RBSE Solution for Class 11 Biology Chapter 3 वनस्पति जगत
Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
शवाल के वर्गीकरण का क्या आधार है?
उत्तर:
शेषलों का वर्गीकरण मुख्यतः उनमें उपस्थित मुख्य वर्णक, संचित भोजन तथा शेशिका भिति के आधार पर किया गया है। इनमें से भी वर्णक महत्वपूर्ण हैं। वर्णकों की उपस्थिति के कारण शैवाल विभिन्न रंग की होती है। शैवालों को मुख्यतः तीन भागों – क्लोरोफादसी, फीयोफ्याइसी व रोडोफाइसी में विभक्त किया गया है। इनके प्रमुख लक्षण निम्न प्रकार से हैं:
प्रभाग | सामान्य नाम | प्रमुख वर्णक | संचित भोजन | कोशिका भिति |
1. क्लोरोफदसी | हरे शैवाल | क्लोरोफिल a,b | स्टार्च | सेल्यूलोज |
2. फीयोफाइसी | भूरे शैवाल | क्लोरोफिल a,c | लैमिनेरिन | सेल्यूलोज तथा |
3. रोद्योपाइसी | लाल शैवाल | फ्यूकोजैंथिन | मैनीयेल | एलजिन |
क्लोरोफिल a,d | फ्लोरिडिऑन | सेल्यूलोज | ||
फाइकोइरिथ्रिन | स्टार्च | कोशिका भिति |
प्रश्न 2.
लिबरवर्ट, मॉस, फर्न, जिम्नोस्पर्म तथा एंजियोस्पर्म के जीवन – चक्र में कहाँ और कब निम्नीकरण विभाजन होता है?
उत्तर:
निम्नीकरण विभाजन को ही अईसूची विभाका कहते हैं। लिवरवई व मांस दोनों समूह ब्रायोफ्नाइट के अन्तर्गत आते हैं। इनमें स्पोराफाइट के कैप्स्यूल में स्पोर बनने के समय निम्नीकरण विभाजन होता है। फर्न जो कि टैरिडोपाट समूह या पादप है, उनमें बीजपानी में स्थित बीजाणु माद कोशिका में निम्नीकरण विभाजन होने से बीजाणु बनते हैं। बिनोस्पर्म विषायीजापुक पादप होते हैं, इनमें लचीजणु तथा गुरुवीजाणुओं या निर्माण होता है। लपुषीजाणु नर शंकु के लपुबीजाणुपर्ण पर स्थित लघुवीजाधानी में उत्पन्न होते हैं। यहाँ निम्नीकरण विभाजन लपुचीज मातृ कोशिका में होने से अगुनित लघुवीजाणुओं का निर्माण होता है।
गुरुबीनागु मादा शंकु में लगे गुरुबीजाणुपर्ग पर स्थित्त गुरुयोजधानी में उत्पन्न होते हैं। गुरुयोगणुभानी में स्थित गुरुवीजाणु मातृ कोशिका में निम्नीकरण विभाजन होने से गुरुबीजाणु वनो हैं। रांजियोस्पर्म पौधों में पुत्र होता है जिसमें कर जनन अंग पुंकेसर तथा मदा जनन अंग जायांग होता है। पुंकेसर के परागकोश में स्थित लघुवीजाणु मत कोशिकाओं में निम्नीकरण विभाजन होने से लघुबीजानु वा परागकण का निर्माण होता है। जायांग के अण्डाशय में बीजाण्ड होता है जिसमें गुरुबीजाणु मत कोशिका का निम्नीत्रण विभाजा होने से अगुमित गुरुबीजाणु बनते हैं।
प्रश्न 3.
