Last Updated on November 29, 2022 by Rahul
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी: पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी: पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1:
किसी प्रकार के सिलिकॉन में निम्नलिखित में से कौन-सा प्रकथन सत्य है?
(a) इलेक्ट्रॉन बहुसंख्यक वाहक हैं और त्रिसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं।
(b) इलेक्ट्रॉन अल्पसंख्यक वाहक हैं और पंचसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं।
(c) होल (विवर) अल्पसंख्यक वाहक हैं और पंचसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं।
(d) होल (विवर) बहुसंख्यक वाहक हैं और त्रिसंयोजी परमाणु अपमिश्रक हैं।
उत्तर:
(c) प्रकथन सत्य है।
प्रश्न 2:
प्रश्न 1 में दिए गए कथनों में से कौन-सी p-प्रकार के अर्द्धचालकों के लिए सत्य है?
उत्तर:
(d) प्रकथन सत्य है।
प्रश्न 3:
कार्बन, सिलिकॉन और जर्मोनियम, प्रत्येक में चार संयोजक इलेक्ट्रॉन हैं। इनकी विशेषता ऊर्जा बैड अन्तराल द्वारा पृथक्कृत संयोजकता और चालन बैंड द्वारा दी गई हैं, जो क्रमशः
(Eg)c, (Eg)s; तथां (Eg) Ge के बराबर हैं। निम्नलिखित में से कौन-सा प्रकथन सत्य है?
(a) (Eg)si <(Eg) Ge <(Eg)c
(b) (Eg)c <(Eg) Ge > (Eg)st
(c) (Eg)c > (Eg)s >(Eg) Ge
(d) (Eg)c = (Eg)si = (Eg)Ge
उत्तर:
चालन बैंड तथा संयोजकता बैंड के बीच ऊर्जा अन्तराल कार्बन के लिए सबसे अधिक, सिलिकॉन के लिए उससे कम तथा जर्मेनियम के लिए सबसे कम होता है; अतः (c) प्रकथन सत्य है।
प्रश्न 4:
बिना बायस p-n सन्धि में, होल क्षेत्र में n-क्षेत्र की ओर विसरित होते हैं, क्योंकि
(a) n-क्षेत्र में मुक्त इलेक्ट्रॉन उन्हें आकर्षित करते हैं।
(b) ये विभवान्तर के कारण सन्धि के पार गति करते हैं।
(c) p-क्षेत्र में होल-सान्द्रता, n-क्षेत्र में उनकी सान्द्रता से अधिक है।
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर:
(c) प्रकथन सत्य है।
प्रश्न 5:
जब p- n सन्धि पर अग्रदिशिक बायस अनुप्रयुक्त किया जाता है, तब यह
(a) विभव रोधक बढ़ाता है।
(b) बहुसंख्यक वाहक धारा को शून्य कर देता है।
(c) विभव रोधक को कम कर देता है।
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) प्रकथन सत्य है।
प्रश्न 6. ट्रांजिस्टर की क्रिया हेतु निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं
(a) आधार, उत्सर्जक और संग्राहक क्षेत्रों की आमाप और अपमिश्रण सान्द्रता समान होनी चाहिए।
(b) आधार क्षेत्र बहुत बारीक और कम अपमिश्रित होना चाहिए।
(c) उत्सर्जक सन्धि अग्रदिशिक बायस है और संग्राहक सन्धि पश्चदिशिक बायस है।
(d) उत्सर्जक सन्धि संग्राहक सन्धि दोनों ही अग्रदिशिक बायस हैं।
उत्तर:
(b) तथा (c) प्रकथन सत्य हैं।
प्रश्न 7:
किसी ट्रांजिस्टर प्रवर्धक के लिए वोल्टता लब्धि
(a) सभी आवृत्तियों के लिए समान रहती है।
(b) उच्च और निम्न आवृत्तियों पर उच्च होती है तथा मध्य आवृत्ति परिसर में अचर रहती है।
(e) उच्च और निम्न आवृत्तियों पर कम होती है और मध्य आवृत्तियों पर अचर रहती है।
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) प्रकथन सत्य है।
प्रश्न 8:
अर्द्ध-तरंगी दिष्टकरण में, यदि निवेश आवृत्ति 50Hz है तो निर्गम आवृत्ति क्या है? समान निवेश आवृत्ति हेतु पूर्ण तरंग दिष्टकारी की निर्गम आवृत्ति क्या है? उत्तर:
अर्द्ध-तरंग दिष्टकारी के लिए निर्गम आवृत्ति 50Hz ही रहेगी परन्तु पूर्ण-तरंग दिष्टकारी के लिए निर्गम आवृत्ति दोगुनी अर्थात् 100 Hz होगी।
प्रश्न 9:
उभयनिष्ठ उत्सर्जक (CE-ट्रांजिस्टर) प्रवर्धक हेतु, 2Ω के संग्राहक प्रतिरोध के सिरों पर ध्वनि वोल्टता 2V है। मान लीजिए कि ट्रांजिस्टर का धारा प्रवर्धन गुणक 100 है। यदि आधार प्रतिरोध 1kΩ है तो निवेश संकेत (signal) वोल्टता और आधार धारा परिकलित कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 10:
एक के पश्चात् एक श्रेणीक्रम सोपानित में दो प्रवर्धक संयोजित किए गए हैं। प्रथम प्रवर्धक की वोल्टता लब्धि 10 और द्वितीय की वोल्टता लब्धि 20 है। यदि निवेश संकेत 0.01 वोल्ट | है तो निर्गम प्रत्यावर्ती संकेत का परिकलन कीजिए।
उत्तर:
यहाँ A1 = 10 तथा A2 = 20 Vi = 0.01 वोल्ट
अतः कुल वोल्टता लाभ A = A1 x A2 = 10 x 20 = 200
परन्तु A = ⇒ निर्गत वोल्टता V0 = A x Vi
V0 = (200 x 0.01) वोल्टे = 2 वोल्ट
प्रश्न 11:
कोई p-n फोटोडायोड 2.8eV बैंड अन्तराल वाले अर्द्धचालक से संविरचित है। क्या यह 6000 nm की तरंगदैर्ध्य का संसूचन कर सकता है?
उत्तर:
λ = 6000 nm = 6000 x 10-9 मी तरंगदैर्घ्य के संगत फोटॉन की ऊर्जा
= 3.3 x 10-20 जूल
= (3.3 x 10-20 1.6 x 10-19) eV
≈ 0.2 eV
यह फोटॉन ऊर्जा (0.2 eV) बैण्ड रिक्ति (28eV) से काफी कम है। अतः फोटो डायोड दी गयी तरंगदैर्घ्य का संसूचन नहीं कैर सकता है।
अतिरिक्त अभ्यास
प्रश्न 12:
सिलिकॉन परमाणुओं की संख्या 5 x 1028 प्रति m3 है। यह साथ ही साथ आर्सेनिक के 5 x 1022 परमाणु प्रति m3 और इंडियम के 5 x 1020 परमाणु प्रति m3 से अपमिश्रित किया गया है। इलेक्ट्रॉन और होल की संख्या का परिकलन कीजिए। दिया है क ni = 1.5 x 1016 m-3 दिया गया पदार्थ n-प्रकार का है या p-प्रकार का?
उत्तर:
यहाँ दाता परमाणुओं की सान्द्रता ND = 5 x 1022 m-3
ग्राही परमाणुओं की सान्द्रत NA = 5 x 1020 m-3
= 0.05 x 1022 m-3
नैज वाहक सान्द्रता ni = 1.5 x 1016 m-3
नैज परमाणु सान्द्रता N = 5 x 1028 m-3
माना अर्द्धचालक में होलों तथा मुक्त इलेक्ट्रॉनों की सान्द्रता क्रमशः nh तथा ne है।
अब ND – NA = (5 – 0.05) x 1022 = 4.95 x 1042 m-3
अर्द्धचालक की विद्युत उदासीनता के लिए
स्पष्ट है कि ne >> nh अतः इस अर्द्धचालक में इलेक्ट्रॉन बहुसंख्यक आवेश वाहक हैं तथा होल अल्पसंख्यक आवेश वाहक हैं।
इससे ज्ञात होता है कि यह n-प्रकार का अर्द्धचालक है।
प्रश्न 13:
किसी नैज अर्द्धचालक में ऊर्जा अन्तराल Eg का मान 1.2 eV है। इसकी होल गतिशीलता इलेक्ट्रॉन गतिशीलता की तुलना में काफी कम है तथा ताप पर निर्भर नहीं है। इसकी 600 K तथा 300 K पर चालकताओं का क्या अनुपात है? यह मानिए की नैज वाहक सान्द्रता n की ताप निर्भरता इस प्रकार व्यक्त होती है
जहाँ n0 एक स्थिरांक है।
उत्तर:
नैज अर्द्धचालक को ऊर्जा अन्तराल E = 1.2 eV
तथा परमताप T1 = 600K व T2 = 300K
माना उक्त तापों पर अर्द्धचालक की चालकताएँ क्रमशः σ1 वे σ2
अर्द्धचालक की चालकता निम्नलिखित सूत्र द्वारा प्राप्त होती है
σ = [neμe + nhμh}]
जहाँ μe तथा μh क्रमशः इलेक्ट्रॉनों तथा होलों की गतिशीलताएँ हैं।
प्रश्न 14:
किसी p-n सन्धि डायोड में धारी I को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है
जहाँ I0 को उत्क्रमित संतृप्त धारा कहते हैं, V डायोड के सिरों पर वोल्टता है तथा यह अग्रदिशिक बायस के लिए धनात्मक तथा पश्चदिशिक बायस के लिए ऋणात्मक है। V डायोड से प्रवाहित धारा है, KB बोल्ट्जमान नियतांक (8.6 x 10-5 eV/K) है तथा T परम ताप है। यदि किसी दिए गए डायोड के लिए I0 = 5 x 10-12 A तथा T= 300K है, तब
(a) 0.6 अग्रदिशिक वोल्टता के लिए अग्रदिशिक धारा क्या होगी?
(b) यदि डायोड के सिरों पर वोल्टता को बढ़ाकर 0.7V कर दें तो धारा में कितनी वृ जाएगी?
(c) गतिक प्रतिरोध कितना है?
(d) यदि पश्चदिशिक वोल्टता को 1 से 2V कर दें तो धारा का मान क्या होगा?
उत्तर:
दिया है, KB = 8.6 x 10-5 eCK-1 = 1.6 x 10-19 x 86 x 10-5 JK-1
I0 = 5 x 10-12A, T = 300K
(a) V= + 0.6V के लिए अग्र धारा I = ?
