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NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction (मानव जनन)
NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction (मानव जनन)
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
(क) मानव …… उत्पत्ति वाला है। (अलैगिक/लैगिक)
उत्तर
लैंगिक।
(ख) मानव हैं। अण्डप्रजक, सजीवप्रजक, अण्डजरायुज)
उत्तर
सजीवप्रजक।
(ग) मानव में …….. निषेचन होता है। (बाह्य/आन्तरिक)
उत्तर
आन्तरिक।
(घ) नर एवं मादी ……. युग्मक होते हैं। (अगुणित/द्विगुणित)
उत्तर
अगुणित।
(ङ) युग्मनज ……. होता है। (अगुणित/द्विगुणित)
उत्तर
द्विगुणित।
(च) एक परिपक्व पुटक से अण्डाणु (ओवम) के मोचित होने की प्रक्रिया को …… कहते हैं।
उत्तर
अण्डोत्सर्ग (ovulation)
(छ) अण्डोत्सर्ग (ओव्यूलेशन) …… नामक हॉर्मोन द्वारा प्रेरित (इन्ड्यूस्ड) होता है।
उत्तर
ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन (LH)
(ज) नर एवं मादा युग्मक के संलयन (फ्यूजन) ……. को हैं।
उत्तर
निषेचन।
(झ) निषेचन …….. में संपन्न होता है।
उत्तर
अण्डवाहिनी नली के संकीर्ण पथ व तुंबिका के संधिस्थल।
(ज) युग्मनज विभक्त होकर …….. की रचना करता है जो गर्भाशय में अंतरोपित (इंप्लांटेड) होता है।
उत्तर
ब्लास्टोसिस्ट (कोरकपुटी)।
(ट) भ्रूण और गर्भाशय के बीच संवहनी सम्पर्क बनाने वाली संरचना को …….. कहते हैं।
उत्तर
अपरा (placenta)।
प्रश्न 2.
पुरुष जनन तन्त्र का एक नामांकित आरेख बनाएँ।
उत्तर
प्रश्न 3.
स्त्री जनन तन्त्र का एक नामांकित आरेख बनाएँ।
उत्तर
प्रश्न 4.
वृषण तथा अण्डाशय के बारे में प्रत्येक के दो-दो प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
वृषण के कार्य
- वृषण में जनन कोशिकाओं से शुक्रजनन (spermatogenesis) द्वारा शुक्राणुओं (sperms) का निर्माण होता है।
- वृषण की सर्टोली कोशिकाएँ (Sertoli cells) शुक्रजन कोशिकाओं तथा शुक्राणुओं का पोषण करती हैं।
- वृषण की अन्तराली कोशिकाओं से एन्ड्रोजन (androgens) हॉर्मोन्स स्रावित होते हैं, ये द्वितीयक लैंगिक लक्षणों (secondary sexual characters) के विकास को प्रभावित करते हैं।
अण्डाशय के कार्य
- अण्डाशय की जनन कोशिकाओं से अण्डजनन द्वारा अण्डाणुओं (ova) का निर्माण होता है।
- अण्डाशय की ग्राफियन पुटिका (Graafian follicle) से एस्ट्रोजन हॉर्मोन (estrogen hormone) स्रावित होता है, यह अण्डोत्सर्ग (ovulation) को प्रेरित करता है।
- अण्डाशय में बनी संरचना कॉर्पस ल्यूटियम (corpus luteum) से स्रावित प्रोजेस्टेरोन (progesterone) हॉर्मोन गर्भाशय में निषेचित अण्डाणु को स्थापित करने में सहायक होता है।
प्रश्न 5.
शुक्रजनक नलिका की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर
शुक्रजनक नलिका
वृषण का निर्माण अनेक शुक्रजनक नलिकाओं (seminiferous tubules) से होता है। शुक्रजनक नलिकाओं के मध्य संयोजी ऊतक में स्थान-स्थान पर अन्तराली कोशिकाओं (interstitial cells) के समूह स्थित होते हैं। इन्हें लेडिग कोशिकाएँ (Leydig’s cells) भी कहते हैं। इनसे स्रावित नर हॉर्मोन्स (testosterone) के कारण द्वितीयक लैंगिक लक्षण विकसित होते हैं।
प्रत्येक शुक्रजनक नलिका पतली एवं कुण्डलित होती है। यह दो पर्यों से घिरी रहती है। बाहरी पर्त को बहिःकुंचक (tunica propria) तथा भीतरी पर्त को जनन एपिथीलियम (germinal epithelium) कहते हैं। जनन एपिथीलियम का निर्माण मुख्य रूप से जनन कोशिकाओं (gem cells) से होता है। इनके मध्य स्थान-स्थान पर सटली कोशिकाएँ (Sertoli cells or nurse cells) पायी जाती हैं। जनन कोशिकाओं से शुक्रजनन द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण होता है। शुक्राणु सटली कोशिकाओं से पोषक पदार्थ एवं ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं। वृषण की शुक्रजनक नलिकाएँ वृषण नलिकाओं के माध्यम से शुक्रवाहिकाओं में खुलती हैं। शुक्रवाहिकाएँ अधिवृषण (epididymis) में खुलती हैं। अधिवृषण से एक शुक्रवाहिनी निकलकर वंक्षण नाल (inguinal canal) से होती हुई उदर गुहा में प्रवेश करती है। शुक्रवाहिनी मूत्रवाहिनी के साथ फंदा बनाकर मूत्रमार्ग के अधर भाग में खुलती है।
प्रश्न 6.