पौधे के तीन वर्गों के नाम लिखो,जिनमें स्त्रीधानी होती है। इनमें से किसी एक के जीवन-चक्र का संक्षिपा वर्णन करो।
उत्तर:
पौधों के प्रायोफाइट, टेरिडोफाइट तथा जिम्नोस्पर्म समूह में स्त्रीधानी पाई जाती है। यहाँ जीवन – चक्र की दृष्टि से बायोफाइट का वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है।
प्रायोपाट समूह के पादपों में जैसे लिवरवर्ड का पादपकाय बैलखनुमा व युग्मकोद्भिद होता है। इनके लैंगिक अंग बहुकोशिकीय होते हैं। नर सगिक को पुंधानी तथा मादा लीगक अंग स्वीधानी होती है। पुंधानी से द्विकशाभिक पुमण उत्पात्र होकर जल में स्वतन्त्र रूप से तैरकर मादा जनन अंग तक पहुँच जाते हैं। मादा जनन अंग फ्लास्क के आकार का होता है जिसमें एक अंड होता है। स्वतंत्र होते हुये पुमणु स्त्रीधानो के सम्पर्क में आकर अण्ट से संगलित होकर युग्ननक (डिगुणित) का निर्माण करते हैं। युग्मनज का विकास होने से एक चहकोशिक बीजण उभिद (सोरोपाइट) बन जाता है। स्पोरोपाइट प्रकाशसंश्लेषी युग्मकोद्भिद से जुड़ा रहकर अपना पोषण प्राप्त करता रहता है। स्पोरोफाइट को कुछ कोशिकाओं में न्यूनीकरण विभाजन होता है, जिससे अगणित बोजाण अंकुरित होकर नये युग्मनोद्भिद में विकसित हो जाते हैं।
प्रश्न 4.
निमलिखित की सूत्रगुणता बताओ मॉस के प्रथम तंतुक कोशिका; द्विबीजपत्री के प्राथमिक धूणपोष का केन्चक, मॉस की पत्तियों की कोशिका; फर्न के प्रोबैलस की कोशिकाएं मारकें शिवा की जेमा कोशिका: एकबीजपत्री की मैरिस्टेम कोशिका, लिवावट के अंडाशय तथा फर्न केयग्मनज।
उत्तर:
मॉस के प्रथम तानुक कोशिका: मॉस में प्रथम तंतुक पालो अवस्था होती है तथा इसका निर्माण स्पोर के अंकुरण से होता है। स्मोर या बीजाणु अगुपित संरचना होती है अतः प्रथम नंनुक कोशिश भी अगुणित (N) होती है।
द्विबीजपत्री के प्राथमिक भ्रूणपोष का केन्द्रक: दयोगपत्री पंबियोस्पर्म पौधों में निषेचन के दौरान एक नर युग्मक अण्ड कोशिका से संगलित होकर युग्मनज बनाता है तथा दूसरा न्य युग्मक द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक से संगलित होकर विगुणित प्राथमिक धूणपोष केन्द्रक बनाया है। अतः प्रापनिक भूणपोष का केन्द्रक विगुणित (3N) होता है।
मॉस की पत्तियों की कोशिका: मांस ब्रायोपाइट का युग्मकोद्भिद पादप है। इस पौधे में एक सौथा, पतला तन – सा होता है। जिस पर सर्पिल क्रम में पत्तियां लगी रहती हैं। जय मांस का मुख्य पादप ही युग्मकोद्भिद होता है ले स्वाभाविक है कि उसको पतियों की कोशिकाएं भी अगुणित होती हैं।
फर्न के प्रोथैलस की कोशिकाएँ: फर्न टेरिडोफहट समूह का पादप है। इनका मुख्य पादप शरीर बीजाणुद्भिद होता है। पौधे की कुछ पतियाँ बीजाणुधानियाँ धारण करती हैं अतः उन्हें बीजपणं कहते हैं। बीजाणुधानी में स्थित बीजाणु मातृ कोशिकाओं में अर्द्धसूत्री विभाजन के करन असंख्य गुणित बीजाणु बनते हैं। बीजाणुओं के अंकुरण होने से प्रकाशसंश्लेपी थैलाभ युग्मकोद्भिद का निर्माण होता है, जिसे प्रोवेलस कहतेन: प्रलस में पायी जाने वाली सभी कोशिवार अगुणित होती हैं।
मारकेंशिया की जेमा कोशिका: मारकेंशिया बायोफाइट समूह का एक थैलाभ पाद है, जो नमी व इयादार स्थलों पर उगता है। यह पादप युग्नकोभिद होता है। अलैंगिक जनन रेल मारके शिया के श्रमस से बहुकोशिकीय हरी कपनमा विशित रचनाएँ जेमा उत्पन होती हैं। जेमा की उत्पत्ति युग्मको भद् बैलस से होती है अत: जेमा की प्रत्येक कोशिका अगुणित होता है।