अभीष्ट धारा
अतः उत्क्रम वोल्टता के लिए धारा उत्क्रमित संतृप्त धारा के बराबर बनी रहती है।
इससे ज्ञात होता है कि पश्चदिशिक बायस के लिए डायोड का गतिक प्रतिरोध अनन्त होता है।
प्रश्न 15:
आपको चित्र 14.1 में दो परिपथ दिए गए हैं। यह दर्शाइए कि परिपथ (a) OR गेट की भाँति व्यवहार करता है जबकि परिपथ (b) AND गेट की भाँति कार्य करता है।
उत्तर:
चित्र 14.1(a) में पहला गेट NOR गेट है तथा इसके निर्गम ४’ को दूसरे गेट (NOT गेट) का निवेश बनाया गया है जिसका निर्गम Y है। अतः इसकी सत्यता सारणी निम्न प्रकार लिखी जा सकती है
यहाँ से स्पष्ट है Y = A + B
अतः दिया गया परिपथ (a) OR गेट की भाँति कार्य करेगा।
चित्र 14.1 (b) में दो NOT गेटों के निर्गमों को NOR गेट के निवेश बनाये गये हैं जिसका निर्गम Y है। अतः इसकी सत्यता सारणी निम्न प्रकार लिखी जा सकती है
यहाँ से स्पष्ट है कि Y = A : B, अत: दिया गया परिपथ (b) AND गेट की भाँति कार्य करेगा।
प्रश्न 16:
नीचे दिए गए चित्र 14.2 में संयोजित NAND गेट संयोजित परिपथ की सत्यमान सारणी बनाइए।
अतः इस परिपथ द्वारा की जाने वाली यथार्थ तर्क संक्रिया का अभिनिर्धारण कीजिए।
उत्तर:
यहाँ NAND गेट के दोनों निवेशी टर्मिनल एक साथ जोड़ दिये गये हैं। इस प्रकार एक निवेश के लिए एक ही निर्गम Y है। अतः दिए गये परिपथ की सत्यता सारणी निम्न प्रकार लिखी जा सकती है
अत: Y = Ā इसलिए दिया गया परिपथ NOT तर्क संक्रिया पर कार्य करेगा।
प्रश्न 17:
आपको निम्न चित्र 14.3 में दर्शाए अनुसार परिपथ दिए गए हैं जिनमें NAND गेट जुड़े हैं। इन दोनों परिपथों द्वारा की जाने वाली तर्क संक्रियाओं का अभिनिर्धारण कीजिए।
उत्तर:
चित्र 14.3 (a) में पहला गेट NAND गेट है जिसके निर्गम को NAND गेट से बनाये गये NOT गेट का निर्वेशं बनाया गया है। अतः सत्यता सारणी निम्नवत् होगी
स्पष्ट है कि निर्गम Y = A : B, अतः दिये गये परिपथ में AND संक्रिया अनुपालित है।
दिये गये चित्र 14.3 (b) में NAND गेटों से बने दो NOT गेटों के निर्गमों को तीसरे NAND गेट का निवेश बनाया गया है। जिसका निर्गम Y है। अतः सत्यता सारणी निम्नवत् होगी
अतः स्पष्ट है कि यहाँ निर्गम Y = A+ B, अत: दिये गये परिपथ में OR संक्रिया अनुपालित है।
प्रश्न 18:
चित्र 14.4 में दिए गए NOR गेट युक्त परिपथ की सत्यमान सारणी लिखिए और इस परिपथ द्वारा अनुपालित तर्क संक्रियाओं (OR, AND, NOT) को अभिनिर्धारित कीजिए। (संकेत : A = 0, B=1 तब दूसरे NOR गेट के निवेश A और B, 0 होंगे और इस प्रकार Y = 1 होगा। इसी प्रकार A और B के दूसरे संयोजनों के लिएY के मान प्राप्त कीजिए। OR, AND, NOT द्वारों की सत्यमान सारणी से तुलना कीजिए और सही विकल्प प्राप्त कीजिए।)
उत्तर:
पहला गेट NOR गेट है तथा दूसरा गेट भी NOR गेट है जिसके दोनों निवेशी सिगनलों को एक साथा जोड़ा गया है। पहले गेट का निर्गम दूसरे गेट का निवेश बनाया गया है। अत: सत्यता सारणी निम्नवत् होगी
यहाँ से स्पष्ट है कि Y = = A+B, अतः दिया गया परिपथ OR संक्रिया अनुपालित करेगा।
प्रश्न 19:
चित्र 14.5 में दर्शाएंगैकवल NOR गेटों से बने परिपथ की सत्यमान सारणी बनाइए। दोनों परिपथों द्वारा अनुपालित तर्क संक्रियाओं (OR, AND, NOT) को अभिनिर्धारित कीजिए।
उत्तर:
चित्र 14.5 (a) में दिया गया परिपथ NOR गेट है जिसके दोनों निवेशी टर्मिनले एक साथ जोड़ दिये गए हैं।
अत: इसकी सत्यता सारणी निम्नवत् होगी
स्पष्ट है कि Y = = Ā, अत: दिया गया परिपथ NOT संक्रिया को निरूपित करता है। चित्र 14.5 (b) में NOR गेट से बने दो NOT गेटों द्वारा दोनों निवेशी A व B को उत्क्रम करके उनको तीसरे NOR गेट के निवेश बनाया गया है जिसका निर्गम Y है। अतः सत्यता सारणी निम्नवत् होगी
यहाँ से स्पष्ट है कि Y = = A .B, अतः चित्र 14.5 (b) में प्रदर्शित परिपथ AND संक्रिया का अनुपालन करेगा।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1:
तीन पदार्थों के ऊर्जा बैण्ड चित्रों में दिए गए हैं, जहाँ V संयोजी बैण्ड तथा C चालन बैण्ड हैं। ये पदार्थ क्रमशः हैं (2014)
(i) चालक, अर्द्धचालक, कुचालक
(ii) अर्द्धचालक, कुचालक, चालक
(iii) कुचालक, चालक, अर्द्धचालक
(iv) अर्द्धचालक, चालक, कुचालक
उत्तर:
(iv) अर्द्धचालक, चालक, कुचालक
प्रश्न 2:
अर्द्धचालक में वैद्युत चालन होता है (2010, 17)
(i) कोटरों से
(ii) इलेक्ट्रॉनों से
(iii) कोटरों तथा इलेक्ट्रॉनों से
(iv) न कोटरों से, न इलेक्ट्रॉनों से
उत्तर:
(iii) कोटरों तथा इलेक्ट्रॉनों से
प्रश्न 3:
अर्द्धचालकों की चालकता
(i) ताप पर निर्भर नहीं करती
(ii) ताप बढ़ने पर घटती है
(iii) ताप बढ़ने पर बढ़ती है
(iv) ताप घटने पर घटती है
उत्तर:
(iii) ताप बढ़ने पर बढ़ती है।
प्रश्न 4:
परम शून्य ताप पर शुद्ध जर्मेनियम का क्रिस्टल व्यवहार करता है (2010, 12)
(i) पूर्ण चालक की भाँति
(ii) पूर्ण अचालक की भाँति
(iii) अर्द्धचालक की तरह
(iv) इनमें से किसी भी तरह का नहीं
उत्तर:
(ii) पूर्ण अचालक की भाँति
प्रश्न 5:
किसी n-प्रकार के अर्द्धचालक में आवेश वाहक होते हैं (2011)
(i) केवल इलेक्ट्रॉन
(ii) केवल कोटर (होल)
(iii) दोनों, अल्प संख्या में इलेक्ट्रॉन तथा अधिक संख्या में कोटर (होल)
(iv) दोनों, अधिक संख्या में इलेक्ट्रॉन तथा अल्प संख्या में कोटर (होल)
उत्तर:
(iv) दोनों, अधिक संख्या में इलेक्ट्रॉन तथा अल्प संख्या में कोटर (होल)
प्रश्न 6:
n-प्रकार के अर्द्धचालक में अल्पसंख्यक आवेश वाहक होते हैं (2010)
(i) इलेक्ट्रॉन
(ii) होल
(iii) इलेक्ट्रॉन तथा होल
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ii) होल
प्रश्न 7:
शुद्ध सिलिकॉन के n-टाइप अर्द्धचालक बनाने के लिए इसमें अपद्रव्य पदार्थ मिलाते हैं (2014)
(i) ऐलुमिनियम
(ii) लोहा
(iii) बोरॉन
(iv) ऐण्टीमनी
उत्तर:
(iv) ऐण्टीमनी
प्रश्न 8:
n-टाइप अर्द्धचालक में वैद्युत चालन का कारण है (2016)
(i) इलेक्ट्रॉन
(ii) कोटर
(iii) प्रोटॉन
(iv) पॉजिट्रॉन
उत्तर:
(i) इलेक्ट्रॉन
प्रश्न 9:
कोटर (छिद्र) अधिसंख्य आवेश वाहक होते हैं (2017)
(i) नैज अर्द्धचालकों में
(ii) n-प्रकार के अर्द्धचालकों में
(iii) p-प्रकार के अर्द्धचालकों में
(iv) धातुओं में
उत्तर:
(iii) p-प्रकार के अर्द्धचालकों में
प्रश्न 10:
p-प्रकार का अर्द्धचालक बनाने के लिए शुद्ध जर्मेनियम में मिलाया जाने वाला अपद्रव्य होता है (2011, 15, 17)
(i) फॉस्फोरस
(ii) ऐण्टीमनी
(iii) ऐलुमिनियम
(iv) आर्सेनिक
उत्तर:
(iii) ऐलुमिनियम
प्रश्न 11:
p-n सन्धि डायोड में उत्क्रम संतृप्ति धारा का कारण है केवल (2009)
(i) अल्पसंख्यक वाहक
(ii) बहुसंख्यक वाहक
(iii) ग्राही आयन
(iv) दाता आयन
उत्तर:
(i) अल्पसंख्यक वाहक
प्रश्न 12:
p-n सन्धि डायोड के अवक्षय परत में होते हैं (2012, 17)
(i) केवल कोटर
(ii) केवल इलेक्ट्रॉन
(iii) इलेक्ट्रॉन तथा कोटर दोनों
(iv) न इलेक्ट्रॉन तथा न कोटर
उत्तर:
(iv) न इलेक्ट्रॉन तथा न कोटर
प्रश्न 13:
जर्मेनियम डायोड की प्राचीर विभव लगभग है (2009)
(i) 0.1 वोल्ट
(ii) 0.3 वोल्ट
(iii) 0.5 वोल्ट
(iv) 0.7 वोल्ट
उत्तर:
(ii) 0.3 वोल्ट
प्रश्न 14:
एक n-p-n ट्रांजिस्टर में संग्राहक धारा 24 mA है। यदि संग्राहक की ओर 80% इलेक्ट्रॉन पहुँचते हों तो आधार धारा है (2014)
(i) 3 mA
(ii) 16 mA
(iii) 6 mA
(iv) 36 mA
उत्तर:
(iii) Ic = 24 mA, α = 80% = 0.8, IB = ?
प्रश्न 15:
एक ट्रांजिस्टर की आधार धारा 100 μA और संग्राहक धारा 2.15 mA है। β का मान होगा (2009)
(i) 21.5
(ii) 0.0465
(iii) 2.15 x 105
(iv) 10
उत्तर:
(i) 21.5
प्रश्न 16:
दो निवेशी टर्मिनलों वाले OR गेट का निर्गत केवल तब 0 होता है जब (2013,15)
(i) कोई एक निवेशी 1 हो
(ii) दोनों निवेशी 1 हों
(ii) कोई एक निवेशी 0 हो
(iv) इसके दोनों निवेशी 0 हों
उत्तर:
(iv) इसके दोनों निवेशी 0 हों।
प्रश्न 17:
दो निवेश A तथा B वाले ORगेट का निर्गत शून्य होने के लिए यह आवश्यक है कि (2011)
(i) A = 0, B = 0
(ii) A = 1, B = 0
(iii) A = 0, B = 1
(iv) A = 1, B = 1
उत्तर:
(i) A = 0, B = 0
प्रश्न 18:
OR गेट में एक निवेश 0 एवं दूसरा 1 है, निर्गत होगा (2017)
(i) 0
(ii) 1
(iii) 0 या 1
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ii) 1
प्रश्न 19:
निम्नांकित लॉजिक निकाय निरूपित करता है (2016)
(i) NAND गेट
(ii) OR. गेट
(iii) AND गेट
(iv) NOT गेट
उत्तर:
(ii) OR गेट
प्रश्न 20:
AND गेट में उच्च निर्गत प्राप्त करने के लिए निवेशी A व B होने चाहिए (2011)
(i) A = 0, B = 0
(ii) A = 1, B = 0
(iii) A = 0, B = 1
(iv) A = 1, B = 1
उत्तर:
(iv) A = 1, B = 1
प्रश्न 21:
AND गेट में एक निवेशी 0 तथा दूसरा 1 है। निर्गत होगा (2015)
(i) 0
(ii) 1
(iii) अनन्त
(iv) इनमें से कोई न
उतर:
(i) 0
प्रश्न 22:
बूलियन व्यंजक Y = A + B दिया गया है। यदि A= 1 तथा B= 1 हो, तो Y का मान होगा (2012)
(i) 0
(ii) 1
(iii) 11
(iv) 10
उत्तर:
(i) 0
[ सिंकेत A = 1 ⇒ Ā = 0 तथा B = 1 ⇒ = 0
A. = 1.0= 0. तथा B. = 1.0 = 0
∴ A. + B. = 0 +0= 0]
प्रश्न 23:
चिंध्र 14.8 में प्रदर्शित गेटों के संयोजन से निर्गतY = 1 प्राप्त करने के लिए [2015, 16]
(i) A = 1, B = 0, C = 1
(ii) A = 1, B = 1 C = 0
(iii) A = 0, B = 1, C =0
(iv) A = 1 B = 0, C = 0
उत्तर:
(i) A = 1, B = 0, C = 1
प्रश्न 24:
बाइनरी संख्याओं 1011 व 110 का योग है (2012, 13)
(i) 10001
(ii) 10011
(iii) 11011
(iv) 11101
उत्तर:
(i) 10001
प्रश्न 25:
निम्नलिखित में से कौन-सा बाइनरी योग नियमानुसार नहीं है? (2013)
(i) 0 + 0= 0
(ii) 0 + 1 = 1
(iii) 1 +0 = 1
(iv) 1 + 1 = 1
उत्तर:
(iv) 1 + 1 = 1
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
ऊर्जा बैण्ड किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी निश्चित लघु ऊर्जा परिसर में अत्यन्त निकट रूप से स्थित ऊर्जा स्तरों की एक बड़ी संख्या का समूह ऊर्जा बैण्ड कहलाता है।
प्रश्न 2:
ठोसों में उपस्थित ऊर्जा बैण्डों के नाम लिखिए। (2014, 15, 17)
उत्तर:
चालन बैण्ड तथा संयोजी बैण्ड।
प्रश्न 3:
सिलिकॉन में वर्जित बैण्ड की ऊर्जा कितनी होती है?
उत्तर:
1.1 eV लगभग।
प्रश्न 4:
अर्द्धचालक क्या होता है? किसी एक अर्द्धचालक का नाम लिखिए। (2009)
उत्तर:
वे ठोस पदार्थ जिनकी वैद्युत चालकता, चालकों से कम; परन्तु अचालकों से अधिक होती है, अर्द्धचालक कहलाते हैं। उदाहरण–जर्मेनियम।।
प्रश्न 5:
ताप बढ़ाने पर अर्द्धचालक के प्रतिरोध में क्या परिवर्तन होता है? (2011)
या
किसी अर्द्धचालक का ताप बढाने से उसकी वैद्युत चालकता क्यों बढ़ जाती है?
उत्तर:
ताप बढ़ाने पर सहसंयोजक बन्ध टूट जाने के कारण अर्द्धचालक के मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ जाती है जिससे अर्द्धचालक की चालकता बढ़ जाती है, अर्थात् उसका प्रतिरोध कम हो जाता है।
प्रश्न 6:
जर्मेनियम को किस प्रकार से p-टाइप का अर्द्धचालक बनाया जाता है?
उत्तर:
इसमें त्रिसंयोजी अपद्रव्य (ऐलुमिनियम) मिलाकर।
प्रश्न 7:
p-क्रिस्टल तथा n- क्रिस्टल में बहुसंख्यक आवेश वाहकों के नाम बताइए। (2013)
उत्तर:
p-क्रिस्टल में बहुसंख्यक आवेश वाहक कोटर तथा n-क्रिस्टल में बहुसंख्यक आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं।
प्रश्न 8:
शुद्ध अर्द्धचालक में जब कोई अपद्रव्य मिलाया जाता है, तो क्या होता है? (2009)
उत्तर:
चालकता बढ़ जाती है।
प्रश्न 9:
n-टाइप सिलिकॉन अर्द्धचालक बनाने के लिए शुद्ध सिलिकॉन में कौन-सा अपद्रव्य मिलाना चाहिए? इस अपद्रव्य तत्व की संयोजकता क्या होगी? (2017)
उत्तर:
आर्सेनिक (अथवा ऐन्टिमनी), संयोजकता-5
प्रश्न 10:
p-प्रकार का अर्द्धचालक क्या है? (2012)
उत्तर:
शुद्ध जर्मेनियम अर्द्धचालक क्रिस्टल में त्रिसंयोजी अपद्रव्य मिलाने से बना वह बाह्य अर्द्धचालक जिसमें आवेश वाहक धनावेशित कोटर होते हैं, p-प्रकार का अर्द्धचालक कहलाता है।
प्रश्न 11:
सन्धि डायोड में अवक्षय परत से आप क्या समझते हैं? (2010)
या
p – n डायोड में अवक्षय परत से आप क्या समझते हैं? (2011)
या
p – n संधि डायोड में अवक्षय परत का अर्थ समझाइए। (2017)
उत्तर:
अक्षय परत-सन्धि डायोड में p – n सन्धि के निकट दोनों ओर वह क्षेत्र जिसमें कोई स्वतन्त्र आवेश वाहक उपलब्ध नहीं होते हैं, अवेक्षय परत कहलाती है।
प्रश्न 12:
अवक्षय परत की चौड़ाई पर क्या प्रभाव पड़ेगा यदि अग्र-अभिनत विभव बढ़ा दिया जाए? (2013)
उत्तर:
कम हो जाएगी।
प्रश्न 13:
उत्क्रम अभिनत p – n सन्धि डायोड में ऐवेलांश भंजन का क्या अर्थ है? (2012)
उत्तर:
ट्रैवेलांश भंजन:
उत्क्रम अभिनति वोल्टेज के बहुत अधिक हो जाने पर, अल्पसंख्यक वाहक काफी अधिक गतिज ऊर्जा अर्जित कर लेते हैं जिससे कि सन्धि के समीप सह-संयोजक बन्ध टूट जाते हैं। तथा इलेक्ट्रॉन- कोटर युग्म मुक्त हो जाते हैं। ये आवेश वाहक भी त्वरित होकर उसी प्रकार से अन्य इलेक्ट्रॉन-कोटर युग्मों को मुक्त करते हैं। यह प्रक्रिया संचयी होती है तथा इलेक्ट्रॉन-कोटर युग्म बहुत बड़ी संख्या में मुक्त हो जाते हैं। तब उत्क्रम धारा का मान एकाएक बहुत बढ़ जाता है। इस स्थिति को ‘ऐवेलांश भंजन’ कहते हैं तथा इसमें धारा के कारण उत्पन्न ऊष्मा से सन्धि के क्षतिग्रस्त होने की आशंका रहती है। वह उत्क्रम वोल्टेज जिस पर उत्क्रम धारा एकाएक बढ़ जाती है, ‘भंजक वोल्टता’ कहलाता है।
प्रश्न 14:
दिए गये चित्र 14.9 में संन्थि डायोड D अग्र अभिनत है अथवा उत्क्रम-अभिनत है? (2014)
उत्तर:
दिय गये चित्र में सन्धि डायोड D उत्क्रम अभिनत है।
प्रश्न 15:
एक p-n सन्धि डायोड का अग्र अभिनति में प्रतिरोध 20 ओम है। यदि अग्र वोल्टेज में 0.025 वोल्ट का परिवर्तन करें, तो डायोड धारा में कितना परिवर्तन होगा ?
