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NECRT Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 Environmental Issues (पर्यावरण के मुद्दे)

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Last Updated on December 3, 2022 by Rahul

NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 Environmental Issues (पर्यावरण के मुद्दे)

NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 Environmental Issues (पर्यावरण के मुद्दे), Study Learner

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
घरेलू वाहितमल के विभिन्न घटक क्या हैं? वाहितमल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर
घरेलू वाहितमल मुख्य रूप से जैव निम्नीकरणीय कार्बनिक पदार्थ होते हैं जिनका अपघटन आसानी से होता है। इसका परिणाम सुपोषण होता है। घरेलू वाहितमल के विभिन्न घटक निम्नलिखित हैं –

  1. निलंबित ठोस – जैसे- बालू, गाद और चिकनी मिट्टी।
  2. कोलॉइडी पदार्थ – जैसे- मल पदार्थ, जीवाणु, वस्त्र और कागज के रेशे।
  3. विलीन पदार्थ जैसे – पोषक पदार्थ, नाइट्रेट, अमोनिया, फॉस्फेट, सोडियम, कैल्शियम आदि।

वाहितमल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभाव इस प्रकार हैं –

  1. अभिवाही जलाशय में जैव पदार्थों के जैव निम्नीकरण से जुड़े सूक्ष्मजीव ऑक्सीजन की काफी मात्रा का उपयोग करते हैं। वाहित मल विसर्जन स्थल पर भी अनुप्रवाह जल में घुली ऑक्सीजन की मात्रा में तेजी से गिरावट आती है और इसके कारण मछलियों तथा जलीय जीवों की मृत्युदर में वृद्धि हो जाती है।
  2. जलाशयों में काफी मात्रा में पोषकों की उपस्थिति के कारण प्लवकीय शैवाल की अतिशय वृद्धि होती है, इसे शैवाल प्रस्फुटन कहा जाता है। शैवाल प्रस्फुटन के कारण जल की गुणवत्ता घट जाती है और मछलियाँ मर जाती हैं। कुछ प्रस्फुटनकारी शैवाल मनुष्य और जानवरों के लिए अत्यधिक विषैले होते हैं।
  3. वाटर हायसिंथ पादप जो विश्व के सबसे अधिक समस्या उत्पन्न करने वाले जलीय खरपतवार हैं और जिन्हें बंगाल का आतंक भी कहा जाता है, पादप सुपोषी जलाशयों में काफी वृद्धि करते हैं और इसकी पारितंत्रीय गति को असन्तुलित कर देते हैं।
  4. हमारे घरों के साथ-साथ अस्पतालों के वाहितमल में बहुत से अवांछित रोगजनक सूक्ष्मजीव हो। सकते हैं और उचित उपचार के बिना इनको जल में विसर्जित करने से गम्भीर रोग, जैसे- पेचिश, टाइफाइड, पीलिया, हैजा आदि हो सकते हैं।

प्रश्न 2.
आप अपने घर, विद्यालय या अपने अन्य स्थानों के भ्रमण के दौरान जो अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं, उनकी सूची बनाएँ। क्या आप उन्हें आसानी से कम कर सकते हैं? कौन से ऐसे अपशिष्ट हैं जिनको कम करना कठिन या असम्भव होगा?
उत्तर
अपशिष्टों की सूची इस प्रकार है –

  1. कागज, कपड़ा, पॉलीथिन बैग
  2. डिस्पोजेबल क्रॉकरी
  3. ऐलुमिनियम पन्नी, टिन का डिब्बा
  4. शीशा।

अपशिष्ट जिन्हें कम किया जा सकता है –

  1. कागज
  2. कपड़ा।

अपशिष्ट जिन्हें कम नहीं किया जा सकता है –

  1. ऐलुमिनियम पन्नी, टिन का डिब्बा
  2. डिस्पोजेबल क्रॉकरी
  3. पॉलीथिन बैग
  4. शीशा।

प्रश्न 3.
वैश्विक उष्णता में वृद्धि के कारणों और प्रभावों की चर्चा करें। वैश्विक उष्णता वृद्धि को नियन्त्रित करने वाले उपाय क्या हैं?
उत्तर
वैश्विक उष्णता में वृद्धि के कारण – ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी की। सतह का ताप काफी बढ़ जाता है जिसके कारण विश्वव्यापी उष्णता होती है। गत शताब्दी में पृथ्वी के तापमान में 0.6°C वृद्धि हुई है। इसमें से अधिकतर वृद्धि पिछले तीन दशकों में ही हुई है। एक सुझाव के अनुसार सन् 2100 तक विश्व का तापमान 1.40 – 5.8°C बढ़ सकता है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि तापमान में इस वृद्धि से पर्यावरण में हानिकारक परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप विचित्र जलवायु-परिवर्तन होते हैं। इसके फलस्वरूप ध्रुवीय हिम टोपियों और अन्य जगहों, जैसे हिमालय की हिम चोटियों का पिघलना बढ़ जाता है। कई वर्षों बाद इससे समुद्र तल का स्तर बढ़ेगा जो कई समुद्र तटीय क्षेत्रों को जलमग्न कर देगा।
वैश्विक उष्णता के निम्नांकित प्रभाव हो सकते हैं –

  1. अन्न उत्पादन कम होगा
  2. भारत में होने वाली मौसमी वर्षा पूर्ण रूप से बन्द हो सकती है
  3. मरुभूमि का क्षेत्र बढ़ सकता है
  4. एक-तिहाई वैश्विक वन समाप्त हो सकते हैं
  5. भीषण आँधी, चक्रवात तथा बाढ़ की संभावना बढ़ जाएगी
  6. 2050 ई० तक एक मिलियन से अधिक पादपों एवं जन्तुओं की जातियाँ समाप्त हो जाएँगी।

वैश्विक उष्णता को निम्नलिखित उपायों द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है –

  1. जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करना
  2. ऊर्जा दक्षता में सुधार करना
  3. वनोन्मूलन को कम करना
  4. मनुष्य की बढ़ती हुई जनसंख्या को कम करना
  5. जानवरों की विलुप्त हो रही प्रजातियों को संरक्षित करना
  6. वनों का विस्तार करना
  7. वृक्षारोपण को बढ़ावा देना।

प्रश्न 4.
कॉलम अ और ब में दिए गए मदों का मिलान करें –
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 Environmental Issues img-1
उत्तर
(क) 2
(ख) 1
(ग) 3
(घ) 4.

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखें –

  1. सुपोषण (Utrofication)
  2. जैव आवर्धन (Biological Magnification)
  3. भौमजल (भूजल) का अवक्षय और इसकी पुनःपूर्ति के तरीके।

उत्तर
1. सुपोषण (Eutrophication) – अकार्बनिक फॉस्फेट एवं नाइट्रेट के जलाशयों में एकत्र होने की क्रिया को सुपोषण कहते हैं। सुपोषण झील का प्राकृतिक काल-प्रभावन दर्शाता है, यानि झील अधिक उम्र की हो जाती है। यह इसके जल की जैव समृद्धि के कारण होता है। तरुण झील का जल शीतल और स्वच्छ होता है। समय के साथ-साथ इसमें सरिता के जल के साथ पोषक तत्त्व, जैसे-नाइट्रोजन और फॉस्फोरस आते रहते हैं जिसके कारण जलीय जीवों में वृद्धि होती रहती है। जैसे-जैसे झील की उर्वरता बढ़ती है वैसे- वैसे पादप और प्राणी बढ़ने लगते हैं। जीवों की मृत्यु होने पर कार्बनिक अवशेष झील के तल में बैठने लगते हैं। सैकड़ों वर्षों में इसमें जैसे-जैसे सिल्ट एवं जैव मलबे का ढेर लगता है वैसे-वैसे झील उथली और गर्म होती जाती है। उथली झील में कच्छ (marsh) पादप उग आते हैं और मूल झील बेसिन उनसे भर जाता है।

मनुष्य के क्रियाकलापों के कारण सुपोषण की क्रिया में तेजी आती है। इस प्रक्रिया को त्वरित सुपोषण कहते हैं। इस प्रकार झील वास्तव में घुट कर मर जाती है और अन्त में यह भूमि में परिवर्तित हो जाती है।

2. जैव आवर्धन (Biological Magnification) – जैव आवर्धन का तात्पर्य है, क्रमिक पोषण स्तर पर आविषाक्त की सान्द्रता में वृद्धि का होना। इसका कारण है जीव द्वारा संगृहीत आविषालु पदार्थ उपापचयित या उत्सर्जित नहीं हो सकता और इस प्रकार यह अगले उच्चतर पोषण स्तर पर पहुँच जाता है। ये पदार्थ खाद्य श्रृंखला के विभिन्न पोषी स्तरों (trophic levels) के जीवों में धीरे-धीरे संचित होते रहते हैं। खाद्य श्रृंखला में इन्हें सबसे पहले पौधों द्वारा प्राप्त किया जाता है। पौधों से इन पदार्थों को उपभोक्ताओं द्वारा प्राप्त किया जाता है। उद्योगों के अपशिष्ट जल में प्रायः विद्यमान कुछ विषैले पदार्थों में जलीय खाद्य श्रृंखला जैव आवर्धन कर सकते हैं।

यह परिघटना पारा एवं D.D.T. के लिए सुविदित है। क्रमिक पोषण स्तरों पर D.D.T: की सान्द्रता बढ़ जाती है। यदि जल में यह सान्द्रता 0.003 ppb से आरम्भ होती है तो अन्त में जैव आवर्धन के द्वारा मत्स्यभक्षी पक्षियों में बढ़कर 25 ppm हो जाती है। पक्षियों में D.D.T. की उच्च सान्द्रता कैल्शियम उपापचय को नुकसान पहुँचाती है जिसके कारण अंडकवच पतला हो जाता है और यह समय से पहले फट जाता है जिसके कारण। पक्षी-समष्टि की संख्या में कमी हो जाती है।

3. भौमजल का अवक्षय और इसकी पुनः पूर्ति के तरीके (Ground- water Depletion and Ways for its Replenishment) – भूमिगत जल पीने के लिए अधिक शुद्ध एवं सुरक्षित है। औद्योगिक शहरों में भूमिगत जल प्रदूषित होता जा रहा है। अपशिष्ट तथा औद्योगिक अपशिष्ट बहाव जमीन पर बहता रहता है जोकि भूमिगत जल प्रदूषण के साधारण स्रोत हैं। उर्वरक तथा पीड़कनाशी, जिनका उपयोग खेतों में किया जाता है, भी प्रदूषक का कार्य करते हैं। ये वर्षा-जल के साथ निकट के जलाशयों में एवं अन्तत: भौमजल में मिल जाते हैं। अस्वीकृत कूड़े के ढेर, सेप्टिक टंकी एवं सीवेज गड्ढे से सीवेज के रिसने के कारण भी भूमिगत जल प्रदूषित होता है।

वाहितमल जले एवं औद्योगिक अपशिष्टों को जलाशयों में छोड़ने से पहले उपचारित करना चाहिए जिससे भूमिगत जल प्रदूषित होने से बच सकता है।

प्रश्न 6.
अण्टार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र क्यों बनते हैं? पराबैंगनी विकिरण के बढ़ने से हमारे ऊपर किस प्रकार प्रभाव पड़ेंगे?
उत्तर
हालाँकि ओजोन अवक्षय व्यापक रूप से होता है, लेकिन इसका असर अण्टार्कटिक क्षेत्र में खासकर देखा गया है। यहाँ जगह-जगह पर ओजोन परत में इतनी कमी पड़ जाती है कि छिद्र को आभास होने लगता है और इसे ओजोन छिद्र (Ozone hole) की संज्ञा दी जाती है। कुछ सुगन्धियाँ, झागदार शेविंग क्रीम, कीटनाशी, गन्धहारक आदि डिब्बों में आते हैं और फुहारा या झाग के रूप में निकलते हैं। इन्हें ऐरोसोल कहते हैं। इनके उपयोग से वाष्पशील CFC वायुमण्डल में पहुँचकर ओजोन स्तर को नष्ट करते हैं। CFC का व्यापक उपयोग एयरकण्डीशनरों, रेफ्रिजरेटरों, शीतलकों, जेट इंजनों, अग्निशामक उपकरणों, गद्देदार फोम आदि में होता है। ज्वालामुखी, रासायनिक उर्वरक, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, सवाना तथा अन्य वन-वृक्षों के जलने से ओजोन की परत को क्षति होती है। फ्रिऑन सबसे अधिक घातक क्लोरोफ्लोरोकार्बन है जो ओजोन से प्रतिक्रिया कर उसका अवक्षय करता है।