शुक्राणुजनन क्या है? संक्षेप में शुक्राणुजनन की प्रक्रिया का वर्णन करें।
उत्तर
नर युग्मक (शुक्राणुओं) की निर्माण प्रक्रिया, शुक्रजनन कहलाती है। वृषण की जनन उपकला के अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा शुक्राणु बनते हैं। यह क्रिया निम्न प्रकार होती है –
(अ) स्पर्मेटिड का निर्माण – यह क्रिया अग्रलिखित उप चरणों में पूरी होती है –
- गुणन प्रावस्था (Multiplication Phase) – प्राथमिक जनन कोशिकाएँ समसूत्री विभाजन के द्वारा विभाजित होती हैं तथा स्पर्मेटोगोनिया बनाती हैं। ये सभी कोशिकाएँ द्विगुणसूत्री (diploid) होती हैं।
- वृद्धि प्रावस्था (Growth Phase) – स्पर्मेटोगोनिया नर्सिंग कोशिकाओं से खाद्य पदार्थ ग्रहण करके आकार में बड़ी हो जाती हैं तथा इस अवस्था को प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट कहते हैं। यह अवस्था भी द्विगुणसूत्री होती है।
- परिपक्वन प्रावस्था (Maturation Phase) – प्राथमिक स्पर्मेटोसाईट में एक अर्धसूत्री विभाजन होता है जिससे द्विगुणित कोशिकाएँ बनती हैं जिन्हें द्वितीयक स्पर्मेटोसाइट कहते हैं। प्रत्येक द्वितीयक स्पर्मेटोसाइट में समसूत्री विभाजन होता है। अतः प्रत्येक प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट से 4 कोशिकाएँ बनती हैं, जिन्हें स्पर्मेटिड कहते हैं।
(ब) स्पर्मेटिड का कायान्तरण – स्पर्मेटिड में कुछ परिवर्तन होते हैं जिनके द्वारा शुक्राणु बनता है। ये परिवर्तन निम्न हैं –
- न्यूक्लिअस ठोस हो जाता है। स्पर्मेटिड से RNA निकलने के कारण केंद्रक आगे की तरफ नुकीला हो जाता है, न्यूक्लिओलस (nucleolus) तथा प्रोटीन खत्म हो जाती है।
- माइटोकॉण्ड्रिया (mitochondria) दूरस्थ सेन्ट्रीओल के चारों तरफ एकत्रित होकर एक आवरण बना लेता है जो शुक्राणुओं को ऊर्जा देता है। गॉल्जीकाय केंद्रक के अग्र भाग पर
एक्रोसोम में परिवर्तित हो जाता है। - दूरस्थ सेन्ट्रीओल एक्सोनीमा बनाता है।
- अधिकतर कोशिकाद्रव्य नष्ट हो जाता है, लेकिन इसका कुछ भाग शुक्राणु की पूँछ के चारों तरफ एक पर्त बना लेता है।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सटली कोशिकाओं के जीवद्रव्य में होती हैं। परिपक्व शुक्राणु शुक्रजनक नलिका की गुहा में छोड़ दिए जाते हैं तथा वहाँ से निकलकर लगभग 18-24 घण्टे एपीडाइडीमस (epididymus) में रहते हैं।
प्रश्न 7.
शुक्राणुजनन की प्रक्रिया के नियमन में शामिल हॉर्मोनों के नाम बताइए।
उत्तर
शुक्राणुजनन की प्रक्रिया के नियमन में निम्न हॉर्मोन शामिल होते हैं –
- गोनेडोट्रॉपिन रिलीजिंग हार्मोन (GRH)
- ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (LH)
- फॉलिकल स्टीमुलेटिंग हार्मोन (FSH)
- एन्ड्रोजेन (Androgen)
- इनहिबिन
प्रश्न 8.
शुक्राणुजनन एवं वीर्यसेचन (स्परमिएशन) की परिभाषा लिखिए।
उत्तर
शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) – वृषण में शुक्राणुजन कोशिकाओं से शुक्राणुओं (sperms) के बनने की क्रिया शुक्राणुजनन कहलाती है। शुक्राणुजन कोशिकाओं से अचल स्पर्मेटिड्स का निर्माण तीन अवस्थाओं में होता है, इन्हें क्रमशः गुणन प्रावस्था, वृद्धि प्रावस्था तथा परिपक्वन प्रावस्था कहते हैं। अचल स्पर्मेटिड्स (Spermatids) के चल शुक्राणुओं (motile sperms) में बदलने की प्रक्रिया को शुक्राणुजनन या शुक्राणु-कायान्तरण (spermiogenesis) कहते हैं।
वीर्यसेचन (Spermiation) – शुक्राणु कायान्तरण के पश्चात् मुक्त शुक्राणुओं के शीर्ष सली कोशिकाओं (sertoli cells) में अन्त:स्थापित (embedded) हो जाते हैं। शुक्रजनक नलिकाओं से शुक्राणुओं के मोचित (released) होने की प्रक्रिया को वीर्यसेचन (spermiation) कहते हैं।
प्रश्न 9.
शुक्राणु का एक नामांकित आरेख बनाइए।
उत्तर
प्रश्न 10.
शुक्रीय प्रद्रव्य (सेमिनल प्लाज्मा) के प्रमुख संघटक क्या हैं?
उत्तर
अधिवृषण (epididymis), शुक्रवाहक (vas deferens), शुक्राशय (seminal vesicle), पुरःस्थ ग्रन्थियों (prostate gland) तथा बल्बोयूरेथल ग्रन्थियों के स्राव शुक्राणुओं को गतिशील बनाए रखने तथा इन्हें परिपक्व बनाने में सहायक होते हैं। इन्हें सामूहिक रूप से शुक्रीय प्रद्रव्य (seminal plasma) कहते हैं। शुक्राणु तथा शुक्रीय प्रदव्य मिलकर वीर्य (semen) बनाते हैं। शुक्रीय प्रद्रव्य में मुख्यतः फ्रक्टोस, कैल्सियम तथा एन्जाइम होते हैं।
प्रश्न 11.
पुरुष की सहायक नलिकाओं एवं ग्रन्थियों के प्रमुख कार्य क्या हैं?
उत्तर
पुरुष की सहायक नलिकाओं के प्रमुख कार्य निम्न हैं –
- ये वृषण से शुक्राणुओं को मूत्र मार्ग द्वारा बाहर लाती हैं।
- ये शुक्राणुओं का संग्रह करती हैं।
पुरुष की सहायक ग्रन्थियों के प्रमुख कार्य निम्न हैं –
- पुरस्थ द्रव का स्राव करना जो शुक्राणुओं को सक्रिय करता है।
- काउपर्स ग्रन्थि चिपचिपा तरल स्रावित करती है जो योनि को चिकना बनाता है।
- नर हार्मोन उत्पन्न करना।
प्रश्न 12.