उत्तर:
प्रश्न 16:
जेनर डायोड का प्रतीक चिन्ह बनाइए। (2017)
उत्तर:
प्रश्न 17:
फोटो-डायोड में pen सन्धि डायोड किस प्रकार से संयोजित किया जाता है। इसका क्या उपयोग है? (2016)
उत्तर:
फोटो डायोड प्रकाश संवेदनशील अर्द्धचालक से बना p – n सन्धि डायोड है, जो उत्क्रम अभिनति में कार्य करता है।
फोटो डायोड का उपयोग प्रकाश संसूचक के रूप में प्रकाश संचालित कुंजियों तथा कम्प्यूटर पंच का आदि के पढ़ने में किया जाता है।
प्रश्न 18:
LED का पूरा नाम लिखिए। (2015)
उत्तर:
Light Emitting Diode (प्रकाश उत्सर्जक डायोड)
प्रश्न 19:
p-n-p तथा n-p-n ट्रांजिस्टरों के नामांकित प्रतीक चिह्न (परिपथ प्रतीक) बनाइए। (2010, 12, 16, 17)
उत्तर:
प्रश्न 20:
n-p-n ट्रांजिस्टर से आप्त क्या समझते हैं? (2012)
उत्तर:
वह ट्रांजिस्टर जिसमें 2-टाइप अर्द्धचालक की एक बहुत महीन तराश (slice) को n-टाइप अर्द्धचालकों के दो छोटे-छोटे गुटकों के बीच दबाकर बनाया जाता है,n-p-n ट्रांजिस्टर कहलाता है।
प्रश्न 21:
समझाइए कि ट्रांजिस्टर एक धारा संचालित युक्ति है, जबकि ट्रायोड वाल्व वोल्टता संचालित युक्ति है।
या
ट्रायोड वाल्व तथा ट्रांजिस्टर में अन्तर बताइए। (2010)
उत्तर:
ट्रायोड में कैथोड से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन, ग्रिड में से होकर संग्राहक प्लेट (ऐनोड) पर पहुँचते हैं। ट्रांजिस्टर में उत्सर्जक से प्राप्त इलेक्ट्रॉन (अथवा कोटर) आधार में से होकर संग्राहक पर पहुँचते हैं। परन्तु इन दोनों युक्तियों में प्रयुक्त भौतिक प्रक्रियाएँ भिन्न-भिन्न हैं। ट्रायोड में धारा का नियन्त्रण ग्रिड तथा कैथोड के बीच के वैद्युत-क्षेत्र से होता है। अत: धारा ग्रिड-वोल्टता (कैथोड के सापेक्ष) पर निर्भर करती है तथा काफी बड़े परिसर में धारा में परिवर्तन ग्रिड-वोल्टता में परिवर्तन के लगभग अनुक्रमानुपाती होता है। अतः ट्रायोड वोल्टता-संचालित युक्ति है।
इसके विपरीत, ट्रांजिस्टर में संग्राहक-धारा आधार-धारा से नियन्त्रित होती है जो उत्सर्जक-धारा से प्राप्त की जाती है। संग्राहक-धारा में परिवर्तन आधार-धारा में परिवर्तन के अनुक्रमानुपाती होता है (न कि आधार-विभव में परिवर्तन के)। अतः ट्रांजिस्टर ‘धारा-संचालित युक्ति है।
प्रश्न 22:
ट्रांजिस्टर की संग्राहक धारा, आधार धारा तथा उत्सर्जक धारा में क्या सम्बन्ध होता है? (2013, 16)
उत्तर:
उत्सर्जक धारा = आधार धारा + संग्राहक धारा
अर्थात् iE = iB + iC
प्रश्न 23:
n-p-n तथाp-n-p ट्रांजिस्टरों में कौन-सा ट्रांजिस्टर अधिक श्रेष्ठ है और क्यों ? (2010, 17)
उत्तर:
n-p-n ट्रांजिस्टर में आवेश वाहक मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं तथा p-n-p ट्रांजिस्टर में आवेश वाहक कोटर होते हैं। परन्तु कोटरों की गतिशीलता से मुक्त इलेक्ट्रॉनों की गतिशीलता अधिक होती है। इसीलिए p-n-p की तुलना में n-p-n ट्रांजिस्टर अधिक उपयोगी है।
प्रश्न 24:
एक उभयनिष्ठ आधार प्रवर्धक में निर्गत परिपथ का लोड प्रतिरोध 600Ω तथा निवेशी परिपथ का प्रतिरोध 150Ω है। यदि धारा प्रवर्धन 0.90 हो, तो वोल्टता प्रवर्धन की गणना कीजिए। (2010)
उत्तर:
∵ वोल्टता प्रवर्धन A = α x प्रतिरोध लाभ = α x
प्रश्न 25:
एक ट्रांजिस्टर परिपथ की उत्सर्जक धारा में 1.8 मिली-ऐम्पियर का परिवर्तन करने पर संग्राहक धारा में 1.6 मिली-ऐम्पियर का परिवर्तन होता है। इसके लिए परिपथ की आधार धारा में परिवर्तन का मान ज्ञात कीजिए। (2012)
उत्तर:
ΔiE = 1.8 मिली ऐम्पियर, ΔiC= 1.6 मिली ऐम्पियर
आधार धारा में परिवर्तन ΔiB = ΔiE – ΔiC
= 1.8-1.6
= 0.2 मिली ऐम्पियर
प्रश्न 26:
उभयनिष्ठ आधार परिपथ में किसी ट्रांजिस्टर का धारा लाभ 0.98 है। यदि उत्सर्जक धारा में 5.0 मिली ऐम्पियर का परिवर्तन हो तो संग्राहक धारा में परिवर्तन ज्ञात कीजिए। (2015)
उत्तर:
α = 0.98, ΔiE = 5.0 मिलीऐम्पियर, ΔiC = ?
∴ ΔiC = α .ΔiE = 0.98 x 5
= 4.9 मिली ऐम्पियर
प्रश्न 27:
एक ट्रांजिस्टर प्रवर्धक के लिए β = 30, लोड प्रतिरोध RL = 4kΩ तथा निवेशी प्रतिरोध Ri = 400 2 है। इसका वोल्टता प्रवर्धन ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 28:
डिजिटल संकेत में कितने मान होते हैं?
उत्तर:
डिजिटल संकेत में केवल दो मान होते हैं।
प्रश्न 29:
बाइनरी संख्याओं 1001 तथा 101 का योग एवं अन्तर ज्ञात कीजिए (2011)
उत्तर:
प्रश्न 30:
(a) बाइनरी संख्याओं 11011 तथा 1101 का योग बाइनरी पद्धति में ज्ञात कीजिए। (2013)
(b) बाइनरी संख्याओं 11010 तथा 1001का योग ज्ञात कीजिए। (2009, 12)
उत्तर:
प्रश्न 31:
दशमलव संख्याओं 21 तथा 43 को उनके तुल्य बाइनरी संख्याओं में रूपान्तरित कीजिए। (2011)
उत्तर:
प्रश्न 32:
मूल लॉजिक गेटों के नाम लिखिए।
उत्तर:
OR, AND तथा NOT गेट।।
प्रश्न 33:
AND, NOT, 08 गेट को लॉजिक गेट क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि इनके निर्गम तथा निवेश के बीच एक तर्कपूर्ण सम्बन्ध होता है।
प्रश्न 34:
‘न’ द्वार को अन्य किस नाम से जाना जाता है तथा क्यों?
उत्तर:
“प्रतिलोमक द्वार’ क्योंकि यह निवेशी अवस्था का प्रतिलोम कर देता है।
प्रश्न 35:
NOT गेट का परिपथ चिह्न बनाइए। (2010, 17)
उत्तर:
प्रश्न 36:
NOT गेट में कितने निवेश तथा कितने निर्गम होते हैं?
उत्तर:
1 निवेश तथा 1 निर्गमा
प्रश्न 37:
NOT गेट की सत्यता सारणी दीजिए।
उतर:
प्रश्न 38:
OR गेट का तर्क प्रतीक (लॉजिक प्रतीक) दीजिए। (2009, 10, 15, 17)
उत्तर:
प्रश्न 39:
OR गेट की सत्यती सारणी दीजिए। (2009, 10, 11, 15, 17)
उत्तर:
प्रश्न 40:
OR गेट का बूलियन व्यंजक लिखिए। (2017)
उत्तर:
A + B = Y
प्रश्न 41:
नीचे दिये गये लॉजिक परिपथ में लॉजिक गेटों 1 व 2 को पहचानिए (2009)
उत्तर:
(1) OR गेट तथा (2) NOT गेट।
प्रश्न 42:
AND गेट का लॉजिक प्रतीक बनाइए। (2009, 10, 17)
उत्तर:
प्रश्न 43:
AND गेट की सत्यता सारणी दीजिए। (2010, 12)
उत्तर:
प्रश्न 44:
AND गेट के लिए बूलियन व्यंजक तथा सत्यता सारणी लिखिए। (2009)
या
AND गेट का बूलियन एक्सप्रेशन लिखिए।
या
AND गेट का प्रतीक चिह्न, बूलियन व्यंजक एवं सत्यता सारणी बनाइए। (2016, 18)
उत्तर:
बूलियन व्यंजक Y = A : B
प्रश्न 45:
NAND गेट का प्रतीक चिह्न बनाइए तथा इसका बूलियन व्यंजक लिखिए। (2015)
उत्तर:
प्रश्न 46:
NOR गेट का लॉजिक प्रतीक बनाइए।
उतर:
प्रश्न 47:
निम्न प्रदर्शित सत्यता सारणी किस गेट को व्यक्त करती है?