एकबीजपत्री की मैरिस्टेम कोशिका: एंजियोस्पर्म समूह के एकबीजपत्री पादप मुलतः बीजापुभिद् प्रकृति के होते हैं। पौधे में स्थित मैरिस्टेम कोशिकाएँ भी द्विगुणित होती हैं।
लिबरबर्ट के अंडाशय तथा फर्न के युग्मनज: प्रायोफाइट समूह के लिवावर्ट पादप थैलाभ प्रकृति के युग्मशोद्भिद होते हैं। थैलस पर उत्पत्र सीधनी का नीषे का भाग अण्डाशय (जहाँ अण्ड स्थित होत है) भी अगुणित होता है।
टेरिडोफवट समूह के फन पादप बीजापुभिद होते हैं। पीने की बोजणुपण पर स्थित बीजधानी में स्थित बीजाणु भात् कोशिका में असूशी विभाजन होने से गुणित बीजाणु बनते हैं। बीजापु अंकुरित होकर युग्मकोभित प्रोथैलसका निर्माण करते प्रोफैलस पर क्रमश: नरव मदा जनन अंगों का विकास होता है, जिन्हें पुंभानों व स्त्रीधानी कहते हैं। पुधानो पुमणुओं का निर्माण करती है तथा स्त्रीधानी में अण्ड स्थित होता है। पुमगुल अण्ड के संगलन फलस्वरूप दिगुषिस युग्मन का निर्माण होता है, अत्त: फन का युग्मनन द्विगुणित होना है।
प्रश्न 5.
शैवाल तथा जिग्नोस्पर्म के आर्थिक महत्त्व पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
शैवाल मानव के लिये अधिक उपयोगी है। पृथ्वी पर प्रकाश – संश्लेषण के समय कुल स्थिरीकृत कार्बन डाइऑक्साइड का लगभग आधा भाग वाल स्थिर करते हैं। प्रकाश – संश्लेषी जीव होने के कारण शैवाल अपने आस – पास के पर्यावरण में पुलित ऑक्सीजन का स्तर बड़ा देते हैं। ये कर्जा के प्राथमिक उत्पादक होने के कारण अधिक महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि ये जलीय प्राणियों के खाद्य चक्रों के आधार होते हैं। समुद्री शैवल जैसे पोरफायग, लैमिनेरिया तथा सरगासम को अनेक जातियों का उपयोग भोजन में होता है।
कुछ समुद्री भूरी व लाल शैवल बैरागीन का उत्पादन करते हैं। कैरागीन का व्यावसायिक उपयोग होता है। जिलेडियम तथा गोपिनेरिया शैवाल से एगार प्राप्त होता है। एगार का उपयोग प्रयोगशालाओं में संवर्धन माध्यम तैयार करने व आइसक्रीम और जैली बनने में किया जाता है। लॉरेला तथा मिलाइना एककोशिकीय शैषाल है। यह प्रोटीन में प्रचुर मात्रा में होती है। इसका उपयोग अंतरभि यात्री भी भोजन के रूप में करते हैं।
जिन्नोस्पर्म के पौधों से जैसे चौड़, देवदार आदि से महत्वपूर्ण लकड़ी प्राप्त होती है। इफेड़ा से इफेडीन औषध मिलता है। पाइनस से तारपीन का तेल व एबीज की जाति से कनाडा वालसम मिलता है। साइकस के तने से साबूदाना व पदनस की जाति से चिलगोल फल प्राप्त होता है।
प्रश्न 6.
जिम्नोस्पर्म तथा एंजियोस्पर्म दोनों में बीज होते हैं, फिर भी उनका वर्गीकरण अलग – अलग क्यों है?
उत्तर:
जिानोस्पर्म के बीजाण्ड अण्डाशय भिति से ढके हुये नहीं होते हैं। इस कारण बौर पर फण भिति नहीं होती है अर्थात उनमें जीव तो बनते हैं परन्त फल नहीं होता है। अत: ये वीज मनवत होते हैं. इसी कारण उन अनावृतबीजी पादप (जिम्मोस्सन) कहते हैं। एंजियोस्पर्म में बीजाण्ड अण्डाशय भितिसेबके होते। इस कारण इनमें फल बनते हैं तथा बीज इनके अन्दर होते हैं। अत: बीज आवृत होते हैं. इसी कारण इन पादपों को आवृतबीजी पादप (एंजियोस्पर्म) कहते हैं। यह इन दोनों पादप समूहों में मुख्य अन्तर होता है, इस आधार पर इन पौधों को दो विभिन्न समूहों में एकीकृत किया है तथा इसी कारण इनका वर्गीकरण भी अलग – अलग किया इसके अतिरिक्त एंजियोस्पर्म पौधों में पुष्प लगते हैं तथा भूणपोष विगुणित होता है। जिम्नोस्पर्म पौधों में पुण का अभाव होता है तथा भूणपोष अगुणित होता है।
प्रश्न 7.