अण्डजनन क्या है? अण्डजनन की संक्षिप्त व्याख्या करें।
उत्तर
स्त्री के अण्डाशय के जनन एपीथिलियम की कोशिकाओं से अण्डाणुओं का निर्माण, अण्डजनन कहलाता है। अण्डजनन निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है –
(i) प्रोलीफेरेशन प्रावस्था (Proliferation Phase) – इस अवस्था की शुरुआत उस समय से होती है जब मादा फीट्स (foetus) माँ के गर्भ में लगभग 7 माह की होती है। जनन कोशिकाएँ विभाजित होकर अण्डाशय की गुहा में कोशिका गुच्छ बना देती हैं जिसे पुटिका (follicle) कहते हैं। पुटिका की एक कोशिका आकार में बड़ी हो जाती है तथा इसे ऊगोनियम (ooagonium) कहते हैं।
(ii) वृद्धि प्रावस्था (Growth Phase) – यह अवस्था भी उस समय पूरी हो जाती है जब मादा माँ के गर्भ में होती है। इस अवस्था में ऊगोनियम पोषण कोशिकाओं से भोजन एकत्रित करते समय आकार में बड़ी हो जाती है। उसे प्राथमिक ऊसाइट (primary 0ocyte) कहते हैं।
(iii) परिपक्व प्रावस्था (Maturation Phase) – यह क्रिया पूरे जनन काल (11-45) वर्ष में लगातार होती रहती है। प्राथमिक ऊसाइट में पहला अर्द्धसूत्री विभाजन होता है तथा दो असमान कोशिकाएँ बन जाती हैं। बड़ी कोशिका द्वितीयक ऊसाइट (secondary 0ocyte) कहलाती है, जबकि छोटी कोशिका को प्रथम ध्रुवीकाय (first polar body) कहते हैं। यह विभाजन अण्डोत्सर्ग से पहले होता है। दूसरा समसूत्री विभाजन अण्डवाहिनी में, अण्डोत्सर्ग के बाद होता है जिसके फलस्वरूप एक अण्डाणु तथा एक द्वितीयक ध्रुवीकाय (second polar body) बनती है। सभी ध्रुवीकाय नष्ट हो जाती हैं तथा इस सम्पूर्ण क्रिया में एक अण्डाणु प्राप्त होता है। ध्रुवीकार्य का निर्माण अण्डाणुओं को पोषण प्रदान करने के लिए होता है।
प्रश्न 13.
अण्डाशय की अनुप्रस्थ काट (ट्रांसवर्स सेक्शन) का एक नामांकित आरेख बनाएँ।
उत्तर
प्रश्न 14.
ग्राफी पुटिका (ग्राफियन फॉलिकिल) का एक नामांकित आरेख बनाएँ।
उत्तर
प्रश्न 15.
निम्नलिखित के कार्य बताइए –
- पीत पिंड (कॉर्पस ल्यूटीयम)
- गर्भाशय अन्तः स्तर (एन्डोमेट्रियम)
- अग्र पिंडक (एक्रोसोम)
- शुक्राणु पुच्छ (स्पर्म टेल)
- झालर (फिम्ब्री)
उत्तर
- पीत पिंड (कॉर्पस ल्यूटीयम) – यह प्रोजेस्ट्रॉन, एस्ट्रोजेन, रिलेक्सिन नामक हार्मोन का स्राव करता है जो गर्भाशय के अन्तः स्तर को बनाए रखते हैं।
- गर्भाशय अन्तः स्तर (एन्डोमेट्रियम) – यह निषेचित अण्डे के प्रत्यारोपण तथा सगर्भता के लिए आवश्यक है। मासिक चक्र के दौरान इसमें परिवर्तन आता है। यह अपरा निर्माण में भी सहायक है।
- अग्र पिंडक (एक्रोसोम) – इसमें उपस्थित एन्जाइम, निषेचन में सहायक होते हैं।
- शुक्राणु पुच्छ (स्पर्म टेल) – यह शुक्राणु के गमन में सहायता करती है।
- झालर (फिम्ब्री) – यह अण्डोत्सर्ग के समय; अण्डाशय से निकले अण्डाणु के संग्रह में सहायता करती है।
प्रश्न 16.
सही अथवा गलत कथनों को पहचानें –
- पुंजनों (एन्ड्रोजेन्स) का उत्पादन सटली कोशिकाओं द्वारा होता है। (सही/गलत)
- शुक्राणु को सटली कोशिकाओं से पोषण प्राप्त होता है। (सही/गलत)
- लीडिंग कोशिकाएँ, अण्डाशय में पायी जाती हैं। (सही/गलत)
- लीडिंग कोशिकाएँ पूंजनों (एन्ड्रोजेन्स) को संश्लेषित करती हैं। (सही/गलत)
- अण्डजनन पीत पिंड (कॉपर्स ल्यूटियम) में सम्पन्न होता है। (सही/गलत)
- सगर्भता (प्रेगनेंसी के दौरान आर्तव चक्र (मेन्सट्रअल साइकिल) बंद होता है। (सही/गलत)
- योनिच्छद (हाइमेन) की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति कौमार्य (वर्जिनिटी) या यौन अनुभव का विश्वसनीय संकेत नहीं है।(सही/गलत)
उत्तर
- गलत
- सही
- गलत
- सही
- गलत
- सही
- सही।
प्रश्न 17.
आर्तव चक्र क्या है? आर्तव चक्र (मेन्स्ट्रअल साइकिल) का कौन-से हार्मोन नियमन करते हैं?
उत्तर
मादाओं (प्राइमेट्स) में अण्डाणु निर्माण 28 दिन के चक्र में होती है जिसे आर्तव चक्र अथवा मासिक चक्र या ऋतु स्राव चक्र कहते हैं। प्रत्येक स्त्री में यह चक्र 12-13 वर्ष की आयु से प्रारम्भ हो जाती है तथा 45-55 वर्ष की आयु में खत्म हो जाता है। यह चक्र अण्डाशय में अण्डाणु निर्माण को दर्शाता है तथा इसके प्रारम्भ होने के साथ ही मादा गर्भधारण में सक्षम हो जाती है। आर्तव चक्र (मेन्सट्रअल साइकिल) का नियमन निम्न दो हामोंन करते हैं-(i) LH हार्मोन (ii) FSH हॉर्मोन।
प्रश्न 18.
प्रसव (पारट्यूरिशन) क्या है? प्रसव को प्रेरित करने में कौन-से हॉर्मोन शामिल होते हैं?
उत्तर
गर्भकाल पूरा होने पर पूर्ण विकसित शिशु का माता के गर्भ से बाहर आना, प्रसव (पारट्यूरिशन) कहलाता है। इस दौरान गर्भाशयी तथा उदरीय संकुचन होते हैं व गर्भाशय फैल जाता है। जिससे गर्भस्थ शिशु बाहर आ जाता है। प्रसव का प्रेरण ऑक्सिटोसिन, एस्ट्रोजेन व कॉर्टिसोल नामक हार्मोन करते हैं।
प्रश्न 19.
हमारे समाज में पुत्रियों को जन्म देने का दोष महिलाओं को दिया जाता है। बताएँ कि यह क्यों सही नहीं है?
उत्तर
स्त्री में XX गुणसूत्र तथा पुरुष में XY गुणसूत्र पाये जाते हैं। जब स्त्री का X गुणसूत्र तथा पुरुष का Y गुणसूत्र मिलते हैं तो पुत्र (XY) उत्पन्न होता है। इसके विपरीत स्त्री का X गुणसूत्र तथा पुरुष का X गुणसूत्र मिलने पर पुत्री (XX) उत्पन्न होती है। अतः उत्पन्न संतान का लिंग निर्धारण पुरुष के गुणसूत्र द्वारा होता है न कि स्त्री के गुणसूत्र से। चूंकि पुरुष में 50% X तथा 50% Y गुणसूत्र होते हैं। अतः पुरुष के गुणसूत्र का X या Y होना ही सन्तान के लिंग के लिए उत्तरदायी है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पुत्रियों को जन्म देने का दोष महिलाओं को देना सर्वदा गलत है।
प्रश्न 20.