उत्तर:
NOR गेट।
प्रश्न 48:
बूलियन व्यंजक Y = A + B दिया गया है। यदि A = 1 तथा B = 1 हो, तो Y का
मान ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
यदि A = 1
तथा B = 1
तब = 0
तथा = 0
∴ Y = 1(0) + 1(0) = 0+0= 0
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
ऊर्जा बैण्ड के आधार पर चालक, अचालक एवं अर्द्धचालकों में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2017)
उत्तर:
चालक (Conductors)-“वे पदार्थ जिनमें वैद्युत आवेश आसानी से प्रवाहित हो सके तथा जिनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन बड़ी संख्या में उपस्थित रहते हों, चालक कहलाते हैं। जैसे-चाँदी, ताँबा, ऐलुमिनियम, सोना, पारा इत्यादि। चालकों का प्रतिरोध ताप-गुणांक धनात्मक होता है इसीलिए ताप के बढ़ने पर इनका वैद्युत प्रतिरोध बढ़ता है, परन्तु वैद्युत चालकता कम होती है।
अचालक (Insulators):
“वे पदार्थ जिनमें वैद्युत आवेश कठिनता चालन से प्रवाहित हो तथा जिनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते अथवा कम संख्या में होते हैं, अचालक कहलाते हैं। इन पदार्थों के बाहरी कक्षा के | वजित ऊर्जा अन्तराल इलेक्ट्रॉन दृढ़तापूर्वक नाभिक से बँधे रहते हैं इसलिए। पर इनमें वैद्युत आवेशों का प्रबंह कठिनता से होता है। इनकी प्रतिरोधकता बहुत अधिक अर्थात् लगभग अनन्त होती है; जैसे—लकड़ी, ऐबोनाइट, काँच, अभ्रक आदि।
अर्द्ध-चालक (Semi-conductors)–“वे पदार्थ जिनकी वैद्युत-चालकता चालकों एवं अचालकों के मध्ये होती है, अर्द्ध-चालक कहलाते हैं। जैसे-कार्बन, सिलिकॉन (Silicon) तथा जर्मेनियम अर्द्ध-चालक हैं। ये पदार्थ न तो पूर्ण रूप से चालक ही होते हैं और न ही पूर्ण रूप से अचालक। अर्द्ध-चालकों में बाहरी इलेक्ट्रॉन न तो परमाणु से इतनी दृढ़ता से बँधे होते हैं जितने कि अचालकों में
और ने इतने ढीले बँधे होते हैं जितने कि चालकों में इनका प्रतिरोध ताप-गुणांक ऋणात्मक होता है। इसीलिए ताप के बढ़ने पर इनका वैद्युत प्रतिरोध घटता है, परन्तु इनकी वैद्युत-चालकता ताप बढ़ने पर बढ़ती है तथा ताप घटने पर घटती है। परम शून्य ताप पर अर्द्ध-चालक एक आदर्श अचालक की भाँति व्यवहार करता है।
प्रश्न 2:
किसी अर्द्धचालक को मादित करने से क्या तात्पर्य है? इस क्रिया से अर्द्धचालक की चालकता पर पड़ने वाले प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक ‘शुद्ध’ अर्द्धचालक, जिसमें कोई अपद्रव्य न मिला हो, ‘निज अर्द्धचालक’ कहलाता है। इस प्रकार, शुद्ध जर्मेनियम तथा सिलिकॉन अपनी प्राकृतिक अवस्था में निज़ अर्द्धचालक हैं। निज अर्द्धचालकों की वैद्युत चालकता अति अल्प होती है। परन्तु यदि किसी ऐसे पदार्थ की बहुत थोड़ी-सी मात्रा, जिसकी संयोजकता 5 अथवा 3 हो, शुद्ध जर्मेनियम (अथवा सिलिकॉन) क्रिस्टल में अपद्रव्य के रूप में मिश्रित कर दें तो क्रिस्टल की चालकता काफी बढ़ जाती है। मिश्रित करने की क्रिया को ‘अपमिश्रण’ । या ‘मादित करना’ कहते हैं। उदाहरणार्थ, 108 जर्मोनियम परमाणुओं में 1 अपद्रव्य परमाणु मिश्रित कर देने पर, जर्मोनियम की चालकता 16 गुना तक बढ़ जाती है। ऐसे अर्द्धचालकों को बाह्य अथवा अपद्रव्य अथवा अपमिश्रित अर्द्धचालक कहते हैं। इन अर्द्धचालकों में मिश्रित किये जाने वाले अपद्रव्य की मात्रा को नियन्त्रित करके इच्छानुसार चालकता अर्जित की जा सकती है।
प्रश्न 3:
n-प्रकार का अर्द्धचालक क्या है? इसकी रचना समझाइए। (2010)
या
n-टाइप अर्द्धचालक से क्या तात्पर्य है? (2012)
उत्तर:
n-टाइप अर्द्धचालक (n-Type Semi-conductor)-जब 5 संयोजकता वाला (अर्थात् पंच संयोजी) कोई अपद्रव्य; जैसे—आर्सेनिक, फॉस्फोरस, ऐण्टीमनी आदि शुद्ध जर्मेनियम अर्द्धचालक में मिला दिया जाता है, तो इस अशुद्ध अर्द्धचालक में अपद्रव्य पदार्थ के परमाणु के पाँच संयोजक इलेक्ट्रॉनों में से चार इलेक्ट्रॉन इसके निकटतम चार जर्मेनियम परमाणुओं में प्रत्येक के एक-एक इलेक्ट्रॉन के साथ साझेदारी करके सह-संयोजक बन्ध बना लेते हैं तथा शेष पाँचवाँ संयोजक इलेक्ट्रॉन अशुद्ध क्रिस्टल में गति करने के लिए स्वतन्त्र रह जाता है (चित्र 14.22)। यह ऋण आवेश वाहक ही अर्द्धचालक में वैद्युत चालन के लिए उत्तरदारी है।
इस प्रकार शुद्ध जर्मेनियम में पंच संयोजी अपद्रव्य मिलाने से मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ जाती है। जिससे अर्द्धचालक की वैद्युत चालकता भी बढ़ जाती है।
अशुद्ध अर्द्धचालक के सिरों के बीच वैद्युत विभवान्तर स्थापित करने से अर्द्धचालक में वैद्युत-क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इसके कारण मुक्त इलेक्ट्रॉन, क्षेत्र की विपरीत दिशा में गति करने लगते हैं, जिससे अर्द्धचालक में धारा प्रवाह होने लगता है।
इस प्रकार के अपद्रव्य मिले अशुद्ध अर्द्धचालक में आवेशवाहक ऋणावेशित मुक्त इलेक्ट्रॉन ही होते हैं, इसीलिए इस प्रकार के अशुद्ध अर्द्धचालक को n-टाइप अर्द्धचालक कहते हैं।
n-टाईप अर्द्धचालक में मिला पंच संयोजी अपद्रव्य परमाणु मुक्त इलेक्ट्रॉन देता है। अत: इस प्रकार के अपद्रव्य परमाणुओं को दाता परमाणु (donor atoms) कहते हैं तथा n-टाइप शुद्ध अर्द्धचालक को दाता प्रकार का (donor type) अर्द्धचालक भी कहते हैं।
n-प्रकार अर्द्धचालक क्रिस्टल में जितने चलनशील इलेक्ट्रॉन होते हैं उतनी ही संख्या में स्थिर धनात्मक अपद्रव्यदाता आयन होते हैं।
प्रश्न 4:
एक Pnp सन्धि डायोड का अग्र अभिनत की स्थिति में प्रतिरोध 25Ω है। अग्र अभिनत विभव में कितना परिवर्तन किया जाए कि धारा में 2 मिली ऐम्पियर का परिवर्तन हो जाए ?
उत्तर:
अग्र अभिनत स्थिति में p-n सन्धि डायोड का प्रतिरोध R = 25Ω तथा धारा में परिवर्तन ΔI = 2 मिली ऐम्पियर = 2 x 10-3 ऐम्पियर।।
माना अग्र अभिनत विभव में परिवर्तन ΔVहै।
R =
ΔV= R x ΔI = 25 ओम x 2 मिली ऐम्पियर
= 50 मिली ऐम्पियर
प्रश्न 5:
फोटो डायोड प्रकाश संसूचक के रूप में कार्य करता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए। (2017)
उत्तर:
फोटो-डायोड एक प्रकाश संवेदनशील अर्द्धचालक से बनी ऐसी p – n सन्धि है जो पश्च दिशिक होती है। यह डायोड सन्धि प्रकाश-प्रभाव (junction photo effect) अर्थात् किसी p-0 सन्धि पर आपतित प्रकाश के प्रभाव पर आधारित है।
फोटो-डायोड का निर्माण करने हेतु एक p-m सन्धि जिसका p-क्षेत्र काफी पतला (thin) व पारदर्शी हो, को एक काँच या प्लास्टिक के आवरण में इस प्रकार रखते हैं कि सन्धि के ऊपरी भाग पर प्रकाश सरलता से पहुँच सके। आवरण में प्रयुक्त प्लास्टिक के शेष बचे भागों पर कालिख अथवा काला पेन्ट कर देते हैं। कभी-कभी इन भागों को धातु की चादरों से भी ढक दिया जाता है। यह सम्पूर्ण इकाई (unit) काफी सूक्ष्म लगभग 2 से 3 मिमी की कोटि की होती है।
फोटो-डायोड का कार्यकारी विद्युतीय परिपथ चित्र 14.24 प्रकाश (hν) में प्रदर्शित है। जब p-n सन्धि पर बिना प्रकाश डाले । पर्याप्त वोल्टेज (लगभग 0.1 वोल्ट) लगाकर पश्च दिशिक किया जाता है, तो सन्धि के दोनों ओर के अल्पसंख्यक वाहक सन्धि को पार करते हैं (क्योंकि पश्च दिशिक सन्धि अल्पसंख्यक वाहकों को सन्धि पार करने में सहयोग करती है)। जिसके फलस्वरूप एक संतृप्त (saturated) परन्तु लघु धारा (कुछ μ A की) प्रवाहित होने लगती है।
जिसकी दिशा सन्धि पर n-क्षेत्र से p-क्षेत्र की ओर होती है। इस धारा को अदीप्त धारा (dark current) कहते हैं। अब यदि इसी समय p-n सन्धि पर इतनी ऊर्जा का प्रकाश जिसका परिमाण सन्धि के निषिद्ध ऊर्जा-अन्तराल Eg से अधिक (hν > Eg) हो, डाला जाये, तो p-n सन्धि पर आपतित फोटॉन अर्द्धचालक पदार्थ के सहसंयोजी बन्धों (covalent bonds) को तोड़कर इलेक्ट्रॉन-कोटर युग्म उत्पन्न करने में सक्षम हो जाते हैं। अत: सन्धि के समीप अल्पसंख्यक वाहकों का घनत्व बढ़ जाने के कारण सन्धि के पश्च दिशिक होने के फलस्वरूप भी जब ये वाहक सन्धि को पार करेंगे तो यह सन्धि पर पश्च दिशिक के कारण उत्पन्न धारा की प्रबलता को बढ़ा देंगे। जिसके परिणामस्वरूप परिपथ की कुल धारा का मान बढ़ जायेगा। इस धारा को प्रकाश-धारा (photo current or photoconductive current) कहते हैं तथा यह आपतित प्रकाश के फ्लक्स के साथ लगभग समानुपात में बढ़ती है। फोटो-डायोडं की सन्धि को प्रदीप्त करने के पश्चात् । सन्धि पर पहले से ही उपलब्ध संतृप्त धारा के मान में हुए परिवर्तन को ज्ञात करके सन्धि पर आपतित प्रकाश की तीव्रता की गणना की जा सकती है। इस प्रकार यह डायोड प्रकाश संसूचक (light detector) की भॉति व्यवहार करता है। इस डायोड का उपयोग प्रकाश संचालित कुंजियों (light operated switches), कम्प्यूटर पंच का (computer punched cards) आदि को पढ़ने में किया जाता है।
प्रश्न 6:
प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LED) क्या है। एक परिपथ आरेख खींचिए और इसकी क्रियाविधि समझाइए। प्रचलित लैम्पों की तुलना में इसके लाभ बताइए।
उत्तर:
‘LED’ एक ऐसी युक्ति है जो बायसिंग बैटरी की विद्युतीय ऊर्जा का विकिरण ऊर्जा (दृश्य व अदृश्य प्रकाश व अवरक्त विकिरण) में परिवर्तन करती है। क्रियाविधि: जब LED को अग्र दिशिक किया जाता है, तो n-क्षेत्र के इलेक्ट्रॉन कोटर सन्धि के पार करके p-क्षेत्र में तथा p-क्षेत्र के बहुसंख्यक वाहक n-क्षेत्र में पहुँच जाते हैं। इस प्रकार सन्धि सीमा पर अल्पसंख्यक वाहकों का सान्द्रण साम्यावस्था से अधिक हो जाता है। अतः पुनः साम्य स्थापित करने के लिए सन्धि सीमा के दोनों ओर ये अतिरिक्त अल्पसंख्यक वाहक बहुसंख्यक वाहकों से संयोजित हो जाते हैं। संयोजन की इस प्रक्रिया में मुक्त हुई ऊर्जा, विद्युत चुम्बकीय तरंगों (फोटॉनों) के रूप में बाहर आती है। अब ऐसे फोटॉन जिनकी ऊर्जा LED के पदार्थ के निषिद्ध ऊर्जा-बैण्ड की ऊर्जा के बराबर या उससे थोड़ी कम (hν < Eg) होती है, डायोड के बाहर आ जाते हैं। जैसे-जैसे अग्र धारा (forward current) का मान बढ़ता है उत्सर्जित प्रकाश की तीव्रता भी धीरे-धीरे बढ़कर महत्तम मान प्राप्त कर लेती है।
वे डायोड जिनका उपयोग संसूचन तथा शक्ति दिष्टकरण के लिए किया जाता है, अर्द्धचालकों, जैसे : जर्मेनियम व सिलिकॉन के बने होते हैं। परन्तु इन अंर्द्धचालकों से बने LED दृश्य क्षेत्र (visible region) के विकिरणों का उत्सर्जन करने में असमर्थ होते हैं। दृश्य प्रकाश उत्सर्जित करने वाले LED का निषिद्ध ऊर्जा-अन्तराल कम से कम 1.8 eV का होना चाहिए। जो कि अर्द्धचालकों में जर्मेनियम या सिलिकॉन किसी का भी नहीं होता।
प्रचलित लैम्पों की तुलना में लाभ
प्रचलित लैम्पों की तुलना में इसके निम्नलिखित लाभ हैं
- LED की दक्षता प्रचलित लैम्पों से कई गुना अधिक होती है, क्योंकि इनके संचालन हेतु काफी कम वैद्युत शक्ति की आवश्यकता होती है।
- आकार में ये अपेक्षाकृत काफी छोटे होते हैं, अतः ये अधिक स्थान नहीं घेरते।
- प्रचलित लैम्पों की तुलना में इनका जीवन काल काफी अधिक होता है।
- इनके पूर्ण प्रदीपन (full illumination) के लिए लगभग नगण्य समय की आवश्यकता होती है।
- अन्य प्रचलित लैम्पों की तुलना में LED से उत्सर्जित प्रकाश में ऊष्मीय ऊर्जा लगभग नगण्य होती | हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि LED ठण्डा प्रकाश (cool light) देता है। साथ-ही-साथ
यह पर्यावरण तथा पारिस्थितिक तन्त्र (ecosystem) को भी अधिक क्षति नहीं पहुंचाता है।
प्रश्न 7:
एक n-p-n ट्रांजिस्टर में 10-6 सेकण्ड में 1010 इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक में प्रवेश करते हैं।