पराबैंगनी- बी की अपेक्षा छोटे तरंगदैर्ध्य युक्त पराबैंगनी विकिरण पृथ्वी के वायुमण्डल द्वारा लगभग पूरा का पूरा अवशोषित हो जाता है। बशर्ते कि ओजोन स्तर ज्यों-का-त्यों रहे लेकिन पराबैंगनी-बी DNA को क्षतिग्रस्त करता है और उत्परिवर्तन को बढ़ाता है। इसके कारण त्वचा में बुढ़ापे के लक्षण दिखते हैं। इससे विविध प्रकार के त्वचा कैंसर हो सकते हैं। इससे हमारी आँखों में कॉर्निया का शोथ हो । जाता है जिसे हिम अंधता, मोतियाबिंद आदि कहा जाता है।

प्रश्न 7.
वनों के संरक्षण और सुरक्षा में महिलाओं और समुदायों की भूमिका की चर्चा करें।
उत्तर
भारत में वन संरक्षण का एक लम्बा इतिहास है। जोधपुर (राजस्थान) के राजा ने 1731 ई० में अपने महल के निर्माण के लिए वृक्षों को काटने का आदेश दिया था। जिस वन क्षेत्र के वृक्षों को काटना था उसके आस-पास कुछ बिश्नोई परिवार रहते थे। इस परिवार की अमृता नामक महिला ने राजा के आदेश का विरोध किया एवं वृक्ष से चिपककर खड़ी हो गई। उसका कहना था कि वृक्ष हमारी जान है। उसके बिना हमारा जिंदा रहना असम्भव है। इसे काटने के लिए पहले आपको हमें काटना होगा। राजा के लोगों ने पेड़ के साथ-साथ महिला एवं उसके बाद उसकी तीन बेटियों तथा बिश्नोई परिवार के सैकड़ों लोगों को वृक्ष के साथ कटवा दिया। भारत सरकार ने इस साहसी महिला, जिसने पर्यावरण की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी, के सम्मान में अमृता देवी बिश्नोई वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार देना हाल में शुरू किया है।

चिपको आन्दोलन के प्रवर्तक डॉ० सुन्दरलाल बहुगुणा के नाम से ही वन-संरक्षण की संवेदना होने लगती है। 1974 ई० में हिमालय के गढ़वाल में जब ठेकेदारों द्वारा वृक्षों को काटने की प्रक्रिया आरम्भ हुई तो इससे बचाने के लिए स्थानीय महिलाओं ने अदम्य साहस का परिचय दिया। वे वृक्षों से चिपकी रहीं एवं वृक्षों को काटे जाने से रोकने में सफल रहीं। इसी प्रयास ने आन्दोलन का रूप ले लिया एवं ‘चिपको आन्दोलन’ के रूप में विश्वविख्यात हुआ।

प्रश्न 8.
पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने के लिए एक व्यक्ति के रूप में आप क्या उपाय करेंगे?
उत्तर
पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए हम एक व्यक्ति के रूप में निम्नलिखित उपाय करेंगे –

  1. सीसारहित एवं सल्फररहित पेट्रोल के उपयोग के साथ-साथ इंजन से कम-से-कम धुआँ उत्सर्जित हो, इस पर ध्यान रखेंगे।
  2. बिजली या बैटरी से चालित वाहनों के प्रयोग पर बल देंगे।
  3. उद्योगों की चिमनी हवा में काफी ऊपर हो एवं इसमें फिल्टर लगा होना चाहिए, इस सन्दर्भ में लोगों के माध्यम से प्रयास करेंगे।
  4. उद्योगों एवं परिष्करणशालाओं को आबादी से दूर स्थापित करवाने का प्रयास करेंगे।
  5. वनरोपण के प्रति लोगों को जागरूक एवं प्रोत्साहित करेंगे।
  6. प्रदूषण से होने वाली बीमारियों तथा हानिकारक प्रभावों के बारे में आम लोगों को जानकारी देंगे।
  7. जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग कम-से-कम करेंगे।
  8. जनसंख्या वृद्धि से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को बताएँगे।
  9. धूम्रपान से होने वाली हानियों के बारे में लोगों को सलाह देंगे।
  10. मोटर वाहन चलाते समय हॉर्न का प्रयोग कम-से-कम हो, इस बात का ध्यान रखेंगे।
  11. रेडियो, टी०वी०, म्यूजिक सिस्टम आदि का प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखेंगे कि आवाज बहुत धीमी हो।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें –
(क) रेडियो सक्रिय अपशिष्ट
(ख) पुराने बेकार जहाज और ई- अपशिष्ट
(ग) नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट
उत्तर
(क) रेडियो सक्रिय अपशिष्ट (Radioactive Wastes) – न्यूक्लियर रिएक्टर से निकलने वाला विकिरण जीवों के लिए बेहद नुकसानदेह होता है क्योंकि इसके कारण अति उच्च दर से विकिरण उत्परिवर्तन होते हैं। न्यूक्लियर अपशिष्ट विकिरण की ज्यादा मात्रा घातक यानि जानलेवा होती है लेकिन कम मात्रा कई विकार उत्पन्न करती है। इसका सबसे अधिक बार-बार होने वाला विकार कैंसर है। इसलिए न्यूक्लियर अपशिष्ट अत्यन्त प्रभावकारी प्रदूषक है।

रेडियो सक्रिय अपशिष्ट का भण्डारण कवचित पात्रों में चट्टानों के नीचे लगभग 500 मीटर की गहराई में पृथ्वी में गाड़कर करना चाहिए। नाभिकीय संयन्त्रों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों जिनमें विकिरण कम हो उसे सीवरेज में छोड़ा जा सकता है। अधिक विकिरण वाले अपशिष्टों का विशेष उपचार, संचय एवं निपटारा किया जाता है।

(ख) पुराने बेकार जहाज और ई-अपशिष्ट (Defunct Ships and E-Wastes) – पुराने बेकार जहाज एक प्रकार के ठोस अपशिष्ट हैं जिनका उचित निपटारा आवश्यक है। विकासशील देशों में इसे तोड़कर धातु को अलग किया जाता है। इसमें सीसा, मरकरी (पारा), ऐस्बेस्टस, टिन आदि पाए जाते हैं जो हानिकारक होते हैं।

ऐसे कम्प्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक सामान जो मरम्मत के लायक नहीं रह जाते हैं इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट (E-wastes) कहलाते हैं। ई-अपशिष्ट को लैंडफिल्स में गाड़ दिया जाता है या जलाकर भस्म कर दिया जाता है। विकसित देशों में उत्पादित ई-अपशिष्ट का आधे से अधिक भाग विकासशील देशों, खासकर चीन, भारत तथा पाकिस्तान में निर्यात किया जाता है जिससे विकासशील देशों में इसकी समस्या बहुत बढ़ जाती है। इसमें मौजूद वैसे तत्त्व या धातु जिनका पुन:चक्रण किया जा सकता हो, जैसे-लोहा, निकेल, ताँबा आदि का पुन:चक्रण कर पुनः उपयोग किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया में विकसित देशों की तरह वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करना चाहिए ताकि, इससे जुड़े कर्मियों पर इनका हानिकारक प्रभाव कम-से-कम हो।

(ग) नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट (Municipal Solid Wastes) – इसके अन्तर्गत घरों, कार्यालयों, भण्डारों, विद्यालयों आदि में रद्दी में फेंकी गई चीजें आती हैं जो नगरपालिका द्वारा इकट्ठी की जाती हैं और उनका निपटारा किया जाता है। इसमें आमतौर पर कागज, खाद्य अपशिष्ट, कॉच, धातु, रबर, चमड़ा, वस्त्र आदि होते हैं। इनको जलाने से अपशिष्ट के आयतन में कमी आती है। खुले में इसे फेंकने से यह चूहों और मक्खियों के लिए प्रजनन स्थल का कार्य करता है। इसका निपटारा सैनिटरी लैंडफिल्स के माध्यम से भी किया जाता है। इन लैंडफिल्स से रसायनों के रिसाव का खतरा है जिससे कि भौम जल संसाधन प्रदूषित हो जाते हैं। खासकर महानगरों में कचरा इतना अधिक होने लगता है कि ये स्थल भी भर जाते हैं। इन सब का मात्र एक हल है कि पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति हम सभी को अधिक संवेदनशील होना चाहिए।

प्रश्न 10.
दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए क्या प्रयास किए गए? क्या दिल्ली में वायु की गुणवत्ता में सुधार हुआ?
उत्तर
वाहनों की संख्या काफी अधिक होने के कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर देश में सबसे अधिक है। दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं –

  1. सभी सरकारी वाहनों यानि बसों में डीजल के स्थान पर सम्पीड़ित प्राकृतिक गैस (सी०एन०जी) का प्रयोग किया जाए।
  2. वर्ष 2002 के अन्त तक दिल्ली की सभी बसों को सी०एन०जी० में परिवर्तित कर दिया जाए।
  3. पुरानी गाड़ियों की धीरे-धीरे हटा लिया जाए।
  4. सीसा रहित पेट्रोल या डीजल का प्रयोग किया जाए।
  5. कम गंधक (सल्फर) युक्त पेट्रोल या डीजल का प्रयोग किया जाए।
  6. वाहनों में उत्प्रेरक परिवर्तकों का प्रयोग किया जाए।
  7. वाहनों के लिए यूरो- II मानक अनिवार्य कर दिया जाए।

दिल्ली में किए गए इन प्रयासों के कारण वायु की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। एक आकलन के अनुसार सन् 1997 – 2005 ई० तक दिल्ली में CO और SO2 के स्तर में काफी गिरावट आई है।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें –
(क) ग्रीनहाउस गैस
(ख) उत्प्रेरक परिवर्तक
(ग) पराबैंगनी-बी।
उत्तर
(क) ग्रीनहाउस गैसें (Green House Gases) – कार्बन-डाई-ऑक्साइड, मीथेन, जलवाष्प, नाइट्रसऑक्साइड तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन को ग्रीनहाउस गैस कहा जाता है।

ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी की सतह का ताप काफी बढ़ जाता है जिसके कारण विश्वव्यापी उष्णता होती है। इन गैसों के कारण ही ग्रीनहाउस प्रभाव पड़ते हैं। ग्रीनहाउस प्रभाव प्राकृतिक रूप से होने वाली परिघटना है जिसके कारण पृथ्वी की सतह और वायुमण्डल गर्म हो जाता है। पृथ्वी का तापमान सीमा से अधिक बढ़ने पर ध्रुवीय हिमटोप के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ने तथा बाढ़ आने की सम्भावना बढ़ जाती है। आने वाली शताब्दी में पृथ्वी का तापमान 0.6°C तक बढ़ जाएगा। औद्योगिक विकास, जनसंख्या वृद्धि एवं वृक्षों की निरन्तर हो रही कमी से वायुमण्डल में CO2 की मात्रा 0.03% से बढ़कर 0.04% हो गई है। अगर यही क्रम जारी रहा तो बहुत सारे द्वीप एवं समुद्री तटों पर बसे शहर समुद्र में समा जाएँगे।

(ख) उत्प्रेरक परिवर्तक (Catalytic Converter) – इसमें कीमती धातु, प्लेटिनम-पैलेडियम और रोडियम लगे होते हैं जो उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। ये परिवर्तक स्वचालित वाहनों में लगे होते हैं जो विषैली गैसों के उत्सर्जन को कम करते हैं। जैसे ही निर्वात उत्प्रेरक परिवर्तक से होकर गुजरता है अग्ध हाइड्रोकार्बन डाइऑक्साइड और जल में बदल जाता है तथा कार्बन मोनोऑक्साइड एवं नाइट्रिक ऑक्साइड क्रमशः कार्बन डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित हो जाता है। उत्प्रेरक परिवर्तक युक्त मोटर वाहनों में सीसा रहित पेट्रोल का उपयोग करना चाहिए क्योंकि सीसा युक्त पेट्रोल उत्प्रेरक को अक्रिय कर देता है।

(ग) पराबैंगनी-बी (Ultraviolet-B) – यह DNA को क्षतिग्रस्त करता और उत्परिवर्तन को बढ़ाता है। इससे कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और विविध प्रकार के त्वचा कैंसर उत्पन्न होते हैं। हमारे आँख का स्वच्छमंडल (कॉर्निया) UV- बी विकिरण का अवशोषण करता है। इसकी उच्च मात्रा के कारण कॉर्निया का शोथ हो जाता है, जिसे हिम अंधता, मोतियाबिन्द आदि कहा जाता है। इस प्रकार पराबैंगनी किरणें सजीवों के लिए बेहद हानिकारक हैं।

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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा प्राथमिक प्रदूषक है? (2015)
(क) SO2
(ख) CO
(ग) NO2
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी

प्रश्न 2.
भोपाल गैस त्रासदी किस गैस से हुई थी? (2017)
(क) मेथिल आइसोसायनेट
(ख) एथिल आइसोसायनेट
(ग) मेथेन
(घ) SOx एवं NOx
उत्तर
(क) मेथिल आइसोसायनेट

