। सब सही ही होगा।

अचिरादेव चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः समजायत। पश्यतः एव सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः। कृषकः हर्षतिरेकेण कर्षणाविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात्।
अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।
पुत्रे दीने तु सा माता कृपादर्हदया भवेत्।।
अर्थ – शीघ्र ही तीव्र हवा और बादलों की गर्जना के साथ वर्षा होने लगी। देखते ही देखते सब जगह जल ही जल हो गया। इससे किसान अत्यधिक प्रसन्न होकर खेत जोतने के काम से विमुख होकर दोनों बैलों को लेकर घर चला गया। यद्यपि माता के हृदय में अपनी सभी सन्तानो के प्रति समान प्रेम होता है, पर जो कमजोर सन्तान होती है उसके प्रति उसके मन में अतिशय प्रेम होता है।

Sanskrit Class 10 NCERT Solutions Translation Chapter 5
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Hindi Translate Chapter 5

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 5

शब्दार्था:

 शब्दार्था: 
बलिवर्दाभ्याम्वृषभाभ्याम्दो बैलों सेBy two bullocks
क्षेत्रकर्षणम्क्षेत्रस्य कर्षणम्खेतों की जुताई Plough the field
जवेनतीव्रगत्यातीव्रगति सेWith speed 
तोदनेनकष्टप्रदानेनकष्ट देने सेBy torturing 
नुद्यमानःबलेन नीयमान:धकेला जाता हुआ, हाँका जाता हुआBeing pulled
हलमूढ्वाहलम् उत्थाप्यहल उठाकर, हल ढोकरCarrying the plough 
पपातभूमौ अपतत्गिर गयाFell down
कृषीवल:कृषक:किसानFarmer
उत्यापयितुम्उपरि नेतुम्उठाने के लिएTo uplift
वृष:वृषभ:बैलBullock
धेनुनाम्गवाम्गायों कीOf cows
नेत्राभ्याम्चक्षुभ्याम्, नयनाभ्याम्दोनों आँखों सेFrom both eyes 
अश्रुणिनयनजलम्आँसूTears
आविरासनान्प्रकटिता:सामने आ गएAppeared
सुराधिप:सुराणां राजा, देवानाम् अधिप:देवताओं के राजा (इंद्र)King of Gods
उच्यताम्कथ्यताम्कहें, कहा जाएSay
वासव:इंद्र:, देवराज:इंद्रIndra
कृच्छ्रेणकाठिन्येनकठिनाई सेWith difficulty
इतरमिवअपरम् इवदूसरे (बैल) के समानLike an other bullock 
धुरम्धुरम्जुए को (गाड़ी के जुए का वह भाग जो बैलों के कंधों पर रखा रहता है) Yoke
वोढुम्वहनाय योग्यम्ढोने के लिएTo carry
प्रत्यवोचत्उत्तरं दत्तवान्जवाब दियाReplied
नूनम्निश्चयेननिश्चय हीCertainly
सहस्रम्दशशतम्हज़ारThousand
वात्सल्यम्स्नेहभाव:वात्स्ल्य (प्रेमभाव)Affection
अपत्यानिसन्ततय:सन्तानChildren
विशिष्यविशेषतःविशेषकरSpecially
वेदनाम्पीड़ाम्, दुःखम्कष्ट कोThe pain
तुल्यवत्सलासमस्नेहयुतासमान रूप से प्यार करने वालीEqual affection
सुत:पुत्र:/तनय:पुत्रSon
भृशम्अत्यधिकम्बहुत अधिकVery much
आखण्डलस्यदेवराजस्य इन्द्रस्यइंद्र काOf Indra
असान्त्वयत्सान्त्वनम् दत्तवान्, समाश्वासयत्सान्त्वना दी (दिलासा दी)Consoled
अचिरात्शीघ्रमशीघ्र हीSoon
चण्डवातेनवेगयुता वायुनाप्रचण्ड (तीव्र) हवा सेWith swift wind
मेघरवैःमेघस्य गर्जनेनबादलो की गर्जन सेThundering
प्रवर्ष:वृष्टि:वर्षाHeavy rain
जलोपप्लव:जलस्य उपप्लव: (उत्पात:)पानी द्वारा तबाहीDestruction by water 
कर्षणविमुख:कर्षणकर्मण: विमुख:जोतने के काम से विमुख होकरLeaving ploughing work  
वृषभौवृषौदोनों बैलों कोBoth the bullocks 
अगात्गतवान्, अगच्छत्गयाWent
त्रिदशाधिप:त्रिदशनाम् अधिप: = इंद्रदेवताओं का राजा = इंद्रKing of Gods

अभ्यास:

1. एकपदेन उत्तरं लिखत –
(क) वृषभ: दीन: इति जानन्नपि क: तं नद्यमान: आसित्?
उत्तरम् – कृषक:

(ख) वृषभ: कुत्र पपात?
उत्तरम् – क्षेत्रे

(ग) दुर्बले सुते कस्या: अधिका कृपा भवति?
उत्तरम् – मातु:

(घ) कयो: सुते कस्या: अधिका कृपा भवति?
उत्तरम् – वृषभयो:

(ङ) चण्डवातेन मेघरवैश्च सह क: समजायत?
उत्तरम् – वृष्टि:

2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत – 
(क) कृषक: किं करोति स्म?
उत्तरम् – कृषक: बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं करोति स्म।