2% इलेक्ट्रॉन आधार में क्षय हो जाते हैं। उत्सर्जक धारा (IE), आधार धारा (IB) तथा संग्राहक धारा (IC) के मान ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
यहाँ t=10-6 सेकण्ड में उत्सर्जक में प्रवेश करने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या n=1010 तथा इलेक्ट्रॉन पर आवेश e=1.6 x 10-19
कूलॉम
प्रश्न 8:
एक n-p-n ट्रांजिस्टर को उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में जोड़ा गया है। इसमें संग्राहक संभरण 8 वोल्ट है तथा 8002 के लोड प्रतिरोध के ऊपर जो संग्राहक परिपथ में जोड़ा गया है वोल्टता पात 0.8 वोल्ट है। यदि धारा प्रवर्धन गुणांक 25 हो, तो संग्राहक उत्सर्जक वोल्टता और आधार धारा ज्ञात कीजिए। यदि ट्रांजिस्टर का आन्तरिक प्रतिरोध 200Ω है. तो वोल्टता लाभ एवं शक्ति लाभ की गणना कीजिए। परिपथ आरेख भी खींचिए।
उत्तर:
परिपथ आरेख चित्र 14.27 में प्रदर्शित है।
प्रश्न 9:
उभयनिष्ठ उत्सर्जक धारा-लाभ (β) एवं उभयनिष्ठ आधार धारा-लाभ (α) के बीच सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
β तथा α के बीच सम्बन्ध
प्रश्न 10:
एक उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रवर्धक में आधार धारा में 50 माइक्रो-ऐम्पियर की वृद्धि होने पर संग्राहक धारा में 1.0 मिली-ऐम्पियर की वृद्धि हो जाती है। धारा लाभ β की गणना कीजिए। उत्सर्जक धारा में परिवर्तन भी ज्ञात कीजिए। (2017)
उत्तर:
प्रश्न 11:
किसी उभयनिष्ठ उत्सर्जक ट्रांजिस्टर का निवेशी प्रतिरोध 1000Ω है। इसकी आधार धारा में 10 μA का परिवर्तन करने से संग्राहक धारा में 2mA की वृद्धि हो जाती है। यदि परिपथ में प्रयुक्त लोड प्रतिरोध 5kΩ हो, तो प्रवर्धक के लिए गणना कीजिए
(a) धारा लाभ (Current gain)
(b) वोल्टता लाभ (Voltage gain)
उत्तर:
प्रश्न 12:
उभयनिष्ठ उत्सर्जक ट्रांजिस्टर प्रवर्धक के लिए धारा लाभ 59 है। यदि उत्सर्जक धारा 6.0mA हो तो ज्ञात कीजिए (a) संग्राहक धारा, (b) आधार धारा।
उत्तर:
यहाँ, B = 59; IE= 6.0mA
प्रश्न 13:
उभयनिष्ठ उत्सर्जक ट्रांजिस्टर प्रवर्धक के लिए 2.0 kΩ संग्राहक प्रतिरोध के सिरों पर ऑडियो सिगनल वोल्टता 2.0 वोल्ट है। धारा प्रवर्धन गुणांक 100 मानते हुए 2.0V की VBB सप्लाई के साथ श्रेणीबद्ध प्रतिरोध RB का मान क्या होना चाहिए ताकिd.c. आधार धारा सिगनल धारा की 10 गुनी हो। संग्राहक प्रतिरोध के सिरों पर भी d.c, विभव पतन ज्ञात कीजिए।(VBE = 0.6 वोल्ट)
उत्तर:
प्रश्न 14:
तर्क (लॉजिक) गेट से आप क्या समझते हैं? (2012)
या
लॉजिक गेट क्या होते हैं ? (2013, 15)
या
निम्नलिखित सत्यता सारणी एक-एक निवेशी लॉजिक गेट के निर्गम को दिखाती है। प्रयुक्त तर्क गेट को पहचानिए तथा इसका तर्क प्रतीक बनाइए।
उत्तर:
तर्क (लॉजिक) गेट: “वह डिजिटल परिपथ जो निवेश (input) तथा निर्गम (output) के बीच तर्कपूर्ण सम्बन्धों के अनुसार कार्य करता है, लॉजिक गेट कहलाता है।”
दी गयी सत्यता सारणी AND गेट की है। इसका तर्क प्रतीक चित्र 14.28 में दिखाया गया है।
प्रश्न 15:
नीचे दिये गये लॉजिक परिपथ के लिए सत्यता सारणी बनाइए।
या
दिए गए चित्र में लॉजिक परिपथ के लिए सत्यता सारणी बनाइए तथा इर का बुलियन व्यंजक लिखिए। (2012)
उत्तर:
चित्र 14.29 में दिया गया लॉजिक परिपथ तीन निवेश A, B, C वाले OR गेट तथा NOT गेट का संयोजन है। अतः यह लॉजिक परिपथ तीन निवेश वाले NOR गेट को व्यक्त करेगा। इसकी सत्यता सारणी प्राप्त करने के लिए
(a) यदि तीन निवेश A, B, C वाले OR गेट का निर्गम Y”हो तो इसकी सत्यता सारणी निम्नवत् होगी
जहाँ Y’ = A+ B+ c (बूलियन व्यंजक)
(b) उपर्युक्त निर्गम Y’ को NOT गेट का निवेश बनाया गया है; जिसका निर्गम Y है, अत: इसकी
सत्यता सारणी निम्नवत् होगी । जहाँ
इस प्रकार दिये गये लॉजिक परिपथ की सम्पूर्ण सत्यता सारणी निम्नवत् होगी
जहाँ Y = ( ) (बूलियन व्यंजक)
प्रश्न 16:
चित्र में प्रदर्शित Pव ९ गेटों के संयोजन से किस प्रकार का गेट प्राप्त होता है? (2017)
उत्तर:
NAND गेट
प्रश्न 17:
निम्नलिखित दशमलव संख्याओं के संगत तुल्य बाइनरी संख्याएँ ज्ञात कीजिए
(a) 17
(b) 25
(c) 556
(d) 255
हल:
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
किसी सन्धि डायोड की अग्र-अभिनति तथा उत्क्रम-अभिनति की अवस्थाओं में धारा प्रवाह की व्याख्या कीजिए। (2009, 11)
या
उत्क्रम अभिनत सन्धि डायोड द्वारा अल्प धारा क्यों प्रवाहित होती है? (2014)
या
p – n सन्धि डायोड के लिए अग्र-अभिनति तथा उत्क्रम-अभिनति अवस्था में परिपथ चित्र खींचिए। (2012)
या
उपयुक्त परिपथों की सहायता से pm सन्धि डायोड में विद्युत धारा प्रवाह की व्याख्य कीजिए। (2013)
या
p – n सन्धि डायोड के लिए अग्र-दिशिक तथा पश्च-दिशिक अवस्था में परिपथ आरेख खींचिए। दो अवस्थाओं हेतु प्राप्त अभिलक्षण वक्रों को समझाइए। (2015, 17)
या
p-n संधि डायोड के लिए अग्र-दिशिक परिपथ आरेख बनाइए। (2017)
उत्तर:
सन्धि डायोड को बाह्य बैटरी से दो विभिन्न प्रकारों से जोड़ा जा सकता है, जिन्हें अग्र- अभिनति तथा उत्क्रम-अभिनति’ कहते हैं।
अग्र-अभिनति (Forward Biasing)—जब सन्धि डायोड केp-क्षेत्र को बाह्य बैटरी के धन सिरे से, तथा n-क्षेत्र को ऋण सिरे से जोड़ा जाता है तो सन्धि ‘अग्र-अभिनत’ (forward biased) कहलाती है [चित्र 14.31 (a)]। इस स्थिति में डायोड में एक बाह्य वैद्युत-क्षेत्र Ei स्थापित हो जाता है। जोकि p-क्षेत्र से n-क्षेत्र की ओर को दिष्ट होता है। क्षेत्र E, आन्तरिक वैद्युत-क्षेत्र E; से कहीं अधिक प्रबल होता है। अतः p-क्षेत्र में (धन) कोटर तथा n-क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन दोनों ही सन्धि की ओर को चलने लगते हैं। (कोटर क्षेत्र E की दिशा में तथा इलेक्ट्रॉन E की विपरीत दिशा में चलते हैं। ये कोटर तथा इलेक्ट्रॉन सन्धि के समीप पहुँचकर परस्पर संयोग करके विलुप्त हो जाते हैं। प्रत्येक इलेक्ट्रॉन- कोटर संयोग (combination) के लिए, -क्षेत्र में बैटरी के धन सिरे के समीप एक सह-संयोजक बन्ध टूट जाता है। इससे उत्पन्न कोटर तो सन्धि की ओर चलता है, जबकि इलेक्ट्रॉन, जोड़ने वाले तार (connecting wire) में से होकर बैटरी के धन सिरे में प्रवेश कर जाता है। ठीक इसी समय बैटरी के ऋण सिरे से एक इलेक्ट्रॉन मुक्त होकर n-क्षेत्र में प्रवेश करता है तथा सन्धि के समीप संयोग द्वारा विलुप्त हुए इलेक्ट्रॉन का स्थान ले लेता है।
इस प्रकार, बहुसंख्यक वाहकों की गति से सन्धि डायोड में वैद्युत धारा स्थापित हो जाती है। इसे ‘अग्र-धारा’ (forward current) कहते हैं। (इस बड़ी धारा के अतिरिक्त, अल्पसंख्यक वाहकों की गति से भी एक अल्प उत्क्रम-धारा स्थापित होती है, परन्तु यह लगभग नगण्य ही होती है।) जैसा कि चित्र 14.31 (a) से स्पष्ट है, बाह्य परिपथ में धारा केवल इलेक्ट्रॉनों की गति से स्थापित होती है। सन्धि पर आरोपित अग्र वोल्टेज तथा प्राप्त अग्र-धारा का ग्राफ चित्र 14.31 (b) में दिखाया गया है।
उत्क्रम-अभिनत (Reverse Biasing):
जब सन्धि डायोड के p-क्षेत्र को बाह्य बैटरी के ऋण सिरे से, तथा क्षेत्र को धन सिरे से जोड़ा जाता है तो सन्धि’उत्क्रम-अभिनत’ (reverse biased)
कहलाती है।
[चित्र 14.32 (a)]। इस स्थिति में बाह्य वैद्युत-क्षेत्र E, n-क्षेत्र से p-क्षेत्र की ओर को दिष्ट होता है, तथा इस प्रकार यह आन्तरिक प्राचीर क्षेत्र Eiकी सहायता करता है। अब, p-क्षेत्र में कोटर तथा n-क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन दोनों ही सन्धि से दूर जाने लगते हैं। अतः वे कभी भी सन्धि के समीप संयोग नहीं कर सकते (cannot combine)। स्पष्ट है कि डायोड में बहुसंख्यक वाहकों के कारण कोई धारा नहीं होती।
परन्तु जब सन्धि उत्क्रम-अभिनत होती है तब सन्धि के आर-पार एक अति अल्प उत्क्रम धारा (≈ कुछ माइक्रोऐम्पियर) बहती है। यह ऊष्मीय-जनित (thermally generated) अल्पसंख्यक वाहकों (p-क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन तथा n-क्षेत्र में कोटर) से उत्पन्न होती है जोकि वैद्युत क्षेत्र E के अन्तर्गत सन्धि को पार करते हैं। चूंकि अल्पसंख्यक वाहकों की संख्या ऊष्मीय विक्षोभ पर निर्भर करती है, अतः उत्क्रम-धारा ताप पर बहुत अधिक निर्भर करती है तथा सन्धि का ताप बढ़ने पर बढ़ती है। उत्क्रम वोल्टेज तथा उत्क्रम-धारा के बीच ग्राफ चित्र 14.32 (b) में दिखाया गया है।
प्रश्न 2:
p-n सन्धि डायोडों का प्रयोग करते हुए पूर्ण-तरंग दिष्टकारी का परिपथ चित्र बनाइए। इसकी कार्यविधि समझाइए। (2009, 10, 11, 15, 18)
या
p-n सन्धि डायोड का प्रयोग कर पूर्ण तरंग दिष्टकारी का परिपथ आरेख बनाइए। निर्गत तरंग-रूपों को भी दर्शाइए। (2014)
या
p-n सन्धि डायोड किसे कहते हैं? दो p – nसन्धि डायोडों को पूर्ण तरंग दिष्टकारी के रूप में कैसे प्रयुक्त किया जाता है? निवेशी व निर्गत वोल्टताओं के तरंग रूपों को देते हुए, सरल परिपथ आरेख बनाकर इसकी कार्यविधि समझाइए। (2010, 14, 17)
p – n सन्धि डायोड का उपयोग पूर्ण तरंग दिष्टकारी के रूप में समझाइए। सम्बन्धित परिपथ भी खींचिए। (2013, 18)
या
परिपथ आरेख खींचकर pm सन्धि डायोड की पूर्ण तरंग दिष्टकारी के रूप में कार्यविधि समझाइए। (2013, 14, 18)
या
दो p-n संधि डायोडों का उपयोग करके पूर्ण तरंग दिष्टकारी का परिपथ चित्र बनाइए तथा इसकी कार्य-विधि समझाइए। निवेशी तथा निर्गत तरंग रूप भी प्रदर्शित कीजिए। (2017)
उत्तर:
p-n सन्धि डायोड: “जब एक p-प्रकार के अर्द्धचालक क्रिस्टल को किसी विशेष विधि द्वारा
-प्रकार के अर्द्धचालक क्रिस्टल के साथ जोड़ दिया जाता है, तो जिस स्थान पर क्रिस्टल एक-दूसरे से जुड़ते हैं, वह सन्धि कहलाती है। इस संयोजन के वैद्युत लक्षण डायोड वाल्व की भाँति होते हैं, अतः इस संयोजन को सन्धि डायोड कहते हैं।
पूर्ण-तरंग दिष्टकरण में निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के दोनों अर्द्ध-चक्रों के दौरान निर्गत धारा प्राप्त होती
इसमें दो सन्धि डायोड इस तरह प्रयुक्त किये जाते हैं कि पहला डायोड धारा के पहले आधे चक्र का दिष्टकरण करता है। और दूसरा डायोड दूसरे आधे चक्र का। निवेशी । इसका परिपथ चित्र 14.33 में दिखाया गया A.C. है। A.C. स्रोत को एक ट्रांसफॉर्मर की १ निर्गत प्राथमिक कुण्डली से जोड़ते हैं तथा
वोल्ट्रता द्वितीयक कुण्डली के सिरों A व B के बीच दोनों डायोड़ों 1 तथा 2 के p-क्षेत्रों को जोड़ा जाता है तथा n-क्षेत्रों को आपस में जोड़ दिया जाता है। लोड प्रतिरोध RL को द्वितीयक कुण्डली के केन्द्रीय निष्कास (centre tap) T तथा n-क्षेत्रों के बीच जोड़ते हैं। निवेशी वोल्टेज के पहले आधे चक्र के दौरान जब ट्रांसफॉर्मर काA सिरा, T के, सापेक्ष धनात्मक तथा B सिरा T के सापेक्ष ऋणात्मक होता है तब डायोड
(b) अग्र-अभिनत होता है और धारा प्रवाहित होने देता है, जबकि डायोड 2 उत्क्रम-अभिनत होता है और धारा प्रवाहित नहीं होने देता। अतः लोड-प्रतिरोध RL में धारा C से D की ओर बहती है। दूसरे आधे चक्र के दौरान A सिरा T के सापेक्ष ऋणात्मक होता है तथा B सिरा धनात्मक होता है। अतः अब डायोड 1 उत्क्रम-अभिनत तथा डायोड 2 अग्र-अभिनत होता है। अब धारा डायोड 2 में से प्रवाहित होती है तथा R,, में पुन: धारा C से D की ओर को बहती है। RL में धारा की दिशा दोनों अर्द्धचक्रों में एक ही ओर रहती है; अतः R. पर निर्गत वोल्टता की दिशा एक ही प्राप्त होती है तथा पूर्ण-तरंग के लिए वोल्टता प्राप्त होती रहती है।
प्रश्न 3:
p-n सन्धि डायोड का उपयोग करके अर्द्धतरंग दिष्टकारी का परिपथ चित्र खींचिए तथा इसकी कार्यविधि समझाइए। (2009, 11, 17)
या