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सी वायु प्रदूषक गैस है और अम्लीय वर्षा बनाती है? (2011, 12, 14)
(क) सल्फर डाइऑक्साइड
(ख) ऑक्सीजन
(ग) नाइट्रोजन
(घ) हाइड्रोजन
उत्तर
(क) सल्फर डाइऑक्साइड

प्रश्न 4.
ताजमहल को किसके प्रभाव से खतरा बना हुआ है? (2017)
(क) क्लोरीन
(ख) SO2
(ग) ऑक्सीजन
(घ) हाइड्रोजन
उत्तर
(ख) SO2

प्रश्न 5.
यदि किसी जलकाय में लगातार प्रदूषक पदार्थ गिरेंगे तो उसका – (2017)
(क) BOD बढ़ जायेगा
(ख) BOD घट जायेगा
(ग) सभी पौधे मृत हो जायेंगे।
(घ) जन्तु मर जायेंगे परन्तु पौधे जीवित रहेंगे
उत्तर
(क) BOD बढ़ जायेगा।

प्रश्न 6.
यदि वातावरण में CO2 की सान्द्रता लगातार बढ़ती है, तो इसका वातावरण में क्या प्रभाव होगा? (2017)
(क) ओजोन अपक्षरण
(ख) ग्रीनहाउस प्रभाव
(ग) प्रकाश श्वसन का बढ़ना
(घ) घुटन होना
उत्तर
(ख) ग्रीनहाउस प्रभाव

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रदूषण की परिभाषा लिखिए। (2015)
उत्तर
यह जल, वायु तथा थल में होने वाला वह भौतिक तथा रासायनिक परिवर्तन है जिसके कारण इन स्थानों पर उपस्थित जीवों के जीवन में हानिकारक परिवर्तन आने लगते हैं और इन जीवों का जीवन संकट में आ जाता है।

प्रश्न 2.
प्रदूषक से आप क्या समझते हैं। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले मुख्य प्रदूषकों के नाम लिखिए। (2017)
उत्तर
प्रदूषक – पर्यावरण प्रदूषण उत्पन्न करने वाले पदार्थों को प्रदूषक कहते हैं। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले मुख्य प्रदूषक ईंधन का जलना, यातायात, रासायनिक क्रियायें, धातु कर्म आदि हैं।

प्रश्न 3.
द्वितीयक वायु प्रदूषक किसे कहते हैं? (2017)
उत्तर
कुछ प्रदूषक वातावरण में आने पर अन्य पदार्थों से क्रिया करके द्वितीयक प्रदूषकों के रूप में अनेक प्रकार के विषैले पदार्थ बना लेते हैं जो स्वास्थ्य पर गम्भीर तथा हानिकारक प्रभाव डालते हैं। जैसे स्मॉग, PAN, ओजोन, ऐल्डिहाइड आदि।

प्रश्न 4.
प्रदूषण उत्पन्न करने में कीटाणुनाशक पदार्थों की भूमिका का वर्णन कीजिए। (2009)
उत्तर
विभिन्न प्रकार के कीटाणुनाशक तथा पीड़कनाशक रसायन मृदा के सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देते हैं। इससे विभिन्न पदार्थों का अपघटन रुक जाता है और मृदा की उर्वरता प्रभावित होती है। ये पदार्थ खाद्य श्रृंखला के माध्यम से मनुष्य में पहुँच कर उन्हें भी हानि पहुँचाते हैं।

प्रश्न 5.
जीवाश्म ईंधन के जलने से जो सामान्य वायु प्रदूषक गैसें उत्पादित होती हैं, उनके नाम बताइए। (2009, 10)
या
किन्हीं दो वायु प्रदूषक गैसों के नाम बताइए। (2010, 14, 16)
उत्तर
SO2, SO3, NO2, CO2 तथा अदग्ध हाइड्रोकार्बन्स।

प्रश्न 6.
स्वचालित वाहनों से शहरी वायुमण्डल क्यों प्रदूषित हो जाता है? (2013)
उत्तर
स्वचालित वाहनों में जीवाश्म ईंधन के दहन के फलस्वरूप हानिकारक गैसें; जैसे- CO2, CO, SO2, NO2, आदि उत्सर्जित होती हैं जिससे वायुमण्डल प्रदूषित हो जाता है।

प्रश्न 7.
स्वचालित वाहन निर्वातक के अतिविषालु धातु प्रदूषक का नाम बताइए। (2010)
उत्तर
स्वचालित वाहन निर्वातक में प्राय: सीसा (Pb = lead) धातु अतिविषालु प्रदूषक होता है।

प्रश्न 8.
अम्ल वर्षा के लिए उत्तरदायी दो मुख्य अम्लों के नाम लिखिए। (2015, 17)
उत्तर

  1. सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) तथा
  2. नाइट्रिक अम्ल (HNO3)।

प्रश्न 9.
ग्रीन हाउस गैसों के चार प्रमुख स्रोतों के नाम लिखिए। (2017)
उत्तर

  1. CO2 – औद्योगीकरण से
  2. मेथेन – खदानों, तेल शोधन कारखानों एवं धान के खेतों से।
  3. CFCs – रेफ्रिजरेटर एवं एयर-कण्डिशनर निर्माण में प्रयुक्त होने वाली गैस से।
  4. नाइट्रस ऑक्साइड – नाइट्रोजनी खादों के प्रयोग से।

प्रश्न 10.
वायुमण्डल के किस भाग में सामान्यतः ओजोन पाया जाता है? (2013)
उत्तर
ओजोन वायुमण्डल के समतापमण्डल भाग में पाया जाता है।

NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 Environmental Issues (पर्यावरण के मुद्दे), Study Learner

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भोपाल गैस त्रासदी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2016)
उत्तर
भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) – 3 दिसम्बर, 1984 की मध्यरात्रि में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कम्पनी के कारखाने के एक संयन्त्र से दुर्घटनावश निकली गैसों के कारण अनेक लोगों की सोते हुए अकारण ही मृत्यु हो गयी तथा बहुत से लोग कई अन्य असाध्य बीमारियों के शिकार हो गये। यह घटना ‘भोपाल गैस त्रासदी’ (Bhopal gas tragedy) के नाम से जानी जाती है। इस कारखाने में मिथाइल आइसो सायनेट (M.I.C.) जैसी विषैली गैस (जिसका उपयोग सीवान नामक कीटनाशक उत्पाद बनाने में किया जाता था) के रिसाव से लगभग 2 हजार व्यक्तियों की जाने गईं तथा हजारों लोग आँख और श्वास के गम्भीर रोगों के शिकार हुए। यह भी अनुमान है कि इस संयन्त्र से निकली गैसों में M.I.C. के साथ एक और बहुत ही विषैली गैस ‘फॉस्जीन’ (phosgene) भी थी।

प्रश्न 2.
अम्लीय वर्षा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2012, 13, 14, 16, 17, 18)
उत्तर
अम्लीय वर्षा
प्राकृतिक ईंधनों के जलने से, अनेक पदार्थों के ऑक्साइड विशेषकर गन्धक, नाइट्रोजन आदि के जल वाष्प के साथ मिलकर अम्ल बना लेते हैं; जैसे

  1. SO2 से SO3 तथा H2SO4, इसी प्रकार
  2. नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NO2) से HNO3 आदि बन जाते हैं।

जब ये अम्ल अधिक आर्द्रता में जल के साथ वर्षा के रूप में गिरते हैं, इसे अम्लीय वर्षा (acid rain) कहते हैं।

अम्लीय वर्षा से हानियाँ – अम्लीय वर्षा से जल तथा मृदा की अम्लीयता (acidity) बढ़ती है अतः मृदा की उर्वरता (fertility) कम हो जाती है। साथ ही पेड़-पौधों की पत्तियों को हानि पहुँचती है। जिससे प्रकाश संश्लेषण की गति मन्द पड़ जाती है। इस प्रकार अम्लीय वर्षा विभिन्न प्रकार से हमारी सम्पत्ति को नष्ट करती है। उदाहरण के लिए यह-इमारतों, रेल-पटरियों, स्मारकों, ऐतिहासिक इमारतों, विभिन्न पदार्थों से बनी मूर्तियों तथा अन्य सामान को नष्ट करने वाली होती है।

प्रश्न 3.
जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग पर टिप्पणी लिखिए। (2014, 15, 16, 17)
उत्तर
जैव- रासायनिक ऑक्सीजन माँग (Biochemical Oxygen Demand = BOD) जल में कार्बनिक अपशिष्ट पदार्थों की अधिकता से उनके विघटन की दर व ऑक्सीजन की खपत बढ़ जाती है, जिससे जल में घुलित ऑक्सीजन (dissolve Oxygen =DO) की मात्रा कम हो जाती है। ऑक्सीजन की आवश्यकता का सीधा सम्बन्ध जल में कार्बनिक पदार्थों की बढ़ती मात्रा से है। इसे जैव-रासायनिक ऑक्सीजन माँग (BiochemicalOxygen Demand =BOD) के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। BOD, ऑक्सीजन की उस मात्रा का मापन है जो जल के एक नमूने में वायवीय जैविक अपघटकों (aerobic decomposers) द्वारा जैव क्षयकारी (biodegradable) कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के लिए आवश्यक है। घर की गन्दी नाली से निकले गन्दे जल की BOD value 200 – 400 ppm ऑक्सीजन (एक लीटर गन्दे जल के लिये) होती है। औद्योगिक संस्थानों से निकले कचरे के कारण BOD का मान 2500 ppm तक हो जाता है। पीने के स्वच्छ जल की BOD 1 ppm से कम होनी चाहिये।

प्रश्न 4.
रेडियोऐक्टिव अपशिष्ट प्रबन्धन पर टिप्पणी लिखिए। (2014)
उत्तर
रेडियोऐक्टिव अपशिष्टों को नष्ट करने के लिए सबसे सरल एवं उचित उपाय यह है कि इन अपशिष्टों को भूमि में लगभग 500 मीटर या और अधिक गहराई में गाड़ दिया जाये परन्तु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि वह स्थान जहाँ पर अपशिष्ट को गाड़ा जा रहा हो मानव आबादी से बहुत दूर हो।
परमाणु परीक्षण को तत्काल प्रभाव से रोका जाना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो ये परीक्षण भूमि के नीचे गहराई में किये जाने चाहिए।

प्रश्न 5.
ग्रीन हाउस प्रभाव पर टिप्पणी लिखिए। (2010, 11, 12, 13, 14, 16, 18)
उत्तर
वायु प्रदूषण का पृथ्वी के तापक्रम पर प्रभाव
ग्रीन हाउस प्रभाव वायुमण्डल के सामान्य संगठन तथा पर्यावरण के सामान्य अवस्था में होने पर सूर्य की किरणों से गर्म होने वाली पृथ्वी अधिकतर ऊष्मा को वापस लौटा देती है जो बाह्य वायुमण्डल (exosphere) व अन्तरिक्ष में वापस विसरित हो जाती है। इस प्रकार पृथ्वी का जीवमण्डल क्षेत्र ऊष्मा से बचा रहता है। किन्तु पिछले कुछ दशकों से पर्यावरण में कुछ गैसों; विशेषकर कार्बन डाइऑक्साइड आदि की मात्रा बढ़ने से पृथ्वी पर तापमान बढ़ने लगा है।

पृथ्वी पर कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता से बनी हुई परत ग्रीन हाउस के शीशे की परत के समान कार्य करती है अर्थात् यह सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने देने के लिए तो पारदर्शक (transparent) होती है परन्तु पृथ्वी से गर्म वायु जब ऊपर उठती है तो यह उसके लिए अपारदर्शक (opaque) दीवार का काम करती है, फलस्वरूप पृथ्वी का तापक्रम बढ़ जाता है। कार्बन डाइऑक्साइड का यही प्रभाव ग्रीन हाउस प्रभाव (green house effect) कहलाता है। अन्य गैसें; जैसे- क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स (CFCs), नाइट्रोजन के ऑक्साइड; जैसे- (NO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), अमोनिया (NH3), मेथेन (CH4) आदि भी इसी प्रकार का प्रभाव उत्पन्न करने में सहायक होती हैं।

ग्रीन हाउस प्रभाव के प्रभाव
ग्रीन हाउस प्रभाव त्वचा (skin) तथा फेफड़ों (lungs) के रोगों में वृद्धि करने में सहायक है। इसके अन्य भयंकर प्रभावों में ताप के कारण पर्वतीय चोटियों तथा धुवों (poles) पर बर्फ के पिघलने से समुद्र तल में वृद्धि, तटीय भूमि (coastal land) तथा नगरों आदि के पानी में डूबने की सम्भावना में अत्यधिक वृद्धि होती जाती है।

ग्रीन हाउस प्रभाव से पृथ्वी का ताप बढ़ने अर्थात् भूमण्डलीय ऊष्मायन (global warming) के अतिरिक्त पर्यावरण विभिन्न प्रकार से प्रभावित होता है। इससे पौधों में वाष्पोत्सर्जन में वृद्धि, वर्षा (rainfall) में वृद्धि, किन्तु मृदा नमी (soil moisture) का ह्रास होता है।