विषम बीजाणुता क्या है? इसकी सार्थकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो। इसके दो उदाहरण दो।
उत्तर:
यह सभण टेरिडोफान्य समूह के पौधों में पाया जाता है। अधिकांश टैरिडोफाइट में, जहाँ स्पोर (बीजापु) एक ही प्रकार के होते, उन पौधों को समयीवाणुक कहते हैं। परन्तु सिलजिनेला, सल्नीनिया नामक रेरिडोफ्लट पौधों में दो प्रकार के वृहद (बड़े तथा लघु (छोटे) स्पोर बनते हैं। जिन्हें विषमवीजाणु कहते हैं। बड़े पडद् बीजापु (मादा) तथा छोटे लाधु बीजाणु (नर) से क्रमश: मदा तथा नर युग्मकोद्भिद् वन जाते हैं। ऐसे पौधों में मादा युग्मकोभि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पैतृक मोरोफाइट से जुड़ा रहता है। माया युग्मकोभिद में युग्मनज का विकास होता है, जिससे एक नया शैशव पूषा विकसित होता है। यह बटगा आत्यन्त महत्वपूर्ण सम्झो जाती है जो बीजी प्रकृति की ओर ले जाती है। उदाहरण सिजिनेता, सागीनिया।
प्रश्न 8.
उदाहरण सहित निम्नलिखित शब्दावली का संक्षिप्त वर्णन करो
(i)प्रथम नंत
(ii) पुंधानी
(iii) सीधानी
(iv) द्विगुणितक
(v) बीजाणुषर्ण तथा
(vi) समयुग्मकी।
उत्तर:
(i) प्रथम तंतु: प्रथम तंतु प्रायोफाइट के मांस पादों के जीवन चक्र में पाया जाता है। मांस पादप युग्नकोद्भिद होते हैं तथा इनके जीवन-चक्रय युग्मकोभि को दो अवस्थाएं होती हैं। प्रथम अवस्था प्रथम संतु होती है। इसका निर्माण स्पोर से होत है। प्रथम तंतु हरे, विसी, शाखिा व नंदुमय होने हैं। इनको पापीय कली से दूसरी अवस्था का विकास होता है।
(ii) पुंधानी: आयोफाइट तथा टेरिडोफदट पादपों में पुंचानी उपस्थित होती है। बुधानी नर जननांग होता है तथा बहुकोशिकीय होता है। इनमें से अगुणित पुमा उत्पन्न होते हैं। ये हिकशाभिक होते हैं तथा जल में तैरकर स्त्रीधानी तक पहुँच कर निषेचन क्रिया में भाग लेते हैं।
(iii) स्त्रीधानी: ये मादा लैंगिक ना अंग होते हैं जो ब्रायोफाइट, टैरिटोमाइट तथा जिानोस्पर्म पादपों में पाये जाते हैं। ये पलास्क को आकृति के तथा बहुकोशिकीय होते हैं। इसके आधारी फूले हुवे भाग में एक अगुपित अण्ड होता है। अण्ड पुमणु से संगलित होगविगुपित युग्मनन का निर्मान करता है। उदाहरण: रिक्सिया।
(iv) द्विगुणितक: जिम्नोस्पर्म तथा एंजियोस्पर्म के पौधों में मुख्य शरीर द्विगुणित अर्थात् बीजाणुदभि होता है। बीजाणुभि प्रभावी, प्रकाश-संश्लेषी तथा मुका होता है। इनमें युग्मक जाग प्रक्रिया के दौरान अईसूची विभाजन होने से अगणित नर तथा मादा युग्मक बनते हैं। युग्मकोद्भिद् अगुणित तथा एककोशिकीय या कुछ कोशिकीय होते हैं। युग्नकों का संलयन होने से पुनः बीजाणुभिद का निर्माण होता है। अर्थात् बीजापुभिद् प्रभावी तथा युग्मकोभिद् का भाग पिक होता है। जीवनचक्र को इस अवस्था को द्विगुपितक कहते है। सभी बीज वाले पौधों में द्विगुपित्तक अवस्था मिलती है।
(v) बीजाणुपर्ण: टीडोफाइट पादपों में योगाभानी जिन पत्तियों पर लगती है उन्हें बीजाणुपर्ण कहते हैं। कुछ टैरिद्रोफाइट में बीजणुपर्ण सपन होकर एक सुस्पष्ट रचना बनाते हैं जिनं शंकु कहते हैं। उदाहरणा सिलजिनेला, इक्योरीटम। बीजाणुधानी में स्थित योजणु मातृ कोशिका में मिओसिस के कारण बीजाणु बनते हैं। योजणु अंकुरित होकर अगुणित प्रोथैलस का निर्माण करते हैं।
(vi) समयुग्मकी: यह अवस्था शैवालों की जल क्रिया में मिलती है। जब किसी शैवाल में संगलन करने वाले दोन युग्मक समान प्रकार के होते हों तो इसे समयुग्मकी लैंगिक जान कहते हैं।
प्रश्य 9.