p-n सन्धि का उपयोग करके अर्द्धतरंग दिष्टकारी का परिपथ चित्र खींचिए। निवेशी तथा निर्गत वोल्टताओं के तरंगरूप दिखाइए। क्या निर्गत वोल्टता शुद्ध दिष्ट वोल्टता होती है? (2016)
या
p – n सन्धि डायोड को अर्द्धतरंग दिष्टकारी के रूप में कैसे प्रयोग में लाया जाता है? सरल परिपथ आरेख बनाकर कार्यविधि समझाइए। निवेशी तथा निर्गत वोल्टताओं के तरंग-रूप दिखाइए। (2014)
या
p-n सन्धि डायोड क्या होता है? परिपथ आरेख खींचकर p-n सन्धि डायोड का अर्द्ध तरंग दिष्टकारी के रूप में कार्यविधि समझाइए। निवेशी तथा निर्गत वोल्टताओं के तरंग रूपों को दर्शाइए। (2016)
उत्तर:
p-n सन्धि डायोड:
“जब एक p प्रकार के अर्द्धचालक क्रिस्टल को किसी विशेष विधि द्वारा 71-प्रकार के अर्द्धचालक क्रिस्टल के साथ जोड़ दिया जाता है, तो जिस स्थान पर क्रिस्टल एक-दूसरे से जुड़ते हैं, वह सन्धि कहलाती है। इस संयोजन के वैद्युत लक्षण डायोड वाल्व की भाँति होते हैं, अत: इस संयोजन को pen सन्धि डायोड कहते हैं।
p-n सन्धि डायोड एक अर्द्धतरंग दिष्टकारी (Half wave rectifier) के रूप में:
p-n सन्धि डायोड का अर्द्धतरंग दिष्टकारी परिपथ चित्र 14.34 (a) में तथा निवेशी (input) एवं निर्गत (output) तरंग रूपों को चित्र 14.34 (b) में प्रदर्शित किया गया है।
इसमें जिस प्रत्यावर्ती वोल्टता को दिष्टीकृत करना सन्धि डायोड होता है, उसे एक ट्रांसफॉर्मर की प्राथमिक कुण्डली के सिरों के बीच जोड़ देते हैं। ट्रांसफॉर्मर की द्वितीयक कुण्डली का एक सिरा सन्धि डायोड के p-प्रकार के निवेशी निर्गत क्रिस्टल अर्थात् p-क्षेत्र से तथा दूसरा सिरा लोड वोल्टता वोल्टता प्रतिरोध RL के द्वारा सन्धि डायोड के n-प्रकार के क्रिस्टल अर्थात् n-क्षेत्र से जोड़ दिया जाता है। दिष्ट निर्गत वोल्टेज लोड RL के सिरों के बीच प्राप्त किया जाता है।
कार्यविधि (Working):
जब निवेशी AC वोल्टेज के आधे चक्र में ट्रांसफॉर्मर की द्वितीयंक कुण्डली का निवेशी प्रत्यावर्ती सिगनल A सिरा B सिरे के सापेक्ष धनात्मक होता है, तो सन्धि डायोड अग्र-अभिनत (forward biased) होता है। इसके परिणामस्वरूप लोड प्रतिरोध RL .में प्राप्त दिष्टकृत निर्गत सिगनल निर्गत वोल्टता में केवल धन भाग ही प्राप्त होते हैं। इस स्थिति में लोड़ प्रतिरोध में धारा C से D की ओर प्रवाहित होती है। निवेशी AC वोल्टेज के अगले आधे चक्र में ट्रांसफॉर्मर की द्वितीयक कुण्डली का A सिरा B सिरे के सापेक्ष ऋणात्मक होता है, तो सन्धि डायोड उत्क्रम-अभिनत (reverse biased) हो जाता है। इस दशा में प्रतिरोध RL में धारा शून्य रहती है। इस प्रकार मुख्यतः धारा निवेशी वोल्टता के पहले आधे चक्र में ही प्रवाहित होती है तथा शेष आधे चक्र कट जाते हैं। इस प्रकार उच्चावचित (fluctuating) दिष्टधारा लोड प्रतिरोध के आर-पार (across) प्राप्त होती रहती है। चित्र 14.34 (b) के निचले भाग में धारा को तरंग रूप दर्शाया गया है जिसमें थोड़ी-थोड़ी दूर पर (अर्थात् थोड़ी-थोड़ी देर में) धारा के एकदिशीय स्पन्द (pulses) दिखाई देते हैं। इस प्रकारे सन्धि डायोड एक अर्द्धतरंग दिष्टकारी की भाँति कार्य करता है। निर्गत वोल्टता शुद्ध दिष्ट वोल्टता नहीं होती है बल्कि एक दिशीय स्पन्दों के रूप में होती है।
प्रश्न 4:
जेनर डायोड क्या है? जेनर डायोड का उपयोग वोल्टेज रेगुलेटर के रूप में परिपथ आरेख की सहायता से समझाइए। (2014)
या
जेनर डायोड क्या होता है? इसका प्रतीक चिन्ह प्रदर्शित कीजिए। जेनर डायोड का वोल्टता नियंत्रक के रूप में प्रयोग परिपथ बनाकर समझाइए। (2015, 16, 17)
या
जेनर डायोड क्या होता है? इसको वोल्टेज रेगुलेशन में किस प्रकार प्रयोग करते हैं? परिपथ आरेख बनाकर समझाइए। (2018)
उत्तर:
जेन्प डायोड उत्क्रम अभिनत गहन अपमिश्रित सिलिकॉन अथवा जर्मेनियम p–n सन्धि डायोड होता है जो भंजक क्षेत्र में कार्य करता है। इसका यह नाम इसके आविष्कारक वैज्ञानिक क्लारेन्स जेनर (Clarence Zener) के नाम पर ही रखा गया है। इसके परिपथ में पश्च धारा (reverse current) को बाहरी प्रतिरोध और डायोड के ऊर्जा क्षय द्वारा सीमित किया जाता है। इसमें सिलिकॉन को उसके उच्च ताप स्थायित्व और धारा क्षमता के बैटरी प्रतिरोध कारण जर्मेनियम की तुलना में वरीयता दी जाती है। इसका परिपथ चित्र एवं संकेत चित्र 14.35 में दर्शाया गया है।
जेनर डायोड एक ऐसा डायोड है, जो सामान्य डायोडों की भाँति अग्र दिशिक होने पर अग्रधारा (forward current) को अपने में से प्रवाहित होने की अनुमति प्रदान तो करता ही है इसके साथ ही उत्क्रम अभिनति होने पर भी पश्च धारा आसानी से बह सकती है यदि आरोपित वोल्टता एक निश्चित मान से अधिक हो।
वोल्टता नियन्त्रक के रूप में जेनर डायोड
सिद्धान्त:
जब जेनर डायोड को उत्क्रम अभिनत भंजक क्षेत्र में प्रचालित करते हैं तो धारा में अधिक परिवर्तन के लिए इसके सिरों पर वोल्टता नियत बनी रहती है। यह भंजक विभवान्तर VZ के बराबर होती है। यही विभव नियन्त्रक (नियामक) के रूप में इसके प्रयोग का सिद्धान्त है।
परिपथ आरेख एवं कार्यविधि: चित्र 14.36 में जेनर डायोड को विभव नियामक के रूप में प्रयुक्त करने का परिपथ आरेख दर्शाया गया है। अनियन्त्रित
नियन्त्रित यह लोड प्रतिरोध R,, के सिरों के बीच उत्क्रम निवेश । अभिनति अवस्था में जोड़ा जाता है। इसके प्रतिरोध श्रेणीक्रम में प्रतिरोध R जोड़ते हैं। यदि निवेशी चित्र 14.36 वोल्टता बढ़ती है तो R तथा जेनर डायोड में धारा बढ़ेगी। इससे R के सिरों की वोल्टता बढ़ती है, जबकि जेनर डायोड की वोल्टता में कोई परिवर्तन नहीं होता क्योंकि भंजक क्षेत्र में होने के कारण इसकी जेनर वोल्टता नियत रहती है, भले ही इसमें धारा बढ़ती हो। इसी प्रकार यदि निवेशी वोल्टता घटती है तो R के सिरों की वोल्टता घटेगी तथा जेनर डायोड की वोल्टता में कोई परिवर्तन नहीं आयेगा। इस प्रकार निवेशी वोल्टता में किसी भी प्रकार का परिवर्तन R की वोल्टती में वैसा ही परिवर्तन कर देता है जबकि जेनर डायोड की वोल्टता नियत रहती है। इस प्रकार जेनर डायोड एक विभव नियामक (voltage regulator) के रूप में कार्य करता है। चित्र 14.37 में,
V0 = VZ = IZ .RZ = ILRL
तथा VZ = Vin – IR
चित्र 14.37 में जेनर डायोड विभव नियामक के लिए निर्गत वोल्टता तथा निवेशी वोल्टता के बीच ग्राफ प्रदर्शित किया गया है। ग्राफ से स्पष्ट है कि उत्क्रम भंजक वोल्टता VZ के पश्चात् निर्गत वोल्टता नियत रहती है।
प्रश्न 5:
ट्रांजिस्टर क्या होता है? आवश्यक चित्र बनाकर p-n-p ट्रांजिस्टर की रचना तथा कार्यविधि समझाइए।
या
p- n-p ट्रांजिस्टर में विद्युत चालन की क्रिया को समझाइए। इसमें आधार पतला क्यों रखा जाता है ? (2011)
या
उभयनिष्ठ उत्सर्जक p-n-p ट्रांजिस्टर प्रवर्धक की कार्यविधि परिपथ आरेख खींचकर समझाइए। (2014, 17)
या
p-n-p ट्रांजिस्टर की संरचना का वर्णन कीजिए तथा परिपथ चित्र देते हुए समझाइए कि यह उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में वोल्टता प्रवर्धक का कार्य कैसे करता है? (2017)
उत्तर:
ट्रांजिस्टर: दो p-n सन्धियों को सम्पर्क में रखकर बनायी गयी वह युक्ति जो एक ट्रायोड वाल्व की भाँति व्यवहार करती है, ट्रांजिस्टर कहलाती है।
p-n-p ट्रांजिस्टर
रचना: इसमें n-टाइप अर्द्धचालक की एक पतली परत दो p-टाइप अर्द्धचालकों के छोटे-छोटे क्रिस्टलों के बीच में दबाकर रखी होती है [चित्र 14.38 (a)]। इस पतली परत को ‘आधार’ (base) कहते हैं तथा इसके बायें तथा दायें वाले क्रिस्टलों को क्रमशः ‘उत्सर्जक’ (emitter) और ‘संग्राहक (collector) कहते हैं। आधार के सापेक्ष उत्सर्जक को धन-विभव पर तथा संग्राहक को ऋण-विभव पर रखा जाता है। स्पष्ट है कि उत्सर्जक-आधार (p-n) सन्धि अग्र-अभिनत अर्थात् अल्प प्रतिरोध वाली सन्धि है, जबकि आधार-संग्राहक (n-p) सन्धि उत्क्रम-अभिनत अर्थात् उच्च प्रतिरोध वाली सन्धि है। चित्र 14.38 (b) में ट्रांजिस्टर का प्रतीक प्रदर्शित है। इसमें बाण की दिशा वैद्युत धारा (अर्थात् कोटरों की गति) की दिशा बताती है।
कार्यविधि: चित्र 14.39 में एक p-n-p ट्रांजिस्टर का उभयनिष्ठ आधार परिपथ प्रदर्शित है। उत्सर्जक-आधार (p-n) सन्धि अग्र-अभिनत विभव VEB (1 वोल्ट से कम) पर रखते हैं और आधार-संग्राहक (n-p) सन्धि को । कुछ अधिक उत्क्रम-अभिनत विभव VCB (कुछ वोल्ट) पर रखते हैं। चूँकि उत्सर्जक (p-क्षेत्र) अग्र-अभिनत है; ।अत: इसमें उपस्थित धन ‘कोटर’ आधार की ओर चलते हैं। और ‘आधार’ (n-क्षेत्र) में उपस्थित इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक की ओर चलते हैं।
आधार के पतला होने के कारण इसमें प्रवेश करने वाले कोटरों में अधिकांश (लगभग 98%) इसे पार करके संग्राहक तक पहुँच जाते हैं, जबकि अवशेष (लगभग 2%) कोटर आधार में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों से संयोग कस्ते हैं। कोटर के इलेक्ट्रॉन से संयोग करते ही एक नया इलेक्ट्रॉन बैटरी VEB के ऋण सिरे से निकलकर आधार में प्रवेश करता है। ठीक इसी क्षण एक इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक में से टर्मिनल E के द्वारा निकलकर VCB के धन सिरे पर पहुँचता है। इससे उत्सर्जक E में एक कोटर उत्पन्न हो जाता है जो आधार की ओर चलना प्रारम्भ कर देता है। स्पष्ट है कि आधार-उत्सर्जक परिपथ में एक क्षीण-धारा बहने लगती है।
संग्राहक (उत्क्रम-अभिनत है तथा कोटरों के चलने में सहायक है) में प्रवेश कर जाने वाले कोटर C टर्मिनल तक पहुँच जाते हैं। किसी कोटर के C पर पहुँचते ही, बैटरी VEB के ऋण सिरे से एक इलेक्ट्रॉन आकर इसे उदासीन कर देता है। पुनः ठीक इसी क्षण एक इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक में से टर्मिनल E के द्वारा निकलकर, बैटरी VCBके धन सिरे पर पहुँचता है। इससे उत्सर्जक में एक कोटर उत्पन्न हो जाती है जो आधार की ओर चलना प्रारम्भ कर देता है। स्पष्ट है कि संग्राहक-उत्सर्जक परिपथ में वैद्युत धारा बहती है। अतः p-n-p ट्रांजिस्टर के भीतर धारा-प्रवाह कोटरों के उत्सर्जक से संग्राहक की ओर चलने के कारण होता है और बाह्य परिपथ में इलेक्ट्रॉनों के चलने के कारण होता है। टर्मिनल B से चलने वाली धारा को ‘आधार-धारा’ iB तथा टर्मिनल C से बाहर जाने वाली धारा को ‘संग्राहक-धारा’ iC कहते हैं। iB तथा iC मिलकर टर्मिनले E में प्रवेश करती हैं; अतः इसे ‘उत्सर्जक-धारा’ iE कहते हैं। स्पष्ट है कि
iE = iB +iC
अतः p-n-p ट्रांजिस्टर के अन्दर धारा-प्रवाह कोटरों के उत्सर्जक से संग्राहक की ओर चलने के कारण होता है।
आधार के बहुत पतला होने के कारण इसमें संयुक्त होने वाले कोटर-इलेक्ट्रॉनों की संख्या बहुत कम होती है। इस कारण लगभग सभी कोटर जो उत्सर्जक से आधार में प्रवेश करते हैं, संग्राहक तक पहुँच जाते हैं। अतः iC (संग्राहक-धारा), iE (उत्सर्जक-धारा) से कुछ ही कम होती है। आधार को पतला लिये जाने का कारण है कि कोटर तथा इलेक्ट्रॉन इसमें कम-से-कम संयोग कर सके।
प्रश्न 6:
n-p-n ट्रांजिस्टर की रचना एवं कार्यविधि समझाइए। (2015, 16, 18)
या
उपयुक्त परिपथ की सहायता से n-p-n ट्रांजिस्टर की कार्यविधि का उल्लेख कीजिए। (2012)
उत्तर:
n-p-n ट्रांजिस्टर की रचना: इसमें p-टाइप अर्द्धचालक की एक पतली परत दो n-टाइप अर्द्धचालकों के छोटे-छोटे क्रिस्टलों के बीच में दबाकर रखी जाती है, [चित्र 14.40 (a)]] आधार के सापेक्ष उत्सर्जक को ऋण-विभव पर तथा संग्राहक को धन-विभव पर रखा जाता है। स्पष्ट है कि उत्सर्जक-धारा (n-p) सन्धि अग्र-अभिनत है और आधार-संग्राहक (p-n) सन्धि उत्क्रम- अभिनत है। {चित्र 14.40 (b) में ट्रांजिस्टर का प्रतीक प्रदर्शित है जिसमें बाण की दिशा वैद्युत धारा अर्थात् इलेक्ट्रॉनों की गति के विपरीत की दिशा बताती है।