एक माह में मानव अण्डाशय से कितने अण्डे मोचित होते हैं? यदि माता ने समरूप जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया हो तो आप क्या सोचते हैं कि कितने अण्डे मोचित हुए होंगे? क्या आपका उत्तर बदलेगा यदि जन्मे हुए जुड़वाँ बच्चे द्विअण्ड यमज थे?
उत्तर
एक माह में मानव अण्डाशय से सिर्फ एक अण्डा मोचित होता है। समरूप जुड़वाँ बच्चों का जन्म होने पर भी एक माह में एक ही अण्डा मोचित हुआ होगा। द्विअण्ड यमज के सन्दर्भ में एक माह में दो अण्डे मोचित हुए होंगे।
प्रश्न 21.
आप क्या सोचते हैं कि कुतिया जिसने 6 बच्चों को जन्म दिया है, के अण्डाशय से कितने अण्डे मोचित हुए थे?
उत्तर
6 अण्डे मोचित हुए थे।
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
समरूप जुड़वाँ बच्चे पैदा होते हैं जब
(क) एक शुक्राणु दो अंडाणुओं का निषेचन करे
(ख) एक अण्डाणु का दो शुक्राणु निषेचन करें
(ग) दो अण्डाणु दो भिन्न शुक्राणुओं द्वारा निषेचित हों
(घ) एक निषेचित अण्डा दो कोरक खण्डों में विभक्त होकर पृथक्-पृथक् दो स्वतंत्र भ्रूण के रूप में विकसित हो
उत्तर
(घ) एक निषेचित अण्डा दो कोरक खण्डों में विभक्त होकर पृथक्-पृथक् दो स्वतंत्र भ्रूण के रूप में विकसित हो
प्रश्न 2.
ब्लास्टुला अवस्था में भ्रूण को सर्वप्रथम गर्भाशय से जोड़ने का कार्य निम्न में से कौन-सी झिल्ली करती है?
(क) एम्निओन
(ख) अपरा/कोरियोन
(ग) ऐलेन्टॉयस
(घ) योक सैक
उत्तर
(ख) अपरा/कोरियोन
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
फर्टीलाइजिन तथा एण्टी-फर्टीलाइजिन प्रक्रिया पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
अण्डाणु से फर्टीलाइजिन तथा शुक्राणु से एण्टीफर्टीलाइजिन स्रावित होते हैं, इसलिए शुक्राणु अण्डाणु की ओर आकर्षित हो जाते हैं।
प्रश्न 2.
कृत्रिम शुक्रसंसेचन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
इसमें परिरक्षित शुक्राणु द्वारा स्त्री की फैलोपियन नलिका से लिए गए अण्डाणु का परखनली में निषेचन किया जाता है। इसके पश्चात् युग्मनज को स्त्री के गर्भाशय में रोपित कर दिया जाता है। इस प्रकार की सन्तान को परखनली शिशु कहते हैं।
प्रश्न 3.
ऐसे दो जन्तुओं के नाम लिखिए जिनमें रुधिर जरायु अपरा पाया जाता है।
उत्तर
यूथीरिया अधोवर्ग के प्राणियों में रुधिर जरायु अपरा पाया जाता है; जैसे-कपि तथा मनुष्य।
प्रश्न 4.
मॉरुला तथा ब्लास्टुला में एक अन्तर लिखिए।
उत्तर
मॉरुला कोशिकाओं से बनी ठोस गेंद सदृश रचना होती है, इसके विपरीत ब्लास्टुला में कोरक गुहा या ब्लास्टोसील नामक गुहा का निर्माण हो जाता है।
प्रश्न 5.
भ्रूण के मीजोडर्म स्तर द्वारा निर्मित किन्हीं चार अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर
त्वचा की डर्मिस, संयोजी ऊतक, वृक्क, जनद, हृदय, रक्त वाहिनियाँ तथा लसीका वाहिनियाँ, नोटोकॉर्ड तथा अन्त:कंकाल।
प्रश्न 6.
आपातकालीन ग्रन्थि का नाम लिखिए।
उत्तर
ऐड्रीनल मेड्यूला को आपातकालीन ग्रन्थि कहते हैं।
प्रश्न 7.
शिशुजन्म के बाद कौन-सा हॉर्मोन दूध मुक्त करता है? उसका स्रोत बताइए।
उत्तर
शिशुजन्म के बाद प्रोलेक्टिन (prolactin) हॉर्मोन दूध मुक्त करता है तथा एक अन्य हॉर्मोन दूध को स्तन से बाहर निकलने को उद्दीपित करता है। इसका स्रोत पीयूष ग्रन्थि है।
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लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
यौवनारम्भ क्या है? इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं के शरीर में होने वाले परिवर्तन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
यौवनारम्भ भौतिक परिवर्तनों की वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालकों का शरीर एक वयस्क शरीर के रूप में विकसित होता है तथा उनमें प्रजनन एवं निषेचन की क्षमता भी विकसित हो जाती है।
बालक के यौवनारम्भ पर उत्पन्न लक्षण
बालक के शरीर में यौवनावस्था (puberty) प्रारम्भ होने के समय (लगभग 15-18 वर्ष) से ही निम्नलिखित लक्षण विकसित होने लगते हैं –
- शरीर की सुडौलता – शरीर अधिक मजबूत, मांसपेशीयुक्त, सुडौल, अधिक शक्तिशाली होने लगता है; कन्धे अधिक चौड़े हो जाते हैं तथा वृद्धि के कारण लम्बाई बढ़ने लगती है।
- शरीर पर बाल – चेहरे पर मूंछ और बाद में दाढ़ी के बाल निकलने लगते हैं, वृषण कोषों आदि पर तथा उनके आस-पास बाल निकल आते हैं।
- आवाज का भारीपन – आवाज में काफी परिवर्तन आने लगता है। यह भारी होने लगती है तथा | इसकी दृढ़ता में भी बढ़ोतरी होती है।
उपर्युक्त परिवर्तन गौण लैंगिक लक्षण कहलाते हैं तथा वृषणों में बनने वाले नर हॉर्मोन, टेस्टोस्टेरोन के कारण सम्भव होते हैं जो प्रारम्भ में लगभग 20 वर्ष की आयु तक अधिक मात्रा में स्रावित होता है और अनेक शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन लाता है।
बालिका के यौवनारम्भ पर उत्पन्न लक्षण