निम्नलिखित में अंतर करो
(i) लाल शवाल तथा भूरेशवाल
(ii) लिवावर्ट तथा मॉस
(iii) विषम बीजाणुक तथा सम बीजाणुक टेरिडोफाइट
(iv) युग्मक संलयन तथा जिर्सलबन।
उत्तर:
(i) लाल शैवाल तथा भरे शैवाल में अन्तर: लालवान समूह को रोडोफाइसी वर्ग के नाम से जाना जाता है। शैवालों में क्लोरोफिल a, b तथा फाइकोऐधिन वर्णक होते हैं। शैवालों का लाल रंग वर्गक,आरपाइकोपरिनिग के कारण होता है। प्राय: ये शैवाण समुद्र में पाये जाते हैं। इनमें भोजन फ्लोरिडियन स्टार्च के रूप में संचित होता है। इस स्टार्च को रचना एमाइलो प्रोटीन तथा ग्लाइकोजन की तरह होती है। इनमें काषिक जनन विखंडन, अलैंगिक जनन अचल बीजाणु और लैंगिक जनन अचल युग्मकों द्वारा होता है। लैंगिक जनन विषमयुग्मको होता है। उदाहरण पोलीसाइकोनिया, पोरफायरा, प्रेसिलेरिया तथा जिलेडियम आदि।
भूरे शैवाल फीयोफाइसी वर्ग के अन्तर्गत आते हैं। ये छोटे से अधिक बड़े (केल्प) तक होते हैं। इनमें क्लोरोफिल a, b कैरोटिनॉइंट तथा जैथोफिल वर्णक होते हैं।
नया भूरा रंग पलकोधित के कारण होता है। इनमें जटिल कार्बोहाइड्रेट के रूप में भोजन सचित होता है। यह भोजन लैमिनेरिंग अथवा मैगीटोल के रूप में होता है। वोशिका भित्ति सेल्यूलोज से बनी होती है, जिसके बाहर की ओर पल्जिन का जिलेटिनी अस्तर होता है। हलमें व्यापक जल विखंडन विधि द्वारा होता है। अलैंगिक जना फ्लेजिलायुक्त जूरपोर द्वारा होता है। फ्लैजिला असमान तथा पार्श्व में जुड़े होते हैं। सौगिक बन्न समयुग्मको, जसमयुग्मकी या विषमयुग्मकी प्रकार का होता है। उदाहरण एन्टोकार्पस, लैगिनेरिया, सरगासग तथा फ्यूकस आदि।
(ii) लिवरवट तथा मांस में अन्तर: लिवरवर्ड का पादपक्रय थैलासभ होता है। भैलस पृष्टाधार होते हैं तथा अन्य स्तर से चिपके रहते हैं। कुछ सदस्यों में तना व पतियाँ अवश्य होती हैं परन्तु वे भी अधःस्तर पर पड़े रहते हैं। इनमें कायिक जनन विशिष्ट रचनाओं या पुराने भागों के गलने से पृथक् हुये खण्डों द्वारा होता है। पैलस से निकले मूलाभास एककोशिकीय व अशासित होते हैं। स्पोरोफाइट के कैप्स्यूल से निकले अगुणित बीज अंकुरित होकर मुकाबीवी युग्मकोद्भिद् बनाते हैं। उदाहरण मारकै शिया रिक्सिया आदि।
मॉस के पौधों में दो अवस्थायें होती हैं। स्पोर का अंकुरण होने पर सर्वप्रथम एक विसपी, हरा,शाखित, बंतुमयी प्रथम तंदु बनता है, यह पहली अवस्था होती है। प्रथम तंतु से पाश्यीय कली के रूप में द्वितीय अवस्था बनती है। द्वितीय अवस्था में एक सीधा, अर्च, पतला तना-स होता है जिस पर सर्पिल रूप से पत्तियां लगी रहती हैं। तने के आधारोय भाग से बहुकोशिकीय तथा शखित मूलाभास निकलते हैं। मंस में कायिक जनन द्वितीयक प्रथम तंतु के विखण्डन तथा मुकलन द्वारा होता है। मॉस में मोर विकिरण की बहुत विस्तृत प्रणाली होती है। उदाहरण परिया, स्पेनन तथा पोलिडार्कम।