कार्यविधि: चित्र 14.41 में n-p-n ट्रांजिस्टर का उभयनिष्ठ आधार परिपथ प्रदर्शित किया गया है। इसके दोनों n- क्षेत्रों में चलनशील इलेक्ट्रॉन हैं, जबकि बीच के पतले p-क्षेत्र में +ve कोटर होते हैं। इसमें बायीं ओर के उत्सर्जक आधार (n-p) सन्धि को बैटरी से अग्र-अभिनत -विभव Ve अल्प मात्रा में दिया जाता है, जबकि दायीं ओर के आधार संग्राहक (p-n) सन्धि को बैटरी से उत्क्रम-अभिनत विभव
VC अधिक मात्रा में दिया जाता है।
अग्र-अभिनत होने के कारण उत्सर्जक (n-क्षेत्र) से इलेक्ट्रॉन आधार की ओर गति करते हैं, जबकि आधार से कोटर उत्सर्जक की ओर। आधार के पतले होने के कारण अधिकतर इलेक्ट्रॉन, जो इसमें प्रवेश करते हैं, संग्राहक C तक पहुँच जाते हैं। इनमें से कुछ ही इलेक्ट्रॉन आधार में उपस्थित कोटरों से। संयोग करते हैं। जैसे ही कोई इलेक्ट्रॉन किसी कोटर से संयोग करता है वैसे ही एक नया इलेक्ट्रॉन बैटरी ve के -ve सिरे से निकलकर टर्मिनल E के द्वारा उत्सर्जक में प्रवेश करता है। ठीक इसी समय Ve का +ve सिरा आधार से एक इलेक्ट्रॉन प्राप्त करता है। इससे आधार में एक कोटर उत्पन्न हो जाता है तथा संयोग के कारण नष्ट हुए कोटर की क्षतिपूर्ति हो जाती है। इस प्रकार आधार उत्सर्जक परिपथ में धारा प्रवाहित होने लगती है।
जो इलेक्ट्रॉन संग्राहक में प्रवेश कर जाते हैं वे उत्क्रम-अभिनत के कारण टर्मिनल C को छोड़कर बैटरी VC के धन सिरे में प्रवेश करता है वैसे ही बैटरी Ve के ऋण सिरे से एक इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक में प्रवेश करता है। इस प्रकार संग्राहक-उत्सर्जक परिपथ में भी धारा प्रवाहित होने लगती है। आधार टर्मिनल B में प्रवेश करने वाली क्षीण धारा को आधार-धारा iB तथा संग्राहक टर्मिनल C में प्रवेश करने वाली धारा को संग्राहक-धारा iC कहा जाता है। ये दोनों धाराएँ मिलकर उत्सर्जक टर्मिनल E से निकलती हैं जो कि उत्सर्जक-धारा iE है।
अतः iE = iB +iC
अत: n-p-n ट्रांजिस्टर के अन्दर तथा बाह्य परिपथ में धारा का प्रवाह इलेक्ट्रॉनों के कारण ही होता है।
प्रश्न 7:
n-p-n ट्रांजिस्टर स्विच के रूप में कैसे कार्य करता है? आवश्यक परिपथ चित्र द्वारा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। (2015)
उत्तर:
हम जानते हैं कि अग्र दिशिक (p-n) सन्धि डायोड से धारा आसानी से प्रवाहित हो सकती है। परन्तु एक पश्च दिशिक (reverse biased) डायोड धारा के प्रवाह में सार्थक व्यवधान उत्पन्न करता है। डायोड का यह आचरण एक स्विच के समतुल्य है। इसी प्रकार यदि एक ट्रांजिस्टर को उसकी संस्तब्ध (cut off) व संतृप्तावस्था (Satruation state) में उपयोग करें तो ट्रांजिस्टर भी एक इलेक्ट्रॉनिक स्विच (switch) की भाँति प्रयोग किया जा सकता है।
ट्रांजिस्टर को स्विच की तरह प्रयोग करने का सरल परिपथ चित्र 14.42 (a) में प्रदर्शित है। चित्र 14.42 में प्रयुक्त ट्रांजिस्टर n-p-n ट्रांजिस्टर है जो उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में जुड़ा हुआ है। RB व RC क्रमशः आधार व संग्राहक प्रतिरोध हैं जो ट्रांजिस्टर को दिशिक करने हेतु प्रयोग किये गये हैं।Vi निवेशी संकेत/विभव (input signal) है जो आधार-उत्सर्जक टर्मिनलों के बीच आरोपित है तथा निर्गत संकेत (output signal) V0 संग्राहक उत्सर्जक टर्मिनलों के बीच के विभवान्तर VCE का मापन एक वोल्टमीटर V की सहायता से प्राप्त किया जा सकता है। संग्राहक प्रतिरोध RC के बीच बह रही संग्राहक-धारा iC का मापन RC के श्रेणी क्रम में लगे मिलीअमीटर mA की सहायता से किया जा सकता है।
चित्र 14.42 (a) से किरचॉफ के नियमानुसार,
Vi= iBRB + VB …….(1)
…(1) VCC = iCRC + VCE
अथवा VCE = VCC – iCRC
VCE = V0
अतः V0 = VCC – iCRC ……….(2)
(i) अब, यदि निवेशी विभव Vi का मान आधार-उत्सर्जक (B – E) सन्धि के विभव-प्राचीर (barrier voltage) जो जर्मेनियम तथा सिलिकॉन से बने ट्रांजिस्टर के लिए लगभग 0.6V – 0.7V के बीच होता है, से कम हो, तो B – E सन्धि के अवदिशिक (unbiased) होने के कारण ट्रांजिस्टर की तीनों धाराएँ (iB,iC व iE) शून्य होंगी। अत: संग्राहक-धारा iC के शून्य होने के कारण संग्राहक-प्रतिरोध RC के सिरों पर कोई विभव पतन नहीं होगा। जिससे ट्रांजिस्टर के संग्राहक-टर्मिनल का विभव veer व समीकरण (2) से टर्मिनल C व E के बीच उपलब्ध विभवान्तर VCE = (= V0) VCC के बराबर ही होगा। ट्रांजिस्टर की यह अवस्था उसकी संस्तब्ध अवस्था (cut off state) कहलाती है। चूंकि इस अवस्था में ट्रांजिस्टर से होकर कोई धारा प्रवाहित नहीं होती, अत: ट्रांजिस्टर की यह अवस्था किसी स्विच की खुली-स्थिति (off state) के तुल्य है [चित्र 14.42 (b)]
(ii) अब यदि निवेशी विभव V को इस प्रकार समायोजित करें कि ट्रांजिस्टर संस्तब्ध अवस्था से सीधे संतृप्तावस्था (saturation state) में पहुँच जाये तो ऐसी दशा में संतृप्त संग्राहक-धारा
iC(= )के संग्राहक-प्रतिरोध Re में बहने के कारण बैटरी का सम्पूर्ण विभव VCC, RC
के सिरों पर ही पतित हो जाता है। जिससे संग्राहक-टर्मिनल C पर उपलब्ध विभव शून्य तथा उत्सर्जक-टर्मिनल E के भू-सम्पर्कित होने के कारण उसका विभव भी शून्य होता है। इस प्रकार ट्रांजिस्टर के संग्राहक व उत्सर्जक (C-E) टर्मिनल समान विभव पर होते हैं। यह स्थिति किसी विद्युतीय परिपथ के संयोजक तार के तुल्य है। इस स्थिति में ट्रांजिस्टर में धारा प्रवाह सुगमता से हो जाता है। यह अवस्था किसी स्विच की बन्द-स्थिति के समतुल्य मानी जा सकती है।
प्रश्न 8:
n-p-ट्रांजिस्टर की प्रवर्धक के रूप में कार्यों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। (2015, 16, 17)
या
उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में n-p-n ट्रांजिस्टर का अभिलाक्षणिक वक्र प्राप्त करने हेतु आवश्यक परिपथ आरेख बनाइए। निवेशी एवं निर्गत अभिलाक्षणिक वक्रों से प्राप्त निष्कर्षों का उल्लेख कीजिए। (2017)
उत्तर:
n-p-n ट्रांजिस्टर उभयनिष्ठ-उत्सर्जक प्रवर्धक की भाँति: इसका परिपथ आरेख चित्र 14.43 में दर्शाया गया है। आधार-उत्सर्जक (B-E) परिपथ को अग्र दिशिक तथा संग्राहक-उत्सर्जक (C-E) परिपथ को उत्क्रम अभिनत करने के लिये, बैटरियों VBE; तथा VCC की ध्रुवताएँ (polarities), p-n-p ट्रांजिस्टर परिपथ के सापेक्ष विपरीत हैं।
n-p-n ट्रांजिस्टर परिपथ का मूल सिद्धान्त,,प्रतिरोध तथा विभिन्न लाभ वही हैं जो कि p-n-p ट्रांजिस्टर परिपथ के हैं।
उभयनिष्ठ-उत्सर्जक n-p-n ट्रांजिस्टर प्रवर्धक परिपथ में भी निर्गत वोल्टेज सिगनल तथा निवेशी वोल्टेज सिगनल के बीच 180° का कलान्तर हैं। इसे निम्न प्रकार समझाया जा सकता है
माना कि निवेशी वोल्टेज सिगनल का पहला अर्द्ध-चक्र धनात्मक है। चूंकि आधार उत्सर्जक के सापेक्ष धनात्मक है, अत: पहले अर्द्ध-चक्र के दौरान, आधार-उत्सर्जक परिपथ का अग्र दिशिक वोल्टेज बढ़ता है। इससे उत्सर्जक-धारा iE, और इस कारण संग्राहक-धारा iC बढ़ती हैं। iC के बढ़ने से संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टेज VE घटता है (क्योंकि VCE = VCC-iCRL)। चूँकि संग्राहक बैटरी VCC के धन टर्मिनल से जुड़ा है, अत: संग्राहक वोल्टेज के घटने का अर्थ है कि संग्राहक कम धनात्मक हो जाता है। इस प्रकार, निवेशी a.c, वोल्टेज सिगनल के धनात्मक अर्द्ध-चक्र के दौरान संग्राहक पर प्राप्त निर्गत वोल्टेज सिगनल का अर्द्ध-चक्र ऋणात्मक होता है।
निवेशी वोल्टेज सिगनल के ऋणात्मक अर्द्ध-चक्र के दौरान आधार-उत्सर्जक परिपथ का अग्र दिशिक वोल्टेज घटता है। इससे उत्सर्जक-धारा iE , और इस कारण संग्राहक-धारा iC घटती है। iC के घटने से संग्राहक-उत्सर्जक वोल्टेज VCE बढ़ता है, अर्थात् संग्राहक अधिक धनात्मक हो जाता है। इस प्रकार, निवेशी a.c. वोल्टेज सिगनल के ऋणात्मक अर्द्ध-चक्र के दौरान संग्राहक पर प्राप्त निर्गत वोल्टेज सिगनल का अर्द्ध-चक्र धनात्मक होता है।
स्पष्ट है कि उभयनिष्ठ-उत्सर्जक प्रवर्धक में, निर्गत वोल्टेज सिगनल तथा निवेशी वोल्टेज सिगनल में 180° का कलान्तर होता है।
प्रश्न 9:
परिपथ चित्र की सहायता से n-p-n ट्रांजिस्टर की दोलनी क्रिया समझाइए। (2014)
या
n-p-n ट्रांजिस्टर का दोलित्र के रूप में प्रयोग परिपथ बनाकर समझाइए। (2017)
उत्तर:
चित्र 14.44 में उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में एक n-p-n ट्रांजिस्टर के एक दोलित्र की तरह उपयोग का परिपथ आरेख प्रदर्शित है।
चित्र 14.44 चित्र में L1C1 एक टैंक परिपथ तथा L2 एक पुनर्भरण कुण्डली है। संधारित्र C2 दोलन के लिए एक निम्न प्रतिघात पथ (low reactance path) प्रदान करता है। श्रेणी क्रम में जुड़े प्रतिरोधों R1 व R2 है, की सहायता से ट्रांजिस्टर को आवश्यक अभिनति (necessary biasing) प्रदान की जाती है। RE उत्सर्जक प्रतिरोध है जो ट्रांजिस्टर सन्धि के ताप को नियन्त्रित करता है। CE एक संधारित्र है जो प्रवर्धित संकेतों का आधार-उत्सर्जक परिपथ में ऋणात्मक पुनर्भरण (negative feedback) रोकता है। बैटरी VCC पूरे परिपथ को d.c. शक्ति प्रदान करती है। परिपथ में उत्पन्न दोलनों को प्रेरण कुण्डली L3 के सिरों पर प्राप्त किया जाता है।
कार्य प्रणाली: जैसे ही कुन्जी (Switch) S को बन्द किया जाता है टैंक परिपथ का संधारित्र C1 आशित होना शुरू हो जाता है। जब यह पूर्णावेशित हो जाती है तो यह प्रेरण कुण्डली L1 के कारण अनावेशित होना शुरू कर देता है जिसके परिणामस्वरूप L1C1 टैंक परिपथ में अवमन्दित दोलन प्रारम्भ हो जाते हैं। यह दोलन पुनर्भरण कुण्डली L2 में (जोकि L1 के ही साथ उभयनिष्ठ लौह क्रोड पर लपेटी है चित्र 14.44 में बिन्दुवत् चाप का यही अभिप्राय है) L1C1 परिपथ के ही समान आवृत्ति का एक विद्युत वाहक बल (फैराडे के नियमानुसार) उत्पन्न कर देती है। L2 में उत्पन्न इस वि० वी० बल का परिमाण इस कुण्डली में फेरों की संख्या तथा इस कुण्डली का कुण्डली L के सापेक्ष कपलिंग (coupling) पर निर्भर करता है। अब L2 के सिरों पर उत्पन्न इस विभवान्तर को ट्रांजिस्टर प्रवर्धक के आधार व उत्सर्जक (B – E) टर्मिनलों के बीच लगा देते हैं जहाँ यह प्रवर्धित होकर पुनर्भरण की प्रक्रिया के माध्यम से टैंक परिपथ L1C1 को पुनः प्राप्त हो जाता है जिससे जो भी क्षतियाँ हुई होती हैं उनकी पूर्ति हो जाती है।
इस प्रकार परिपथ बिना अवमन्दित हुए दोलन करता रहता है जिसकी आवृत्ति समीकरण f = से दी जाती है। यहाँ ज्ञात हो कि पुनर्भरण की क्रिया में टैंक परिपथ को प्राप्त फीडबैक विभव निवेशी विभव के साथ समान कला में होता है।
व्याख्या:
फैराडे के नियमानुसार (e=-L ) L1 व L2 के बीच उत्पन्न वि० वा० बल के विपरीत कलाओं (180° का कलान्तर) में होते हैं। पुन: L2 के सिरों पर उत्पन्न यह विभवान्तर उभयनिष्ठ उत्सर्जक ट्रांजिस्टर प्रवर्धक के आधार व उत्सर्जक सन्धियों के बीच प्रवर्धन के लिए लगा दिया जाता है। इस प्रकार ट्रांजिस्टर के निर्गत विभव व निवेशी विभव में पुनः 180° का कलान्तर हो जाता है। अत: प्रवर्धक से निर्गत विभव को टैंक परिपथ का निवेशी विभव बनने तक इसमें हुआ कुल कलान्तर = 180° + 180° = 360° का हो जाता है। अर्थात् टैंक परिपथ को पुनर्भरित विभव टैंक परिपथ के निवेशी विभव के साथ समान कला में होता है।
प्रश्न 10:
NOT गेट की परिभाषा दीजिए। इसके बूलियन व्यंजक तथा सांकेतिक रूप लिखिए। इस गेट को व्यवहार में किस प्रकार प्रयुक्त किया जाता है? इसका तर्क प्रतीक एवं सत्यता-सारणी दीजिए। (2011, 18)
या
NOT गेट के लिए लॉजिक प्रतीक, सत्यता सारणी एवं बूलियन व्यंजक लिखिए तथा बताइए कि व्यवहार में यह गेट किस प्रकार प्रयुक्त होता है ?