बालिकाओं में रजोधर्म प्रारम्भ होने से पूर्व होने वाले परिवर्तनों में अण्डाशयों तथा उनके सहायक अंगों का विकास सम्मिलित है। पीयूष ग्रन्थि से उत्पन्न जनद प्रेरक हॉर्मोन्स इन कार्यों को 11 से 13 वर्ष की उम्र में प्रेरित करने लगते हैं और अण्डाशये के अन्दर उपस्थित पुटिकाओं से एस्ट्रोजेन्स (हॉर्मोन्स) स्रावित होने लगते हैं, फलस्वरूप यौवनारम्भ (puberty) के लिए परिवर्तन होने लगते हैं। इन्हीं के प्रभाव से निम्नलिखित गौण लैंगिक लक्षण भी विकसित होते हैं –
- स्तनों की वृद्धि तथा सुडौल होना (इनमें दुग्ध ग्रन्थियों का बनना आदि भी)।
- बाह्य जननांगों; जैसे–योनि, लैबिया, भगशिश्न आदि का समुचित विकास।
- श्रोणि भाग का चौड़ा होना तथा नितम्बों का भारी होना।
- बगल तथा जननांगों (भगद्वार) आदि के आस-पास बालों का उगना।
- स्वभाव में शीतलता तथा आवाज का महीन होना।
- मासिक स्राव एवं आर्तव चक्र का प्रारम्भ होना।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए –
(क) मानव भ्रूण का रोपण,
(ख) स्तनियों में अपरा,
या
अपरा क्या है? इसके मुख्य कार्य लिखिए।
उत्तर
(क) मानव भ्रूण का रोपण
निषेचन के लगभग एक घण्टे के बाद युग्मनज (zygote) का विदलन शुरू हो जाता है और चौथे दिन तक चार बार मिटॉटिक विभाजनों द्वारा विभाजित होकर 16 कोरकखण्डों (blastomeres) की एक गोल ठोस संरचना बनती है, यह संरचना मॉरुला (morula) कहलाती है। इसका निर्माण होते-होते यह गर्भाशय में पहुँच जाता है।
मॉरुला के गर्भाशय में जाने के बाद गर्भाशय गुहा का ग्लाइकोजनयुक्त पोषक तरल मॉरुला (भ्रूण) में भीतर जाने लगता है, जिससे मॉरुला के अन्दर पोषक तरल से भरी हुई एक गुहा-सी बन जाती है। इस गुहा को ब्लास्टोसील (blastocoel) कहते हैं। भ्रूण की इस प्रावस्था को ब्लास्टोसिस्ट (blastocyst) कहते हैं। इसके बनते-बनते भ्रूण का पारभासी आवरण समाप्त हो जाता है। गुहा की दीवार की कोशिकाएँ चपटी हो जाती हैं। इन्हें अब ट्रोफोब्लास्ट (trophoblast) कहते हैं। ट्रोफोब्लास्ट गर्भाशय से पोषक रसों का अवशोषण करती है। ट्रोफोब्लास्ट आँवल (placenta) के निर्माण में भी भाग लेती हैं। ब्लास्टुला की भीतरी कोशिका पिण्ड को भ्रूणबीज (embryoblast) कहते हैं, क्योंकि इसी से भावी भ्रूण के विभिन्न भाग बनते हैं।
निषेचन के एक सप्ताह बाद ब्लास्टोसिस्ट गर्भाशय के ऊपरी भाग में इसकी भित्ति से चिपक जाता है। अर्थात् ब्लास्टोसिस्ट का गर्भाशय भित्ति में रोपण प्रारम्भ हो जाता है। ट्रोफोब्लास्ट की बाह्य सतह से कुछ अंगुली सदृश प्रवर्ध निकलकर गर्भाशय भित्ति के अन्तः स्तर में घुसकर निषेचन के लगभग 8 दिन बाद भ्रूण को गर्भाशयी भित्ति से जोड़ देते हैं, यही क्रिया भ्रूण का रोपण (implantation of embryo) है।
(ख) स्तनियों में अपरा, आँवल या जरायु
अपरा एक संयुक्त ऊतक है जो स्तनपोषियों में, मादा के गर्भ में, भ्रूण (embryo) का गर्भाशय भित्ति के साथ संरचनात्मक तथा क्रियात्मक सम्बन्ध स्थापित करती है। निषेचन (fertilization) के बाद निषेचित अण्डाणु, विदलन (cleavage) करता हुआ एक परिवर्द्धनशील भ्रूण में परिवर्तित होकर जब गर्भाशय (uterus) में पहुँचता है तो गर्भाशय भित्ति के चिपचिपा हो जाने के कारण उसी से चिपक जाता है। यह क्रिया रोपण (implantation) है। इस समय तक कॉर्पस ल्यूटियम (corpus luteum) द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स प्रोजेस्टेरॉन (progesterone) के प्रभाव से गर्भाशय भित्ति में अनेक परिवर्तन होते हैं।
गर्भाशय भित्ति से चिपके हुए भ्रूण की विशिष्ट कलाएँ तथा गर्भाशय भित्ति मिलकर अपरा (placenta) का निर्माण करते हैं। इस सम्पूर्ण क्रिया को गर्भाधान (conception) कहते हैं।
अपरा के कार्य (Functions of Placenta) – अपरा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ऊतक है, इसका भ्रूण की जीवन-क्रियाओं को चलाने के लिए मादा के शरीर से विशिष्ट सम्बन्ध है। अपरा के अग्रलिखित कार्य होते हैं –
1. भूण का पोषण – भ्रूण अपरा के द्वारा ही माता से समस्त पोषक पदार्थ प्राप्त करता है। माता की रुधिर वाहिनियों का सम्बन्ध भ्रूण की रुधिर वाहिनियों से होता है; अतः माता के रुधिर में आने वाले पचे हुए खाद्य पदार्थ, सरल रूप में भ्रूण को मिलते रहते हैं। अपरा में इन खाद्य पदार्थों का और भी सरलीकरण किया जाता है तथा यह भ्रूण की आवश्यकता के लिए कुछ खाद्य पदार्थों का संग्रह भी करता है।
2. भूण का श्वसन – माता के शरीर से रुधिर के द्वारा ही भ्रूण को ऑक्सीजन के अणु प्राप्त होते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड भी इसी रुधिर द्वारा वापस की जाती है। इस प्रकार श्वसन क्रिया के लिए वात विनिमय (gaseous exchange) का कार्य अपरा ही करता है।
3. भूण का उत्सर्जन – भ्रूण के उत्सर्जी पदार्थ भ्रूण के रुधिर से अपरा क्षेत्र में माता के रुधिर में विसरित होते रहते हैं। इनका निष्कासन भी माता के उत्सर्जी अंगों द्वारा किया जाता है।
4. हॉर्मोन्स का स्रावण – गर्भावस्था को उचित रूप में बनाये रखने आदि के लिए अपरा से एस्ट्रोजेन्स, प्रोजेस्टेरॉन, जरायु गोनैडोट्रॉपिन आदि हॉर्मोन्स का स्रावण होता है। इसी प्रकार प्रसव | को आसान करने के लिए अपरा द्वारा रिलैक्सिन हॉर्मोन का भी स्रावण होता है।
प्रश्न 3.