प्रश्न 6.
‘पृथ्वी ऊष्मायन पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए। (2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15)
या
वैश्विक तापन अथवा भूमण्डलीय ऊष्मायन के कारण और उसे कम करने के उपाय बताइए। (2015, 17)
उत्तर
पृथ्वी ऊष्मायन या भूमण्डलीय ऊष्मायन
ग्रीन हाउस गैसों (green house gases) के द्वारा उत्पन्न ग्रीन हाउस प्रभाव (green house effect) ही पृथ्वी ऊष्मायन (global warming) का कारण है। पृथ्वी पर पहुँचने वाली प्रकाशीय ऊर्जा को तो ये गैसें क्षोभमण्डल में आने में कोई बाधा नहीं डालतीं किन्तु ऊष्मा के रूप में जब यह ऊर्जा वापस विकरित होती है तो उसके कुछ भाग को वायुमण्डल में ही रोके रखती हैं अथवा ये ऊष्मारोधी गैसें पृथ्वी से विसरित होकर आयी ऊष्मा का कुछ भाग अवशोषित कर लेती हैं एवं पुनः धरातल को वापस कर देती हैं। इस प्रक्रिया में वायुमण्डल के निचले भाग में अतिरिक्त ऊष्मा एकत्रित हो जाती है। विगत कुछ वर्षों से मानवीय क्रिया-कलापों के कारण इन ऊष्मारोधी गैसों की मात्रा वायुमण्डल में बढ़ जाने के कारण वायुमण्डल के औसत ताप में वृद्धि हो गयी है। इस प्रकार पृथ्वी के औसत तापमान में बढ़ोतरी को पृथ्वी ऊष्मायन या भूमण्डलीय ऊष्मायन या विश्व तापन (global warming) कहते हैं।

विश्व मौसम संगठन के अनुसार भूतल का औसत तापमान पिछली शताब्दी के पूरा होते-होते लगभग 0.60° सेल्सियस तक बढ़ा है। तापमान में यह वृद्धि मुख्य रूप से 1910 से 1945 ई० और 1976 से 2000 ई० के मध्य हुई है।

इस प्रकार लगभग सम्पूर्ण विश्व में 90 का दशक सबसे गर्म दशक और 1961 ई० के बाद क्रमशः 1980,81, 83, 86 एवं 1988 ई० का वर्ष सबसे गर्म वर्ष रहा है। इस दशक तक तुलनात्मक रूप में समुद्री जल का ताप भी बढ़ा है।

ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से उत्पन्न संकट सम्पूर्ण विश्व के लिए भयंकरतम समस्या है। इसके दुष्प्रभाव तथा दुष्परिणाम पृथ्वी पर उपस्थित जीवन के लिए ही खतरा सिद्ध हो सकते हैं। इस सबका परिणाम है। कि ऊँचे स्थानों पर अधिक वर्षा होने लगी है और उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में वर्षा में कमी आयी है।

पिछली शताब्दी में समुद्री जल स्तर में 15 से 20 सेमी तक बढ़ोतरी हुई है। विश्व के कुछ स्थानों में ग्लेशियर (glaciers) का कुछ नीचे हो जाना भी वायुमण्डल के तापमान में वृद्धि का संकेत है। ग्लोबल वार्मिंग का सबसे भयंकर दुष्परिणाम पर्यावरण में जलवायु तथा मौसम परिवर्तन के रूप में। प्रकट होता है। जैसे-जैसे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है इस प्रकार के परिवर्तन के परिणाम सामने आ भी रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में, लगभग 20 वर्ष पूर्व जहाँ हिमपात होता था, उन स्थानों पर हिमपात होना बन्द हो गया है अथवा इतनी कम मात्रा में होने लगा है कि उसका कोई लाभ नहीं रह गया है।

इस प्रकार के परिवर्तनों के कारण प्रतिवर्ष विभिन्न मौसमों में आकस्मिक तापमान की वृद्धि या कमी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं; जैसे-तूफान, चक्रवात, अतिवृष्टि, सूखा आदि के रूप में सामने आ रही है। 1990 से 2100 ई० तक पृथ्वी के तापमान में वर्तमान गति से 5° सेल्सियस तक बढ़ जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है। इस प्रकार की तापमान में वृद्धि से वर्षा के प्रारूप में अत्यधिक परिवर्तन आएँगे विशेषकर निचले अक्षांशों (latitudes) पर वर्षा में अधिक कमी हो सकती है। फलस्वरूप सूखा, बाढ़ जैसी आपदाओं में वृद्धि हो सकती है। बढ़ती गर्मी और मानसून की अनिश्चितता से कटिबन्धीय क्षेत्रों में पैदावार में कमी आ सकती है।

संयुक्त राष्ट्र ने अपने पर्यावरण कार्यक्रम में उल्लेख कियां है; आज मानवता के समक्ष भूमण्डलीय ऊष्मायन (ग्लोबल वार्मिंग) सबसे भयावह खतरा है। इसके लिए मनुष्य की आर्थिक विकास की गतिविधियाँ उत्तरदायी हैं। ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव सम्पूर्ण पारिस्थितिक तन्त्र (ecological setup) पर पड़ता है। इससे जीवमण्डल का कोई भी अंश प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है; परिणामस्वरूप पर्वतों से बर्फ पिघलेगी, बाढ़े आयेंगी, समुद्री जल स्तर बढ़ेगा, स्वास्थ्य सम्बन्धी विपदाएँ बढ़ेगी, असमय मौसमी बदलाव होंगे तथा जलवायु में भयंकर परिवर्तनों को बढ़ावा मिलेगा।

एक अध्ययन के अनुसार प्रति 1° सेल्सियस तापमान की वृद्धि से दक्षिण-पूर्वी एशिया में चावल का उत्पादन 5 प्रतिशत कम हो जाएगा।
उपर्युक्त के अतिरिक्त अन्य अनेक दुष्परिणाम; जैसे- अनावृष्टि, अतिवृष्टि आदि की सम्भावनाओं का बढ़ना, विभिन्न प्रकार के रोगों में वृद्धि, क्षोभमण्डल (troposphere) के बाहरी भाग में उपस्थित पृथ्वी के रक्षा कवच अर्थात् ओजोनमण्डल (ozonosphere) अथवा ओजोन परत (ozone layer) की मोटाई में कमी होने की सम्भावना आदि है।

ओजोन परत के क्षीण होने से पृथ्वी पर पराबैंगनी किरणों के प्रभाव में वृद्धि हो जाएगी जिससे त्वचा कैन्सर, मोतियाबिन्द आदि रोगों में वृद्धि होती है, शरीर का प्रतिरोधी तन्त्र हासित होता है, सूक्ष्म जीव; विशेषकर पादपप्लवकों (phytoplanktons) के नष्ट होने से जलीय पारिस्थितिक तन्त्र पूर्णत: नष्ट हो जायेंगे।

भूमण्डलीय ऊष्मायन को कम करने के उपाय पृथ्वी ऊष्मायन (ग्लोबल वार्मिंग) को रोकने के लिए मानवीय क्रिया-कलापों पर प्रतिबन्ध लगाना आवश्यक है जिनसे ग्रीन हाउस गैसों; जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O), मेथेन (CH4), क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स (CFCs), हैलोजन्स (हैलोकार्बन्स Clx, Fx, Brx) आदि की वृद्धि को रोकने में सहायता मिल सकती है।

प्रश्न 7.
ओजोन परत को हानि पहुँचाने वाले प्रदूषकों का विवरण दीजिए। पृथ्वी पर जीवन के लिए ओजोन परत का क्या महत्त्व है? (2011, 12)
या
ओजोन क्षरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2012, 14)
या
ओजोन परत पर एक विवरण लिखिए। (2015, 16)
उत्तर
ओजोन परत
ओजोन परत (ozone layer) जिसे ओजोन मण्डल (ozonosphere) भी कहते हैं, समतापमण्डल के निचले तथा क्षोभमण्डल के ऊपरी (बाहरी) भाग में स्थित है। यह भाग 15 से 30 किमी ओजोन गैस (O3) की एक मोटी परत होती है। यह गैस ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बनी हुई होती है। इसमें एक विशेष प्रकार की तीखी गंध होती है तथा इसका रंग नीला होता है। ओजोन सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों प्रमुखतः पराबैंगनी किरणों (ultraviolet rays) को पृथ्वी पर आने से रोककर पृथ्वी और उसके जीवधारियों के सुरक्षा कवच (protection shield) के रूप में कार्य करती है।

ओजोन परत को हानि
वायु प्रदूषण के कारण विभिन्न प्रकार के प्रदूषक ओजोन परत या ओजोनमण्डल (ozonosphere) को हानि पहुँचा सकते हैं। उदाहरण के लिए समतापमण्डल में क्लोरीन गैस के पहुंचने से ओजोन की मात्रा में कमी आ जाती है।
क्लोरीन का एक परमाणु 1,00,000 ओजोन अणुओं को नष्ट कर देता है। ये क्लोरीन परमाणु क्लोरोफ्लोरोकार्बन (chloroflorocarbon = CFCs) के विघटन से बनते हैं। इनकी रासायनिक क्रिया इस प्रकार है –
Cl + O3 → ClO + O2
ClO + O – Cl + O2

फ्रेऑन (freon) सबसे अधिक घातक क्लोरोफ्लोरोकार्बन है, इसका प्रयोग प्रशीतन (रेफ्रिजरेशन) वातानुकूलन, गद्देदार सीट या सोफों में प्रयुक्त फोम, अग्निशामक प्लास्टिक, ऐरोसॉल स्प्रे आदि में होता है। उद्योगों में CFCs का उत्पादन लगातार होता है। इस प्रकार अत्यधिक औद्योगीकरण, 15 किमी से अधिक ऊँचाई पर उड़ने वाले जेट विमान, परमाणु बमों के विस्फोट आदि से निकली विषैली गैसे जिसमें क्लोरीन यौगिक तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड्स होते हैं, ज्वालामुखी विस्फोट से निकली हाइड्रोजन क्लोराइड तथा फ्लोराइड आदि गैसें ओजोन परत के अवक्षय के लिए जिम्मेदार हैं। इन सभी विषैली गैसों के कारण ओजोन परत की मोटाई लगातार घटती जा रही है और उसमें जगह-जगह पर छिद्र हो रहे हैं।

ओजोन परत का महत्त्व
सूर्य से प्राप्त पराबैंगनी किरणों, जिन्हें ओजोन परत रोकती है, से सीधा सम्पर्क मनुष्य, अन्य जीव- जन्तु, वनस्पति आदि में रोग प्रतिरोधक क्षमता का अवक्षय करता है। मनुष्य में त्वचा का कैन्सर, आँखों में मोतियाबिन्द, अन्धापन आदि रोगों की वृद्धि होती है। समुद्री तथा स्थलीय जीव-जन्तु, कृषि, उपज, वनस्पति एवं खाद्य पदार्थों पर भी इन पराबैंगनी किरणों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इनसे भूपृष्ठीय तापमान बढ़ने से विश्वतापन या पृथ्वी ऊष्मायन (global warming) का खतरा है। इससे जलवायु परिवर्तित हो जायेगी अर्थात् ओजोन परत पृथ्वी एवं उसके समस्त जीवधारियों की जीवन सुरक्षा में प्रकृति का अनुपम उपहार है और इसमें कमी (या ओजोन छिद्र) पृथ्वी के पर्यावरण के लिए भयंकर तबाही ला सकता है।

प्रश्न 8.
वनोन्मूलन के कारण क्या हैं और इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है? (2015)
या
वनोन्मूलन क्या है? इसके मुख्य कारण लिखिए। (2015)
उत्तर
वनोन्मूलन – वन क्षेत्र को वन रहित क्षेत्र में परिवर्तित करने की प्रक्रिया वनोन्मूलन कहलाती है।
वनोन्मूलन के कारण
वनोन्मूलन के प्रमुख कारण निम्नवत् हैं –

  1. मानव जनसंख्या का बढ़ना जिससे भवन निर्माण, रेलवे लाइन, सड़कों, इमारतों, शैक्षिक संस्थाओं, उद्योगों आदि को स्थापित करने के लिए भूमि की माँग बढ़ी है।
  2. दावानल (forest fire) के अवसर बढ़ना। दावानल बड़े वृक्षों के साथ-साथ छोटे पौधों और यहाँ तक कि बीजों और अनेक जन्तुओं को भी भस्म कर देती है।
  3. मानव क्रियाओं के कारण जलवायु में परिवर्तन के फलस्वरूप सूखा, तूफान, वर्षा आने के कारण वनों का विनाश हुआ है।
  4. पशुओं के अत्यधिक चारण से, जिससे बड़े पौधों के साथ-साथ छोटे पौधे भी नष्ट हो जाते हैं। तथा मृदा अपरदन भी होता है।