(ख) माता सुरभि: किमर्थम् अश्रुणि मुञ्चति स्म?
उत्तरम् – माता सुरभि: भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा अश्रुणि मुञ्चित स्म।

(ग) सुरभि: इन्द्रस्य प्रश्नस्य किमुत्तरं ददाति?
उत्तरम् – सुरभि: उत्तरं ददाति यत – “स्वपुत्रस्य दैन्यं दृष्टवा अहं रोदिमि।”

(घ) मातु: अधिका कृपा कस्मिन् भवति?
उत्तरम् – दुर्बलेपुत्रे मातृ: अधिका कृपा भवति।

(ङ) इन्द्र: दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुं किं कृतवान्?
उत्तरम् – इन्द्र: दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुं वृष्टि कृतवान्।

(च) जननी कीदृशी भवति?
उत्तरम् – जननी तुल्यवत्सला भवति।

(छ) पाठेऽस्मिन् कयो: संवाद विद्यते? 
उत्तरम् – पाठेऽस्मिन् इन्द्रस्य सुरभे: संवाद विद्यते।

3. ‘क’ स्तम्भे दत्तानाम् पदनाम् मेलन ‘ख’ स्तम्भे दतै: समानार्थक पदै: कुरुत – 

 क स्तम्भ ख स्तम्भ
(क)कृच्छ्रेण(i)वृषभ:
(ख)चक्षुभ्याम्(ii)वासव:
(ग)जवेन(iii)नेत्राभ्याम्
(घ)इन्द्र:(iv)अचिरम्
(ङ)पुत्रा:(v)द्रुतगत्या
(च)शीघ्रम्(vi)काठिन्येन
(छ)बलिवर्द:(vii)सुता:

उत्तरम् – 

 क स्तम्भ ख स्तम्भ
(क)कृच्छ्रेण(vi)काठिन्येन
(ख)चक्षुभ्याम्(iii)नेत्राभ्याम्
(ग)जवेन(v)द्रुतगत्या
(घ)इन्द्र:(ii)वासव:
(ङ)पुत्रा:(vii)सुता:
(च)शीघ्रम्(iv)अचिरम्
(छ)बलिवर्द:(i)वृषभ:

4. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(क) स: कृच्छ्रेण भारम् उद्वहति।
उत्तरम् – केन

(ख) सुराधिप: ताम् अपृच्छत्।
उत्तरम् – क:

(ग) अयम् अन्येभ्यो दुर्बल:।
उत्तरम् – केभ्य

(घ) धेनुनाम् माता सुरभि: आसित्।
उत्तरम् – कासाम्

(ङ) सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुःखी आसित्।
उत्तरम् – कतिषु

5. रेखाङ्कितपदे यथास्थानं सन्धि विच्छेदं वा कुरुत – 
(क) कृषक: क्षेत्रकर्षणं कुर्वन् + आसित्।
उत्तरम् – कुर्वन्नासित्

(ख) तयोरेक: वृषभ: दुर्बल: आसित्।
उत्तरम् – तयो: + एक:

(ग) तथापि वृष: न + उत्थित:।
उत्तरम् – नोत्थित:

(घ) सत्स्वपि बहुषु पुत्रेषु अस्मिन वात्सल्यं कथम्?
उत्तरम् – सत्सु + अपि

(ङ) तथा + अपि + अहम् + एतस्मिन् स्नेहम अनुभवामि।
उत्तरम् – तथाप्यहमेतस्मिन्

(च) मे बहूनि + अपत्यानि सन्ति।
उत्तरम् – बहून्यपत्यानि

(छ) सर्वत्र जलोपप्लव: सञ्जात:।
उत्तरम् – जल + उपप्लव:

6. अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखांकितसर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम् – 
(क) सा च अवदत् भो वासव! अहम् भृशं दुःखिता अस्मि।
उत्तरम् – धेन्वै

(ख) पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहम् रोदिमि।
उत्तरम् – सुरभ्यै

(ग) स: दीन: इति जानन् अपि कृषक: तं पीडयति।
उत्तरम् – वृषभाय 

(घ) मे बहूनि अपत्यानि सन्ति।
उत्तरम् – सुरभ्यै

(ङ) स: च ताम् एवम् असान्त्वयत।
उत्तरम् – इन्द्राय

(च) सहस्त्रेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन् प्रीति: अस्ति।
उत्तरम् – सुरभ्यै

7. ‘क’ स्तम्भे विशेषणपदं लिखतम्, ‘ख’ स्तम्भे पुन: विशेष्यपदम्। तयो: मेलनं कुरुत – 

 क स्तम्भ ख स्तम्भ
(क)कश्चित्(i)वृषभम्
(ख)दुर्बलम्(ii)कृपा
(ग)क्रुद्ध:(iii)कृषीवल:
(घ)सहस्त्राधिकेषु(iv)आखण्डल:
(ङ)अभ्यधिका(v)जननी
(च)विस्मित:(vi)पुत्रेषु
(छ)तुल्यवत्सला(vii)कृषक:

उत्तर – 

 क स्तम्भ ख स्तम्भ
(क)कश्चित्(vii)कृषक:
(ख)दुर्बलम्(i)वृषभम्
(ग)क्रुद्ध:(iii)कृषीवल:
(घ)सहस्त्राधिकेषु(vi)पुत्रेषु
(ङ)अभ्यधिका(ii)कृपा
(च)विस्मित:(iv)आखण्डल:
(छ)तुल्यवत्सला(v)जननी

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