अपरा द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
अपरा से दो स्टेरॉइड तथा दो प्रोटीन हॉर्मोन्स स्रावित होते हैं –
- कोरिओनिक गोनेडोट्रॉपिक हॉर्मोन (CGH) – यह प्रोटीन हॉमोंन गर्भधारण (pregnancy) को बनाये रखता है। यह कॉर्पस ल्यूटियम के विकास तथा इसके हॉर्मोन स्राव पर नियन्त्रण करता है।
- प्लेसैन्टस लैक्टोजन – यह प्रोटीन हॉमोंन दुग्ध ग्रन्थियों को प्रेरित करता है।
- ऐस्ट्रेडियॉल – यह स्टेरॉइड हॉर्मोन गर्भाशय की पेशियों के संकुचन का नियन्त्रण करता है।
- प्रोजेस्टेरॉन – यह स्टेरॉइड हॉर्मोन गर्भधारण में सहायता करता है।
प्रश्न 4.
गर्भ झिल्लियों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
या
एम्निऑन के चार महत्त्वपूर्ण कार्य लिखिए।
उत्तर
गर्भ झिल्लियाँ
भ्रूण की देह के बाहर विकसित होने वाली झिल्लियाँ अथवा कलाओं (membranes) को भ्रूण-बहिस्थ कलाएँ कहते हैं। ये भ्रूण के परिवर्द्धन एवं जीवन के लिए विशेष कार्य करती हैं, परन्तु भ्रूण के अंगोत्पादन में भाग नहीं लेतीं। जन्म अथवा डिम्बोद्गमन के समय इनका निष्कासन हो जाता है। मानव तथा अन्य सभी स्तनियों, सरीसृपों, पक्षियों में चार भ्रूण-बहिस्थ कलाएँ या गर्भ झिल्लियाँ निर्मित होती हैं। ये चार भ्रूणीय-बहिस्थ कलाएँ इस प्रकार हैं –
1. उल्व (Amnion) – यह कला भ्रूण को चारों ओर से घेरे रहती है। भ्रूण के चारों ओर की इस गुहा को उल्व गुहा (amniotic cavity) कहते हैं। इस गुहा में एक तरल भरा रहता है जिसे उल्व तरल या एम्निऑटिक तरल (amniotic fluid) कहते हैं। इस तरल में मन्द गति होती रहती है जिसके कारण भ्रूण के अंग परस्पर चिपकते नहीं। इस प्रकार, एम्निऑटिक तरल भ्रूण के अंगों में विकृतियाँ उत्पन्न होने से बचाता है। यह निम्नलिखित कार्य करता है –
- एम्निऑटिक तरल भ्रूण की बाह्य आघातों से रक्षा करता है।
- एम्निऑन भ्रूण को कवच एवं भ्रूण-बहिस्थ कलाओं से पृथक् रखकर इनसे चिपकने से रोकता है।
- एम्निऑटिक तरल में डूबे रहने से भ्रूण के सूखने (desiccation) का भय नहीं होता।
- एम्निऑटिक तरल में होने वाली मन्द गति के कारण अंग आपस में चिपकते नहीं।
2. चर्मिका (Chorion) – कॉरिऑन में वृद्धि तीव्र गति से होती है। यह एम्निऑन के बाहर की ओर निर्मित होती है। कॉरिऑन जरायु (placenta) का निर्माण करती है। एम्निऑन तथा कॉरिऑन के बीच की गुहा को कॉरिऑनिक गुहा (chorionic cavity) कहते हैं। कॉरिऑन की एक्टोडर्म या ट्रोफोब्लास्ट की बाह्य सतह पर दीर्घ अंकुर उत्पन्न होते हैं जिन्हें कॉरिऑनिक अंकुर (chorionic villi) कहते हैं। ये अंकुर गर्भाशय की भित्ति में धंस जाते हैं। ये रसांकुर भ्रूण के पोषण, श्वसन तथा उत्सर्जन में सहायक हैं।
कॉरिऑन से एक हॉर्मोन, कॉरिओनिक गोनैडोट्रॉपिन का स्रावण होता है, जो प्लैसेण्टा विकसित होने तक डिम्ब ग्रन्थि में कॉर्पस ल्यूटियम को सक्रिय रखता है।
3. पीतक कोष (Yolk Sac) – मानव का पीतक कोष छोटा होता है और यह भ्रूण-बहिस्थ गुहा द्वारा चर्मका से पृथक् रहता है। स्तनियों के भ्रूण में पीतक नहीं होता है। पीतक कोष में रुधिर निर्माण होता है। विकास की अन्तिम प्रावस्थाओं में जब अपरापोषिका विकसित हो जाती है, तब पीतक कोष छोटा होने लगता है और धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है।
4. अपरापोषक या एलैण्टोइस (Allantois) – मानव के भ्रूण में अपरापोषक एक अवशेषी अंग के रूप में होती है। अन्य स्तनियों में अपरापोषक स्प्लैंकनोप्ल्यूर (एण्डोडर्म एवं स्प्लैंकनिक मीसोडर्म) से निर्मित होती है। स्प्लैंकनिक मीसोडर्म कॉरिऑन के मीसोडर्म स्तर के सम्पर्क में आकर इससे समेकित (fuse) हो जाती है। इस प्रकार, एक मिश्रित भित्ति निर्मित होती है जिसे एलैण्टोकोरिऑन (allantochorion) कहते हैं। एलैण्टोकॉरिऑन, एलैण्टॉइक प्लैसेण्टा की उत्पत्ति में भाग लेती है।
पीतक कोष एवं एलैण्टोइस के वृन्त संयुक्त रूप से नाभि रज्जु (umbilical cord or belly stalk) निर्मित करते हैं।
स्तनधारियों में एलैण्टोइस मूत्राशय का कार्य नहीं करती, क्योंकि भ्रूण के उत्सर्जी पदार्थों का माँ के रुधिर परिवहन में विसरण हो जाता है एवं माँ के वृक्कों के द्वारा इनका उत्सर्जन होता है। एलैण्टोइस का रुधिर परिवहन तन्त्र भ्रूण को ऑक्सीजन एवं पोषण प्रदान कराता है।
प्रश्न 5.