वनोन्मूलन का नियंत्रण
वनोन्मूलन के नियंत्रण के कुछ उपाय निम्नवत् हैं –

  1. चारण समस्या को नियन्त्रित करना।
  2. वन रहित भूमि पर वनारोपण करना।
  3. संरक्षित वन, आरक्षित वन या अन्य वन्य भूमि सहित सभी प्रकार के वनों का संरक्षण करना।
  4. कृषि एवं आधिपत्य के स्थानान्तरण को नियन्त्रित करना।
  5. वनों में केन्द्रीय सरकार की पूर्वानुमति से अवन्य क्रियाओं की अनुमति मिलना।
  6. ऐसे स्थानों पर जहाँ मृदा अपरदन की अधिक सम्भावना है वनोन्मूलन को रोकना।
  7. वनवासियों के पास ईंधन, चारा, वास्तु सामग्री आदि गौण स्रोतों की पहुँच होनी चाहिए जिससे कि वे पेड़ न काटें।
  8. कार्यकारी योजनाओं का वैज्ञानिक अनुसन्धान पर आधारित पर्यावरणीय सार्थक कार्य योजनाओं में रूपान्तरण।
  9. मानवों की सहकारी समिति द्वारा प्रबन्धित गाँव के चारों ओर समुदाय वन लगाना।
  10. खड़े वनों की सुरक्षा करमा।
  11. वृक्षारोपण के कार्य में आम जनता और ऐच्छिक एजेन्सियों को सम्बद्ध करना।

प्रश्न 9.
वन संरक्षण तथा चिपको आंदोलन से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए। (2016)
उत्तर
मानव एवं अन्य जीवों के समुचित विकास एवं वृद्धि के लिए वन संरक्षण आवश्यक है। इसके लिए सभी लोगों की भागीदारी होनी चाहिए। अगर वन-क्षेत्र के आस-पास के लोग इसे बचाने के लिए सजग रहेंगे तो वर्तमान पीढ़ी की जरूरत पूरी होगी एवं भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति की क्षमता भी बनी रहेगी। भारत में वन संरक्षण में लोगों की भागीदारी सदियों से रही है।

चिपको आन्दोलन (Chipko Movement) – चिपको आन्दोलन डॉ० सुन्दरलाल बहुगुणा की अगुवाई में शुरु हुआ। सन् 1974 में हिमालय के गढ़वाल में जय ठेकेदारों द्वारा वृक्षों को काटने की प्रक्रिया आरम्भ हुई तो इन्हें बचाने के लिए स्थानीय महिलाओं ने अदम्य साहस का परिचय दिया। वे वृक्षों से चिपकी रहीं एवं वृक्षों को काटे जाने से रोकने में सफल रहीं। इसी प्रयास ने आन्दोलन का रूप लिया एवं चिपको आन्दोलन के रूप में विश्वविख्यात हुआ।

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विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों तथा इसका नियन्त्रण करने के उपयुक्त उपायों का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर
प्रदूषण
[संकेत-अतिलघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 के उत्तर का अध्ययन करें]

प्रदूषण के कारण
प्रदूषण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
1. वाहितमल (Sewage) – नगरपालिकाओं में भूमिगत नालियों के द्वारा बस्तियों से निकला। मल-मूत्र प्रायः नदी, बड़े तालाबों अथवा झीलों में डाल दिया जाता है। मूत्र में यूरिया होता है। जिसके जलीय-अपघटन द्वारा अमोनिया उत्पन्न होती है। गन्दी नालियों में उपस्थित अन्य नाइट्रोजन यौगिकों के अपघटन से भी अमोनिया उत्पन्न होती रहती है। इस प्रकार जल प्रदूषित हो जाता है और इससे दुर्गन्ध फैलती है। इस प्रकार का जल पीने योग्य नहीं रहता और न ही ऐसे जल का प्रयोग नहाने-धोने के लिए किया जा सकता है, क्योंकि ऐसे जल में नहाने से बहुत से चर्मरोग हो जाते हैं।

2. घरेलू अपमार्जक (Household Detergents) – घरेलू अपमार्जक ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं। जो दुग्धशाला व भोज्य सामग्री में उपयोगी दूसरे सामान, मकानों, अस्पतालों की सफाई तथा नहाने-धोने के काम आते हैं। इनमें बहुत से विभिन्न प्रकार के साबुन, सर्फ, टाइड (tide), फैब (fab) इत्यादि हैं। ये पदार्थ नालियों इत्यादि के द्वारा नदियों, तालाबों, झीलों, इत्यादि में चले। जाते हैं। अपमार्जकों के कार्बनिक पदार्थों का पूर्णरूप से ऑक्सीकरण न हो पाने के कारण कार्बन डाइऑक्साइड, ऐल्कोहॉल, कार्बनिक अम्ल उत्पन्न हो जाते हैं जो जल का प्रदूषण करते हैं और जलीय प्राणियों को हानि पहुँचाते हैं।

3. कीटाणुनाशक पदार्थ (Pesticides) – ये पदार्थ चूहे, कीड़े-मकोड़े, जीवाणुओं, कवकों आदि को मारने के लिए खेतों, उद्यानों, गन्दी नालियों और पौधों पर छिड़के जाते हैं। ये पदार्थ ठोस, द्रव तथा गैस के रूप में होते हैं। डी०डी०टी० (DDT) सफेद रंग का पदार्थ है जो चीटियों, मक्खियों, कीड़े-मकोड़ों तथा मच्छरों को मारने के काम आता है। सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) एक रंगहीन गैस के रूप में मकानों को कीटाणुविहीन करने के लिए प्रयोग में आती है। इसी प्रकार फॉर्मेल्डिहाइड, क्लोरीन, क्रियोसोल, कार्बोलिक अम्ल, फिनाइल, पोटेशियम परमैंगनेट इत्यादि बहुत से कीटाणुओं को मारने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। चूने को, मकानों में, सफेदी के रूप में तथा गन्दी नालियों में पाए जाने वाले कीड़े-मकोड़ों को मारने के लिए प्रयोग किया जाता है। चूने में क्लोरीन गैस को मिलाकर ब्लीचिंग पाउडर बनाया जाता है। यह कुओं तथा जल संग्रहालयों का जल शुद्ध करने के काम आता है।

इन रासायनिक पदार्थों से हमें जितना लाभ होता है उससे कहीं अधिक हानि होती है, जैसे- अनेक जन्तुओं की मृत्यु उन पौधों तथा छोटे कीड़ों के खाने से हो जाती है, जिन पर ये दवाइयाँ छिड़की गई हों। मच्छर इत्यादि मारने के लिए ये पदार्थ हवाई जहाज द्वारा छिड़के जाते हैं जिससे अनेक पौधे व मछलियाँ इत्यादि मर जाती हैं। कीटनाशी दवाइयों के छिड़कने से भूमि में रहने वाले कीड़े, केंचुए तथा कवक, इत्यादि भी मर जाते हैं जिससे मृदा की उर्वरता नष्ट हो जाती है। कीटनाशी रासायनिक पदार्थ के प्रयोग से कभी-कभी सन्तान पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

4. खरपतवारनाशी पदार्थ (Weedicides) – 2,4-D एवं 2,4,5-T तथा दूसरे पदार्थ जिनका प्रयोग खेतों में उत्पन्न खरपतवार (weeds) को नष्ट करने के लिए किया जाता है, मिट्टी में मिलकर भूमि प्रदूषण करते हैं।

5. धुआँ (Smoke) – औद्योगिक चिमनियों, घरों में ईंधन के जलाने तथा स्वचालित वाहनों, जैसे- मोटरकार तथा रेल के इंजन, इत्यादि से धुआँ निकलकर वायु प्रदूषण करता है। धुएँ में कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल की वाष्प मुख्य रूप से होती है। इसके साथ ही कार्बन मोनॉक्साइड, अन्य कार्बनिक यौगिक तथा नाइट्रोजन के यौगिक भी होते हैं। वातावरण में इनकी मात्रा बढ़ जाने पर वायु प्रदूषित हो जाती है, श्वसन में कठिनाई होती है तथा आँखों पर बुरा प्रभाव

6. स्वतः चल-निर्वातक (Automobile Exhaust) – जेट विमान, ट्रैक्टर, मोटरकार, स्कूटर इत्यादि में पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल, इत्यादि के जलने से हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं। जो वायु प्रदूषण करती हैं। वायुमण्डल में आने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की लगभग 20 प्रतिशत मात्रा मोटर वाहन इंजनों में गैसोलिन के जलने से आती है।

7. औद्योगिक उच्छिष्ट (Chemical Discharge from Industries) – औद्योगिक उच्छिष्टों के जल में मिलने से उसमें ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और उसमें क्लोराइड, नाइट्रेट तथा
सल्फेट आदि की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है। कारखानों से निकले अपशिष्ट पदार्थ नदियों में डाले जाने के कारण हमारे देश की अधिकांश नदियों का जल प्रदूषित होता जा रहा है। इन पदार्थों का विषैला प्रभाव मछलियों आदि जलीय जन्तुओं तथा जलीय पौधों के लिए हानिकारक होता है। सीसे (lead), जस्ते (zinc), ताँबे (copper) तथा लौह (iron) के यौगिक जल में मिलकर विशेष रूप से उसका प्रदूषण करते हैं।

विद्युत् उत्पादन के लिए ऊष्मीय शक्ति संयन्त्र (thermal power plant) में कोयले का अधिक मात्रा में दहन होता है। प्रति तीन टन कोयले का दहन करने के लिए आठ टन ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है जिसके कारण वायुमण्डल की ऑक्सीजन धीरे-धीरे कम हो रही है। एक सुपर ऊष्मीय संयन्त्र (thermal plant) 100 टन सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) प्रतिदिन उत्पन्न कर रहा है जो कि प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है।

8. कूड़े-करकट तथा लाशों का सड़ना (Decay and Putrefaction of Household Waste and Dead Bodies) – विभिन्न जन्तुओं की मृत्यु के बाद बहुत से जीवाणुओं द्वारा उनकी लाशों का अपघटन किया जाता है, इस प्रक्रिया में सड़न उत्पन्न होती है। मृत जन्तुओं की प्रोटीन के अपघटन से उत्पन्न अमोनिया इत्यादि दुर्गन्धमय पदार्थों से वायु प्रदूषित होती है। इसी प्रकार विभिन्न जीवाणुओं द्वारा कूड़े के ढेर का अपघटन करने पर उत्पन्न अनेक दुर्गन्धमय पदार्थ एवं । दूषित गैसें भी वायु को प्रदूषित करती हैं।

9. रेडियोधर्मी प्रबन्धन (Radioactive Management) – अणु परीक्षणों पर प्रतिबन्ध होना चाहिए, इनका प्रयोग केवल मानव कल्याण हेतु होना चाहिए। विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों, चिकित्सीय उपकरणों (रेडियोधर्मी) तथा अन्य सभी अपशिष्ट पदार्थों जिनमें कुछ भी रेडियोधर्मिता है को बस्ती से दूर भूमि में गहराई में दबा देना चाहिए।

10.जैविक प्रदूषक (Bio-Pollutants) – कुछ रोग; जैसे-दमा, जुकाम, एक्जीमा तथा त्वचा सम्बन्धी अन्य दूसरे रोग कुछ जैविकों के कारण होते हैं, जैसेकि कुछ कवकों के बीजाणु (fungal spores), जीवाणु (bacteria) तथा कुछ उच्च वर्ग के पौधों के परागकण (pollen grains), जैसे-कीकर (Acacid), शहतूत (Mulberry), अरण्डी (Ricinus), पार्थेनियम (carrot grass) एवं चिलबिल (Holopteleg)।

प्रदूषण का नियन्त्रण
नगरपालिका वाहितमल (sewage) के जल में शहरों एवं कस्बों से निकली गन्दगी, कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ तथा मानव-मल में उपस्थित बहुत से जीवाणु होते हैं जो रोग फैला सकते हैं। बस्ती के समस्त वाहितमल का एक ही निष्कासन स्थान होना उचित है जो नदी के उस भाग में खुलता हो जो शहर की आबादी के बाहर आता है, यदि बस्ती के पास नदी नहीं हो तब निष्कासन बस्ती से दूर किसी ऐसी झील, तालाब, इत्यादि में किया जा सकता है जिसका जल मनुष्य व उसके पशुओं के काम न आता हो, यदि बस्ती के बाहर काफी मात्रा में खाली भूमि हो तो वहाँ भी गन्दा जल निकाला जा सकता है जिससे कुछ जल जलवाष्प के रूप में उड़ जाता है तथा कुछ भूमिगत हो जाता है।

नदी, तालाब, झीलों में डाले जाने वाले मल-मूत्र से उनके जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिससे वहाँ रहने वाली मछलियों के मरने की सम्भावना रहती है, जिस कारण यह आवश्यक हो जाता है कि वाहितमल (sewage) को जल में डालने से पूर्व उसे शुद्ध किया जाए। प्रदूषण नियन्त्रण के कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं –

1. वाहितमल शुद्धिकरण (Sewage Treatment) – वाहितमल के शुद्धिकरण में पहले गन्दगी को विशेष छन्नों द्वारा छानकर अलग किया जाता है फिर गन्दगी को नीचे बैठने दिया जाता है। (settling)। इस क्रिया से अकार्बनिक पदार्थ एवं कुछ कार्बनिक पदार्थ पृथक् हो जाते हैं तथा शेष कार्बनिक पदार्थ निलम्बित (suspended) और घुली अवस्था में रह जाते हैं। इन पदार्थों का खनिजीकरण (mineralization) किया जाता है जिससे यह पदार्थ अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित हो जाते हैं। इसमें ऑक्सीजन कृत्रिम विधियों द्वारा जल में प्रविष्ट की जाती है या इसे ऑक्सीजन की अधिकता वाले टैंक में पहुँचाया जाता है जिसमें ऑक्सीय जीवाणु होते हैं। यहाँ से कुछ घण्टे बाद स्लज अन्तिम टैंक में जाता है, जहाँ पर अनॉक्सीय दशाओं में स्लज का विघटन होता है। इस क्रिया में मेथेन गैस मुक्त होती है। यह गैस, पूरा उपकरण चलाने में ईंधन के रूप में प्रयुक्त होती है।

कभी-कभी इस प्रक्रिया में बहुत से हरे शैवालों में उत्पन्न ऑक्सीजन का प्रयोग किया जाता है। यह ऑक्सीजन हरे शैवालों द्वारा प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में उत्पन्न होती है। गन्दे जल में प्रायः वे सभी तत्व उपस्थित होते हैं जिनकी शैवालों को अपनी वृद्धि के लिए आवश्यकता होती है, जैसे-कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, सल्फर, पोटैशियम, इत्यादि, परन्तु ये पदार्थ गन्दे जल में जटिल कार्बनिक पदार्थों के यौगिकों के रूप में उपस्थित रहते हैं। शैवालों द्वारा प्रयोग में लाए जाने के लिए इन पदार्थों में CO2, NH3, SO4, NO3, PO3 के अतिरिक्त ऑक्सीजन का होना आवश्यक है। यह कार्य शैवालों तथा जीवाणुओं की सहजीविता द्वारा किया जाता है। शैवाल जीवाणुओं के लिए ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं तथा जीवाणु इस ऑक्सीजन का प्रयोग करके जटिल पदार्थों से अकार्बनिक पदार्थ बनाते हैं जो शैवालों द्वारा प्रयोग किए जाते हैं।

वाहितमल की गन्दगी का शैवालों द्वारा शुद्धिकरण एक विशेष प्रकार के खुले तालाबों में किया जाता है। ऐसे तालाबों को ऑक्सीकरण ताल (Oxidation ponds) अथवा निरीक्षण ताल (stabilization ponds) कहते हैं। वाहितमल के गन्दे जल को तालाब में एक स्थान पर प्रविष्ट और दूसरी ओर से निष्कासित किया जाता है।

2. घरेलू अपमार्जकों (household detergents) को भी वाहितमल की तरह नदियों, झीलों तथा तालाबों में डाला जाना चाहिए। यह कार्य शहर की आबादी वाले क्षेत्र से आगे की ओर के भागों में किया जाना चाहिए। जिस तालाब अथवा झील का जल पशुओं आदि के पीने के काम आता है उसमें कपड़े व गन्दी वस्तुएँ नहीं धोनी चाहिए। इसी प्रकार जिन खेतों में कीटनाशक पदार्थ और खरपतवारनाशक छिड़के गए हों, उनमें से बहने वाले जल को पीने के जलाशयों में नहीं जाने देना चाहिए। उद्योग-धन्धों से निष्कासित बहुत से रासायनिक पदार्थों को भी पीने के जलाशयों तथा खेतों में न डालकर ऐसे तालाबों व झीलों में डाला जाना चाहिए जिनमें मछलियाँ इत्यादि न हों।

3. रेडियोधर्मी विकिरण के प्रभाव से बचने के लिए परमाणु विस्फोट को कम अथवा पूर्णरूप से रोका जाना चाहिए। रेडियोधर्मी व्यर्थ पदार्थों का निपटान एक गम्भीर समस्या है और अब तक समुद्र ही इसके लिए उपयुक्त स्थान समझा जाता है। विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, चिकित्सीय उपकरणों (रेडियोधर्मी) तथा अन्य सभी ऐसे अपशिष्ट पदार्थों जिनमें कुछ भी रेडियोधर्मिता है, को कंकरीट टैंकों में बन्द करके बस्ती से दूर भूमि में गहराई में दबा देना चाहिए।

4. रहने के लिए मकान सड़कों से कुछ दूरी पर बनाए जाने चाहिए जिससे स्वत: चल-निर्वातकों से निकले धुएँ और धूल का मानव जीवन पर दुष्प्रभाव न पड़े।

5. घरों से निकले गोबर को बस्ती से बाहर कम्पोस्ट गड्ढों (compost pits) में डाला जाना चाहिए जिससे उसके ढेर पर मक्खी इत्यादि को प्रजनन के लिए उपयुक्त स्थान न मिल पाए और इससे बदबू भी उत्पन्न न हो। इस प्रकार से गोबर से अच्छी खाद बन सकती है। गोबर से गोबर गैस संयन्त्र (gobar gas plant) द्वारा गोबर गैस उत्पन्न की जानी चाहिए, जो घरों में ईंधन के रूप में प्रयोग की जा सके। इस विधि में एक बड़े सिलेण्डर (cylinder) में एक ओर 30 सेमी का एक छिद्र होता है जो एक ढक्कन से बन्द रहता है। सिलेण्डर का 3/4 भाग भूमिगत रखा जाता है। छिद्र के द्वारा गोबर और कुछ जल समय-समय पर सिलेण्डर में डाला जाता है। एक-दूसरे छिद्र के द्वारा 2 – 5 सेमी की एक नली सिलेण्डर से रसोई के चूल्हे तक ले जाई जाती है। गोबर में किण्वन (fermentation) से उत्पन्न गैस ईंधन का कार्य करती है।

6. मृत जन्तुओं तथा मकानों के कूड़े-करकट को बस्ती से दूर गड्ढ़ों में रखकर मिट्टी से ढक देना चाहिए।

7. स्वचालित वाहनों (automobiles) में उत्प्रेरक संपरिवर्तक (catalytic converter) का प्रयोग वायुमण्डलीय प्रदूषण (atmospheric pollution) को कम करने के लिए किया जाता है। इस विधि में स्वचालित वाहनों (automobiles) के इंजन से निकलने वाली गैसों को उत्प्रेरक संपरिवर्तक (catalytic converter) में रखे विषमांगी उत्प्रेरक (heterogenous catalyst) के ऊपर से प्रवाहित किया जाता है।

उत्प्रेरक संपरिवर्तक (catalytic converter) में विषमांगी उत्प्रेरक (heterogenous catalyst) के रूप में प्लैटिनम (platinum), पैलेडियम (palladium) एवं होडियम (rhodium) धातुओं के साथ-साथ कॉपर ऑक्साइड (CuO) एवं क्रोमियम ऑक्साइड (Cr2O3) का भी प्रयोग करते हैं।

स्वचालित वाहनों (automobiles) में उत्प्रेरक संपरिवर्तक (catalytic converter) का प्रयोग करते समय सीसा रहित पेट्रोल (unleaded petrol) का प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि सीसायुक्त पेट्रोल (leaded petrol) उत्प्रेरक संपरिवर्तक में रखे विषमांगी उत्प्रेरकों (heterogenous catalyst) के लिए विष (poison) का कार्य करता है और उत्प्रेरक संपरिवर्तक की कार्य क्षमता को समाप्त कर देता है।

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प्रश्न 2.
वायु प्रदूषण क्या होता है? वायु प्रदूषण के कारणों एवं मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों की विवेचना कीजिए। वायु प्रदूषण के नियन्त्रण के उपायों का उल्लेख कीजिए। (2010,11,14,16)
या
वायु प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? विभिन्न प्रकार के वायु प्रदूषकों का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में वातावरण पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों की विवेचना कीजिए। (2010)
या
‘वायु प्रदूषक’ पर टिप्पणी लिखिए। (2015, 17)
उत्तर
वायु प्रदूषण
वायु में विभिन्न प्रकार की गैसें पाई जाती हैं; जैसे- O2 (21%), N2 (78%), आर्गन (1% से कम), CO2 (0.03%) आदि। वायु में किसी भी गैस की मात्रा सन्तुलित अनुपात से अधिक होना अथवा कम होना अथवा अन्य किसी पदार्थ का समावेश वायु प्रदूषण (air pollution) कहलाता है और इस प्रकार की वायु श्वसन के योग्य नहीं रहती। सभी जीव श्वसन में कार्बन डाइऑक्साइड निकालते तथा ऑक्सीजन लेते हैं, किन्तु हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कर ऑक्सीजन वायु में छोड़ते हैं। इस प्रकार इन दोनों गैसों का अनुपात सन्तुलित रहता है। मनुष्य अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए विभिन्न प्रकार की क्रियाएँ करके इस सन्तुलन को बिगाड़ता है। एक ओर वह वनों इत्यादि को अनियोजित प्रकार से काट डालता है तो दूसरी ओर कल-कारखाने, औद्योगिक संस्थान आदि चलाकर वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को बढ़ाता है, साथ ही नाइट्रोजन, सल्फर आदि अनेक तत्त्वों के ऑक्साइड्स इत्यादि वायुमण्डल में डाल देता है।

वायु प्रदूषक
सामान्यत: दो प्रकार के कारक वायु में प्रदूषक (pollutants) उत्पन्न करने में सहायक हैं। ये हैं, मनुष्य की बढ़ती जनसंख्या (population) तथा बढ़ती हुई उत्पादकता (productivity) जिसमें कृषि प्रक्रियाएँ, ऊर्जा उत्पादन प्रमुखत: परमाणु ऊर्जा तथा अन्य वैज्ञानिक क्रियाएँ सम्मिलित हैं। वायुमण्डल को प्रदूषित करने वाले अनेक स्रोत (sources) इन प्रदूषकों (pollutants) को इन्हीं दो कारकों के आधार पर उत्पन्न करते हैं। सारणी देखिए।

वायु प्रदूषण के स्रोत तथा उनसे उत्पन्न होने वाले प्रदूषक
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वायु प्रदूषण के परिणाम या जन-जीवन पर प्रभाव
वायु प्रदूषण से निम्नलिखित हानियाँ होती हैं। कुछ भयंकर रोग भी वायु प्रदूषण के द्वारा ही होते हैं –
1. वायु में उपस्थित मिट्टी, धूल के कण, परागकण, बीजाणु आदि श्वास के रोग, जैसे- दमा (asthma), फेफड़ों का कैन्सर, एलर्जी आदि उत्पन्न करते हैं तथा वायुमण्डल को भी दूषित करते हैं।

2. कोयला तथा पेट्रोलियम पदार्थों के जलने से निकली गैसें मुख्यतः कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि फेफड़ों में पहुँचकर नमी से अभिक्रिया कर अम्ल बनाती हैं, जो श्वसन तन्त्र में घाव कर देते हैं। नाइट्रोजन के ऑक्साइड फेफड़ों, हृदय तथा आँखों के रोग पैदा करते हैं। कार्बन मोनोऑक्साइड रुधिर में मिलकर ऑक्सीजन के वाहक हीमोग्लोबिन से अभिक्रिया करके ऑक्सीजन संवहन के कार्य को प्रभावित करती है तथा थकावट व मानसिक विकार पैदा करती है।

3. वातावरण में फ्लुओराइड (fluoride) की मात्रा बढ़ने से पत्तियों के सिरों व किनारों के ऊतक नष्ट होने लगते हैं इस स्थिति को हरिमहीनता (chlorosis) या ऊतक क्षय (necrosis) कहते हैं। फलस्वरूप पत्तियाँ नष्ट होने लगती हैं, प्रकाश संश्लेषण रुक जाता है और ऑक्सीजन की उत्पत्ति पर प्रभाव पड़ता है।