(iii) विषम बीजाणुक तथा सम बीजाणुक टेरिडोफाइट में अन्तर: टेरिडोफाइट पादप में वीजाणुभिद् पीनी प्रभावी होती है। पौधों को बोजागुधानियों से मिऑसिस पश्चात् अगुणित बीजाणु बनते हैं। जिन पौधों में सभी बीजाणु आकृति में समान होने हैं, उन्हें समबीजगुक कड़ते हैं। उदाहरण- इक्वीसिटम।
टेरिडोघाइट के कुछ पौधों से दो प्रकार के बीजाणु वृहद् (बड़े) तथा लघु (छोटे) बीजाणु बनते हैं, जिनं विषमवीजाणु कहते हैं। बड़े बोजणु (मादा) तथा छोटे बीजाणु (नर) से क्रमशः मादा तथा नर युग्मकोद्भिद् बनते हैं। उदाहरण-सिलजिनेला, साल्पानिया आदि।
(iv) युग्मक संलबन तथा त्रिसंलबन में अन्तर: निषेचन क्रिया के दौरान दो युग्मकों (नर तथा मादा) के संलषना को युग्मक संलयन कहते हैं। यह संलयन समयुग्मकी व असमयुग्मकी तथा विषमयुग्मकी प्रकार का होता है। शैवालों में दो युग्मक समान आकृति के संलयन करते हैं, इसे समयुग्मको कहते हैं। कुछ में दोनों युमकों में से नर मोटा तथा मादा युग्मक बड़ा होता है तब इसे असमयुग्मकी कहते हैं। अन्य पादपों में नर छोटा च चल होता है तथा मादा अण्ड व अचल होता है, इसे विषमयुगमको संलयन कहते हैं।
त्रिसंलयन मात्र पजियोस्पर्म पादपों में ही पाया जाता है। इनमें निषेचन के दौरान पागनाली स्टकर भूपकोश के अंदर दो न्य युग्मकों को छोड़ती है। इनमें से एक नर युग्मक अण्ड कोशिका से संगलित होकर एक युग्मनल बनाता है तथा दूसरा नर युग्मक द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक से संगलित होकर विगुणित प्राथमिक धूणपोष केन्द्रक बनाता है। पूर्व में दो ध्रुवीय कोशिकाएँ आपस में जुड़कर डिगुणित द्वितीयक केन्द्रक बनाती हैं। इस प्रकार इन पौधों में तीन अर्थात् विसंलयन होता है। पुन: त्रिसंलयन को स्पष्ट किया जा रहा हैं:
प्रश्न 10.
एकबीजपत्री को द्विबीजपत्री से किस प्रकार विभेदित करोगे?
उत्तर:
परियोस्पर्म पुष्पोय पादप होते हैं। इनमें बीज फल के अन्दर होता है। समस्त पादप वर्गों या समूहों में यह सबसे बड़ा तथा विकसित होता है। आर्थिक दाह से इस समझ के पादप सबसे महत्त्वपूर्ण है।
इंजियोस्पर्म समूह के पौधों को दो वर्गों-द्विवीजपत्री तथा एकीजपत्री में विभक्त किया गया है। द्विबीजपत्री पौधों के बीजों में दो मोटे बीजपत्र, पत्तियों में गलिका रूपी शिविन्यास तथा पण चतष्ट्रीय या पंचवी होते हैं, वकि एकबीजपत्री में एक पतला बीजपर, पत्नी में समानान्तर शिविन्यास एवं विटयी पुष्प होते हैं।
प्रश्न 11.