प्राणियों में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष भ्रूणीय विकास में उदाहरण सहित अन्तर बताइए।
या
प्रत्यक्ष एवं परोक्ष भ्रूणीय विकास क्या हैं ? इनके उदाहरण दीजिए।
उत्तर
जाइगोट से शिशु निर्माण तक जो भी परिवर्तन होते हैं, उन्हें भ्रूणीय विकास (embryonic development) कहते हैं। भ्रूणीय विकास दो प्रकार का होता है –
1. परोक्ष भूणीय विकास (Indirect Embryonic Development) – जब परिवर्द्धन (development) के बाद अण्डे से निकला जन्तु सामान्य शिशु से काफी भिन्न होता है और फिर यह रूपान्तरण (metamorphosis) के द्वारा सामान्य शिशु में परिवर्तित होता है, ऐसे परिवर्द्धन को परोक्ष या अप्रत्यक्ष विकास कहते हैं। अण्डे से निकले जन्तु को विकास की शिशु प्रावस्था (larval stage) कहते हैं। इस प्रकार का परिवर्द्धन मुख्यत: अकशेरुकी जन्तुओं तथा अन्य कुछ कशेरुकी, विशेषत: मेंढक तथा अन्य उभयचरों में पाया जाता है। इनमें भ्रूण के पोषण के लिए पीत (yolk) की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है।
2. प्रत्यक्ष भूणीय विकास (Direct Embryonic Development) – इस प्रकार के विकास में अण्डे से निकला जीव अथवा नवजात शिशु रचना में वयस्क प्राणि के समान ही होता है जिनमें जनन परिपक्वता (sexual maturity) नहीं होती। इनमें आयु के साथ-साथ शरीर की वृद्धि तथा जनन परिपक्वता आ जाती है तभी यह प्रौढ़ होता है। ऐसे भ्रूणीय विकास को प्रत्यक्ष भ्रूणीय विकास कहते हैं। इनमें भ्रूण के पोषण के लिए अधिक पीत (yolk) पाया जाता है। इस प्रकार का विकास घोंघों, पक्षियों, सरीसृपों तथा सभी स्तनियों में पाया जाता है। मानव में मादा आँवल (placenta) के द्वारा भ्रूण को पोषण देती है, यही कारण है कि इस प्रकार के जन्तुओं में एक बार में कम सन्ताने उत्पन्न होती हैं।
NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 3 Human Reproduction Study Learner
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निषेचन क्रिया किसे कहते हैं? मनुष्य में निषेचन में होने वाली क्रियाओं का उल्लेख कीजिए तथा अण्डाणु में शुक्राणु के प्रवेश का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर
निषेचन क्रिया
मनुष्य के जीवन चक्र में प्रत्यक्ष भ्रूणीय विकास होता है। यह भ्रूणीय विकास माता के गर्भाशय (uterus) में होता है।
मनुष्य के भ्रूणीय विकास का प्रारम्भ निषेचन से होता है। मनुष्य में निषेचन (fertilization) फैलोपियन नलिका (fallopian tube) में होता है। इस क्रिया में फैलोपियन नलिका में मैथुन (सम्भोग) के समय पुरुष द्वारा छोड़े हुए वीर्य में उपस्थित शुक्राणुओं (sperms) में से एक अगुणित शुक्राणु (haploid sperm) एक अगुणित अण्डाणु (haploid ovum) से समेकित (fuse) हो जाता है और एक द्विगुणित रचना युग्मनज (zygote) बनाता है। समेकन की इस क्रिया को निषेचन कहते हैं।
निषेचन क्रिया में मादा युग्मक या अण्डाणु सम्पूर्ण रूप में किन्तु नर युग्मक अर्थात् शुक्राणु का केवल केन्द्रक (nucleus = n) ही भाग लेता है। मैथुन से निषेचन तक की वास्तविक क्रिया के निम्नलिखित चरण होते हैं –
1. शुक्राणु का अण्डाणु की ओर पहुँचना – मादा की योनि में नर के द्वारा स्खलित वीर्य में से कुछ सफल शुक्राणु (sperms) अपनी पूँछ की सहायता से 1-4 मिमी प्रति मिनट की गति से फैलोपियन नलिका में पहुँचते हैं। इस कार्य में गर्भाशय की सीरिंज अवशोषण क्रिया तथा क्रमाकुंचन गति इन्हें ऊपर चढ़ने में सहायक होती है। फैलोपियन नलिका में संकुचन की उत्तेजना वीर्य में उपस्थित प्रोस्टाग्लाण्डिस तथा ऑक्सीटोसिन की उपस्थिति से प्रेरित होती है।
2. समूहन प्रक्रिया – मैथुन के पश्चात् जब अण्डाणु और शुक्राणु समीप आते हैं तब अण्डाणु फर्टीलाइजिन तथा शुक्राणु एण्टीफर्टीलाइजिन नामक पदार्थ का स्राव करता है। एण्टीफर्टीलाइजिन फर्टीलाइजिन की ओर आकर्षित होता है, जिसके फलस्वरूप अण्डाणु शुक्राणु की ओर आता है और इनका समूहन होता है। अब तक स्रावों की मात्रा कम हो जाने से अण्डे तक पहुँचने वाले शुक्राणुओं की संख्या कम होती जाती है।
स्त्री के जनन नाल में शुक्राणु 1-5 दिन तक जीवित रह सकते हैं किन्तु ये स्खलन के 12-24 घण्टों की अवधि में अण्डाणु का निषेचन कर सकते हैं।
3. संधारण – वीर्य योनि की अम्लीयता को समाप्त करके शुक्राणुओं को अण्डाणु का निषेचन करने में सहायक होते हैं। इस प्रक्रिया को संधारण कहते हैं। सामान्यत: केवल एक शुक्राणु ही अण्डाणु में प्रवेश कर पाता है। वह क्षेत्र जहाँ से ध्रुवकाय (polar body) के बाहर निकलने पर शुक्राणु इसमें प्रवेश करता है उसे सक्रिय ध्रुव (active pole) कहते हैं। अण्डाणु की सतह पर स्थित कुछ ग्राहियों की सहायता से शुक्राणु का शीर्ष अण्डाणु की सतह से चिपक जाता है।