4. कुछ प्रदूषक वातावरण में आने पर अन्य पदार्थों से क्रिया करके द्वितीयक प्रदूषकों (secondary pollutants) के रूप में अनेक प्रकार के विषैले पदार्थ बना लेते हैं जो स्वास्थ्य पर गम्भीर तथा हानिकारक प्रभाव डालते हैं; जैसे- स्वचालित निर्वातक में निकलने वाले अदग्ध हाइड्रोकार्बन तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड सूर्य के प्रकाश में प्रतिक्रिया करके प्रकाश संश्लेषी स्मॉग (photosynthetic smog) का निर्माण करते हैं। इनमें पैरॉक्सी ऐसीटिल नाइट्रेट (PAN) तथा ओजोन होते हैं। इस प्रकार बनने वाले पदार्थ विषैले होते हैं। इनका प्रभाव विशेषकर आँखों तथा श्वसन पथ पर होता है तथा साँस लेने में कठिनाई हो जाती है। पौधों के लिए PAN अत्यधिक हानिकारक है तथा इसके प्रभाव से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया अवरुद्ध हो जाती है। दूसरी ओर ओजोन पत्तियों में श्वसन तेज कर देती है। इस प्रकार, भोजन की कमी से पौधे नष्ट हो जाते हैं।

5. विभिन्न प्रकार की धातुओं के कण घातक रोगों को जन्म देते हैं। ये सब विषैले होते हैं। सीसा (lead) तन्त्रिका तन्त्र तथा वृक्कों के रोगों को उत्पन्न करता है। कैडमियम रुधिर चाप बढ़ाता है। और हृदय तथा श्वसन सम्बन्धी रोगों का कारण है। लोहे तथा सिलिका के कण भी फेफड़ों की बीमारियाँ पैदा करते हैं।

6. फ्लुओराइड हड्डियों तथा दाँतों पर प्रभाव डालते हैं। इनसे पत्तियों पर धब्बे पड़ जाते हैं और पौधों की वृद्धि ठीक नहीं होती है।

पूर्ण या अपूर्ण दहन से उत्पन्न प्रदूषक तथा उनका स्वास्थ्य पर प्रभाव प्रदूषक
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जन्तुओं पर प्रभाव
उपर्युक्त के अनुसार, वायु प्रदूषक अन्य जन्तुओं पर भी अहितकर प्रभाव उत्पन्न करते हैं। पशुओं में फेफड़ों की अनेक बीमारियाँ, धूलकणों, सल्फर डाइऑक्साइड आदि से पैदा होती हैं। इसी प्रकार कार्बन मोनोऑक्साइड से पशुओं की मृत्यु तक हो जाती है। गाय, बैल तथा भेड़े, फ्लुओरीन के प्रति अत्यधिक संवेदी हैं। फ्लुओरीन घास तथा अन्य चारों में एकत्रित हो जाती है। पशु जब इसको खाते हैं। तो ये पदार्थ उनके शरीर में पहुँचकर अस्थियों तथा दाँतों पर प्रभाव डालते हैं। कैडमियम श्वसन विष है, यह हृदय को हानि पहुँचाता है। सुअर वायु प्रदूषण से कम प्रभावित होता है।

पौधों पर प्रभाव
वायु प्रदूषण का पौधों पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है। सामान्यत: वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों की परतें होने के कारण सूर्य के प्रकाश की पौधों तक पहुँच कम हो जाने से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कमी आती है। धूल तथा अन्य कण पत्तियों पर जमकर उनकी कार्यिकी पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। उनमें श्वसन, प्रकाश संश्लेषण तथा वाष्पोत्सर्जन क्रिया की दर घट जाती है। सल्फर डाइऑक्साइड पत्तियों में क्लोरोफिल (chlorophyll) को नष्ट कर देती है। ओजोन की उपस्थिति से श्वसन तेज हो जाता है, भोजन की आपूर्ति नहीं हो पाती अतः पौधे की मृत्यु हो सकती है। इसी प्रकार, विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म कण; जैसे- सीसा, कैडमियम, फ्लुओराइड, ऐस्बेस्टस आदि वृद्धि रोकने वाले, ऊतकों को नष्ट करने वाले आदि प्रभाव उत्पन्न करते हैं। इनके प्रभाव से पत्तियाँ आंशिक रूप से अथवा पूर्ण रूप से झुलस (जलना) जाती हैं।

अन्य आर्थिक प्रभाव
सल्फर डाइऑक्साइड व कार्बन डाइऑक्साइड आदि से बने अम्ल; जैसे-सल्फ्यूरिक अम्ल, कार्बनिक अम्ल हमारी इमारतों, वस्त्रों आदि पर अत्यन्त हानिकारक प्रभाव डालते हैं। भवनों पर सीसे (lead) का रोगन हाइड्रोजन सल्फाइड के प्रभाव से काला पड़ जाता है। सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स आदि भवनों का संक्षारण भी करते हैं। मथुरा के तेल शोधक कारखाने से निकली हुई गैसें, कहते हैं कि विश्व प्रसिद्ध आगरा के ताजमहल के संगमरमर को काफी हानि पहुँचा रही हैं। इसी प्रकार, दिल्ली के लाल किले के पत्थरों को थर्मल विद्युत गृह से निकली गैसों ने काफी हानि पहुँचायी है।

ओजोन कवच पर प्रभाव
ओजोन कवच जो पृथ्वी के वायुमण्डल के बाहरी भाग में, क्षोभ मण्डल (troposphere) जिसमें हम रहते हैं, के बाहर व समताप मण्डल (stratosphere) के भीतरी परत के रूप में है तथा समताप मण्डल का ही भाग मानी जाता है, 15 से 30 किमी ओजोन गैस (O3) की मोटी परत के रूप में स्थित है, पृथ्वी की सुरक्षा विशेषकर सूर्य से आने वाली पराबैंगनी (ultraviolet) किरणों आदि से करता है। वायु प्रदूषण के कारण विभिन्न प्रकार के प्रदूषक इस परत को हानि पहुँचा सकते हैं। उदाहरण के लिए समताप मण्डल में क्लोरीन गैस के पहुंचने से ओजोन की मात्रा में कमी आ जाती है। क्लोरीन का एक परमाणु, 1,00,000 ओजोन अणुओं को नष्ट कर देता है।

सूर्य से प्राप्त पराबैंगनी किरणों, जिन्हें ओजोन परत रोकती है, से सीधा सम्पर्क मनुष्य, अन्य जीव-जन्तु, वनस्पति आदि में रोग प्रतिरोधक क्षमता का अवक्षय करता है। मनुष्य में त्वचा का कैन्सर, आँखों में मोतियाबिन्द, अन्धापन आदि रोगों की वृद्धि होती है। समुद्री तथा स्थलीय जीव-जन्तु, कृषि उपज, वनस्पति एवं खाद्य पदार्थों पर भी इन पराबैंगनी किरणों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इनसे भूपृष्ठीय तापमान बढ़ने से विश्वतापन (global warming) का खतरा है जिससे जलवायु परिवर्तित हो जायेगी।

वायु प्रदूषण की रोकथाम (नियन्त्रण)
मनुष्य ने विभिन्न प्रकार से वायु को सामान्य से अधिक दूषित करना प्रारम्भ कर दिया है। उद्योगों एवं अन्य कारणों से हमारा वायुमण्डल बहुत अधिक दूषित हो रहा है। इस स्थिति में वायुमण्डल को कृत्रिम रूप से प्रदूषण-रहित करने की भी आवश्यकता को अनुभव किया जाने लगा है। वायु को शुद्ध रखने के लिए निम्नलिखित कृत्रिम साधनों को मुख्य रूप से अपनाया जाता है –

  1. आवासों को बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि उनमें हवा एवं सूर्य के प्रकाश के आने-जाने की व्यवस्था ठीक रहे तथा उन्हें सड़कों इत्यादि से दूर बनाना चाहिए।
  2. जहाँ कोयला, लकड़ी आदि जलायी जाती है वहाँ से धुआँ निकलने के लिए ऊँची चिमनी आदि की व्यवस्था होनी चाहिये, ताकि धुआँ एवं दूषित गैसें घर के अन्दर एकत्रित न हो पायें।
  3. यदि पशु पालने हों तो उन्हें आवास से दूर ही रखना चाहिये। इनके गोबर इत्यादि को गोबर गैस आदि बनाने में उपयोग में लाना चाहिये।
  4. आबादी क्षेत्रों में काफी संख्या में पेड़-पौधे लगाने चाहिये ये वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करते हैं तथा ऑक्सीजन को बढ़ाते हैं जिससे वायुमण्डल स्वच्छ होता है।
  5. भूमि खाली नहीं छोड़नी चाहिये, धूल उड़कर वायु को दूषित करती है।
  6. औद्योगिक संस्थानों तथा फैक्ट्रियों को आबादी से दूर बनाना चाहिये। इनमें छन्ने लगाये जाने चाहिए तथा धुआँ निकालने वाली चिमनियाँ काफी ऊँची होनी चाहिये जिससे दूषित गैसें काफी दूर ऊँचाई पर वायुमण्डल में चली जाये।
  7. जहाँ अधिक वाहन चलते हैं वहाँ की सड़कें पक्की होनी चाहिये। चूँकि कच्ची सड़कों से धूल उड़ती है।
  8. वनों आदि को सुरक्षित तथा संवर्धित करना आवश्यक है। इन्हें नष्ट होने से बचाना तथा नये वन लगाने चाहिए। यदि वृक्षों को काटना ही आवश्यक हो तो वांछित संख्या में नये पेड़ लगाकर क्षतिपूर्ति पहले ही कर लेनी आवश्यक है।

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प्रश्न 3.
जल-प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? यह कितने प्रकार का होता है? जल-प्रदूषण के कारणों तथा मानव-स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव की विवेचना कीजिए। जल-प्रदूषण के नियन्त्रण के उपायों का उल्लेख कीजिए। (2011, 14, 17)
या
नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने के समुचित उपाय लिखिए। (2014)
या
क्या कारण है कि औद्योगिक इकाइयों के पास बहने वाली नदियों का जल पीने योग्य नहीं होता है? (2014)
या
गंगा जल प्रदूषण के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए और इसके नियन्त्रण के उचित उपाय भी लिखिए। (2015, 18)
या
घरेलू अपमार्जक पर टिप्पणी लिखिए। (2017)
उत्तर
जल प्रदूषण
जल पौधों एवं जन्तुओं दोनों के लिए ही अति आवश्यक है। पेड़-पौधे भूमि से जड़ों की सहायता से जल प्राप्त करते हैं, जबकि जन्तु इसे विभिन्न जल स्रोतों से पीते हैं।

जल में होने वाला ऐसा भौतिक तथा रासायनिक या तापीय परिवर्तन जिसके कारण जल जहरीला (poisonous) हो जाता है तथा यह फिर पौधों तथा जन्तुओं के लिए उपयोगी नहीं रहता है, जल प्रदूषण (water pollution) कहलाता है।

जल प्रदूषण के विभिन्न स्रोत या प्रकार

  1. वाहित मल
  2. घरेलू अपमार्जक
  3. कृषि उद्योग के प्रदूषक
  4. औद्योगिक रसायन
  5. रेडियोधर्मी पदार्थ
  6. तापीय प्रदूषण।

1. वाहित मल (Sewage) – नगरों से निकले विभिन्न अपशिष्ट पदार्थ; जैसे- मल-मूत्र, कूड़ा-करकटे आदि नालियों-नालों द्वारा बड़े तालाबों, झीलों तथा नदियों में डाल दिया जाता है जिससे इन जल स्रोतों में अपघटन की क्रिया आदि सामान्य रूप से बढ़ जाती है, इससे जले स्रोतों में दुर्गन्ध फैलने लगती है। अब ऐसा जल पीने योग्य नहीं रह जाता क्योंकि इसमें विभिन्न हानिकारक प्रदूषक मिले हुए होते हैं जो जीव-जन्तुओं के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाते हैं। ऐसा जल नहाने योग्य भी नहीं रहता है क्योंकि ऐसे प्रदूषित जल में नहाने पर विभिन्न प्रकार के चर्म रोगों के होने का खतरा रहता है। डॉॉफ्नया (Dophnia) तथा ट्राउट (Trout) आदि मछलियाँ जल प्रदूषण के प्रति संवेदनशील होती हैं।

2. घरेलू अपमार्जक (Household Detergents) – घरों में साफ-सफाई के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले रासायनिक पदार्थ; जैसे- विभिन्न प्रकार के सर्फ एवं साबुन आदि आते हैं, घरेलू अपमार्जक (household detergents) कहलाते हैं। इन सभी पदार्थों को घरों से नालियों में बहा दिया जाता है जिससे शैवालों की संख्या में तीव्र वृद्धि होने लगती है। जब इन शैवालों की मृत्यु होती है तो इनके अपघटन के लिए इन्हें फिर तालाबों, झीलों आदि में पहुँचाया जाता है। अपमार्जकों के जल में जमा हो जाने के कारण अधिक O2 की आवश्यकता पड़ती है, जिसके कारण अन्य जलीय जीवों के लिए O2 की मात्रा कम पड़ने लगती है जिससे जलीय जीवों की मृत्यु होने लगती है।