स्तम्भ में दिये गये पादपों को स्तम्भ-में दिये गये पादप वगौ से मिलान करो।
स्तम्भ –I (पादप) | स्तम्भ – II (वर्ग) |
(अ) क्लैमाइटोमोनॉम | (i) मॉस |
(ब) साइकस | (ii) टैरिडोफाइट |
(स) सिलजिनला | (iii) शैवाल |
(द) सफैग्नम | (iv)जिम्नोस्पर्म |
उत्तर:
स्तम्भ –I (पादप) | स्तम्भ – II (वर्ग) |
(अ) क्लैमाइटोमोनॉम | (iii) शैवाल |
(ब) साइकस | (iv)जिम्नोस्पर्म |
(स) सिलजिनला | (ii) टैरिडोफाइट |
(द) सफैग्नम | (i) मॉस |
प्रश्न 12.
जिम्नोस्पर्म के महत्त्वपूर्ण अभिलक्षणों का वर्णन करो।
उत्तर:
जिम्नोस्पर्म पादपों में बीजाण्ड अण्डाशय भित्ति से ढके हुए नहीं होते हैं, अतः ये अनावृतबीजी पादप होते हैं। इस समूह में पौधे मध्याम या लम्ब वृक्ष तथा झाड़ियों के रूप में होते हैं। जिम्नोस्पर्म का सिकुआ लक्ष सबसे लम्बा होता है। पौधों में मूसला मूल होती है। सदकेस में प्रवाल मूल होती है जिसमें सायनो जीवाणु रहते हैं व नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं। पाइनस में मूल कवक के साथ रहती है, जिसे कवक मूल कहते हैं। पौधे शाखित (पाइनस) व अशावित (सास) होते हैं। पत्तियां सरल तथा संयुक्त होती हैं। साहकैस की पत्तियां पिच्छाकार व अधिक अवधि तक लगी रहती हैं। पाइनल में पतियाँ सूई को जैसे होती हैं।
ये विषम बीजाणु होते हैं। बोजणुधानी बीजाणुपणं पर होते हैं। इनमें अगुणित लषुधोजणु तथा वृहद् बीजाणु बनते हैं। बोजागुपर्ण तने पर सपिलक्रम में जमा रहकर सबन शंकु बनाते हैं। जिस शंकु में लाबीजापुपर्ण पर लघुबीजापुभानी होती है, उन्हें नर शंकु कहते हैं। प्रत्येक साघुबीजाणु से न्यूनीकृत नर युग्मकोद्भिद संतति अपन होती है, इसे परागकण कहते हैं। जिन शंकु पर गुरु बीजाणुपर्ण व गुरु बीजापुधानी होती है, उन्हें मादा शंकु कहते हैं।
दोनों प्रकार के अंक एकही पादप (पाइनस) अथव पृथक्-पृथक पादपों (सदकैस) पर स्थित हो सकते हैं। गुरु बीजाणु मातृ कोशिका बीगण्डकाय की एक कोशिका से विभेदित हो जाता है। बीजाण्डकाय एक अस्तर द्वारा सुरक्षित रहता है। इस रचना को बीजाण्ड कहते हैं। गुरु बीजाणु मत कोशिका में मिऑसिस द्वारा चार गुरुबीजाणु बन जाते हैं। इनमें से एक गुरु योजणु मादा युग्मकोभिद में विकसित होता है। मादा युग्मकोद्भिद में दो या दो से अधिक स्वोधामी होती हैं, जिसमें एक अण्ड होता है।
बीजाणुधानी से परागकण बाहर निकलकर हवा द्वारा बीजाण्ड के हिद तक पहुंच जाते हैं। पागकण से निकली परागनली द्वारा शुक्राणु स्त्रीधानी तक पहुँचकर अण्ड से संलयित हो जाता है, जिससे युग्मनज का निर्माण होता है। युग्मनज से भ्रूण का विकास हो जाता है। बीजाण्ड से बीव बनते हैं किन्तु ने ढके हुए नहीं होते हैं।
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