4. शुक्राणु द्वारा अण्डाणु का बेधन – अण्डाणु की सतह से चिपकने के बाद शुक्राणु का एक्रोसोम (acrosome) स्पर्म लाइसिन (sperm lysin) नामक एन्जाइम का स्राव करता है। इसमें हाइल्यूरोनिडेज (hyaluronidase) तथा प्रोटियेज (protease) एन्जाइम्स होते हैं। ये । एन्जाइम अण्डाणु के कोरोना रेडिएटा तथा जोना पेलुसिडा को विघटित करके शुक्राणु को अण्डाणु में प्रवेश के लिये मार्ग बनाते हैं। जैसे ही शुक्राणु अण्डाणु में प्रवेश करता है अण्डाणु में कुछ ऐसे परिवर्तन हो जाते हैं, जिससे दूसरा शुक्राणु इसमें प्रवेश नहीं कर सकता। शुक्राणु की पूँछ अण्डाणु में प्रवेश नहीं करती है। अण्डाणु के चारों ओर हाइल्यूरोनिक अम्ल द्वारा चिपकी फॉलिकल कोशिकाओं का अपघटन करने के लिए शुक्राणु हाइल्यूरोनिडेज (hyaluronidase) एन्जाइम स्रावित करता है। इससे सम्पर्क स्थल पर अण्डे के बाहरी आवरण कोरोना रेडियेटा (corona radiata) तथा जोना पेलुसिडा (zona pellucida) नष्ट हो जाते हैं।
शुक्राणु के सम्पर्क स्थल पर अण्डाणु की बाहरी दीवार (भित्ति) फूलकर एक निषेचन शंकु (fertilization cone) बनाती है। अण्डाणु की प्लाज्माकला से चिपकने के पश्चात् शुक्राणु का एक्रोसोम स्पर्म लाइसिन एन्जाइम स्रावित करता है। इसके द्वारा अण्डाणु की प्लाज्मा कला घुल जाती है और शुक्राणु धीरे-धीरे अण्डाणु में प्रवेश कर जाता है।
5. अण्डाणु का सक्रियण – शुक्राणु के प्रवेश करते ही अण्ड कोशिका से एक रासायनिक संकेत अण्डाणु की सतह की ओर प्रेषित होता है, जिसके कारण अण्डकोशिका के चारों ओर स्थित शुक्राणुओं में से कोई भी शुक्राणु अब अण्डाणु में प्रवेश नहीं करने पाता है। अण्डाणु की प्लाज्माकला के नीचे स्थित कॉर्टिकल कणिकाएँ निषेचन झिल्ली बनाती हैं। इसे अण्डाणु का सक्रियण कहते हैं। निषेचन झिल्ली अन्य शुक्राणुओं को अण्डाणु में प्रवेश करने से रोक देती है।
6. शुक्राणु तथा अण्डाणु के केन्द्रक का संलयन – शुक्राणु के अण्डे में प्रवेश करते ही उसके कोशिकाद्रव्य एवं कॉर्टेक्स में अनेक परिवर्तन होने लगते हैं। इन परिवर्तनों के कारण सक्रिय अण्डाणु में समसूत्री विभाजन (mitosis) की तैयारियाँ प्रारम्भ हो जाती हैं।
अण्डाणु के अन्दर शुक्राणु का नर पूर्व केन्द्रक (male pronucleus) एक निश्चित पथ पर अण्डाणु के मादा पूर्व केन्द्रक (female pronucleus) की ओर अग्रसर होता है। इस पथ को शुक्राणु प्रवेश पथ (sperm penetration path) कहते हैं। अब नर एवं मादा पूर्व केन्द्रकों का परस्पर स्थापित हो जाने से दोनों का संलयन (fusion) हो जाता है, जिसके फलस्वरूप युग्मनज (zygote) बनता है, जिसमें गुणसूत्रों की संख्या पुनः द्विगुणित (2n) हो जाती है। इसके साथ ही माता-पिता के गुणसूत्रों का परस्पर मिश्रण हो जाता है।
निषेचित अण्डे को अब युग्मनज (zygote) तथा इसके केन्द्रक को सिन्कैरिओन (synkaryon) कहते हैं। दोनों पूर्व केन्द्रकों के संलयन को उभय मिश्रण (amphimixis) कहते हैं। सेण्ट्रिओल सहित शुक्राणु केन्द्रक के प्रवेश से अण्डाणु के कोशिकाद्रव्य में तर्क निर्माण प्रारम्भ हो जाता है और युग्मनज प्रथम केन्द्रक विभाजन के लिए तैयार हो जाता है।
प्रश्न 2.
विदलन एवं समसूत्री विभाजन में अन्तर स्पष्ट कीजिए । मनुष्य के युग्मनज में विदलन को समझाइए एवं इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर
विदलन तथा समसूत्री विभाजन में अन्तर
मनुष्य के युग्मनज में विदलन
निषेचन के पश्चात् युग्मनज में तेजी से समसूत्री विभाजन होता है अत: यह अनेक कोशिकाओं के समूह में विभाजित होता है। इसके आकार में कोई परिवर्तन नहीं आता है व इसे क्रिया को विदलन (cleavage) कहते हैं। इससे कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है। विदलने द्वारा बनी कोशिकाएँ ब्लास्टोमीयर्स (blastomeres) कहलाती हैं। मानव में पूर्णभंजी विदलन (holoblastic cleavage) होता है। युग्मनज में प्रथम विदलन प्रायः निषेचन के तीस घण्टे बाद होता है तथा युग्मनज के अण्डवाहिनी के ऊपरी हिस्से में उपस्थित होने के दौरान यह विदलन होता है। पहले विदलन में युग्मनज मध्य अक्ष से पूर्ण रूप से दो ब्लास्टोमीयर्स में बँट जाता है।
दूसरा विदलन निषेचन के प्रायः 44 घण्टे बाद होता है व यह प्रथम विदलन के समकोण पर होता है। अतः युग्मनज चार समान ब्लास्टोमीयर्स में विभाजित हो जाता है। तृतीय विदलन प्रायः निषेचन के तीन दिन बाद होता है तथा ये पहले दो विभाजनों के 90° के कोण पर होता है। विदलन के दौरान भ्रूण अण्डवाहिनी में नीचे की ओर खिसकता जाता है। तृतीय विदलन के पश्चात् विदलन अनिश्चित रूप से होता है तथा चौथे दिन भ्रूण गर्भाशय में पहुंच जाता है। यह भ्रूण 32 कोशिकाओं (32 cells) का होता है व इसे मोरूला (morula) कहते हैं।
विदलन के लाभ
विदलन द्वारा होने वाले लाभ निम्नवत् हैं –
- युग्मनज का जीवद्रव्य ब्लास्टोमीयर्स में विभाजित हो जाता है।
- विदलन जीवद्रव्य को गति प्रदान करता है तथा जनन स्तर (germ layers) बनाने में सहायता | करता है।
- यह ऊतक तथा अंग बनाने में सहायता करता है।
- विदलन के कारण निश्चित केंद्रकी जीवद्रव्य अनुपात (ratio) बनता है।
- इसके फलस्वरूप एककोशिकीय युग्मनज बहुकोशिकीय भ्रूण में परिवर्तित हो जाता है।
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