3. कृषि उद्योग के प्रदूषक (Agricultural Pollutants) – विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों; जैसे- 2-4D, 2-4-5 T, DDT, SOआर्गेनोक्लोरीन, आर्गेनोफास्फेट आदि का प्रयोग कृषि उद्योग में खरपतवारनाशी (weedicides), शाकनाशी (herbicides), कीटनाशी (insecticides), पेस्टीसाइड्स (pesticides), आदि के रूप में किया जाता है। ये पदार्थ खाद्य श्रृंखला (food chain) से होते हुए मनुष्य (सर्वाहारी) में संचित होते रहते हैं, जिससे मनुष्य में तरह-तरह की बीमारियाँ उत्पन्न होने लगती हैं। मनुष्य में इस प्रकार के संचय को बायोमैग्नीफिकेशन (biomagnification) कहते हैं। यही रासायनिक पदार्थ जब नालियों तथा नालों द्वारा तालाबों या झीलों में पहुँचते हैं तो तालाब में उपस्थित जन्तुओं एवं पौधों दोनों को हानि पहुँचाते हैं और जल प्रदूषण (water pollution) करते हैं।

4. औद्योगिक रसायन (Industrial Chemicals) – विभिन्न उद्योगों द्वारा विभिन्न प्रकार के कार्बनिक (organic) तथा अकार्बनिक (inorganic) प्रदूषकों (pollutants) को जल में मुक्त किया जाता है।

पारा, साइनाइड, रबर, रेशे, तेल, धूल, कोयला, अम्ल, क्षार, गर्म जल, कॉपर, जिंक, फिनोल, फेरस लवण (सल्फाइड तथा सल्फाइट), जस्ता, क्लोराइड आदि प्रमुख औद्योगिक प्रदूषक (industrial pollutants) हैं जो जल में मुक्त किये जाते हैं। जल में पहुँचकर ये जलीय वनस्पतियों तथा जन्तुओं को तरह-तरह से हानि पहुँचाते हैं।

सन् 1952 में जापान के मिनामाटा खाड़ी (Minamata bay) में पारे (30 -100 ppm तक) से प्रदूषित (infected) मछलियों को खाने से अनेक लोगों की मृत्यु हो गई थी। यही कारण है कि औद्योगिक इकाइयों के पास बहने वाली नदियों का जल पीने योग्य नहीं होता है।

5. रेडियोधर्मी पदार्थ (Radioactive Substances) – परमाणु केन्द्रों में होने वाले विभिन्न प्रयोगों के फलस्वरूप उत्पन्न विकिरण (radiation) जल में पहुँचकर जलीय जीवों में प्रतिकूल आनुवंशिक प्रभाव (hereditary effect) डालती हैं।

6. तापीय प्रदूषण (Thermal Pollution) – ऊष्मीय शक्ति संयन्त्रों (thermal power plants) में कोयले की ऊष्मा का उपयोग करके विद्युत उत्पन्न की जाती है। यहाँ अपशिष्ट पदार्थ के रूप में गर्म जल (hot water) को नदी-नालों में बहा दिया जाता है, जहाँ पर पहुँचकर यह जलीय जन्तुओं एवं पौधों को हानि पहुँचाता है।

जल प्रदूषण की रोकथाम के उपाय
जल प्रदूषण की रोकथाम के लिए निम्नलिखित प्रयास किये जाने चाहिए –

  1. मानव आबादियों से उत्पन्न विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों; जैसे- मल-मूत्र, कूड़ा-करकट आदि को जल में नहीं डालना चाहिए। इन्हें मानव बस्तियों से बाहर गड्ढों में दबा देना चाहिए।
  2. घरों से निकलने वाले गन्दे जल को एकत्रित कर संशोधन संयन्त्रों के पूर्ण उपचार के उपरान्त ही नदी या तालाबों में विसर्जित किया जाना चाहिए।
  3. पेट्रोलियम अवशिष्टों को नदी, नालों आदि में नहीं बहाना चाहिए।
  4. कृषि के लिए न्यूनतम मात्रा में रसायनों तथा जैविक खाद का उपयोग किया जाना चाहिए।
  5. जल के दुरुपयोग को रोकना चाहिए। इसके लिये समाज में जाग्रति पैदा करनी चाहिए।
  6. मृत जीवों को जल में नहीं बहाना चाहिए।
  7. फॉस्फोरस का अवक्षेपण कर उसे जलाशयों से हटा देना चाहिए।
  8. सेफ्टिक टैंक, ऑक्सीकरण तालाब तथा फिल्टर स्तर का प्रयोग कर कार्बनिक पदार्थों की मात्रा को कम किया जा सकता है।
  9. कारखानों द्वारा उत्पन्न गर्म जल को नदियों आदि में नही छोड़ना चाहिए, इससे जलीय जन्तु एवं वनस्पति नष्ट हो जाती है।

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प्रश्न 4.
रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है? रेडियोधर्मी प्रदूषण फैलाने वाले किन्हीं दो रेडियोधर्मी पदार्थों के नाम लिखिए। (2015)
या
रेडियोधर्मी प्रदूषण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2016)
उत्तर
रेडियोधर्मी प्रदूषण
परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों और परमाणवीय परीक्षणों से जल, वायु तथा भूमि का प्रदूषण होता है जो आज की पीढ़ी के लिए ही नहीं वरन् आने वाली पीढ़ियों के लिए भी हानिकारक सिद्ध होता है। एक नाभिकीय विस्फोट (nuclear explosion) के द्वारा इलेक्ट्रॉन (electrons), प्रोटॉन (protons) के साथ-ही-साथ न्यूट्रॉन (neutrons) तथा α (ऐल्फा) एवं β (बीटा) कण प्रवाहित होते हैं जिनके कारण गुणसूत्रों (chromosomes) पर उपस्थित जीन्स (genes) में उत्परिवर्तन (mutations) उत्पन्न होते हैं जो आनुवंशिक होते हैं। नाभिकीय विस्फोट से विस्फोटन के स्थान पर तथा उसके आस-पास बहुत अधिक जीव हानि होती है और लम्बी अवधि में यह समस्त संसार के लिए भी हानिकारक होता है। इस प्रकार के विस्फोट से लन्दन, न्यूयॉर्क तथा दिल्ली जैसे बड़े शहर भी शीघ्र ही नष्ट किए जा सकते हैं तथा वैज्ञानिकों के पास अभी तक इससे बचाव के कोई साधन नहीं हैं।

प्रायः 16 किमी तक चारों ओर के स्थान में इससे सारी लकड़ी जल जाती है। विस्फोट के स्थान पर तापक्रम इतना अधिक हो जाता है कि धातु तक पिघल जाती हैं। एक विस्फोट के समय उत्पन्न रेडियोधर्मी पदार्थ वायुमण्डल की बाह्य परतों में प्रवेश कर जाते हैं, जहाँ पर वे ठण्डे होकर संघनित अवस्था में बूंदों का रूप ले लेते हैं और बाद में ठोस अवस्था में बहुत छोटे धूल के कणों के रूप में वायु में विसरित हो जाते हैं और वायु के झोंकों के साथ समस्त संसार में फैल जाते हैं। कुछ वर्षों के पश्चात् ये रेडियोधर्मी बादल धीरे-धीरे पृथ्वी पर बैठने लगते हैं। सभी नाभिकीय विस्फोटों के द्वारा प्राय: 5% रेडियोधर्मी स्ट्रॉन्शियम-90 (strontium-90) मुक्त होता है जिससे जल, वायु तथा भूमि का प्रदूषण होता है।

यह घास तथा शाकों में प्रवेश पा जाता है और इस प्रकार से यह गाय व दूसरे दूध देने वाले पशुओं के द्वारा तथा मांस के द्वारा मनुष्य के शरीर में प्रवेश पा जाता है, जहाँ पर यह हड्डियों में प्रवेश कर, कैन्सर तथा अन्य आनुवंशिक रोग उत्पन्न करता है। बच्चों को यह अधिक हानि पहुँचाता है। आयोडीन131 (Iodine131) थाइरॉइड को उत्तेजित करता है तथा लसिका गाँठों, रुधिर कणिकाओं व अस्थि मज्जा को नष्ट करके ट्यूमर (tumour) उत्पन्न करती है। द्वितीय महायुद्ध में 6 अगस्त सन् 1945 व 9 अगस्त सन् 1945 को क्रमशः नागासाकी तथा हिरोशिमा में हुए परमाणु बम के विस्फोट से लाखों मनुष्यों की मृत्यु के अतिरिक्त बहुत से लोग अपंग हो गए थे और बहुत से रोग उनकी सन्तति में भी उत्पन्न हुए।

पराबैंगनी (UV) किरणें DNA, RNA व प्रोटीनों को प्रभावित करती हैं। पराबैंगनी विकिरणों (UV radiations) के कारण जिरोडर्मा पिगमेण्टोसम (xeroderma pigmentosum) नामक त्वचा का रोग हो जाता है। सीजियम137 (Cs137) उपापचयिक क्रियाओं में बाधा उत्पन्न करता है।

26 अप्रैल सन् 1986 में रूस में चिरनोबिल (Chernobyl) स्थित परमाणु शक्ति केन्द्र से लगभग 1,35,000 व्यक्तियों को वहाँ से तुरन्त हटाया गया और 1.5 लाख को सन् 1991 तक हटाया गया। लगभग 6.5 लाख व्यक्ति इससे प्रभावित हुए हैं जिनमें कैन्सर, थाइरॉइड, मोतियाबिन्द तथा प्रतिरक्षा तन्त्र के क्षीण होने की सम्भावना है। मानवीय भूल के कारण घातक रेडियोधर्मी कण कई किलोमीटर वातावरण में प्रविष्ट हो गए थे जिसके कारण अनेक व्यक्ति हताहत हुए थे।

प्रश्न 5.
प्रदूषण क्या है? ध्वनि प्रदूषण का विस्तार से वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर
प्रदूषण
[संकेत–अतिलघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 के उत्तर का अध्ययन करें]

ध्वनि प्रदूषण
नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक रॉबर्ट कोच (Robert Koch) ने शोर (noise) के सम्बन्ध में विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि “एक दिन ऐसा आएगा जब मनुष्य को स्वास्थ्य के सबसे बड़े शत्रु के रूप में निर्दयी शोर (noise) से संघर्ष करना पड़ेगा।” लगता है वह दुखद दिन अब निकट आ गया है। शोर (noise) की गिनती भी अब प्रदूषकों में होने लगी है।

अन्य प्रदूषकों (pollutants) के समाने शोर भी हमारी औद्योगिक प्रगति एवं आधुनिक सभ्यता का प्रतिफल (byproduct) है। अनेक प्रकार के वाहन, जैसे- मोटरकार, बस, जेट विमान, ट्रैक्टर, रेलवे इंजन, जेनरेटर, लाउडस्पीकर, टेलीविजन, रेडियो, बाजे एवं कारखानों के साइरन तथा मशीनों, आदि से ध्वनि प्रदूषण होता है। ध्वनि की लहरें जीवधारियों की उपापचय क्रियाओं को प्रभावित करती हैं। अधिक तेज ध्वनि से मनुष्य की सुनने की शक्ति का ह्रास होता है और अधिक समय तक शोर में रहने से बहरापन (prebycusis) हो जाता है। शोर के कारण नींद ठीक प्रकार से नहीं आती जिससे नाड़ी-संस्थान सम्बन्धी एवं नींद न आने के रोग उत्पन्न हो जाते हैं, कभी-कभी तो पागलपन का रोग भी हो जाता है। कुछ ध्वनि छोटे-छोटे कीटाणुओं को नष्ट कर देती हैं जिस कारण बहुत से पदार्थों का प्राकृतिक रूप से अपघटन नहीं होता।

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के चांसलर डॉ० वर्न नुडसन (Verm Knudson) मानते हैं कि धुएँ के समान ही शोर भी एक धीमी गति वाला मृत्यु दूत है।

ध्वनि की प्रबलता (intensity of noise), शोर की इकाई, डेसीबल (decibel dB) में मापी जाती है। 50 से 60 dB नींद में व्यवधान उत्पन्न करने के लिए काफी है। 80 डेसीबल (dB) या इससे अधिक का शोर श्रवण-शक्ति को स्थायी हानि पहुँचाने में सक्षम होता है। सामान्य श्रवण-शक्ति वालों के लिए 25 – 30 डेसीबल की ध्वनि पर्याप्त होती है। 5 डेसीबल की ध्वनि अत्यन्त मन्द, 75 dB साधारण तेज, 95 dB अत्यन्त तेज और 120 dB से अधिक की ध्वनि तीव्र कष्टकारक होती है। ध्वनि प्रदूषण को कम करने का उपाय यही है कि हम अपने दैनिक जीवन में धीमी ध्वनि का प्रयोग करें अर्थात् त्योहारों, उत्सवों आदि पर लाउडस्पीकर, म्यूजिक सिस्टम इत्यादि का प्रयोग कम आवाज के साथ करें। वाहनों के हॉर्न अनावश्यक न बजायें। प्रेशर हॉर्न का प्रयोग न करें इत्यादि।

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