(2010, 12, 18)
या
NOT गेट का प्रतीक चिह्न बनाइए तथा इसका बूलियन व्यंजक लिखिए।(2012, 14, 17)
या
NOT गेट की उपयुक्त आरेख की सहायता से सत्यता सारणी बनाइए। (2013)
या
NOT गेट का संकेत चिह्न बनाकर इसकी सत्यता सारणी भी बनाइए। (2016)
उत्तर:
NOT गेट-इसमें केवल एक निवेश (input) तथा एक निर्गत (output) होता है। इसका बूलियन व्यंजक इस प्रकार है
Ā = Y।
जिसे ‘NOT A equalsY’ पढ़ा जाता है। इसका अर्थ है कि Y,A का ऋणक्रमण (negation) अथवा उत्क्रमण (inversion) है। चूंकि बाइनरी पद्धति में केवल दो अंक 0 तथा 1 होते हैं, अतः Y = 0 यदि = 1 तथा Y = 1 यदि A = 0. NOT गेट का लॉजिक प्रतीक चित्र 14.45 (a) में दर्शाया गया है।
व्यवहार में NOT गेट प्राप्त करना (Realisation of NOT Gate): व्यवहार में, हम NOT गेट को डायोडों को प्रयुक्त करके प्राप्त नहीं कर सकते। इसके लिए ट्रांजिस्टर प्रयुक्त करना होगा। चित्र 14.46 में NOT गेट का वैद्युत परिपथ दर्शाया गया है जिसमें n-p-n ट्रांजिस्टर प्रयुक्त किया गया है। ट्रांजिस्टर के आधार B को एक प्रतिरोधक Bp के द्वारा निवेशी टर्मिनल A से जोड़ा गया है तथा उत्सर्जक E को भू-सम्पर्कित कर दिया गया है। संग्राहक C को एक अन्य प्रतिरोधक R तथा 5y बैटरी के द्वारा भू-सम्पर्कित किया गया है। निर्गत Y, संग्राहक C का पृथ्वी के सापेक्ष वोल्टेज है। NOT गेट की कार्यप्रणाली की दो सम्भव स्थितियाँ निम्न प्रकार हैं
- जब निवेशी टर्मिनल A भू-सम्पर्कित होती है (A = 0), तब ट्रांजिस्टर का. आधार B भी भू-सम्पर्कित हो जाता है। इसका अर्थ है कि आधार-उत्सर्जक (B ~ E) सन्धि अवअभिनत । (unbiased) रहती है परन्तु आधार-संग्राहक (B-C) सन्धि उत्क्रम-अभिनत हो जाती है। चूंकि उत्सर्जक-धारा शून्य है तथा आधार-धारा भी शून्य है, अतः संग्राहक-धारा भी शून्य होगी। इस स्थिति में, ट्रांजिस्टर संस्तब्ध (cut-off) अवस्था में होता है। अत: संग्राहक C पर वोल्टेज, पृथ्वी के सापेक्ष, +5v होगा जो कि संग्राहक परिपथ में जुड़ी बैटरी का वोल्टेज है। अत: Y = 1. यह स्थिति सत्यता सारणी [चित्र 14.45 (b)] की पहली पंक्ति में व्यक्त की गयी है।
- जब निवेशी टर्मिनल A को 5V बैटरी के धन टर्मिनल से जोड़ा जाता है (A = 1), तब आधार-उत्सर्जक (B-E) सन्धि अग्र-अभिनत हो जाती है। इस दशा में उत्सर्जक-धारा, आधार-धारा तथा संग्राहक-धारा तीनों विद्यमान होती हैं। प्रतिरोधक RB व RC इस प्रकार चुने जाते हैं कि इस व्यवस्था में बड़ी संग्राहक-धारा प्राप्त हो। इस स्थिति में ट्रांजिस्टर संतृप्तता (saturation) की अवस्था में होता है। अग्र-अभिनति के कारण, RC में विभव-पतन ठीक 5V होता है, जो कि संग्राहक-परिपथ में जुड़ी 5V बैटरी के कारण होने वाले विभव-पतन के ठीक बराबर तथा विपरीत है। इस प्रकार C पर वोल्टेज शून्य है। अत: Y = 0, यह स्थिति सत्यता सारणी [चित्र 14.45 (b)] की दूसरी पंक्ति में व्यक्त की गयी है।
स्पष्ट है कि NOT गेट में यदि निवेशी 0 है, तो निर्गत 1 है तथा इसका उल्टा। इसकी सत्यता सारणी चित्र 14.45 (b) में प्रदर्शित है।
प्रश्न 11:
बूलियन बीजगणित में AND गेट को किस प्रकार प्रकट किया जाता है? इसका लॉजिक संकेत बताइए। इसे व्यवहार में किस प्रकार प्रयुक्त किया जाता है? (2011)
या
AND गेट के लिए लॉजिक प्रतीक, सत्यता सारणी बनाइए तथा बूलियन व्यंजक लिखिये एवं बताइये कि इसे व्यवहार में दो penसन्धि डायोडों से प्रयुक्त करके कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? (2010)
या
‘AND’ गेट का लॉजिक प्रतीक, बूलियन व्यंजक एवं सत्यता-सारणी बनाइए। (2012, 14, 17)
या
‘AND’ गेट के लिए सत्यता सारणी बनाइए। यह गेट व्यवहार में सन्धि डायोड प्रयुक्त करके किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है । (2013)
या
AND गेट का प्रतीक चिन्ह एवं सत्यता सारणी बनाइए। (2017)
उत्तर:
AND गेट: यह एक द्वि-निवेशी (two-input) तथा एकल-निर्गत (one-output) लॉजिक गेट है। यह दो निवेशी चरों A तथा B को संयुक्त करके एक निर्गत चर Y देता है। इसका बुलियन व्यंजके इस प्रकार है
A . B=Y
जिसे ‘A AND B equals Y’ पढ़ा जाता है। इसका लॉजिक संकेत चित्र 14.47 (a) में दर्शाया गया है।
व्यवहार में AND गेट प्राप्त करना (Realisation of AND Gate): व्यवहार में, AND गेट दो p- n सन्धि डायोडों D1 व D2 से निर्मित वैद्युत परिपथ से प्राप्त किया जा सकता है (चित्र 14.48)। प्रतिरोधक R एक 5V बैटरी के धन टर्मिनल से स्थायी रूप से जुड़ा है। निवेशी टर्मिनल A व B एक अन्य 5V बैटरी की सहायता से 0 V (स्तर 0) अथवा 5V (स्तर 1) पर रखे जा सकते हैं। इस बैटरी का ऋण टर्मिनल भू-सम्पर्कित है।
निवेशियों A व B के चार सम्भव संयोग हैं
- जब निवेशी टर्मिनल A व B दोनों भू-सम्पर्कित हैं (A = 0, B = O), तब दोनों डायोड D1 व D2 अग्र-अभिनत होने के कारण चालित होते हैं। यदि डायोड आदर्श हैं, तब इनमें कोई विभव-पतन नहीं होता। अतः प्रतिरोधक R में 5V का विभव-पतन होता है तथा इसका सिरा C, पृथ्वी के सापेक्ष शून्य विभव पर होता है। इस प्रकार, निर्गत Y, जो कि प्रतिरोधक R के सिरे C पर वोल्टेज है, शून्य होता है (Y = 0)। यह स्थिति सत्यता सारणी [चित्र 14.47 (b)] की पहली
पंक्ति में व्यक्त की गयी है। - जब निवेशी टर्मिनल A भू-सम्पर्कित है तथा B, 5V बैटरी के धन टर्मिनल से जुड़ा है। (A = 0, B = 1), तब डायोड D1 चालित होता है परन्तु D2 चालित नहीं होता (क्योकि यह अग्र-अभिनत नहीं है)। यदि D1 आंदर्श है, तब इसमें कोई विभव-पतन नहीं होता। अत: प्रतिरोधक R में 5V का विभव-पतन होता है तथा इसका सिरा C पृथ्वी के सापेक्ष, शून्य विभव पर होता है। अतः निर्गत Y पुन: शून्य होता है (Y = 0)। यह स्थिति सत्यता सारणी [चित्र 14.47 (b)] की दूसरी पंक्ति में व्यक्त की गयी है।
- जब निवेशी टर्मिनल A. 5V बैटरी के धन टर्मिनल से जुड़ा है तथा B भू-सम्पर्कित है। (A = 1, B = 0), तब डायोड D2 चालित होता है। यदि यह डायोड आदर्श है, तब इसमें कोई विभव-पतन नहीं होता। अत: पुन: प्रतिरोधक R में 5V का विभव-पतन होता है तथा इसका सिरा C पृथ्वी के सापेक्ष, शून्य विभव पर होता है। अतः निर्गत Y अब भी शून्य होता है (Y = 0)। यह स्थिति सत्यता सारणी [चित्र 14.47 (b)] की तीसरी पंक्ति में व्यक्त की गयी है।
- जब टर्मिनल A व B दोनों 5V बैटरी के धन टर्मिनल से जोड़े जाते हैं (A = 1, B = 1), तब कोई भी डायोड चालित नहीं होता तथा प्रतिरोधक R में धारा नहीं होती। अत: प्रतिरोधक का ऊपरी सिरा C उसी विभव पर होता है जिस पर कि उसका निचला सिरा होता है, अर्थात् पृथ्वी के सापेक्ष, +5 V पर। इस प्रकार, अब निर्गत सिरा Y भी + 5V पर होता है (Y = 1)। यह स्थिति सत्यता सारणी । [चित्र 14.47 (b)] की अन्तिम पंक्ति में व्यक्त की गयी है।
स्पष्ट है कि AND गेट में, यदि दोनों निवेशी 1 हैं तभी निर्गत भी 1 होता है, अन्यथा निर्गत 0 होता है।
प्रश्न 12:
NAND गेट और NOR गेट क्या हैं? इनके लॉजिक प्रतीक तथा सत्यता सारणी दीजिए। (2017)
या
NOR गेट का लॉजिक प्रतीक बनाइए और इसका बूलियन व्यंजक लिखिए। (2014, 16, 17)
या
NOR गेट का लॉजिक चिह्न, बुलियन व्यंजक एवं सत्यता सारणी दीजिए। (2014, 17)
उत्तर:
NAND गेट तथा NOR गेट को सार्वत्रिक गेट भी कहते हैं। इनका प्रयोग करके पुनः मूल लॉजिक गेट (OR, AND तथा NOT) भी प्राप्त किये जा सकते हैं।
1. NAND गेट:
यह मूल लॉजिक गेट AND गेट तथा NOT गेट का संयोजन है। इसमें AND
गेट के निर्गम को NOT गेट का निवेश बना दिया जाता है [चित्र 14.49 (a)]। इसका तर्क प्रतीक [चित्र 14.49 (b)} में प्रदर्शित है।
2. NOR गेट:
यह मूल लॉजिक गेट OR गेट तथा NOT गेट का संयोजन है। इसमें OR गेट के निर्गम को NOT गेट का निवेश बना दिया जाता है [चित्र 14.50 (a)]इसका तर्क प्रतीक [चित्र 14.50 (b)] में प्रदर्शित है।
प्रश्नं 13:
A व B, OR गेट तथा NAND गेट के निवेशी तरंग प्रतिरूपचित्र में प्रदर्शित हैं। दोनों गेटों के निर्गत प्रतिरूप (Y) अपनी उत्तर पुस्तिका में दर्शाइए।
(2014)
या
नीचे दिखाए गए निवेश A तथा B के लिए NAND गेट के निर्गत तरंग रूप को स्केच कीजिए। (2016)
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी: पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ, Study Learner